शहादत की लज़्ज़त

〽️दुनिया की बेशुमार नेअमतों से इंसान लुत्फ व लज़्ज़त हासिल करता है, किसी नेअमत को खाता है, किसी को पीता है, किसी को सूंघता है, किसी को देखता है, किसी को सुनता है और इन के अलावा मुख़्तलिफ तरीक़ों से तमाम नेअमतों को इस्तेमाल करता है और उन से महज़ूज़ होता है लेकिन मर्दे मोमिन को शहादत की जो लज़्ज़त हासिल होती है उस के सामने दुनिया की सारी लज़्ज़तें हेच हैं।

यहां तक कि शहीद जन्नत की तमाम नेअमतों से फाइदा उठाएगा और उन से लुत्फ अंदोज़ होगा मगर जब उस को अल्लाह व रसूल की मुहब्बत में सर कटाने का मज़ा याद आएगा तो जन्नत की भी सारी नेअमतों का मज़ा भूल जाएगा और तमन्ना करेगा कि ऐ काश! मैं दुनिया में वापस किया जाऊं और बार-बार शहीद किया जाऊं।

हदीस शरीफ में है सरकारे अक़्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया कि जन्नत में दाख़िल होने के बाद फिर कोई जन्नती वहां की राहतों और नेअमतों को छोड़ कर दुनिया में आना पसंद न करेगा कि जो चीज़ें हमें ज़मीन में हासिल थीं वह फिर मिल जाएं।

मगर शहीद आरजू करेगा कि वह फ़िर दुनिया की तरफ वापस. होकर अल्लाह की राह में दस मर्तबा क़त्ल किया

मिस्र की औरतें

〽️मिस्र के शरीफ घर की औरतों ने जब जुलैख़ा को हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम की मुहब्बत पर मलामत की और ताना दिया तो जुलैख़ा ने उन औरतों को बुलाया, उन के लिये दस्तर ख़्वान बिछवाया जिस पर तरह-तरह के खाने और मेवे चुने गए फिर जुलैख़ा ने हर औरत को फल वगैरा काटने के लिये एक-एक छुरी दी और हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम से अर्ज़ किया आप इन औरतों के सामने आ जाएं।

जब आप तशरीफ लाए और औरतों ने उनके जमाले जहां-आरा को देखा तो उन के हुस्न ने औरतों पर इतना असर किया कि बजाए लीमू के उन्हों ने अपने-अपने हाथों को काट लिया और खून बहने लगा मगर उन लोगों को हाथों के कटने का एहसास नहीं हुआ, इसी लिये उन्हों ने यह नहीं कहा कि हाए! हम तो अपने हाथ काट लिये बल्कि यह कहा कि यह इंसान नहीं हैं फिरिश्ता हैं।
 
#(सूरए यूसुफ, पाराः12, रुकूअः14)

और जब हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम के हुस्न का औरतों पर ऐसा असर हुआ कि उन को हाथ कटने की तक्लीफ

शहीद और ऐहसासे ज़ख़्म

〽️मैदाने जंग में शहीद हर तरह से ज़ख़्मी होता है कभी हाथ कटता है, कभी पांव घायल होता है, कभी उस के सीने में नेज़ा दाखिल किया जाता है, ख़ून का फव्वारा जारी होता है, कभी गर्दन कट के अलग हो जाती है और शहीद ख़ून में नहा कर ज़मीन पर गिर जाता है जिस से बज़ाहिर यह मालूम होता है कि उस को सख़्त तक्लीफ व अज़िय्यत होती है लेकिन हक़ीक़त यह है कि उस को बहुत मामूली सी तकलीफ होती है और उसे उन ज़ख्मों का पूरा ऐहसास नहीं होता।

मुख़्बिरे सादिक़ सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम इरशाद फ़रमाते हैं: शहीद क़त्ल की सिर्फ इतनी ही
तक्लीफ महसूस करता है जितनी कि तुम चुटकी भरने या चींवटी के काटने की तक्लीफ महसूस करते हो।
 
#(तिर्मिज़ी, मिश्कातः33)

मुम्किन है कोई कहे कि यह कैसे हो सकता है कि शहीद के हाथ पांव काट दिये गए और उसकी गर्दन भी जुदा कर दी गई मगर उसको सिर्फ इतनी तक्लीफ हुई जितनी चींवटी काटने या चुटकी भरने से होती है।

तो इस शुब्हा का जवाब यह है कि शहीद से यह शहीदे हक़ मुराद है जिस के दिल में अल्लाह और उस के रसूल की

शुहदा के फज़ाइल

〽️खुदाए अज़्ज़ व जल्ल शुहदा_ए_किराम की फज़ीलत बयान करते हुए क़ुरआने मजीद में इरशाद फरमाता है:

व ला तक़ुलू लि मै युक़ुतलु फी सबीलिल्लाही अम्वात बल अहया औं व लाकिल्ला तश्ऊरून

जो ख़ुदा की राह में क़ल्त किये जाएं उन्हें मुर्दा मत कहना बल्कि वह ज़िंदा हैं लेकिन तुम्हें ख़बर नहीं।
#(क़ुरआन करीम, पारा-2, रुकू-3)

और इरशाद फरमाता हैः
व ला तह्सबन्न्ल्ल ज़िन क़ुतिलू फ़ी सबीलिल्लाहि अम्वातन बल् अह्या औं इन्द रब्बीहिम् युर्ज़क़ून

जो लोग अल्लाह की राह में क़त्ल किये गए उन्हें मुर्दा हरगिज़ न ख़्याल करना बल्कि वह अपने रब के पास ज़िंदा हैं, रोज़ी दिये जाते हैं।
#(क़ुरआन करीम, पारा-4, रुकू-8)
हज़रत इब्ने मस्ऊद रदिअल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि मैं ने इस आयते करीमा का माना रसूले अक्रम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम से दर्याफ़्त किया तो आप ने इरशाद फरमाया कि शहीदों की रूहें सब्ज़ परिन्दों के जिस्म में हैं, उन के रहने के लिये अर्श इलाही के नीचे किन्दीलें लटकाई गई हैं। जन्नत में जहां उन का जी चाहता है वह सैर करते हैं और उसके मेवे खाते हैं।
#(मुस्लिम, मिश्कातः330)

और सरकारे अक़्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम शुहदा_ए_इस्लाम की अज़मत बयान करते हुए इरशाद फरमाते हैं कि शहीद के लिये ख़ुदा_ए_तआला के नज़दीक छः खूबियां हैं:

1). खून का पहला क़तरा गिरते ही उसे बख़्श दिया जाता है और रूह निकलने ही के वक़्त उस को जन्नत में उस का ठिकाना दिखा दिया जाता है।

2). क़ब्र के अज़ाब से महफूज़ रहता है।

3). उसे जहन्नम के अज़ाब का खौफ नहीं रहता।

4). उस के सर पर इज़्ज़त व वक़ार का ताज रखा जाएगा कि जिस का वेश बहा याकूत दुनिया और दुनिया की

शहीद की किस्में

शहीद की तीन किस्में हैं:

1- शहीदे हकीक़ी
2- शहीदे फिक़्ही और
3- शहीदे हुक्मी

जो अल्लाह की राह में क़त्ल किया जाए वह शहीदे हकीक़ी है और शहीदे फिक़्ही उसे कहते हैं कि आकिल बालिग़ मुसलमान जिसपर ग़ुस्ल फर्ज़ न हो वह तलवार व बंदूक वगैरा आलए जारिहा से ज़ुल्मन क़त्ल किया जाए और क़त्ल के सबब माल न वाजिब हुआ हो और न ज़ख़्मी होने के बाद कोई फायदा दुनिया से हासिल किया हो और न ज़िन्दों के अहकाम में से कोई हुकम उस पर साबित हुआ हो यानी अगर पागल, ना बालिग़ या हैज़ व निफास वाली औरतें और जुनुब शहीद किये जाएं तो वह शहीदे फिक़्ही नहीं और अगर क़त्ल से माल वाजिब हुआ हो जैसे कि लाठी से मारा गया या क़त्ले ख़ता कि मार रहा था शिकार को और लग गया किसी मुसलमान को, या ज़ख्मी होने के बाद खाया पिया, इलाज किया, नमाज़ का पूरा वक़्त होश में गुज़रा और वह नमाज़ पर क़ादिर था या किसी बात की वसिय्यत की तो वह शहीदे फिक़्ही नहीं। मगर शहीदे फिक़्ही न होने का यह माना नहीं कि वह शहीद होने का सवाब भी नहीं पाएगा बल्कि इस का मतलब सिर्फ इतना है कि उसे गुस्ल दिया जाएगा और शहीदे फिक़्ही नमाज़े जनाज़ा तो पढ़ी जाएगी मगर उसे गुस्ल नहीं दिया जाएगा वैसे ही खून के साथ दफन कर दिया जाएग और जो चीजें कि अज़ किस्म कफन नहीं होंगे उन्हें उतार लिया जाएगा जैसे ज़िरह, टोपी और हथियार वगैरा और कफन मस्नून में अगर कमी होगी तो उसे पूरा किया जाएगा, पाजामा नहीं उतारा जाएगा और सारे कपड़े उतार कर नए कपड़े नहीं दिये जाएंगे कि मक्-रूह है।

शहीदे हुक्मी यह है कि जो ज़ुल्मन नहीं क़त्त किया गया मगर कियामत के दिन वह शहीदों के गिरोह में उठाया जाएगा।

हदीस शरीफ में है कि सरकारे अक्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने फरमाया कि ख़ुदाए तआला की राह में शहीद किये जाने के अलावा सात शहादतें और हैं, जो ताऊन में मरे शहीद है, जो डूब कर मर जाए शहीद