〽️मिस्र
के शरीफ घर की औरतों ने जब जुलैख़ा को हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम की मुहब्बत
पर मलामत की और ताना दिया तो जुलैख़ा ने उन औरतों को बुलाया, उन के लिये
दस्तर ख़्वान बिछवाया जिस पर तरह-तरह के खाने और मेवे चुने गए फिर जुलैख़ा ने
हर औरत को फल वगैरा काटने के लिये एक-एक छुरी दी और हज़रत यूसुफ
अलैहिस्सलाम से अर्ज़ किया आप इन औरतों के सामने आ जाएं।
जब आप तशरीफ लाए और औरतों ने उनके जमाले जहां-आरा को देखा तो उन के हुस्न ने औरतों पर इतना असर किया कि बजाए लीमू के उन्हों ने अपने-अपने हाथों को काट लिया और खून बहने लगा मगर उन लोगों को हाथों के कटने का एहसास नहीं हुआ, इसी लिये उन्हों ने यह नहीं कहा कि हाए! हम तो अपने हाथ काट लिये बल्कि यह कहा कि यह इंसान नहीं हैं फिरिश्ता हैं।
जब आप तशरीफ लाए और औरतों ने उनके जमाले जहां-आरा को देखा तो उन के हुस्न ने औरतों पर इतना असर किया कि बजाए लीमू के उन्हों ने अपने-अपने हाथों को काट लिया और खून बहने लगा मगर उन लोगों को हाथों के कटने का एहसास नहीं हुआ, इसी लिये उन्हों ने यह नहीं कहा कि हाए! हम तो अपने हाथ काट लिये बल्कि यह कहा कि यह इंसान नहीं हैं फिरिश्ता हैं।
#(सूरए यूसुफ, पाराः12, रुकूअः14)
और जब हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम के हुस्न का औरतों पर ऐसा असर हुआ कि उन को हाथ कटने की तक्लीफ का ऐहसास नहीं हुआ तो जनाब अहमदे मुज्तबा मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम जिन का चेहरए अक़्दस ऐसा रौशन व ताबनाक था कि बक़ौल रावियाने हदीस आप के चेहरे में चांद व सूरज तैरते थे। जिस पर उन के हुस्नो-जमाल का असर होता है और उन की मुहब्बत का ग़लबा होता है उस का सर भी कट जाता है मगर उसे ऐहसास नहीं होता।
और जब हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम के हुस्न का औरतों पर ऐसा असर हुआ कि उन को हाथ कटने की तक्लीफ का ऐहसास नहीं हुआ तो जनाब अहमदे मुज्तबा मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम जिन का चेहरए अक़्दस ऐसा रौशन व ताबनाक था कि बक़ौल रावियाने हदीस आप के चेहरे में चांद व सूरज तैरते थे। जिस पर उन के हुस्नो-जमाल का असर होता है और उन की मुहब्बत का ग़लबा होता है उस का सर भी कट जाता है मगर उसे ऐहसास नहीं होता।
हुस्ने यूसुफ पे कटें मिस्र में अंगुश्ते ज़नां।
सर कटाते हैं तेरे नाम पे मदनि अरब।।
📕»» ख़ुत्बाते मोहर्रम, पेज: 25-26
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🖌पोस्ट क्रेडिट - शाकिर अली बरेलवी रज़वी व अह्-लिया मोहतरमा
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