〽️खुदाए अज़्ज़ व जल्ल शुहदा_ए_किराम की फज़ीलत बयान करते हुए क़ुरआने मजीद में इरशाद फरमाता है:
व ला तक़ुलू लि मै युक़ुतलु फी सबीलिल्लाही अम्वात बल अहया औं व लाकिल्ला तश्ऊरून
जो ख़ुदा की राह में क़ल्त किये जाएं उन्हें मुर्दा मत कहना बल्कि वह ज़िंदा हैं लेकिन तुम्हें ख़बर नहीं।
व ला तक़ुलू लि मै युक़ुतलु फी सबीलिल्लाही अम्वात बल अहया औं व लाकिल्ला तश्ऊरून
जो ख़ुदा की राह में क़ल्त किये जाएं उन्हें मुर्दा मत कहना बल्कि वह ज़िंदा हैं लेकिन तुम्हें ख़बर नहीं।
#(क़ुरआन करीम, पारा-2, रुकू-3)
और इरशाद फरमाता हैः
और इरशाद फरमाता हैः
व ला तह्सबन्न्ल्ल ज़िन क़ुतिलू फ़ी सबीलिल्लाहि अम्वातन बल् अह्या औं इन्द रब्बीहिम् युर्ज़क़ून
जो लोग अल्लाह की राह में क़त्ल किये गए उन्हें मुर्दा हरगिज़ न ख़्याल करना बल्कि वह अपने रब के पास ज़िंदा हैं, रोज़ी दिये जाते हैं।
जो लोग अल्लाह की राह में क़त्ल किये गए उन्हें मुर्दा हरगिज़ न ख़्याल करना बल्कि वह अपने रब के पास ज़िंदा हैं, रोज़ी दिये जाते हैं।
#(क़ुरआन करीम, पारा-4, रुकू-8)
हज़रत
इब्ने मस्ऊद रदिअल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि मैं ने इस आयते करीमा का
माना रसूले अक्रम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम से दर्याफ़्त किया तो आप
ने इरशाद फरमाया कि शहीदों की रूहें सब्ज़ परिन्दों के जिस्म में हैं, उन
के रहने के लिये अर्श इलाही के नीचे किन्दीलें लटकाई गई हैं। जन्नत में
जहां उन का जी चाहता है वह सैर करते हैं और उसके मेवे खाते हैं।
#(मुस्लिम, मिश्कातः330)
और सरकारे अक़्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम शुहदा_ए_इस्लाम की अज़मत बयान करते हुए इरशाद फरमाते हैं कि शहीद के लिये ख़ुदा_ए_तआला के नज़दीक छः खूबियां हैं:
1). खून का पहला क़तरा गिरते ही उसे बख़्श दिया जाता है और रूह निकलने ही के वक़्त उस को जन्नत में उस का ठिकाना दिखा दिया जाता है।
2). क़ब्र के अज़ाब से महफूज़ रहता है।
3). उसे जहन्नम के अज़ाब का खौफ नहीं रहता।
4). उस के सर पर इज़्ज़त व वक़ार का ताज रखा जाएगा कि जिस का वेश बहा याकूत दुनिया और दुनिया की
तमाम चीज़ों से बेहतर होगा।
5). उस के निकाह में बड़ी-बड़ी आंखों वाली 72 हूरें दी जाएंगी।
6). और उसके अज़ीज़ों में से 70 आदमियों के लिये उस की शफ़ाअत क़बूल की जाएगी।
#(तिर्मिज़ी, मिश्कातः333)
और सरकारे दो आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम इरशाद फरमाते हैं कि जो लोग लड़ाई में क़त्ल किये जाते हैं उन की तीन किस्में हैं: एक वह मोमिन जो अपनी जान और अपने माल से अल्लाह की राह में लड़े और दुश्मन से खूब मुक़ाबला करे यहाँ तक कि क़त्ल कर दिया जाए, यह वह शहीद है जो सब्र और मशक़्क़त के इम्तिहान में कामियाब हुआ। यह शहीद ख़ुदा_ए_तआला के अर्श के नीचे ख़ुदा के खेमे (यानी अल्लाह तआला के हुज़ूर और उस के क़ुर्ब में) होगा। (अश्अतुल् लमआतः3/260)
अंबियाए किराम इस से सिर्फ दर्जए नुबुब्बत में ज़्यादा होंगे यानी मर्तबए नुबुव्वत और उस से जो कमालात मुतअल्लिक हैं उन के अलावा हर मर्तबा और हर कमाल उस शहीद को हासिल होगा और दूसरा वह मोमिन जिस के आमाल दोनों तरह के हों यानी कुछ अच्छे और कुछ बुरे, वह अपनी जान व माल से ख़ुदा की राह में जिहाद करे, जिस वक्त दुश्मन से सामना हो उस से लड़े यहां तक कि क़त्ल कर दिया जाए। यह ऐसी शहादत है जो गुनाहों और बुराइयों को मिटाने वाली है। फिर फरमाया: बेशक तलवार गुनाहों को बहुत ज़्यादा मिटाने वाली है और यह शहीद जिस दरवाजे से चाहेगा जन्नत में चला जाएगा। और तीसरा वह मुनाफिक़ है जिस ने अपनी जान और अपने माल से जिहाद किया और जब दुश्मन से मुक़ाबिला हुआ तो ख़ूब लड़ा यहाँ तक कि मारा गया। यह शख्स दोज़ख में जाएगा। हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने फरमायाः इस लिये कि निफाक़ यानी छिपे हुए कुफ़्र को तलवार नहीं मिटाती है। (दारमी, मिश्कातः336)
इस हदीस शरीफ से जहां यह मालूम हुआ कि अल्लाह की राह में शहीद होने वाला मर्तबए नुबुब्बत और उस के मुतअल्लिका कमालात के अलावा सारे दरजात से सरफराज़ किया जाता है और उस के तमाम गुनाह माफ कर दिये जाते हैं साथ ही यह भी वाज़ेह हुआ कि अगर दिल में कुफ़्र छिपाए हो और सिर्फ ज़ाहिर में मुसलमान हो तो चाहे जिंदगी भर जिहाद करे यहां तक कि अपनी अज़ीज़ तरीन जान भी कुर्बान कर दे मगर वह जहन्नम ही में जाएगा।
इसी तरह जो लोग महबूबे ख़ुदा सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम के बुग़ज़ व अदावत का कुफ़्र, अपने दिलों में छिपाए हुए हैं और उन की अज़मत के दुश्मन हैं अगर वह दिन रात इबादत करें और जिंदगी भर सारी दुनिया में इस्लाम की नशर व इशाअत करें और तब्लीग़ करते फिरें यहां तक कि उसी हाल में मर जाएं तो उन का ठिकाना जहन्नम ही होगा। इसी लिये इस तरह की किसी भी नेकी से
कुफ नहीं माफ होता।
और सरकारे अक़्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम शुहदा_ए_इस्लाम की अज़मत बयान करते हुए इरशाद फरमाते हैं कि शहीद के लिये ख़ुदा_ए_तआला के नज़दीक छः खूबियां हैं:
1). खून का पहला क़तरा गिरते ही उसे बख़्श दिया जाता है और रूह निकलने ही के वक़्त उस को जन्नत में उस का ठिकाना दिखा दिया जाता है।
2). क़ब्र के अज़ाब से महफूज़ रहता है।
3). उसे जहन्नम के अज़ाब का खौफ नहीं रहता।
4). उस के सर पर इज़्ज़त व वक़ार का ताज रखा जाएगा कि जिस का वेश बहा याकूत दुनिया और दुनिया की
तमाम चीज़ों से बेहतर होगा।
5). उस के निकाह में बड़ी-बड़ी आंखों वाली 72 हूरें दी जाएंगी।
6). और उसके अज़ीज़ों में से 70 आदमियों के लिये उस की शफ़ाअत क़बूल की जाएगी।
#(तिर्मिज़ी, मिश्कातः333)
और सरकारे दो आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम इरशाद फरमाते हैं कि जो लोग लड़ाई में क़त्ल किये जाते हैं उन की तीन किस्में हैं: एक वह मोमिन जो अपनी जान और अपने माल से अल्लाह की राह में लड़े और दुश्मन से खूब मुक़ाबला करे यहाँ तक कि क़त्ल कर दिया जाए, यह वह शहीद है जो सब्र और मशक़्क़त के इम्तिहान में कामियाब हुआ। यह शहीद ख़ुदा_ए_तआला के अर्श के नीचे ख़ुदा के खेमे (यानी अल्लाह तआला के हुज़ूर और उस के क़ुर्ब में) होगा। (अश्अतुल् लमआतः3/260)
अंबियाए किराम इस से सिर्फ दर्जए नुबुब्बत में ज़्यादा होंगे यानी मर्तबए नुबुव्वत और उस से जो कमालात मुतअल्लिक हैं उन के अलावा हर मर्तबा और हर कमाल उस शहीद को हासिल होगा और दूसरा वह मोमिन जिस के आमाल दोनों तरह के हों यानी कुछ अच्छे और कुछ बुरे, वह अपनी जान व माल से ख़ुदा की राह में जिहाद करे, जिस वक्त दुश्मन से सामना हो उस से लड़े यहां तक कि क़त्ल कर दिया जाए। यह ऐसी शहादत है जो गुनाहों और बुराइयों को मिटाने वाली है। फिर फरमाया: बेशक तलवार गुनाहों को बहुत ज़्यादा मिटाने वाली है और यह शहीद जिस दरवाजे से चाहेगा जन्नत में चला जाएगा। और तीसरा वह मुनाफिक़ है जिस ने अपनी जान और अपने माल से जिहाद किया और जब दुश्मन से मुक़ाबिला हुआ तो ख़ूब लड़ा यहाँ तक कि मारा गया। यह शख्स दोज़ख में जाएगा। हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने फरमायाः इस लिये कि निफाक़ यानी छिपे हुए कुफ़्र को तलवार नहीं मिटाती है। (दारमी, मिश्कातः336)
इस हदीस शरीफ से जहां यह मालूम हुआ कि अल्लाह की राह में शहीद होने वाला मर्तबए नुबुब्बत और उस के मुतअल्लिका कमालात के अलावा सारे दरजात से सरफराज़ किया जाता है और उस के तमाम गुनाह माफ कर दिये जाते हैं साथ ही यह भी वाज़ेह हुआ कि अगर दिल में कुफ़्र छिपाए हो और सिर्फ ज़ाहिर में मुसलमान हो तो चाहे जिंदगी भर जिहाद करे यहां तक कि अपनी अज़ीज़ तरीन जान भी कुर्बान कर दे मगर वह जहन्नम ही में जाएगा।
इसी तरह जो लोग महबूबे ख़ुदा सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम के बुग़ज़ व अदावत का कुफ़्र, अपने दिलों में छिपाए हुए हैं और उन की अज़मत के दुश्मन हैं अगर वह दिन रात इबादत करें और जिंदगी भर सारी दुनिया में इस्लाम की नशर व इशाअत करें और तब्लीग़ करते फिरें यहां तक कि उसी हाल में मर जाएं तो उन का ठिकाना जहन्नम ही होगा। इसी लिये इस तरह की किसी भी नेकी से
कुफ नहीं माफ होता।
सल्लल्लाहु अलन्नबिय्यिल् उम्मियी व आलिही सल्लल्लाह तआला अलैहि व सल्लम, सलातंव् व सलामन् अलैक या रसूलल्लाह।
📕»» ख़ुत्बाते मोहर्रम, पेज: 21-24
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🖌पोस्ट क्रेडिट - शाकिर अली बरेलवी रज़वी व अह्-लिया मोहतरमा
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📕»» ख़ुत्बाते मोहर्रम, पेज: 21-24
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