शहीद की तीन किस्में हैं:

1- शहीदे हकीक़ी
2- शहीदे फिक़्ही और
3- शहीदे हुक्मी

जो अल्लाह की राह में क़त्ल किया जाए वह शहीदे हकीक़ी है और शहीदे फिक़्ही उसे कहते हैं कि आकिल बालिग़ मुसलमान जिसपर ग़ुस्ल फर्ज़ न हो वह तलवार व बंदूक वगैरा आलए जारिहा से ज़ुल्मन क़त्ल किया जाए और क़त्ल के सबब माल न वाजिब हुआ हो और न ज़ख़्मी होने के बाद कोई फायदा दुनिया से हासिल किया हो और न ज़िन्दों के अहकाम में से कोई हुकम उस पर साबित हुआ हो यानी अगर पागल, ना बालिग़ या हैज़ व निफास वाली औरतें और जुनुब शहीद किये जाएं तो वह शहीदे फिक़्ही नहीं और अगर क़त्ल से माल वाजिब हुआ हो जैसे कि लाठी से मारा गया या क़त्ले ख़ता कि मार रहा था शिकार को और लग गया किसी मुसलमान को, या ज़ख्मी होने के बाद खाया पिया, इलाज किया, नमाज़ का पूरा वक़्त होश में गुज़रा और वह नमाज़ पर क़ादिर था या किसी बात की वसिय्यत की तो वह शहीदे फिक़्ही नहीं। मगर शहीदे फिक़्ही न होने का यह माना नहीं कि वह शहीद होने का सवाब भी नहीं पाएगा बल्कि इस का मतलब सिर्फ इतना है कि उसे गुस्ल दिया जाएगा और शहीदे फिक़्ही नमाज़े जनाज़ा तो पढ़ी जाएगी मगर उसे गुस्ल नहीं दिया जाएगा वैसे ही खून के साथ दफन कर दिया जाएग और जो चीजें कि अज़ किस्म कफन नहीं होंगे उन्हें उतार लिया जाएगा जैसे ज़िरह, टोपी और हथियार वगैरा और कफन मस्नून में अगर कमी होगी तो उसे पूरा किया जाएगा, पाजामा नहीं उतारा जाएगा और सारे कपड़े उतार कर नए कपड़े नहीं दिये जाएंगे कि मक्-रूह है।

शहीदे हुक्मी यह है कि जो ज़ुल्मन नहीं क़त्त किया गया मगर कियामत के दिन वह शहीदों के गिरोह में उठाया जाएगा।

हदीस शरीफ में है कि सरकारे अक्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने फरमाया कि ख़ुदाए तआला की राह में शहीद किये जाने के अलावा सात शहादतें और हैं, जो ताऊन में मरे शहीद है, जो डूब कर मर जाए शहीद
है, जो ज़ातुल जुनब (नमूनिया) में मरे शहीद है, जो पेट की बीमारी में मर जाए शहीद है, जो आग में जल जाए शहीद है, जो इमारत के नीचे दब कर मर जाए वह शहीद है और जो औरत बच्चे की पैदाइश के वक्त मर जाए वह भी शहीद है।

#(मिश्कात शरीफः136)

इन के अलावा और भी बहुत सी सूरतें हैं जिन में शहादत का सवाब मिलता है, उन में से चन्द यह हैं: हालते सफर में मरा, सिल की बीमारी में मरा, सवारी से गिर कर मरा या मिरगी से मरा, बुख़ार में मरा, जान व माल या अहल व अयाल या किसी हक़ के बचाने में क़त्ल किया गया, इश्क में मरा बशर्ते कि पाक दामन हो और छुपाया हो, किसी दरिन्दे ने फाड़ खाया, बादशाह ने ज़ुल्मन क़ैद किया या मारा और मर गया, किसी मूज़ी जानवर के काटने से मरा, इल्मे दीन की तलब में मरा, मोअज्ज़िन जोकि तलबे सवाब के लिये अज़ान कहता हो, रास्त-गो ताजिर जिसे समन्दर के सफर में मतली कैय आई और मर गया, जो अपने बाल बच्चों के लिये सई (कोशिश) करे उन में अम्रे इलाही काइम करे और उन्हें हलाल खिलाए, जो हर रोज़ 25 बार यह दुआ पढ़े: "अल्लाहुम्म बारीक ली फ़िल्मौती व फ़िमा बाद्लमौती" , जो चाश्त की नमाज़ पढ़े हर महीने में तीन रोज़े रखे ओर वित्र को सफर व हज़र में कहीं तर्क न करे, फसादे उम्मत के वक्त सुन्नत पर अमल करने वाला उस के लिये सौ शहीदों का सवाब है, जो मर्ज़ में चालीस मर्तबा कहे "ला इलाह इल्ला अंत सुब्-हानक इन्नी कुन्तु मिनज़्ज़ालिमिन" और उसी मर्ज़ में इन्तेक़ाल कर जाए और अच्छा हो गया तो उस की मग़फिरत हो जाएगी, कुफ्फार से मुक़ाबला के लिये सरहद पर घोड़ा बांधने वाला, जो शख़्स हर रात सूरए यासीन शरीफ पढ़े, जो बा-वजू सोया और मर गया, जो नबीए अक्रम सल्लल्लाहु'तआला अलैहि व सल्लम पर सौ मर्तबा रोज़ाना दुरूद शरीफ पढ़े, जो सच्चे दिल से यह दुआ करे कि अल्लाह की राह में क़त्ल किया जाऊं और जो शख़्स जुमा के रोज़ इन्तिकाल करे।

#(रद्दुल मोहतार, बहारे शरीअत)

इन तमाम किस्मों में सब से आला शहीद वह है जो अल्लाह की राह में क़त्ल किया गया और शहादते हक़ीकिय्या से सरफराज़ हुआ। इस के फज़ाइल में कई आयतें और बेशुमार हदीसें वारिद हैं।

📕»» ख़ुत्बाते मोहर्रम, पेज: 19-21
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🖌पोस्ट क्रेडिट - शाकिर अली बरेलवी रज़वी  व  अह्-लिया मोहतरमा

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