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हुज़ूर के इन सब क़रीबी लोगों से मुहब्बत रखना मुसलमान के लिए निहायत जरूरी है ।
हुज़ूर के अहले बैत हों या आप के सहाबी उन में से किसी को भी बुरा भला कहना या उनकी शान में गुस्ताख़ी और बे अदबी करना मुसलमान का काम नहीं है, ऐसा करने वाला गुमराह व बद दीन है उसका ठिकाना जहन्नम है।
हुज़ूर के अहले बैत में एक बड़ी हस्ती इमाम आली मक़ाम सैयदिना,, इमाम हुसैन,, भी हैं उनका मर्तबा इतना बड़ा है कि वह हुज़ूर के सहाबी भी हैं, और अहले बैत में से भी हैं,
यानी आप की प्यारी बेटी के प्यारे बेटे आप के प्यारे और चहीते नवासे हैं, रात रात भर जाग कर अल्लाह की इबादत करने वाले और कुरआने अ़ज़ीम की तिलावत करने वाले मुत्तक़ी इबादत गुज़ार, परहेज गार, बुजुर्ग, अल्लाह के बहुत बड़े वली हैं ।
साथ ही साथ मज़हबे इस्लाम के लिए राहे खुदा में गला कटाने वाले शहीद भी हैं, मुहर्रम के महीने की दस तारीख को जुमा के
दिन 61, हिजरी में यानी हुज़ूर के विसाल के तक़रीबन पचास साल के बाद आप को और आप के साथियों और बहुत से घर वालों को ज़ालिमों ने ज़ुल्म कर के करबला नाम के एक मैदान में 3, दिन प्यासा रख कर शहीद कर दिया, इस्लामी तारीख का यह एक बड़ा सानिहा और दिल हिला देने वाला हादसा है, और दस मुहर्रम जो कि पहले ही से एक तारीख़ी और यादगार दिन था, इस हादसे ने इस को और भी ज़िन्दा व जावेद कर दिया, और उस दिन को हज़रत इमाम हुसैन के नाम से जाना जाने लगा।
📕 मुह़र्रम में क्या जाइज़,क्या नाजाइज़, सफ़हा न०- 4
🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ एस-अली।औवैसी
🔴इस पोस्ट के दीगर पार्ट के लिए क्लिक करिये ⬇
https://MjrMsg.blogspot.com/p/muharram-me-kya-jayiz.html
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हुज़ूर के अहले बैत में एक बड़ी हस्ती इमाम आली मक़ाम सैयदिना,, इमाम हुसैन,, भी हैं उनका मर्तबा इतना बड़ा है कि वह हुज़ूर के सहाबी भी हैं, और अहले बैत में से भी हैं,
यानी आप की प्यारी बेटी के प्यारे बेटे आप के प्यारे और चहीते नवासे हैं, रात रात भर जाग कर अल्लाह की इबादत करने वाले और कुरआने अ़ज़ीम की तिलावत करने वाले मुत्तक़ी इबादत गुज़ार, परहेज गार, बुजुर्ग, अल्लाह के बहुत बड़े वली हैं ।
साथ ही साथ मज़हबे इस्लाम के लिए राहे खुदा में गला कटाने वाले शहीद भी हैं, मुहर्रम के महीने की दस तारीख को जुमा के
दिन 61, हिजरी में यानी हुज़ूर के विसाल के तक़रीबन पचास साल के बाद आप को और आप के साथियों और बहुत से घर वालों को ज़ालिमों ने ज़ुल्म कर के करबला नाम के एक मैदान में 3, दिन प्यासा रख कर शहीद कर दिया, इस्लामी तारीख का यह एक बड़ा सानिहा और दिल हिला देने वाला हादसा है, और दस मुहर्रम जो कि पहले ही से एक तारीख़ी और यादगार दिन था, इस हादसे ने इस को और भी ज़िन्दा व जावेद कर दिया, और उस दिन को हज़रत इमाम हुसैन के नाम से जाना जाने लगा।
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