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और जब धरम के ठेकेदार उनमें सवाब बता देते हैं तो अ़वाम उन्हें और भी मज़ा ले कर करने लगते हैं कि यह ख़ूब रही, रंगरलियां भी हो गई और सवाब भी मिला, तफ़रीह और दिल लगी भी हो गई खेल तमाशे भी हो गये और जन्नत का काम, क़ब्र का आराम भी हो गया ।

*मौलवी साहब या मियां हुजूर ने कह दिया है कि सब जाइज़ व सवाब का काम है ख़ूब करो* और हमने भी ऐसे मौलवी साहब को ख़ूब नज़राना देकर खुश कर दिया है, और उन्होंने हम को तअ़ज़िये बनाने, घुमाने, ढोल बजाने और मेले ठेले लगाने और उन में जाने की इजाजत दे दी है ।

अल्लाह नाराज़ हो या उस का रसूल ऐसे मौलवियों और पीरों से हम ख़ूश और वह हम से खुश।

इस सब के बावजूद अ़वाम में ऐसे लोग भी काफ़ी हैं जो ग़लती करते हैं और इसको ग़लती समझते भी हैं और
इस हराम को हलाल बताने वाले मौलवियों की भी उनकी नजर में कुछ औकात नहीं रहती ।

एक गांव का वाक़िआ है कोई तअ़ज़िये बनाने वाला कारीगर नहीं मिल रहा था या बहुत सी रक़म का मुतालबा कर रहा था वहां की मस्जिद के इमाम ने कहा कि किसी को बुलाने की ज़रूरत नहीं है तअ़जिया मैं बना दूंगा और इस इमाम ने गांव वालों को ख़ुश करने के लिए बहुत उ़मदा बढ़िया और खूबसूरत तअ़जिया बना कर दिया और फिर उन्ही तअ़ज़िये दारों ने इस इमाम को मस्जिद से निकाल दिया और यह कह कर इस का हिसाब कर दिया कि यह कैसा मौलवी है कि तअ़जिया बना रहा है मौलवी तो तअ़ज़िये दारी से मना करते हैं, और मौलवी साहब का बकौल शाइर यह हाल हुआ कि,

,,न ख़ुदा ही मिला न विसाले स़नम
न यहां के रहे न वहां के रहे !

📕 मुह़र्रम में क्या जाइज़,क्या नाजाइज़, सफ़हा न०- 7

🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ एस-अली।औवैसी

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