💫 न्याज़ व फ़ातिहा.….... ⚡ ------------------------------------------------

(4). न्याज व फ़ातिहा के लिए बाल बच्चों को तंग करने की या किसी को परेशान करने की या खुद परेशान होने की या उन कामों के लिए क़र्ज़ा लेने की या गरीबों मजदूरों से चन्दे करने की कोई ज़रूरत नहीं, जैसा और जितना मौका हो उतना करे और कुछ भी न हो तो खाली कुरआन या कलमा, ए, त़य्यबा या दुरूदशरीफ़ वग़ैरह का ज़िक्र करके या नफिल नमाज़ या रोज़े रख कर सवाब पहुंचा दिया जाये तो यह काफ़ी है, और मुकम्मल न्याज़ और पुरी फ़ातिहा है, जिस में कोई कभी यानी शरअ़न ख़ामी नहीं है, खुदा, ए, तआ़ला ने इस्लाम के ज़रिए बन्दों पर उनकी ताक़त से ज़्यादा बोझ नहीं डाला ज़कात हो या स़दका, ए, फ़ित्र और कुरबानी सिर्फ उन्हीं पर फ़र्ज व वाजिब हैं जो साहिबे निसाब यानी शरअ़न मालदार हों, हज़ भी उसी पर फ़र्ज किया गया जिस के बस की बात हो, अ़क़ीक़ा व वलीमा उन्हीं के लिए सुन्नत हैं जिनका मौका हो जब कि यह काम फ़र्ज व वाजिब या सुन्नत हैं, और न्याज व फ़ातिहा उ़र्स वग़ैरह तो सिर्फ बिदआ़ते ह़सना यानी सिर्फ अच्छे और मुस्तहब काम हैं, फर्ज व वाजिब नहीं हैं यानी शर अ़न लाजिम व ज़रूरी तो नहीं हैं, फिर न्याज व फ़ातिहा के लिए क़र्ज़, लेने, परेशान होने और बाल बच्चों को तंग करने की क्या जरूरत है, बल्कि हलाल कमाई से अपने बच्चों की परवरिश करना बजाते खुद एक बड़ा कारे ख़ैर, सवाब का काम है,

ख़ुलासा यह कि
उ़र्स, न्याज व फ़ातिहा वग़ैरह बुजुर्गों की यादगारें मनाने की जो लोग मुख़ालिफ़त करते हैं वह गलती पर हैं और जो लोग सिर्फ उन कामों को ही इस्लाम समझे हुये हैं और शरअ़न उन्हें लाजिम व ज़रूरी ख्याल करते हैं वह भी बड़ी भूल में हैं ।

📕 मुह़र्रम में क्या जाइज़,क्या नाजाइज़, सफ़हा न०- 11

🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ एस-अली।औवैसी

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