💫 न्याज़ व फ़ातिहा..…....... ⚡ ------------------------------------------------
(2). न्याजं फ़ातिहा में शेख़ी खो़री नहीं होनी चाहिए और न खाने पीने की चीज़ों में एक दूसरे से मुकाबिला बल्कि जो कुछ भी हो और जितना भी हो सब सिर्फ अल्लाह वालों के ज़रिए अल्लाह तआ़ला की नज़दीकी और उसका कुर्ब और रज़ा हासिल करने के लिए हो और अल्लाह के नेक बन्दों से मुहब्बत इस लिए की जाती है कि उन से मुहब्बत करने और उनके नाम पर खाने खिलाने और उन की रुहों को अच्छे कामों का सवाब पहुंचाने से अल्लाह राज़ी हो, और अल्लाह को राज़ी करना ही हर मुसलमान की ज़िन्दगी का असली मक़सद है।
(3). न्याज़ फ़ातिहा बुजुर्गों की हो या
बड़े बुढ़ों की उस के तौर तरीके जो मुसलमानों में राइज हैं जाइज़ और अच्छे काम हैं फ़र्ज और वाजिब यानी शरअन लाजिम व ज़रूरी तो नहीं अगर कोई करता है तो अच्छा करता है और नहीं करता है तब भी गुनाहगार नहीं, हां कभी भी और बिल्कुल न करना महरूमी है, न्याज़ व फ़ातिहा को न करने वाला गुनाहगार नहीं है, हां इस से रोकने और मना करने वाला ज़रूर गुमराह व बदमज़हब है और बुजुर्गों के नाम से जलने वाला है।
📕 मुह़र्रम में क्या जाइज़,क्या नाजाइज़, सफ़हा न०- 10
🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ एस-अली।औवैसी
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https://MjrMsg.blogspot.com/p/muharram-me-kya-jayiz.html
(2). न्याजं फ़ातिहा में शेख़ी खो़री नहीं होनी चाहिए और न खाने पीने की चीज़ों में एक दूसरे से मुकाबिला बल्कि जो कुछ भी हो और जितना भी हो सब सिर्फ अल्लाह वालों के ज़रिए अल्लाह तआ़ला की नज़दीकी और उसका कुर्ब और रज़ा हासिल करने के लिए हो और अल्लाह के नेक बन्दों से मुहब्बत इस लिए की जाती है कि उन से मुहब्बत करने और उनके नाम पर खाने खिलाने और उन की रुहों को अच्छे कामों का सवाब पहुंचाने से अल्लाह राज़ी हो, और अल्लाह को राज़ी करना ही हर मुसलमान की ज़िन्दगी का असली मक़सद है।
(3). न्याज़ फ़ातिहा बुजुर्गों की हो या
बड़े बुढ़ों की उस के तौर तरीके जो मुसलमानों में राइज हैं जाइज़ और अच्छे काम हैं फ़र्ज और वाजिब यानी शरअन लाजिम व ज़रूरी तो नहीं अगर कोई करता है तो अच्छा करता है और नहीं करता है तब भी गुनाहगार नहीं, हां कभी भी और बिल्कुल न करना महरूमी है, न्याज़ व फ़ातिहा को न करने वाला गुनाहगार नहीं है, हां इस से रोकने और मना करने वाला ज़रूर गुमराह व बदमज़हब है और बुजुर्गों के नाम से जलने वाला है।
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