हज़रत मुस्लिम कूफा में

〽️हज़रत मुस्लिम के दो साहिब ज़ादे मुहम्मद और इब्राहीम जो बहुत कम उम्र थे और अपने बाप के बहुत प्यारे बेटे थे, इस सफर में अपने मेहरबान बाप के साथ हो लिये।

हज़रत मुस्लिम ने कूफा पहुंच कर मुख़्तार बिन उबैद के मकान पर कियाम फ़रमाया, शियआने अली हर तरफ से जूक़ दर जूक़ आकर बड़े जोशो-अक़ीदत और मुहब्बत के साथ आप से बैअत करने लगे, यहां तक कि एक हफ्ता के अन्दर बारह हज़ार कूफियों ने आप के दस्ते मुबारक पर हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु की बैअत की।

हज़रत मुस्लिम को जब हालात खुशगवार नज़र आए तो आप ने इमाम हुसैन को ख़त लिख दिया कि यहां के हालात साज़गार हैं और अहले कूफा अपने क़ौलो-क़रार पर क़ाइम हैं, आप जल्द तशरीफ लाइये।

सहाबिए रसूल हज़रत नोमान बिन बशीर, जो उस ज़माने में कूफा के गवर्नर थे जब वह हालात से बाख़बर हुए तो मिम्बर पर तशरीफ ले गए और हम्दो-सलात के बाद फ़रमाया कि ऐ लोगो! यह बैअत यज़ीद की मर्ज़ी के खिलाफ है, वह इस पर बहुत भड़केगा और फित्ना व फसाद बरपा होगा।

अब्दुल्लाह बिन मुस्लिम हज़रमी जो बनू उमैया के हवा-ख़्वाहों (ख़ैर ख़्वाहों) में से था, उठ खड़ा हुआ और कहा

कूफा को हज़रत मुस्लिम की रवानगी

〽️आख़िरी खत जो हानी बिन हानी सुबेई और सईद बिन अब्दुल्लाह हनफी के बदस्त (हाथों) हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु को पहुँचा, उस के बाद आप ने कूफा वालों को लिखा कि तुम लोगों के बहुत से ख़ुतूत हम तक पहुंचे जिन के मज़ामीन से हम मुत्तला हुए, तुम लोगों के जज़्बात और अक़ीदत व मुहब्बत का लिहाज़ करते हुए बर वक्त हम अपने भाई चचा के बेटे मख़्सूस व मोअतमद मुस्लिम बिन अक़ील को कूफा भेज रहे हैं, अगर इन्हों ने लिखा कि कूफा के हालात साज़गार हैं तो इन्शा अल्लाहु तआला मैं भी तुम लोगों के पास बहुत जल्द चला आऊंगा। #(तबरीः2/178)

हज़रत सदरुल अफाज़िल मौलान सैयद मुहम्मद नईमुद्दीन साहब मुरादाबादी रहमतुल्लाहि अलैह तहरीर फ़रमाते हैं कि अगर्चे इमाम की शहादत की ख़बर मशहूर थी और कूफियों की बे वफाई का पहले भी तज्रिबा हो चुका था मगर जब यज़ीद बादशाह बन गया और उस की हुकूमत व सल्तनत दीन के लिये ख़तरा थी और इस लिये उस की बैअत ना रवा थी और वह तरह-तरह की तदबीरों और हीलों से चाहता था कि लोग उस की बैअत करें, इन हालात में कूफियों का ब-पासे मिल्लत (समाज का लिहाज़ करते हुए) यज़ीद की बैअत से दस्त कशी करना और हज़रत इमाम से तालिबे बैअत होना इमाम पर लाज़िम करता था कि उन की दरख़्वास्त कबूल

कूफियों के ख़ुतूत

〽️कूफा शहर की बुनियाद उस वक़्त पड़ी जबकि 14 हिजरी से 16 हिजरी तक क़ादसिया वग़ैरा में फुतूहात के बाद मुसलमानों की फौज ने इराक़ में सुकूनत इख़्तियार की और मदाइन की आबो-हवा उन के मुवाफिक् न हुई तो सहाबिए रसूल हज़रत सअद बिन वक़्क़ास रदिअल्लाहु तआला अन्हु के हुक्म से यह जगह तलाश की गई और मुसलमानों के लिये मकानात की तामीर हुई। फिर आप 17 हिजरी में अपनी फौज के साथ मदाइन से मुन्तकिल होकर यहां मुक़ीम हुए। इस तरह कूफा शहर वुजूद में आया।

हज़रत अली रदिअल्लाहु तआला अन्हु के ज़माना ही से कूफा आप के शियओं और महबूबों का मरकज़ था, वहां के लोग हज़रत अमीरे मुआविया के अहदे ख़िलाफत ही में हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु की ख़िदमत में तशरीफ आवुरी की अरज़ियां भेज चुके थे मगर आप ने साफ इनकार कर दिया था।

अब जबकि कूफा वालों को मालूम हुआ कि अमीरे मुआविया का इन्तेक़ाल हो गया और इमामे आली मक़ाम ने

मदीना मुनव्वरा से रिहलत (रवानगी)

〽️मदीना मुनव्वरा वह शहरे मुकद्दस है जो हुज़ूर अनवर सैयिद आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम को सारे शहरों में सब से ज़्यादा महबूब है जैसा कि खुद हुज़ूर इरशाद फ़रमाते हैं: तर्जुमा नबी उसी जगह इन्तेक़ाल फ़रमाता है जो उसे सब जगहों से ज़्यादा महबूब हो। #(फज़ाइले मदीनाः11)

और रसूले काइनात सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम का विसाल मदीना मुनव्वरा में हुआ। मालूम हुआ कि सारे शहरों में आप को सब से ज़्यादा प्यारा मदीना मुनव्वरा है। और जब हुज़ूर को वह सब से ज़्यादा प्यारा है तो हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु को भी वही शहर सब से ज़्यादा प्यारा है। मगर हालात ने इस महबूब के छोड़ने पर आपको मजबूर कर दिया, सफर की तैयारी मुकम्मल हो गई, ऊंटों पर कजावे कसे गए और अहले बैते रिसालत का यह छोटा सा मुकद्दस काफिला मदीनतुर रसूल की जुदाई के सद्-मे से रोता हुआ घरों से निकल पड़ा और हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु अपने नाना जान के रौज़ए अनवर पर आख़िरी सलाम अर्ज़ करने के लिये हाज़िर हुए।

इमाम आली मक़ाम जब अपने नाना जान के आस्तानए मुक़द्दसा पर आख़िरी सलाम के लिये हाज़िर हुए होंगे,

यज़ीद की तख़्त नशीनी और तलबे बैअत

〽️हज़रत अमीरे मुआविया रदिअल्लाहु तआला अन्हु की वफात के बाद यज़ीद ने तख़्त नशीन होते ही अपनी बैअत के लिये हर तरफ खुतूत व हुक्म नामे रवाना किये।

मदीना मुनव्वरा के गवर्नर वलीद बिन उक्बा थे, उन को अपने बाप की वफात की इत्तिला की और लिखा कि हर खास व आम से मेरी बैअत लो और हुसैन बिन अली, अब्दुल्लाह बिन जुबैर और अब्दुल्लाह बिन उमर (रदिअल्लाहु तआला अन्हुम) से पहले बैअत लो, इन सब को एक लम्हा मोहलत न दो।

मदीना मुनव्वरा के लोगों को अभी तक हज़रत अमीरे मुआविया के इन्तेक़ाल की खबर न थी, यज़ीद के हुक्म नामे से वलीद बहुत घबराया इस लिये कि इन हज़रात से बैअत लेना आसान नहीं था, उस ने मश्वरा के लिये मरवान बिन हिकम को बुलाया। मरवान बिन हिकम वह शख़्स है कि जब उस की पैदाइश हुई और हुज़ूर अक़्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की ख़िदमत में तहनीक (कोई चीज़ चबा कर नर्म करके खिलाने) के लिये लाया गया तो हुज़ूर ने फ़रमायाः - (रवाहुल हाकिम फी सहीहिही) यह गिरगिट का बेटा गिरगिट है। #(अन्नाहियाः 45)

और बुख़ारी, नसाई और इब्ने अबी हातिम अपनी तफ्सीर में रिवायत करते हैं कि हज़रत आइशा सिद्दीका

यज़ीद और हदीसे कुस्तुन्तुनिया

यज़ीद पलीद जिस ने मस्जिदे नबवी और बैतुल्लाह शरीफ की सख़्त बेहुर्मती की, जिस ने हज़ारों सहाबए किराम व ताबईने इज़ाम रदिअल्लाहु तआला अन्हुम का बेगुनाह क़त्ले आम किया, जिस ने मदीना तैयिबा की पाक दामन ख़्वातीन को अपने लश्कर पर हलाल किया और जिस ने जिगर गोशए रसूल हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु को तीन दिन बेआबो-दाना रख कर प्यासा ज़िबह किया। ऐसे बद बख़्त और मरदूद यज़ीद को पैदाइशी जन्नती और बख़्शा-बख़्शाया हुआ साबित करने के लिये आज कल कुछ लोग ऐड़ी चोटी का ज़ोर लगा रहे हैं, ऐसे लोग चाहे अपने को सुन्नी कहें या देवबन्दी लेकिन हक़ीक़त में वह अहले बैते रिसालत के दुश्मन, ख़ारजी और यज़ीदी हैं। उस बद बख़्त की हिमायत में वह लोग बुख़ारी शरीफ की एक हदीस पेश करते हैं जो हदीसे कुस्तुन्तुनिया के नाम से याद की जाती है, इन बातिल परस्त यज़ीदियों का मक़्सद यह है कि जब यज़ीद की बख़्शिश और उस का जन्नती होना हदीस शरीफ से साबित है तो इमाम हुसैन का ऐसे शख़्स की बैअत न करना और उस के ख़िलाफ अलमे जिहाद बुलंद करना बग़ावत है और सारे फित्ना व फसाद की ज़िम्मेदारी इन्हीं पर है। नऊजु बिल्लाहि मिन् ज़ालिक।

यज़ीदी गिरोह जो हदीस पेश करता है वह यह है: तर्जुमा नबीए अक्रम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया कि मेरी उम्मत का पहला लश्कर जो क़ैसर के शहर (कुस्तुन्तुतिया) पर हमला करेगा वह बख़्शा हुआ है। #(बुख़ारी शरीफः 1/410)

और कैसर के शहर कुस्तुन्तिनिया पर पहला हमला करने वाला यज़ीद है लिहाजा वह बख़्शा-बख़्शाया हुआ

यज़ीद और अहादीसे करीमा व अक़्वाले अइम्मा

〽️ रूयानी अपनी मुस्नद में सहाबिए रसूल हज़रत अबू दरदा रदिअल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत करते हैं- उन्होंने फ़रमाया कि मैं ने रसूले अक्रम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम को यह इरशाद फरमाते हुए सुनाः मेरी सुन्नत का पहला बदलने वाला एक शख़्स बनी उमैया का होगा जिस का नाम यज़ीद होगा। #(तारीखुल खुलफा: 142)

और अबू यशूला अपनी मुस्नद में (बसनदे ज़ईफ) हज़रत अबू उबैदा रदिअल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत करते हैं कि हुज़ूरे अक़्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम इरशाद फ़रमाते हैं कि मेरी उम्मत हमेशा अदल व इंसाफ पर काइम रहेगी यहां तक कि पहला रख्ना अंदाज़ (रुकावट बनने वाला) बनी उमैया का एक शख़्स होगा जिस का नाम यज़ीद होगा। #(तारीखुल खुलफाः 142)

और अल्लामा सबान तहरीर फ़रमाते हैं कि इमाम अहमद बिन हंबल रदिअल्लाहु तआला अन्हु यज़ीद के कुफ़्र के काइल हैं और तुझे उन का फ़रमान काफी है, उन का तक़्वा और इल्म इस अम्र का मुतक़ाज़ी (यह चाहता) है कि उन्होंने यह बात इस लिये कही होगी कि उनके नज़दीक ऐसे उमूरे सरीहा का यज़ीद से सादिर होना साबित

यज़ीद पलीद

यज़ीद हज़रत मुआविया रदिअल्लाहु तआला अन्हु का बेटा जिस की कुन्नियत अबू ख़ालिद है, उमैया ख़ानदान का वह बदबख़्त इंसान है जिस की पेशानी पर नवासए रसूल, जिगर गोशए बतूल हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु के क़त्ल का सियाह दाग है, जिस पर हर ज़माने में लोग मलामत करते रहे और रहती दुनिया तक ऐसे ही मलामत करते रहेंगे।

यह बद बातिन और नंगे ख़ानदान 25 हिजरी में पैदा हुआ, इस की मां का नाम मैसून बिन्त नजदल कलंबी है। यज़ीद बहुत मोटा, बद नुमा, बद खुल्क़, फासिक व फाजिर, शराबी, बदकार, ज़ालिम और बेअदब व गुस्ताख था। उस की बद कारियां और बेहूदगियां इन्तिहा को पहुंच गई थीं।

हज़रत अब्दुल्लाह रदिअल्लाहु तआला अन्हु जो हज़रत हंज़ला ग़सीलुल् मलाइका के साहिब जादे हैं वह फ़रमाते हैं: यज़ीद पर हम ने उस वक्त हमले की तैयारी की जब हम लोगों को अंदेशा हो गया कि उसकी बद कारियों के सबब हम पर आसमान से पत्थरों की बारिश होगी। इस लिये कि फिस्क़ व फुजूर का यह आलम था कि लोग

सय्यदुश् शुहदा हज़रत इमाम हुसैन (रदिअल्लाहु अन्हु), एक ऐतराज़ और उसका जवाब

〽️बाज़ गुस्ताख़ जो ऐतराज़ करते हैं कि जब रसूलुल्लाह अपने नवासे को क़त्ल से नहीं बचा सके तो दूसरे को किसी मुसीबत से क्या बचा सकते हैं ? तो इसका जवाब यह है कि अल्लाह के महबूब प्यारे मुस्तफा सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने अपने नवासे हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु को शहीद होने से बचाने की कोशिश ही नहीं फ़रमाई, इस लिये कि आप ने उनके लिये क़त्ल से महफूज रहने की दुआ ही नहीं की और जब आप ने उन को शहीद होने से बचाने की कोशिश ही नहीं फ़रमाई तो फिर यह कहना ही सिरे से गलत है कि वह अपने नवासे को क़त्ल से नहीं बचा सके। जैसे कि हमारा कोई आदमी दरिया में डूब रहा हो और हमारे पास डूबने से बचाने के लिये कश्ती वगैरा तमाम सामान मुहैया हों मगर हम बचाने की कोशिश न करें, तो यह कहना गलत है कि हम बचा न सके। हां अगर हम बचाने की कोशिश करते और न बचा पाते तो अल्बत्ता यह कहना सहीह होता कि हम नहीं बचा सके तो अल्लाह के महबूब सैयिदे आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम अपने नवासे को बचाने की क़ुद्रत रखने के बावजूद उन को बचाने की कोशिश नहीं फ़रमाई, लिहाजा यह कहना गलत कि उन को नहीं बचा सके। ख़ुदाए तआला समझ अता फ़रमाए।

और बाज़ गुस्ताख जो यह कहते हैं कि हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु जो सैयिदुल अंबिया के नवासे और सहाबी हैं, जिन के दर्ज़ा को बड़े से बड़ा वली और गौस व क़ुतब नहीं पहुंच सकता, जब वह अपनी और अपने अज़ीज़ व अक़ारिब की जान नहीं बचा सके तो दूसरा कोई गौस व क़ुतब किसी की क्या मदद कर

सय्यदुश् शुहदा हज़रत इमाम हुसैन (रदिअल्लाहु अन्हु) की शहादत की शोहरत

〽️सैय्यिदुश् शुहदा हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु की पैदाइश के साथ ही आप की शहादत की शोहरत भी आम हो गई। हज़रत अली, हज़रत फातिमा ज़हरा और दीगर सहाबए किराम व अहले बैत के जां निसार रदिअल्लाहु तआला अन्हुम सभी लोग आप के ज़मानए शीर ख़्वारगी (दूध पीने के ज़माना) ही में जान गए कि यह फर्ज़न्दे अर्जुमन्द जुल्म व सितम के हाथों शहीद किया जाएगा और इन का खून निहायत बेदर्दी के साथ ज़मीने करबला में बहाया जाएगा जैसा कि उन अहादीसे करीमा से साबित है जो आप की शहादत के बारे में वारिद हैं: हज़रत उम्मुल फज़ल बिन्त हारिस रदिअल्लाहु तआला अन्हा यानी हज़रत अब्बास रदिअल्लाहु तआला अन्हु की ज़ौजा फ़रमाती हैं कि मैं ने एक रोज़ नबीए अक्रम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की ख़िदमत में हाज़िर होकर हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु को आप की गोद में दिया, फिर मैं क्या देखती हूं कि हुज़ूर की मुबारक आंखों से लगातार आंसू बह रहे हैं, मैं ने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह! मेरे मां-बाप आप पर कुर्बान हों यह क्या हाल है? फ़रमाया मेरे पास जिब्रील अलैहिस्सलाम आए और उन्हों ने यह खबर पहुंचाई कि मेरी उम्मत मेरे इस फर्ज़न्द को शहीद करेगी। हज़रत उम्मुल फज़ल फ़रमाती हैं कि मैं ने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह! क्या इस फर्ज़न्द को शहीद कर देगी? हुज़ूर ने फ़रमाया हां, फिर जिब्रील मेरे पास उस की शहादतगाह की मिट्टी भी लाए। #(मिश्कात:572)

और इब्ने सअद व तबरानी हज़रत आइशा सिद्दीक़ा रदिअल्लाहु तआला अन्हा से रिवायत करते हैं उन्होंने कहा

सय्यदुश् शुहदा हज़रत इमाम हुसैन (रदिअल्लाहु अन्हु) के फज़ाइल

〽️हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु के फज़ाइल में बहुत सी हदीसे वारिद हैं। आप हज़रात पहले उन हदीसों को समाअत फ़रमाएं जो सिर्फ आप के मनाक़ीब में हैं। फिर जो हदीसे कि दोनों शाहज़ादों के फज़ाइल को शामिल हैं वह बाद में पेश की जायेंगी। तिर्मिज़ी शरीफ की हदीस है हज़रत याला बिन, मुर्रा रदिअल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि हुज़ूर पुर नूर सैयिदे आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः हुसैन मुझ से हैं और मैं हुसैन से हूं। यानी हुसैन को हुज़ूर से और हुज़ूर को हुसैन से इन्तिहाई कुर्ब है गोया कि दोनों एक हैं तो हुसैन का ज़िक्र हुज़ूर का ज़िक्र है, हुसैन से दोस्ती हुज़ूर से दोस्ती है, हुसैन से दुश्मनी हुज़ूर से दुश्मनी है और हुसैन से लड़ाई करना हुज़ूर से लड़ाई करना है (सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम व रदिअल्लाहु तआला अन्हु) और सरकारे अक़्दस इरशाद फ़रमाते हैं: जिस ने हुसैन से मुहब्बत की उस ने अल्लाह तआला से मुहब्बत की। #(मिश्कातः571)

इस लिये कि हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु से मुहब्बत करना हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम से मुहब्बत करना है और हुज़ूर से मुहब्बत करना

सय्यदुश् शुहदा हज़रत इमाम हुसैन (रदिअल्लाहु अन्हु) की विलादत (पैदाइश)

〽️एक मर्तबा हम और आप सब लोग मिल कर सारी काइनात के आक़ा व मौला जनाब अहमदे मुज्तबा मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम के दरबारे दुररे बार में बुलंद आवाज़ से दुरूद शरीफ का नज़राना और हदिया पेश करें-
सल्लल्लाहु अलन् नबिय्यील उम्मियी व आलिही सल्लल्लाह तआला अलैहि व सल्लम, सलातंव् व सलामन् अलैक या रसूलल्लाह।

हम्दो-सलात के बाद क़ुरआने मुकद्दस की आयते करीमा के जिस टुकड़े की तिलावत का शर्फ हम ने हासिल किया है। यानीः क़द जा-अकुम मिनल्लाहि नूर (Qad Ja'akum Minallahi Noor)

उसका तर्जमा यह है: अल्लाह तआला की जानिब से तुम्हारे पास नूर आ गया।

इस आयते करीमा में हमारे नबीए अक्रम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम को नूर फरमाया गया है और नूर वह है जो खुद रौशन और चमकदार हो और दूसरों को रौशन व चमकदार बनाए। देखिये आफ्ताब नूर है जो रौशन व ताबनाक है और जिस पर वह अपना अक्स डालता है उसे भी रौशन व ताबनाक बना देता है। मगर वह सिर्फ जाहिर को चमकाता है और हमारे आक़ा व मौला प्यारे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ऐसे नूर हैं जो ज़ाहिर व बातिन दोनों को चमकाते हैं, तो जो लोग कि इस नूर से चमके वह खूब चमक। फिर उन में जो नूर की गोद में खेल कर बड़े हुए यानी नवासए रसूल सय्यदुश्-शुहदा हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला

शहीदों की जिंदगी

〽️शहीद जो अल्लाह की राह में कत्ल किये जाते हैं वह जिंदा हैं, पारए दोम, रुकूअ-3 की आयते करीमा में खुदावन्दे क़ुद्दुस ने शहीदों को मुर्दा कहने से रोक दिया और फ़रमाया कि वह जिंदा हैं लेकिन तुम शऊर नहीं रखते हो और नहीं समझते हो कि वह कैसे जिंदा हैं।

मगर इंसान जबकि देखता है कि शहीद के हाथ पांव कट गए, उस की गर्दन जुदा हो गई, वह बेहिस व हरकत हो गया और सांस की आमद व रफ्त भी बन्द हो गई फिर उस को ज़मीन के नीचे दफन कर दिया गया, वारिसों ने उस के माल को आपस में तक़्सीम कर लिया और बीवी ने इद्दत गुज़ार कर दूसरा निकाह भी कर लिया तो हो सकता था कि ज़ाहिरी हाल देख कर वह गुमान करता शहीद मुर्दा हैं अल्बत्ता जब अल्लाह तआला ने मना फरमा दिया है तो उसे मुर्दा नहीं कहा जाएगा तो खुदाए अज्ज़ व. जल्ल ने पारए चहारुम, रुकूअ-8 की आयते मुबारका में शहीदों को मुर्दा गुमान करने से भी रोक दिया और ताकीद के साथ फ़रमाया कि ऐसे लोगों को मुर्दा हरगिज़ गुमान मत करना बल्कि वह ज़िन्दा हैं और बारगाहे इलाही से रोज़ी दिये जाते हैं।

क़ुरआने करीम की इन आयाते मुबारका से वाज़ेह तौर पर साबित हुआ कि शुहदाए किराम ज़िंदा हैं, उन को मुर्दा

बेमिस्ल शहादत

〽️इस्लाम की नशर व इशाअत और उस की बक़ा के लिये बेशुमार मुसलमान अब तक शहीद किये गए मगर इन तमाम लोगों में सैय्युिदश-शुहदा हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु की शहादत बेमिस्ल है कि आप जैसी मुसीबतें किसी दूसरे शहीद ने नहीं उठाई। आप तीन दिन के भूके-प्यासे शहीद किये गए, इस हाल में कि आप के तमाम रुफक़ा, अज़ीज़ व अक़ारिब व अहल व अयाल भी सब भूके प्यासे थे और छोटे बच्चे पानी के लिये तड़प रहे थे। यह आप के लिये और ज़्यादा मुसीबत की बात थी, इस लिये कि इंसान अपनी भूक व प्यास तो बर्दाश्त कर लेता है लेकिन अहल व अयाल और खास कर छोटे बच्चों की भूक व प्यास उसे पागल बना देती है और जब पानी का वुजूद नहीं होता तो प्यास की तक्लीफ कम होती है लेकिन जब कि पानी की बोहतात हो जिसे आम लोग हर तरह से इस्तेमाल कर रहे हों यहां तक कि जानवर भी उस से सैराब हो रहे हों मगर कोई शख़्स जो तीन दिन का भूका प्यासा हो उसे न पीने दिया जाए तो उस के लिये ज़्यादा तक्लीफ की बात है और मैदाने करबला में यही नक़शा था कि आदमी और जानवर सभी लोग दरियाए फुरात से सैराब हो रहे थे, मगर इमामे आली मकाम और उनके तमाम रुफक़ा पर पानी बन्द कर दिया गया था यहां तक कि आप अपने बीमारों और छोटे बच्चों को भी एक कतरा नहीं पिला सकते थे।
उस की क़ुद्रत जानवर तक आब से सैराब हों।
प्यास की शिद्दत में तड़पे बे ज़बाने अहले बैत।।

और फिर ग़ैर ऐसा करे तो तक़्लीफ का ऐहसास कम होगा और यहां हाल यह है कि खाना-पानी रोकने वाले अपने