〽️मदीना मुनव्वरा वह शहरे मुकद्दस है जो हुज़ूर अनवर सैयिद आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम को सारे शहरों में सब से ज़्यादा महबूब है जैसा कि खुद हुज़ूर इरशाद फ़रमाते हैं: तर्जुमा नबी उसी जगह इन्तेक़ाल फ़रमाता है जो उसे सब जगहों से ज़्यादा महबूब हो। #(फज़ाइले मदीनाः11)

और रसूले काइनात सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम का विसाल मदीना मुनव्वरा में हुआ। मालूम हुआ कि सारे शहरों में आप को सब से ज़्यादा प्यारा मदीना मुनव्वरा है। और जब हुज़ूर को वह सब से ज़्यादा प्यारा है तो हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु को भी वही शहर सब से ज़्यादा प्यारा है। मगर हालात ने इस महबूब के छोड़ने पर आपको मजबूर कर दिया, सफर की तैयारी मुकम्मल हो गई, ऊंटों पर कजावे कसे गए और अहले बैते रिसालत का यह छोटा सा मुकद्दस काफिला मदीनतुर रसूल की जुदाई के सद्-मे से रोता हुआ घरों से निकल पड़ा और हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु अपने नाना जान के रौज़ए अनवर पर आख़िरी सलाम अर्ज़ करने के लिये हाज़िर हुए।

इमाम आली मक़ाम जब अपने नाना जान के आस्तानए मुक़द्दसा पर आख़िरी सलाम के लिये हाज़िर हुए होंगे,
उस वक्त आप की कैफियत क्या हुई होगी, बिला शुब्हा दीदए ख़ूबार ने अश्के गम की बारिश की होगी और अर्ज़ किया होगा कि नाना जान! मैं आप का मुक़द्दस शहर छोड़ रहा हूं, वह शहर कि जो मुझे सब से ज़्यादा अज़ीज़ और प्यारा है, इस लिये छोड़ रहा हूं कि मेरा यहां रहना दुश्वार हो गया है, मैं जा रहा हूं मुझे इजाज़त दीजिये और आप के नाना जान सैयिदे आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम जिन्हों ने आग़ोशे रहमत व मुहब्बत में आप की परवरिश की थी, उस वक़्त रौज़ए अनवर में उनका क्या हाल हुआ होगा, इसका तसव्वुर अहले मुहब्बत के दिलों को पाश-पाश (टुकड़े-टुकड़े) कर देता है।

आह! यह दिन कितने रंज व गम का दिन था कि जिगर गोशए रसूल फर्ज़न्दे अली व बतूल जिन का सब कुछ मदीना में है मगर आज वह मदीना से जा रहा है और हमेशा हमेश के लिये जा रहा है।

आप अल-विदाअ, ऐ नाना जान! अल-विदाअ कह कर रोते हुए वापस हुए और डूबते हुए दिल के साथ मदीना मुनव्वरा पर हस्-रत भरी निगाह डालते हुए मक्का मुअज़्ज़मा की जानिब रवाना हो गए। यह वाकिआ 4 शाबान 60 हिजरी का है।

जब आप मक्का मुअज़्ज़मा पहुंच गए और आप की तशरीफ आवुरी की लोगों को ख़बर हुई तो जूक़ दर जूक़ आप की ख़िदमत में लोग आने लगे और आप की ज़ियारत का शर्फ हासिल करने लगे।

मक्का मुअज्जमा में आप एक पनाह गुज़ी की हैसियत से मुक़ीम रहे, न आप ने यज़ीद के ख़िलाफ किसी से बैअत ली और न अपनी मुवाफक़त में कोई लश्करी ताक़त ही फराहम की।

📕»» ख़ुत्बाते मोहर्रम, पेज: 394-396
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🖌पोस्ट क्रेडिट - शाकिर अली बरेलवी रज़वी  व  अह्-लिया मोहतरमा

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