〽️एक मर्तबा हम और आप सब लोग मिल कर सारी काइनात के आक़ा व मौला जनाब अहमदे मुज्तबा मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम के दरबारे दुररे बार में बुलंद आवाज़ से दुरूद शरीफ का नज़राना और हदिया पेश करें-
सल्लल्लाहु अलन् नबिय्यील उम्मियी व आलिही सल्लल्लाह तआला अलैहि व सल्लम, सलातंव् व सलामन् अलैक या रसूलल्लाह।

हम्दो-सलात के बाद क़ुरआने मुकद्दस की आयते करीमा के जिस टुकड़े की तिलावत का शर्फ हम ने हासिल किया है। यानीः क़द जा-अकुम मिनल्लाहि नूर (Qad Ja'akum Minallahi Noor)

उसका तर्जमा यह है: अल्लाह तआला की जानिब से तुम्हारे पास नूर आ गया।

इस आयते करीमा में हमारे नबीए अक्रम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम को नूर फरमाया गया है और नूर वह है जो खुद रौशन और चमकदार हो और दूसरों को रौशन व चमकदार बनाए। देखिये आफ्ताब नूर है जो रौशन व ताबनाक है और जिस पर वह अपना अक्स डालता है उसे भी रौशन व ताबनाक बना देता है। मगर वह सिर्फ जाहिर को चमकाता है और हमारे आक़ा व मौला प्यारे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ऐसे नूर हैं जो ज़ाहिर व बातिन दोनों को चमकाते हैं, तो जो लोग कि इस नूर से चमके वह खूब चमक। फिर उन में जो नूर की गोद में खेल कर बड़े हुए यानी नवासए रसूल सय्यदुश्-शुहदा हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला
अन्हु तो वह ऐसे चमके कि अपने तो अपने अगियार (गैरों) की भी आंखें उन की चमक से चक्का चौंध हैं और यज़ीदियों की हज़ार मुख़ालफत के बावजूद इन्शा अल्लाहुर रहमान वह कियामत तक ऐसे ही चमकते रहेंगे।

सल्लल्लाहु अलन् नबिय्यिल् उम्मियी व आलिही सल्लल्लाह तआला अलैहि व सल्लम, सलातंव् व सलामन् अलैक या रसूलल्लाह।

👉 सैय्यदुश्-शुदा हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु की विलादते मुबारका 5 शाबान 4 हिजरी को मदीना तैयिबा में हुई । सरकारे अक़्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने आप के कान में अज़ान दी, मुंह में लुआबे दहन (थूक मुबारक) डाला और आप के लिये दुआ फरमाई फिर सातवें दिन आप का नाम हुसैन रखा और अक़ीक़ा किया। हज़रत इमाम हुसैन की कुन्नियत अबू अब्दुल्लाह और लक़ब “सिब्ते रसूल” व “रैहानतुर रसूल” है। हदीस शरीफ में है: रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया कि हज़रत हारून अलैहिस्सलाम ने अपने बेटों का नाम शब्बर व शब्बीर रखा और मैं ने अपने बेटों का नाम उन्हीं के नाम पर हसन और हुसैन रखा।

#(सवाइके मुहर्रिकाः118)

इसी लिये हसनैन क़रीमैन को शब्बर व शब्बीर के नाम से भी याद किया जाता है। सुर्यानी ज़बान में शब्बर व शब्बीर और अरबी ज़बान में हसन व हुसैन दोनों के मना एक हैं और हदीस शरीफ में है किः हसन और हुसैन जन्नती नामों में से दो नाम हैं। अरब के ज़मानए जाहिलिय्यत में यह दोनों नाम नहीं थे।

#(सवाइके मुहर्रकाः118)

इब्नुल अअराबी हज़रत मुफज़्ज़ल से रिवायत करते हैं कि अल्लाह तआला ने यह नाम मख़्फी रखे यहां तक कि नबीए अक्रम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने अपने नवासों का नाम हसन और हुसैन रखा।

#(अश्शरफुल मोअब्बदः70)

हज़रत उम्मुल फज़ल बिन्तुल हारिस रदिअल्लाहु तआला अन्हा यानी हुज़ूरे अक़्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की चची हज़रत अब्बास बिन मुत्तलिब रदिअल्लाहु तआला अन्हु की अहलिया मोहतरमा एक दिन हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हुई और अर्ज़ किया या रसूलल्लाह! आज मैं ने एक ऐसा ख़्वाब देखा है जिस से मैं डर गई हूँ। हुज़ूर अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया तू ने क्या देखा है? उन्हों ने अर्ज़ किया वह बहुत सख़्त है जिस के बयान करने की मैं अपने अन्दर ज़ुर्अत नहीं पाती हूँ। हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया बयान करो तो उन्होंने अर्ज़ किया मैं ने यह देखा कि हुज़ूर के जिस्मे मुबारक का एक टुकड़ा काट कर मेरी गोद में रखा गया है। इरशाद फ़रमाया तुम्हारा ख़्वाब बहुत अच्छा है। इन्शा अल्लाह तआला फातिमा ज़हरा को बेटा पैदा होगा और वह तुम्हारी गोद में दिया जाएगा।

चुनांचे ऐसा ही हुआ, हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु पैदा हुए और हज़रत उम्मुल फज़ल की गोद में दिये गए।

#(मिश्कातः572)

📕»» ख़ुत्बाते मोहर्रम, पेज:369-371
--------------------------------------------------------
🖌पोस्ट क्रेडिट - शाकिर अली बरेलवी रज़वी  व  अह्-लिया मोहतरमा

📌 हिंदी हिकायात पोस्ट पढ़ने के लिए क्लिक करिये ⬇
https://MjrMsg.blogspot.com/p/khutbate-moharram.html