〽️हज़रत
अमीरे मुआविया रदिअल्लाहु तआला अन्हु की वफात के बाद यज़ीद ने तख़्त नशीन
होते ही अपनी बैअत के लिये हर तरफ खुतूत व हुक्म नामे रवाना किये।
मदीना मुनव्वरा के गवर्नर वलीद बिन उक्बा थे, उन को अपने बाप की वफात की इत्तिला की और लिखा कि हर खास व आम से मेरी बैअत लो और हुसैन बिन अली, अब्दुल्लाह बिन जुबैर और अब्दुल्लाह बिन उमर (रदिअल्लाहु तआला अन्हुम) से पहले बैअत लो, इन सब को एक लम्हा मोहलत न दो।
मदीना मुनव्वरा के लोगों को अभी तक हज़रत अमीरे मुआविया के इन्तेक़ाल की खबर न थी, यज़ीद के हुक्म नामे से वलीद बहुत घबराया इस लिये कि इन हज़रात से बैअत लेना आसान नहीं था, उस ने मश्वरा के लिये मरवान बिन हिकम को बुलाया। मरवान बिन हिकम वह शख़्स है कि जब उस की पैदाइश हुई और हुज़ूर अक़्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की ख़िदमत में तहनीक (कोई चीज़ चबा कर नर्म करके खिलाने) के लिये लाया गया तो हुज़ूर ने फ़रमायाः - (रवाहुल हाकिम फी सहीहिही) यह गिरगिट का बेटा गिरगिट है। #(अन्नाहियाः 45)
और बुख़ारी, नसाई और इब्ने अबी हातिम अपनी तफ्सीर में रिवायत करते हैं कि हज़रत आइशा सिद्दीका
रदिअल्लाहु तआला अन्हा तर्जुमा- रसूले अक्रम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने मरवान के बाप हिकम पर लअनत फ़रमाई जबकि मरवान सुल्बे पिदर में था तो वह भी लअनत से हिस्सा पाने वाला हुआ। #(तारीखुल खुलफा-128)
वह मरवान कि उस को और उस के बाप को हुज़ूर अक़्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने गिरगिट फ़रमाया और जिस के बाप पर हुज़ूर ने लअनत फ़रमाई बल्कि उस के बाप को शहर बदर फ़रमा कर ताइफ में रहने का हुक्म फ़रमाया, ऐसे मरवान से भला ख़ैर की उम्मीद क्या हो सकती है।
मदीना मुनव्वरा के गवर्नर वलीद ने जब मरवान से मश्वरा लिया तो उस ने कहा इन तीनों को इसी वक़्त बुलाएं और बैअत के लिये कहें, अगर वह बैअत कर लें तो बेहतर वरना तीनों को क़त्ल कर दें।
इस मश्वरा के बाद गवर्नर वलीद ने तीनों हज़रात को बुला भेजा, हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु अपने चन्द जवानों को साथ लेकर गए, मकान के बाहर उन को खड़ा कर दिया और फ़रमाया कि अगर तुम लोग सुनो कि मेरी आवाज़ बुलंद हो रही है तो फौरन अन्दर आ जाना और जब तक मैं बाहर न आ जाऊं, यहां से हरगिज़ न जाना। फिर आप अन्दर तशरीफ ले गए, वलीद ने आप को हज़रत अमीरे मुआविया की वफात की ख़बर सुनाई और यज़ीद की बैअत के लिये कहा, आप ने फ़रमाया कि मेरे जैसा आदमी इस तरह छुप कर बैअत नहीं कर सकता, आप बाहर निकल कर सब लोगों से बैअत तलब करें तो उन के साथ मुझ से भी बैअत के लिये कहें।
वलीद अम्न पसंद आदमी था, उस ने कहा अच्छा आप तश्-रीफ ले जाइये। जब आप चलने लगे तो मरवान ने बरहम होकर वलीद से कहा कि अगर आप ने इस वक़्त इन को जाने दिया और बैअत न ली तो फिर इनपर काबू न पा सकेंगे। अगर यह बैज़त कर लें तो बेहतर वरना इन को क़त्ल कर दो, यह सुन कर हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु खड़े हो गए और फ़रमाया ओ इब्नुज् ज़रका क्या तू मुझे क़ल्ल करेगा या यह क़त्ल करेंगे, ख़ुदा की कसम तू झूठा और कमीना है, यह कह कर आप बाहर तश्-रीफ ले आए।
मरवान ने वलीद से कहा कि आप ने मेरी बात नहीं मानी। ख़ुदा की कसम अब आप इन पर काबू न पा सकेंगे। क़त्ल करने का यह बेहतरीन मौका था जिस को आप ने ज़ाए कर दिया। वलीद ने कहा अफ़्सोस तुम मुझे ऐसा मश्वरा दे रहे हो जिस में मेरे दीन की तबाही हैं। क्या मैं नवासए रसूल को सिर्फ इस वजह से क़त्ल कर देता कि उन्होंने यज़ीद की बैअत नहीं की। ख़ुदाए जुल जलाल की क़सम अगर मुझे सारी दुनिया का माल व मताअ मिल जाए तो भी मैं उन के ख़ून से अपने हाथों को आलूद हरगिज़ नहीं कर सकता। #(तबरी:2/162)
हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु ख़ूब जानते थे कि बैअत के इनकार से यज़ीद बद बख़्त जान का दुश्मन और ख़ून का प्यासा हो जाएगा लेकिन आप की ग़ैरत और तक़्वा व परहेज़गारी ने इजाज़त न दी कि अपनी जान बचाने की ख़ातिर ना अहल के हाथ पर बैअत कर लें और नवासए रसूल होकर इस्लाम व मुसलमानों की तबाही की परवाह न करें।
अगर आप यज़ीद की बैअत कर लेते तो वह आप की बड़ी कद्रो-मंज़िलत करता और दुनिया की बेशुमार दौलत आप के क़दमों में ढेर हो जाती लेकिन यज़ीद की बदकारी के जवाज़ के लिये आप की बैअत सनद हो जाती तो इस्लाम का निज़ाम दर्हम-बर्हम हो जाता और दीन में ऐसा फसाद बरपा होता कि जिस का दूर करना बाद में ना मुम्किन हो जाता।
बहर हाल आप यज़ीद की बैअत के लिये तैयार न हुए। शाम के वक़्त वलीद ने फिर इमाम के पास आदमी भेजा, आप ने फ़रमाया इस वक़्त तो मैं नहीं आ सकता, सुबह होने दीजिये फिर देखेंगे क्या होता है। वलीद ने यह बात मान ली और आप उसी रात अपने अहलो-अयाल और अज़ीज़ व अक़ारिब के साथ मदीना मुनव्वरा से मक्का मुअज़्ज़मा का सफर करने के लिये तैयार हो गए।
📕»» ख़ुत्बाते मोहर्रम, पेज: 392-394
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🖌पोस्ट क्रेडिट - शाकिर अली बरेलवी रज़वी व अह्-लिया मोहतरमा
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मदीना मुनव्वरा के गवर्नर वलीद बिन उक्बा थे, उन को अपने बाप की वफात की इत्तिला की और लिखा कि हर खास व आम से मेरी बैअत लो और हुसैन बिन अली, अब्दुल्लाह बिन जुबैर और अब्दुल्लाह बिन उमर (रदिअल्लाहु तआला अन्हुम) से पहले बैअत लो, इन सब को एक लम्हा मोहलत न दो।
मदीना मुनव्वरा के लोगों को अभी तक हज़रत अमीरे मुआविया के इन्तेक़ाल की खबर न थी, यज़ीद के हुक्म नामे से वलीद बहुत घबराया इस लिये कि इन हज़रात से बैअत लेना आसान नहीं था, उस ने मश्वरा के लिये मरवान बिन हिकम को बुलाया। मरवान बिन हिकम वह शख़्स है कि जब उस की पैदाइश हुई और हुज़ूर अक़्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की ख़िदमत में तहनीक (कोई चीज़ चबा कर नर्म करके खिलाने) के लिये लाया गया तो हुज़ूर ने फ़रमायाः - (रवाहुल हाकिम फी सहीहिही) यह गिरगिट का बेटा गिरगिट है। #(अन्नाहियाः 45)
और बुख़ारी, नसाई और इब्ने अबी हातिम अपनी तफ्सीर में रिवायत करते हैं कि हज़रत आइशा सिद्दीका
रदिअल्लाहु तआला अन्हा तर्जुमा- रसूले अक्रम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने मरवान के बाप हिकम पर लअनत फ़रमाई जबकि मरवान सुल्बे पिदर में था तो वह भी लअनत से हिस्सा पाने वाला हुआ। #(तारीखुल खुलफा-128)
वह मरवान कि उस को और उस के बाप को हुज़ूर अक़्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने गिरगिट फ़रमाया और जिस के बाप पर हुज़ूर ने लअनत फ़रमाई बल्कि उस के बाप को शहर बदर फ़रमा कर ताइफ में रहने का हुक्म फ़रमाया, ऐसे मरवान से भला ख़ैर की उम्मीद क्या हो सकती है।
मदीना मुनव्वरा के गवर्नर वलीद ने जब मरवान से मश्वरा लिया तो उस ने कहा इन तीनों को इसी वक़्त बुलाएं और बैअत के लिये कहें, अगर वह बैअत कर लें तो बेहतर वरना तीनों को क़त्ल कर दें।
इस मश्वरा के बाद गवर्नर वलीद ने तीनों हज़रात को बुला भेजा, हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु अपने चन्द जवानों को साथ लेकर गए, मकान के बाहर उन को खड़ा कर दिया और फ़रमाया कि अगर तुम लोग सुनो कि मेरी आवाज़ बुलंद हो रही है तो फौरन अन्दर आ जाना और जब तक मैं बाहर न आ जाऊं, यहां से हरगिज़ न जाना। फिर आप अन्दर तशरीफ ले गए, वलीद ने आप को हज़रत अमीरे मुआविया की वफात की ख़बर सुनाई और यज़ीद की बैअत के लिये कहा, आप ने फ़रमाया कि मेरे जैसा आदमी इस तरह छुप कर बैअत नहीं कर सकता, आप बाहर निकल कर सब लोगों से बैअत तलब करें तो उन के साथ मुझ से भी बैअत के लिये कहें।
वलीद अम्न पसंद आदमी था, उस ने कहा अच्छा आप तश्-रीफ ले जाइये। जब आप चलने लगे तो मरवान ने बरहम होकर वलीद से कहा कि अगर आप ने इस वक़्त इन को जाने दिया और बैअत न ली तो फिर इनपर काबू न पा सकेंगे। अगर यह बैज़त कर लें तो बेहतर वरना इन को क़त्ल कर दो, यह सुन कर हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु खड़े हो गए और फ़रमाया ओ इब्नुज् ज़रका क्या तू मुझे क़ल्ल करेगा या यह क़त्ल करेंगे, ख़ुदा की कसम तू झूठा और कमीना है, यह कह कर आप बाहर तश्-रीफ ले आए।
मरवान ने वलीद से कहा कि आप ने मेरी बात नहीं मानी। ख़ुदा की कसम अब आप इन पर काबू न पा सकेंगे। क़त्ल करने का यह बेहतरीन मौका था जिस को आप ने ज़ाए कर दिया। वलीद ने कहा अफ़्सोस तुम मुझे ऐसा मश्वरा दे रहे हो जिस में मेरे दीन की तबाही हैं। क्या मैं नवासए रसूल को सिर्फ इस वजह से क़त्ल कर देता कि उन्होंने यज़ीद की बैअत नहीं की। ख़ुदाए जुल जलाल की क़सम अगर मुझे सारी दुनिया का माल व मताअ मिल जाए तो भी मैं उन के ख़ून से अपने हाथों को आलूद हरगिज़ नहीं कर सकता। #(तबरी:2/162)
हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु ख़ूब जानते थे कि बैअत के इनकार से यज़ीद बद बख़्त जान का दुश्मन और ख़ून का प्यासा हो जाएगा लेकिन आप की ग़ैरत और तक़्वा व परहेज़गारी ने इजाज़त न दी कि अपनी जान बचाने की ख़ातिर ना अहल के हाथ पर बैअत कर लें और नवासए रसूल होकर इस्लाम व मुसलमानों की तबाही की परवाह न करें।
अगर आप यज़ीद की बैअत कर लेते तो वह आप की बड़ी कद्रो-मंज़िलत करता और दुनिया की बेशुमार दौलत आप के क़दमों में ढेर हो जाती लेकिन यज़ीद की बदकारी के जवाज़ के लिये आप की बैअत सनद हो जाती तो इस्लाम का निज़ाम दर्हम-बर्हम हो जाता और दीन में ऐसा फसाद बरपा होता कि जिस का दूर करना बाद में ना मुम्किन हो जाता।
बहर हाल आप यज़ीद की बैअत के लिये तैयार न हुए। शाम के वक़्त वलीद ने फिर इमाम के पास आदमी भेजा, आप ने फ़रमाया इस वक़्त तो मैं नहीं आ सकता, सुबह होने दीजिये फिर देखेंगे क्या होता है। वलीद ने यह बात मान ली और आप उसी रात अपने अहलो-अयाल और अज़ीज़ व अक़ारिब के साथ मदीना मुनव्वरा से मक्का मुअज़्ज़मा का सफर करने के लिये तैयार हो गए।
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