〽️शहीद
जो अल्लाह की राह में कत्ल किये जाते हैं वह जिंदा हैं, पारए दोम, रुकूअ-3
की आयते करीमा में खुदावन्दे क़ुद्दुस ने शहीदों को मुर्दा कहने से रोक
दिया और फ़रमाया कि वह जिंदा हैं लेकिन तुम शऊर नहीं रखते हो और नहीं समझते
हो कि वह कैसे जिंदा हैं।
मगर इंसान जबकि देखता है कि शहीद के हाथ पांव कट गए, उस की गर्दन जुदा हो गई, वह बेहिस व हरकत हो गया और सांस की आमद व रफ्त भी बन्द हो गई फिर उस को ज़मीन के नीचे दफन कर दिया गया, वारिसों ने उस के माल को आपस में तक़्सीम कर लिया और बीवी ने इद्दत गुज़ार कर दूसरा निकाह भी कर लिया तो हो सकता था कि ज़ाहिरी हाल देख कर वह गुमान करता शहीद मुर्दा हैं अल्बत्ता जब अल्लाह तआला ने मना फरमा दिया है तो उसे मुर्दा नहीं कहा जाएगा तो खुदाए अज्ज़ व. जल्ल ने पारए चहारुम, रुकूअ-8 की आयते मुबारका में शहीदों को मुर्दा गुमान करने से भी रोक दिया और ताकीद के साथ फ़रमाया कि ऐसे लोगों को मुर्दा हरगिज़ गुमान मत करना बल्कि वह ज़िन्दा हैं और बारगाहे इलाही से रोज़ी दिये जाते हैं।
क़ुरआने करीम की इन आयाते मुबारका से वाज़ेह तौर पर साबित हुआ कि शुहदाए किराम ज़िंदा हैं, उन को मुर्दा कहना क़ुरआने मजीद की मुखालफत करना है बल्कि उन्हें मुर्दा गुमान करने से भी सख्ती से रोका गया गया, यानी मुर्दा कहना तो बड़ी बात है उनको मुर्दा ख़्याल भी नहीं कर सकते इस लिये कि वह अल्लाह की राह में क़त्ल हो कर
जिंदए जावेद हो जाते है, रिज़्क़ आख़िरत से खाते-पीते हैं और जहां खुदाए तआला चाहता है जन्नत वग़ैरा की सैर करते हैं।
मगर इंसान जबकि देखता है कि शहीद के हाथ पांव कट गए, उस की गर्दन जुदा हो गई, वह बेहिस व हरकत हो गया और सांस की आमद व रफ्त भी बन्द हो गई फिर उस को ज़मीन के नीचे दफन कर दिया गया, वारिसों ने उस के माल को आपस में तक़्सीम कर लिया और बीवी ने इद्दत गुज़ार कर दूसरा निकाह भी कर लिया तो हो सकता था कि ज़ाहिरी हाल देख कर वह गुमान करता शहीद मुर्दा हैं अल्बत्ता जब अल्लाह तआला ने मना फरमा दिया है तो उसे मुर्दा नहीं कहा जाएगा तो खुदाए अज्ज़ व. जल्ल ने पारए चहारुम, रुकूअ-8 की आयते मुबारका में शहीदों को मुर्दा गुमान करने से भी रोक दिया और ताकीद के साथ फ़रमाया कि ऐसे लोगों को मुर्दा हरगिज़ गुमान मत करना बल्कि वह ज़िन्दा हैं और बारगाहे इलाही से रोज़ी दिये जाते हैं।
क़ुरआने करीम की इन आयाते मुबारका से वाज़ेह तौर पर साबित हुआ कि शुहदाए किराम ज़िंदा हैं, उन को मुर्दा कहना क़ुरआने मजीद की मुखालफत करना है बल्कि उन्हें मुर्दा गुमान करने से भी सख्ती से रोका गया गया, यानी मुर्दा कहना तो बड़ी बात है उनको मुर्दा ख़्याल भी नहीं कर सकते इस लिये कि वह अल्लाह की राह में क़त्ल हो कर
जिंदए जावेद हो जाते है, रिज़्क़ आख़िरत से खाते-पीते हैं और जहां खुदाए तआला चाहता है जन्नत वग़ैरा की सैर करते हैं।
आवाज़ आ रही है शहीदों की ख़ाक से।
मर कर मिली है ज़िन्दगिए जाविदां मुझे।।
सल्लल्लाहु अलन्नबिय्यिल् उम्मियी व आलिही सल्लल्लाह तआला अलैहि व सल्लम, सलातंव् व सलामन् अलैक या रसूलल्लाह।
📕»» ख़ुत्बाते मोहर्रम, पेज: 29-30
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🖌पोस्ट क्रेडिट - शाकिर अली बरेलवी रज़वी व अह्-लिया मोहतरमा
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