〽️इस्लाम
की नशर व इशाअत और उस की बक़ा के लिये बेशुमार मुसलमान अब तक शहीद किये गए
मगर इन तमाम लोगों में सैय्युिदश-शुहदा हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला
अन्हु की शहादत बेमिस्ल है कि आप जैसी मुसीबतें किसी दूसरे शहीद ने नहीं
उठाई। आप तीन दिन के भूके-प्यासे शहीद किये गए, इस हाल में कि आप के तमाम
रुफक़ा, अज़ीज़ व अक़ारिब व अहल व अयाल भी सब भूके प्यासे थे और छोटे बच्चे
पानी के लिये तड़प रहे थे। यह आप के लिये और ज़्यादा मुसीबत की बात थी, इस
लिये कि इंसान अपनी भूक व प्यास तो बर्दाश्त कर लेता है लेकिन अहल व अयाल
और खास कर छोटे बच्चों की भूक व प्यास उसे पागल बना देती है और जब पानी का
वुजूद नहीं होता तो प्यास की तक्लीफ कम होती है लेकिन जब कि पानी की बोहतात
हो जिसे आम लोग हर तरह से इस्तेमाल कर रहे हों यहां तक कि जानवर भी उस से
सैराब हो रहे हों मगर कोई शख़्स जो तीन दिन का भूका प्यासा हो उसे न पीने
दिया जाए तो उस के लिये ज़्यादा तक्लीफ की बात है और मैदाने करबला में यही
नक़शा था कि आदमी और जानवर सभी लोग दरियाए फुरात से सैराब हो रहे थे, मगर
इमामे आली मकाम और उनके तमाम रुफक़ा पर पानी बन्द कर दिया गया था यहां तक कि
आप अपने बीमारों और छोटे बच्चों को भी एक कतरा नहीं पिला सकते थे।
उस की क़ुद्रत जानवर तक आब से सैराब हों।
प्यास की शिद्दत में तड़पे बे ज़बाने अहले बैत।।
और फिर ग़ैर ऐसा करे तो तक़्लीफ का ऐहसास कम होगा और यहां हाल यह है कि खाना-पानी रोकने वाले अपने
को मुसलमान ही कहलाते हैं, कलमा पढ़ते हैं, नमाजें अदा करते हैं और उनके नाना जान का इस्मे गरामी अज़ानों में बुलन्द करते हैं मगर नवासे पर जुल्म व सितम का पहाड़ तोड़ते हैं।
अगर्चे हज़रत उस्माने गनी रदिअल्लाहु तआला अन्हु पर भी पानी बन्द कर दिया गया था मगर वह अपने घर और अपने वतन में थे और इमामे आली मक़ाम अपने घर से दूर और बे वतन हैं, इस के साथ तेज़ धूप, तपती हुई ज़मीन और गर्म हवाओं के थपेड़ें भी हैं और आप को यह अंदेशा भी दामनगीर था कि मेरी शहादत के बाद मेरा तमाम साज़ व सामान लूट लिया जाएगा, खेमा जला दिया जाएगा, मस्तूरात बेसहारा हो जायेंगीं और उन्हें क़ैद कर लिया जाएगा।
इन हालात में अगर रुस्तम भी होता तो उस के हौसले पस्त हो जाते और वह अपनी गर्दन झुका देता लेकिन सैय्यिदुश-शुहदा हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु उन मसाइब व आलाम के हुजूम में भी बातिल के मुक़ाबिले के लिये सब्र व रज़ा का पहाड़ बन कर क़ाइम रहे और आप के पाए इस्तिक़्लाल में लग़ज़िश नहीं पैदा हुई, यहां तक कि 73 ज़ख्म खा कर शहीद हो गए और आप की लाशे मुबारक घोड़ों की टापों से रौन्दी भी गई।
आप की यह शहादत बे मिस्ल है जिस ने यज़ीदिय्यत को मुर्दा कर दिया, उसे दुनिया में नहीं फैलने दिया और दीने इस्लाम को मस्ख़ होने से बचा लिया।
इसी लिए सुल्तानुल हिन्द हज़रत ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ अजमेरी रहमतुल्लाहि तआला अलैह फरमाते हैं:-
शाह अस्त हुसैन बादशाह अस्त हुसैन,
दीन अस्त हुसैन दीं पनाह अस्त हुसैन।
सर दाद, नदाद दस्त दर दस्ते यज़ीद,
हक्का कि बिनाए ला इलाह अस्त हुसैन।
📕»» ख़ुत्बाते मोहर्रम, पेज:27-29
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🖌पोस्ट क्रेडिट - शाकिर अली बरेलवी रज़वी व अह्-लिया मोहतरमा
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उस की क़ुद्रत जानवर तक आब से सैराब हों।
प्यास की शिद्दत में तड़पे बे ज़बाने अहले बैत।।
और फिर ग़ैर ऐसा करे तो तक़्लीफ का ऐहसास कम होगा और यहां हाल यह है कि खाना-पानी रोकने वाले अपने
को मुसलमान ही कहलाते हैं, कलमा पढ़ते हैं, नमाजें अदा करते हैं और उनके नाना जान का इस्मे गरामी अज़ानों में बुलन्द करते हैं मगर नवासे पर जुल्म व सितम का पहाड़ तोड़ते हैं।
अगर्चे हज़रत उस्माने गनी रदिअल्लाहु तआला अन्हु पर भी पानी बन्द कर दिया गया था मगर वह अपने घर और अपने वतन में थे और इमामे आली मक़ाम अपने घर से दूर और बे वतन हैं, इस के साथ तेज़ धूप, तपती हुई ज़मीन और गर्म हवाओं के थपेड़ें भी हैं और आप को यह अंदेशा भी दामनगीर था कि मेरी शहादत के बाद मेरा तमाम साज़ व सामान लूट लिया जाएगा, खेमा जला दिया जाएगा, मस्तूरात बेसहारा हो जायेंगीं और उन्हें क़ैद कर लिया जाएगा।
इन हालात में अगर रुस्तम भी होता तो उस के हौसले पस्त हो जाते और वह अपनी गर्दन झुका देता लेकिन सैय्यिदुश-शुहदा हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु उन मसाइब व आलाम के हुजूम में भी बातिल के मुक़ाबिले के लिये सब्र व रज़ा का पहाड़ बन कर क़ाइम रहे और आप के पाए इस्तिक़्लाल में लग़ज़िश नहीं पैदा हुई, यहां तक कि 73 ज़ख्म खा कर शहीद हो गए और आप की लाशे मुबारक घोड़ों की टापों से रौन्दी भी गई।
आप की यह शहादत बे मिस्ल है जिस ने यज़ीदिय्यत को मुर्दा कर दिया, उसे दुनिया में नहीं फैलने दिया और दीने इस्लाम को मस्ख़ होने से बचा लिया।
इसी लिए सुल्तानुल हिन्द हज़रत ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ अजमेरी रहमतुल्लाहि तआला अलैह फरमाते हैं:-
शाह अस्त हुसैन बादशाह अस्त हुसैन,
दीन अस्त हुसैन दीं पनाह अस्त हुसैन।
सर दाद, नदाद दस्त दर दस्ते यज़ीद,
हक्का कि बिनाए ला इलाह अस्त हुसैन।
📕»» ख़ुत्बाते मोहर्रम, पेज:27-29
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