यज़ीद
पलीद जिस ने मस्जिदे नबवी और बैतुल्लाह शरीफ की सख़्त बेहुर्मती की, जिस ने
हज़ारों सहाबए किराम व ताबईने इज़ाम रदिअल्लाहु तआला अन्हुम का बेगुनाह
क़त्ले आम किया, जिस ने मदीना तैयिबा की पाक दामन ख़्वातीन को अपने लश्कर पर
हलाल किया और जिस ने जिगर गोशए रसूल हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला
अन्हु को तीन दिन बेआबो-दाना रख कर प्यासा ज़िबह किया। ऐसे बद बख़्त और
मरदूद यज़ीद को पैदाइशी जन्नती और बख़्शा-बख़्शाया हुआ साबित करने के लिये आज
कल कुछ लोग ऐड़ी चोटी का ज़ोर लगा रहे हैं, ऐसे लोग चाहे अपने को सुन्नी
कहें या देवबन्दी लेकिन हक़ीक़त में वह अहले बैते रिसालत के दुश्मन, ख़ारजी और
यज़ीदी हैं। उस बद बख़्त की हिमायत में वह लोग बुख़ारी शरीफ की एक हदीस पेश
करते हैं जो हदीसे कुस्तुन्तुनिया के नाम से याद की जाती है, इन बातिल
परस्त यज़ीदियों का मक़्सद यह है कि जब यज़ीद की बख़्शिश और उस का जन्नती
होना हदीस शरीफ से साबित है तो इमाम हुसैन का ऐसे शख़्स की बैअत न करना और
उस के ख़िलाफ अलमे जिहाद बुलंद करना बग़ावत है और सारे फित्ना व फसाद की
ज़िम्मेदारी इन्हीं पर है। नऊजु बिल्लाहि मिन् ज़ालिक।
यज़ीदी गिरोह जो हदीस पेश करता है वह यह है: तर्जुमा नबीए अक्रम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया कि मेरी उम्मत का पहला लश्कर जो क़ैसर के शहर (कुस्तुन्तुतिया) पर हमला करेगा वह बख़्शा हुआ है। #(बुख़ारी शरीफः 1/410)
और कैसर के शहर कुस्तुन्तिनिया पर पहला हमला करने वाला यज़ीद है लिहाजा वह बख़्शा-बख़्शाया हुआ
पैदाइशी जन्नती है।
यज़ीदी गिरोह की इस तक़्-रीर का जवाब यह है कि अल्लाह के महबूब दानाए ख़िफाया व गुयूब जनाब अहमदे मुज्तबा मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम का फ़रमाने हक है लेकिन क़ैसर के शहर कुस्तुन्तुनिया पर कब हमला किया इसके बारे में चार अक़्वाल हैं: 49 हिजरी, 50 हिजरी, 52 हिजरी और 55 हिजरी। देखिये- कामिल इब्ने असीरः3/131, बिदाया निहायाः8/32, ऐनी शरह बुखारीः14/198 और इसाबाः1/405
मालूम हुआ कि यज़ीद 49 हिजरी से 55 हिजरी तक कुस्तुन्तुनिया की किसी जंग में शरीक हुआ, चाहे सिपह सालार वह रहा हो या हज़रत सुफियान बिन औफ और वह मामूली सिपाही रहा हो, मगर कुस्तुन्तुनिया पर इस से पहले हम्ला हो चुका था जिस के सिपह सालार हज़रत अब्दुर रहमान बिन ख़ालिद बिन वलीद थे और उन के साथ हजरत अबू अय्यूब अंसारी भी थे रदिअल्लाहु तआला अन्हुम। देखिये- हदीस की मोतमद व मशहूर किताब अबू दाऊद शरीफ पेजः340 और हजरत अब्दुर रहमान बिन ख़ालिद बिन वलीद रदिअल्लाहु तआला अन्हु का इन्तेक़ाल 46 या 47 हिजरी में हुआ, जैसा कि बिदाया निहायाः8/31, कामिलब इब्ने असीरः3/229 और असदुल ग़ाबाः3/440 में है। मालूम हुआ कि आप का हम्ला कुस्तुन्तुनिया पर 46 या 47 हिजरी से पहले हुआ और तारीख़ के औराक़ शाहिद हैं कि यज़ीद कुस्तुन्तुनिया की एक जंग के अलावा और किसी में शरीक नहीं हुआ तो साबित हो गया कि हज़रत अब्दुर रहमान रदिअल्लाहु तआला अन्हु ने कुस्तुन्तिनिया पर पहला जो हम्ला किया था, यज़ीद उस में शरीक नहीं था तो फिर हदीस अव्वलु जैशिम् मिन् उम्मती में यज़ीद दाखिल नहीं और याद रखिये कि अबू दाऊद शरीफ सिहाए सित्ता में से है, आम कुतुबे तारीख़ के मुकाबले में उसी की रिवायत को तरजीह दी जाएगी। रही यह बात कि हज़रत अबू अय्यूब अंसारी रदिअल्लाहु तआला अन्हु का इन्तेक़ाल उस जंग में हुआ कि जिस का सिपह सालार यज़ीद था तो इस में कोई ख़ल्जान नहीं इस लिये कि कुस्तुन्तुनिया का पहला हम्ला जो हज़रत अब्दुर रहमान रदिअल्लाहु तआला अन्हु की सरकरदगी में हुआ, आप उस में शरीक रहे और फिर
बाद में जब उस लश्कर में शरीक हुए कि जिस का सिपह सालार यज़ीद था तो कुस्तुन्तुनिया में आप का इन्तेक़ाल हो गया इस लिये कि कुस्तुन्तुनिया पर मुतअद्दिद बार इस्लामी लश्कर हम्ला आवर हुआ।
अगर यह तस्लीम भी कर लिया जाए कि कुस्तुन्तुनिया पर पहला हमला करने वाला जो लश्कर था उस में यज़ीद मौजूद था फिर भी यह हरगिज़ साबित नहीं होगा कि उस के सारे करतूत माफ हो गए और वह जन्नती है। इस लिये कि हदीस शरीफ में यह भी है: तर्जुमा- जब दो मुसलमान आपस में मुसाफहा करते हैं तो जुदा होने से पहले उन दोनों को बख़्श दिया जाता #(तिर्मिज़ी: 2/97)
और हुज़ूरे अनवर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने यह भी इरशाद फरमायाः तर्जुमा- जो माहे रमज़ान में रोज़ेदार को इफ्तार कराए उस के गुनाहों के लिये मगफिरत है। #(बैहक़ी, मिश्कातः 174)
और सरकारे अक़्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की हदीस यह भी है: तर्जुमा- (रोज़ा वग़ैरा के सबब) माहे रमज़ान की आखिरी रात में इस उम्मत को बख़्श दिया जाता है। #(अहमद, मिश्कातः174)
अगर यज़ीद नवाज़ों की बात मान ली जाए तो इन अहादीसे करीमा का यह मतलब होगा कि मुसलमान से मुसाफहा करने वाले, रोज़दार का इफ्तार कराने वाले और माहे रमज़ान में रोज़ा रखने वाले सब बख्शे-बख़्शाए जन्नती हैं, अब अगर वह हरमैन तैयिबैन की बेहुर्मती करें माफ, काबा शरीफ को खोद कर फेंक दें माफ, मस्जिदे नबवी में गलाज़त डालें माफ, हज़ारों बेगुनाह को क़त्ल कर डालें माफ, यहां तक कि अगर सैयिदुल अंबिया के जिगर पारों को तीन दिन का भूखा प्यासा रख कर ज़िबह कर डालें तो वह भी माफ और जो चाहें करें सब माफ। नऊजु बिल्लाहि मिन् ज़ालिक।
अगर किसी अमले ख़ैर से सगीरा, कबीरा व अगले पिछले सब गुनाह माफ हो जाएं जैसा कि आज के यज़ीदियों ने समझा है तो दुनिया का निज़ाम दर्हम बर्हम हो जाएगा इस लिये कि एक मुसलमान दूसरे मुसलमान से मुसाफहा कर लेगा और उस के बाद जो चाहेगा करेगा, अगर कोई उसे सरज़निश करेगा तो कहेगा कि एक मुसलमान से मुसाफहा के सबब हमारा अगला पिछला सब गुनाह माफ हो गया है, हमें कुछ न कहो।
खुदाए अज़्ज़ व जल्ल यज़ीद नवाज़ों को सहीह समझ अता फरमाए और गुमराही व बद मज़हबी से बचने की तौफीकै रफीक बख़्शे। आमीन
📕»» ख़ुत्बाते मोहर्रम, पेज: 388-391
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🖌पोस्ट क्रेडिट - शाकिर अली बरेलवी रज़वी व अह्-लिया मोहतरमा
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यज़ीदी गिरोह जो हदीस पेश करता है वह यह है: तर्जुमा नबीए अक्रम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया कि मेरी उम्मत का पहला लश्कर जो क़ैसर के शहर (कुस्तुन्तुतिया) पर हमला करेगा वह बख़्शा हुआ है। #(बुख़ारी शरीफः 1/410)
और कैसर के शहर कुस्तुन्तिनिया पर पहला हमला करने वाला यज़ीद है लिहाजा वह बख़्शा-बख़्शाया हुआ
पैदाइशी जन्नती है।
यज़ीदी गिरोह की इस तक़्-रीर का जवाब यह है कि अल्लाह के महबूब दानाए ख़िफाया व गुयूब जनाब अहमदे मुज्तबा मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम का फ़रमाने हक है लेकिन क़ैसर के शहर कुस्तुन्तुनिया पर कब हमला किया इसके बारे में चार अक़्वाल हैं: 49 हिजरी, 50 हिजरी, 52 हिजरी और 55 हिजरी। देखिये- कामिल इब्ने असीरः3/131, बिदाया निहायाः8/32, ऐनी शरह बुखारीः14/198 और इसाबाः1/405
मालूम हुआ कि यज़ीद 49 हिजरी से 55 हिजरी तक कुस्तुन्तुनिया की किसी जंग में शरीक हुआ, चाहे सिपह सालार वह रहा हो या हज़रत सुफियान बिन औफ और वह मामूली सिपाही रहा हो, मगर कुस्तुन्तुनिया पर इस से पहले हम्ला हो चुका था जिस के सिपह सालार हज़रत अब्दुर रहमान बिन ख़ालिद बिन वलीद थे और उन के साथ हजरत अबू अय्यूब अंसारी भी थे रदिअल्लाहु तआला अन्हुम। देखिये- हदीस की मोतमद व मशहूर किताब अबू दाऊद शरीफ पेजः340 और हजरत अब्दुर रहमान बिन ख़ालिद बिन वलीद रदिअल्लाहु तआला अन्हु का इन्तेक़ाल 46 या 47 हिजरी में हुआ, जैसा कि बिदाया निहायाः8/31, कामिलब इब्ने असीरः3/229 और असदुल ग़ाबाः3/440 में है। मालूम हुआ कि आप का हम्ला कुस्तुन्तुनिया पर 46 या 47 हिजरी से पहले हुआ और तारीख़ के औराक़ शाहिद हैं कि यज़ीद कुस्तुन्तुनिया की एक जंग के अलावा और किसी में शरीक नहीं हुआ तो साबित हो गया कि हज़रत अब्दुर रहमान रदिअल्लाहु तआला अन्हु ने कुस्तुन्तिनिया पर पहला जो हम्ला किया था, यज़ीद उस में शरीक नहीं था तो फिर हदीस अव्वलु जैशिम् मिन् उम्मती में यज़ीद दाखिल नहीं और याद रखिये कि अबू दाऊद शरीफ सिहाए सित्ता में से है, आम कुतुबे तारीख़ के मुकाबले में उसी की रिवायत को तरजीह दी जाएगी। रही यह बात कि हज़रत अबू अय्यूब अंसारी रदिअल्लाहु तआला अन्हु का इन्तेक़ाल उस जंग में हुआ कि जिस का सिपह सालार यज़ीद था तो इस में कोई ख़ल्जान नहीं इस लिये कि कुस्तुन्तुनिया का पहला हम्ला जो हज़रत अब्दुर रहमान रदिअल्लाहु तआला अन्हु की सरकरदगी में हुआ, आप उस में शरीक रहे और फिर
बाद में जब उस लश्कर में शरीक हुए कि जिस का सिपह सालार यज़ीद था तो कुस्तुन्तुनिया में आप का इन्तेक़ाल हो गया इस लिये कि कुस्तुन्तुनिया पर मुतअद्दिद बार इस्लामी लश्कर हम्ला आवर हुआ।
अगर यह तस्लीम भी कर लिया जाए कि कुस्तुन्तुनिया पर पहला हमला करने वाला जो लश्कर था उस में यज़ीद मौजूद था फिर भी यह हरगिज़ साबित नहीं होगा कि उस के सारे करतूत माफ हो गए और वह जन्नती है। इस लिये कि हदीस शरीफ में यह भी है: तर्जुमा- जब दो मुसलमान आपस में मुसाफहा करते हैं तो जुदा होने से पहले उन दोनों को बख़्श दिया जाता #(तिर्मिज़ी: 2/97)
और हुज़ूरे अनवर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने यह भी इरशाद फरमायाः तर्जुमा- जो माहे रमज़ान में रोज़ेदार को इफ्तार कराए उस के गुनाहों के लिये मगफिरत है। #(बैहक़ी, मिश्कातः 174)
और सरकारे अक़्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की हदीस यह भी है: तर्जुमा- (रोज़ा वग़ैरा के सबब) माहे रमज़ान की आखिरी रात में इस उम्मत को बख़्श दिया जाता है। #(अहमद, मिश्कातः174)
अगर यज़ीद नवाज़ों की बात मान ली जाए तो इन अहादीसे करीमा का यह मतलब होगा कि मुसलमान से मुसाफहा करने वाले, रोज़दार का इफ्तार कराने वाले और माहे रमज़ान में रोज़ा रखने वाले सब बख्शे-बख़्शाए जन्नती हैं, अब अगर वह हरमैन तैयिबैन की बेहुर्मती करें माफ, काबा शरीफ को खोद कर फेंक दें माफ, मस्जिदे नबवी में गलाज़त डालें माफ, हज़ारों बेगुनाह को क़त्ल कर डालें माफ, यहां तक कि अगर सैयिदुल अंबिया के जिगर पारों को तीन दिन का भूखा प्यासा रख कर ज़िबह कर डालें तो वह भी माफ और जो चाहें करें सब माफ। नऊजु बिल्लाहि मिन् ज़ालिक।
अगर किसी अमले ख़ैर से सगीरा, कबीरा व अगले पिछले सब गुनाह माफ हो जाएं जैसा कि आज के यज़ीदियों ने समझा है तो दुनिया का निज़ाम दर्हम बर्हम हो जाएगा इस लिये कि एक मुसलमान दूसरे मुसलमान से मुसाफहा कर लेगा और उस के बाद जो चाहेगा करेगा, अगर कोई उसे सरज़निश करेगा तो कहेगा कि एक मुसलमान से मुसाफहा के सबब हमारा अगला पिछला सब गुनाह माफ हो गया है, हमें कुछ न कहो।
खुदाए अज़्ज़ व जल्ल यज़ीद नवाज़ों को सहीह समझ अता फरमाए और गुमराही व बद मज़हबी से बचने की तौफीकै रफीक बख़्शे। आमीन
📕»» ख़ुत्बाते मोहर्रम, पेज: 388-391
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