〽️हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु के फज़ाइल में बहुत सी हदीसे वारिद हैं। आप हज़रात पहले उन हदीसों को समाअत फ़रमाएं जो सिर्फ आप के मनाक़ीब में हैं। फिर जो हदीसे कि दोनों शाहज़ादों के फज़ाइल को शामिल हैं वह बाद में पेश की जायेंगी। तिर्मिज़ी शरीफ की हदीस है हज़रत याला बिन, मुर्रा रदिअल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि हुज़ूर पुर नूर सैयिदे आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः हुसैन मुझ से हैं और मैं हुसैन से हूं। यानी हुसैन को हुज़ूर से और हुज़ूर को हुसैन से इन्तिहाई कुर्ब है गोया कि दोनों एक हैं तो हुसैन का ज़िक्र हुज़ूर का ज़िक्र है, हुसैन से दोस्ती हुज़ूर से दोस्ती है, हुसैन से दुश्मनी हुज़ूर से दुश्मनी है और हुसैन से लड़ाई करना हुज़ूर से लड़ाई करना है (सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम व रदिअल्लाहु तआला अन्हु) और सरकारे अक़्दस इरशाद फ़रमाते हैं: जिस ने हुसैन से मुहब्बत की उस ने अल्लाह तआला से मुहब्बत की। #(मिश्कातः571)

इस लिये कि हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु से मुहब्बत करना हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम से मुहब्बत करना है और हुज़ूर से मुहब्बत करना
अल्लाह तआला से मुहब्बत करना है। #(मिर्क़ात शरह मिश्कातः5/605)

और हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह रदिअल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि हुज़ूरे अक़्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया जिसे पसंद हो कि जन्नती जवानों के सरदार को देखे तो वह हुसैन बिन अली को देखे। #(नूरुल अब्सारः114)

और हज़रत अबू हुरैरा रदिअल्लाहु तआला अन्हु फ़रमाते हैं कि रसूले अक्रम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम मस्जिद में तशरीफ़ लाए और फ़रमाया छोटा बच्चा कहां है? हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु दौड़ते हुए आए और हुज़ूर की गोद में बैठ गए और अपनी उंगलियां दाढ़ी मुबारक में दाखिल कर दीं, हुज़ूर ने उनका मुंह खोल कर बोसा लिया फिर फ़रमायाः ऐ अल्लाह! मैं इस से मुहब्बत करता हूँ तू भी इस से मुहब्बत फ़रमा और उस से भी मुहब्बत फ़रमा कि जो इस से मुहब्बत करे। #(नूरुल अब्सारः114)

मालूम हुआ कि हुज़ूर आक़ाए दो आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने सिर्फ दुनिया वालों ही से नहीं चाहा कि वह हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु से मुहब्बत करें बल्कि ख़ुदाए तआला से भी अर्ज़ किया कि तू भी इस से मुहब्बत फ़रमा और बल्कि यह भी अर्ज़ किया कि हुसैन से मुहब्बत करने वाले से भी मुहब्बत फ़रमा।

और हज़रत अबू हुरैरा रदिअल्लाहु तआला अन्हु फ़रमाते हैं कि मैं ने रसूले अक्रम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम को देखा कि वह हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु के लुआबे दहेन को इस तरह चूस्ते हैं जैसे कि आदमी खजूर चूस्ता है। #(नूरुल अब्सारः114)

और मरवी है कि हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रदिअल्लाहु तआला अन्हुमा क़ाबा शरीफ के साये में तश्रीफ फ़रमा थे, उन्होंने हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु को तश्रीफ़ लाते हुए देखा तो फ़रमायाः आज यह आसमान वालों के नज़दीक तमाम ज़मीन वालों से ज़्यादा महबूब हैं। #(अश्शर्फुल मोअब्बदः65)

हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु ने पैदल चल कर 25 हज किये। आप बड़ी फज़ीलत के मालिक थे और कस्रत से नमाज़, रोजा, हज, सदक़ा और दीगर उमूरे ख़ैर अदा फ़रमाते थे। #(बरकाते आले रसूलः145)

हज़रत अल्लामा ज़ामी रहमतुल्लाहि तआला अलैह तहरीर फ़रमाते हैं कि एक रोज़ सैय्यिदे आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु को अपने दाहिने और अपने साहिब ज़ादे हज़रत इब्राहीम रदिअल्लाहु तआला अन्हु को अपने बाएं बिठाए हुए थे कि हजरत जिब्रील अलैहिस्सलाम हाज़िर हुए और अर्ज़ किया या रसूलल्लाह! ख़ुदाए ज़ुल जलाल इन दोनों को आप के पास जमा न रहने देगा, इन में से एक को वापस बुला लेगा, अब इन दोनों में से जिसे आप चाहें पसंद फ़रमाएं। हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया अगर हुसैन रुख़्सत हो जाएं तो उन की जुदाई में फातिमा व अली को तक्लीफ होगी और मेरी भी जान सोज़ी होगी और अगर इब्राहीम वफात पा जाएं तो ज़्यादा ग़म मुझी को होगा, इस लिये मुझे अपना ग़म पसंद है। इस वाकिआ के तीन रोज़ बाद हज़रत इब्राहीम रदिअल्लाहु तआला अन्हु वफात पा गए। इस के बाद जब भी हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की ख़िदमत में आते, हुज़ूर मरहबा फ़रमाते, फिर उन की पेशानी को बोसा देते और लोगों से मुख़ातब होकर फ़रमाते मैं ने हुसैन पर अपने बेटे इब्राहीम को कुर्बान कर दिया है। #(शवाहिदुन् नुबुव्वतः305)

अब वह रिवायतें मुलाहेज़ा फ़रमाएं जो दोनों साहिब जादों के फज़ाइल पर मुश्तमिल हैं:-

हज़रत अबू सईद खुदरी रदिअल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि नबीए अक्रम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः हसन और हुसैन जन्नती जवानों के सरदार हैं। #(मिश्कात:570)
(ग्यासुल् लुगात में है बिजम्मे अव्वल व तश्दीदे सानी जवाना बई . मना हम् जम शाब अस्त अज़ मुन्तख़ब व सराहे ।)

और हज़रत इब्ने उमर रदिअल्लाहु तआला अन्हुमा से रिवायत है कि रसूले अक्रम अलैहिस्सलातु वत्तस्लीम ने फरमायाः हसन और हुसैन दुनिया के मेरे दो फूल हैं। #(मिश्कातः370)

और हज़रत उसामा बिन ज़ैद रदिअल्लाहु तआला अन्हु फ़रमाते हैं कि एक रात मैं किसी ज़रूरत से सरवरे काइनात सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हुआ, आप बाहर तश्रीफ लाए तो किसी चीज़ को उठाए हुए थे जिसे मैं नहीं जान सका, जब अर्ज़े हाज़त से मैं फ़ारिग हुआ तो दरियाफ़्त किया हुज़ूर यह क्या उठाए हुए हैं, आप ने चादरे मुबारक हटाई तो मैं ने देखा कि आप के दोनों पहलुओं में हज़रत हसन और हज़रत हुसैन हैं। आप ने फ़रमायाः यह दोनों मेरे बेटे हैं और मेरे नवासे हैं और फिर फरमायाः ऐ अल्लाह! मैं इन दोनों को महबूब रखता हूँ, तू भी इन को महबूब रख और जो इन से मुहब्बत रखता है उन को भी महबूब रख। #(मिश्कातः570)

और हज़रत अबू हुरैरा रदिअल्लाहु तआला अन्हु फ़रमाते हैं कि रसूले अक्रम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम इस हाल में बाहर तश्रीफ लाए कि आप एक कंधे पर हज़रत हसन और दूसरे कंधे पर हज़रत हुसैन को उठाए हुए थे यहां तक कि हमारे करीब तश्रीफ ले आए और फरमायाः जिस ने इन दोनों से मुहब्बत की तो उस ने मुझ से मुहब्बत की और जिस ने इन दोनों से दुश्मनी की उस ने मुझ से दुश्मनी की। #(अश्शरफुल मोअब्बदः71)

हज़रत फातिमा ज़हरा रदिअल्लाहु तआला अन्हा फ़रमाती हैं कि मैं हसन और हुसैन को लेकर हुज़ूर पुर नूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हुई और अर्ज़ किया हुज़ूर! यह आप के दोनों नवासे हैं, इन्हें कुछ अता फ़रमाइये, तो हुज़ूर ने फ़रमायाः हसन के लिये मेरी हैबत व सियादत है और हुसैन के लिये मेरी जुर्अत व सख़ावत है। #(अश्शरफुल मोअब्बदः72)

हज़रत जाफर सादिक़ बिन मुहम्मद रदिअल्लाहु तआला अन्हुमा से रिवायत है कि सरकारे दो आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम के सामने हज़रत हसन व हज़रत हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हुमा कम सिनी के ज़माने में एक दूसरे से कुश्ती लड़ रहे थे और हुज़ूर बैठे हुए यह कुश्ती मुलाहेज़ा फ़रमा रहे थे, तो हज़रत हसन से हुज़ूर ने फ़रमाया, हुसैन को पकड़ लो, हज़रत फातिमा ज़हरा रदिअल्लाहु तआला अन्हा ने जब यह सुना तो उन्हें तअज्जुब हुआ और अर्ज़ किया अब्बा जान! आप बड़े से फ़रमा रहे हैं कि छोटे को पकड़ लो, हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया दूसरी तरफ जिब्रील हुसैन से कह रहे हैं कि हसन को पकड़ लो। #(नूरुल अब्सारः114)

यज़ीदी आंखें खोल कर देख लें कि हज़राते हसनैन करीमैन रदिअल्लाहु तआला अन्हुमा का वह मक़ाम है कि हज़रते जिब्रील अलैहिस्सलाम आ कर उन के दरमियान कुश्ती लड़ा रहे हैं।

और हज़रत अल्लामा नसफी रहमतुल्लाहि तआला अलैह तहरीर फ़रमाते हैं कि हसनैन करीमैन ने दो तख़्तियां लिखीं, हर एक ने कहा कि हमारी तहरीर अच्छी है, तो फैसले के लिये अपने बाप हज़रत अली कर्रमल्लाहु तआला वज्हहुल करीम के पास ले गए। आप बड़े-बड़े हैरत अंगेज़ फैसले फ़रमाते हैं, मगर यह फैसला फ़रमा न सके, इस लिये कि किसी साहिब जादे की दिल श्किनी मनज़ुर न थी, फ़रमाया कि अपनी मां के पास ले जाओ, दोनों शहज़ादे हज़रत फातिमा ज़हरा रदिअल्लाहु तआला अन्हा की ख़िदमत में हाज़िर हुए और कहा कि अम्मी जान आप फैसला फ़रमा दें कि हम में से किस ने अच्छा लिखा है? आप ने फ़रमाया कि मैं यह फैसला नहीं कर सकूँगी, इस मामले को तुम लोग अपने नाना जाने के पास ले जाओ, शहज़ादे हुज़ूरे अक़्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की ख़िदमत में आ गए और अर्ज़ किया कि नाना जान आप फैसला फ़रमा दें कि हम में से किस की तहरीर अच्छी है? सारी दुनिया का फैसला फ़रमाने वाले हुज़ूर ने सोचा कि अगर हसन की तहरीर को अच्छा कहूं तो हुसैन को मलाल होगा और हुसैन की तहरीर को उम्दा कहूं तो हसन को रंज होगा और किसी का रंजीदा होना उन्हें गवारा नहीं था, इस लिये आप ने फ़रमाया कि इस का फैसला जिब्रील करेंगे। हज़रत जिब्रील बहुक्मे रब्बे जलील नाज़िल हुए और अर्ज़ किया या रसूलल्लाह! इस का फैसला ख़ुदावन्दे कुद्दूस फ़रमाएगा, मैं उस के हुक्म से एक सेब लाया हूं, उस ने फरमाया कि मैं इस जन्नती सेब को तख़्तियों पर गिराऊ जिस तख़्ती पर यह सेव गिरेगा, फैसला हो जाएगा कि उस तख़्ती की तहरीर अच्छी है। अब दोनों तख़्तियाँ इकट्ठा रखी गई और हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम ने ऊपर से उन तख़्तियों पर सेब गिराया, अल्लाह तआला के हुक्म से रास्ते ही में सेब कट कर आधा एक तख़्ती पर और दूसरा आधा दूसरी तख़्ती पर गिरा। इस तरह अहकमुल हाकिमीन जल्ल जलालुहू ने फैसला फ़रमा दिया कि दोनों शहज़ादों की तहरीरें अच्छी हैं और किसी एक की तहरीर को अच्छी क़रार देकर दूसरे की दिल शिक्नी गवारा ने फ़रमाया। #(नुज़्हतुल मजालिसः 2/390)

ख़ुदावन्दे कुद्दूस की बारगाह में हसनैन करीमैन रदिअल्लाहु तआला अन्हुमा का यह मक़ाम है मगर अफ्सोस कि मुख़ालिफीन को उनकी अज़मत व रिफ्अत नज़र नहीं आती।

📕»» ख़ुत्बाते मोहर्रम, पेज: 371-377--------------------------------------------------------
🖌पोस्ट क्रेडिट - शाकिर अली बरेलवी रज़वी  व  अह्-लिया मोहतरमा

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