〽️बाज़
गुस्ताख़ जो ऐतराज़ करते हैं कि जब रसूलुल्लाह अपने नवासे को क़त्ल से
नहीं बचा सके तो दूसरे को किसी मुसीबत से क्या बचा सकते हैं ? तो इसका जवाब
यह है कि अल्लाह के महबूब प्यारे मुस्तफा सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम
ने अपने नवासे हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु को शहीद होने से
बचाने की कोशिश ही नहीं फ़रमाई, इस लिये कि आप ने उनके लिये क़त्ल से महफूज
रहने की दुआ ही नहीं की और जब आप ने उन को शहीद होने से बचाने की कोशिश ही
नहीं फ़रमाई तो फिर यह कहना ही सिरे से गलत है कि वह अपने नवासे को क़त्ल से
नहीं बचा सके। जैसे कि हमारा कोई आदमी दरिया में डूब रहा हो और हमारे पास
डूबने से बचाने के लिये कश्ती वगैरा तमाम सामान मुहैया हों मगर हम बचाने की
कोशिश न करें, तो यह कहना गलत है कि हम बचा न सके। हां अगर हम बचाने की
कोशिश करते और न बचा पाते तो अल्बत्ता यह कहना सहीह होता कि हम नहीं बचा
सके तो अल्लाह के महबूब सैयिदे आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम अपने
नवासे को बचाने की क़ुद्रत रखने के बावजूद उन को बचाने की कोशिश नहीं फ़रमाई,
लिहाजा यह कहना गलत कि उन को नहीं बचा सके। ख़ुदाए तआला समझ अता फ़रमाए।
और बाज़ गुस्ताख जो यह कहते हैं कि हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु जो सैयिदुल अंबिया के नवासे और सहाबी हैं, जिन के दर्ज़ा को बड़े से बड़ा वली और गौस व क़ुतब नहीं पहुंच सकता, जब वह अपनी और अपने अज़ीज़ व अक़ारिब की जान नहीं बचा सके तो दूसरा कोई गौस व क़ुतब किसी की क्या मदद कर
सकता है? तो इस ऐतराज़ का जवाब यह है कि सैय्यदुश् शुहदा हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु मैदाने करबला में अपनी जान बचाने नहीं गए थे बल्कि अपनी जान देकर इस्लाम बचाने गए थे और जान बचाने का रास्ता तो आप के लिये हमेशा खुला हुआ था, इस लिये कि जब जान बचाने के लिये हरामे क़तई का खाना पीना और झूठ बोलना जाइज़ हो जाता है तो आप जान बचाने की ख़ातिर थोड़ी देर के लिये यज़ीद की झूठी बैअत कर लेते और जब दुश्मन की गिरफ्त से आजाद हो जाते तो इनकार कर देते। लेकिन हक़ीक़त यह है कि इमामे आली मक़ाम रदिअल्लाहु तआला अन्हु को जान बचाना नहीं था बल्कि जान देकर इस्लाम को बचाना था और रही अज़ीज़ व अक़ारिब की जान बचाने की बात तो आप के जो अज़ीज़ व अक़ारिब मैदाने करबला में शहीद हुए उन की दुनियवी जिंदगी बस इतनी ही थी और जिस की जिंदगी ख़त्म हो जाती है उसे कोई बचा नहीं सकता।
इरशादे ख़ुदावन्दी है: जब उनको मौत आएगी तो एक साअत आगे पीछे नहीं होंगे। #(पाराः11, रुकूअः1)
और इरशाद फरमायाः अल्लाह तआला किसी जान की मौत को हरगिज़ मोअख़्ख़र नहीं फ़रमाएगा जबकि उस का वक्त आ जाएगा। #(पाराः28, रुकूअः14)
अगर यह माकूल जवाब ऐतराज़ करने वालों की समझ में न आए तो वह दिन दूर नहीं जबकि वह यह भी कहेंगे कि अंबियाए किराम का क़त्ल किया जाना क़ुरआने मजीद से साबित है और जब अल्लाह तआला अपने महबूब अंबिया को क़त्ल से नहीं बचा सका तो फिर किसी दूसरे की क्या मदद कर सकता है। (मआज़ल्लाह)
📕»» ख़ुत्बाते मोहर्रम, पेज: 381-382
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🖌पोस्ट क्रेडिट - शाकिर अली बरेलवी रज़वी व अह्-लिया मोहतरमा
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और बाज़ गुस्ताख जो यह कहते हैं कि हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु जो सैयिदुल अंबिया के नवासे और सहाबी हैं, जिन के दर्ज़ा को बड़े से बड़ा वली और गौस व क़ुतब नहीं पहुंच सकता, जब वह अपनी और अपने अज़ीज़ व अक़ारिब की जान नहीं बचा सके तो दूसरा कोई गौस व क़ुतब किसी की क्या मदद कर
सकता है? तो इस ऐतराज़ का जवाब यह है कि सैय्यदुश् शुहदा हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु मैदाने करबला में अपनी जान बचाने नहीं गए थे बल्कि अपनी जान देकर इस्लाम बचाने गए थे और जान बचाने का रास्ता तो आप के लिये हमेशा खुला हुआ था, इस लिये कि जब जान बचाने के लिये हरामे क़तई का खाना पीना और झूठ बोलना जाइज़ हो जाता है तो आप जान बचाने की ख़ातिर थोड़ी देर के लिये यज़ीद की झूठी बैअत कर लेते और जब दुश्मन की गिरफ्त से आजाद हो जाते तो इनकार कर देते। लेकिन हक़ीक़त यह है कि इमामे आली मक़ाम रदिअल्लाहु तआला अन्हु को जान बचाना नहीं था बल्कि जान देकर इस्लाम को बचाना था और रही अज़ीज़ व अक़ारिब की जान बचाने की बात तो आप के जो अज़ीज़ व अक़ारिब मैदाने करबला में शहीद हुए उन की दुनियवी जिंदगी बस इतनी ही थी और जिस की जिंदगी ख़त्म हो जाती है उसे कोई बचा नहीं सकता।
इरशादे ख़ुदावन्दी है: जब उनको मौत आएगी तो एक साअत आगे पीछे नहीं होंगे। #(पाराः11, रुकूअः1)
और इरशाद फरमायाः अल्लाह तआला किसी जान की मौत को हरगिज़ मोअख़्ख़र नहीं फ़रमाएगा जबकि उस का वक्त आ जाएगा। #(पाराः28, रुकूअः14)
अगर यह माकूल जवाब ऐतराज़ करने वालों की समझ में न आए तो वह दिन दूर नहीं जबकि वह यह भी कहेंगे कि अंबियाए किराम का क़त्ल किया जाना क़ुरआने मजीद से साबित है और जब अल्लाह तआला अपने महबूब अंबिया को क़त्ल से नहीं बचा सका तो फिर किसी दूसरे की क्या मदद कर सकता है। (मआज़ल्लाह)
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