〽️ रूयानी अपनी मुस्नद में सहाबिए रसूल हज़रत अबू दरदा रदिअल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत करते हैं- उन्होंने फ़रमाया कि मैं ने रसूले अक्रम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम को यह इरशाद फरमाते हुए सुनाः मेरी सुन्नत का पहला बदलने वाला एक शख़्स बनी उमैया का होगा जिस का नाम यज़ीद होगा। #(तारीखुल खुलफा: 142)

और अबू यशूला अपनी मुस्नद में (बसनदे ज़ईफ) हज़रत अबू उबैदा रदिअल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत करते हैं कि हुज़ूरे अक़्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम इरशाद फ़रमाते हैं कि मेरी उम्मत हमेशा अदल व इंसाफ पर काइम रहेगी यहां तक कि पहला रख्ना अंदाज़ (रुकावट बनने वाला) बनी उमैया का एक शख़्स होगा जिस का नाम यज़ीद होगा। #(तारीखुल खुलफाः 142)

और अल्लामा सबान तहरीर फ़रमाते हैं कि इमाम अहमद बिन हंबल रदिअल्लाहु तआला अन्हु यज़ीद के कुफ़्र के काइल हैं और तुझे उन का फ़रमान काफी है, उन का तक़्वा और इल्म इस अम्र का मुतक़ाज़ी (यह चाहता) है कि उन्होंने यह बात इस लिये कही होगी कि उनके नज़दीक ऐसे उमूरे सरीहा का यज़ीद से सादिर होना साबित
होगा जो मौजिबे कुफ़्र हैं। इस मामले में एक जमाअत ने उन की मुवाफिक़त की है मसलन इब्ने जौज़ी वगैरा। रहा उस का फिस्क़ तो इस पर इत्तिफाक़ है। बाज़ उलमा ने ख़ास उस के नाम से लअनत को जाइज़ क़रार दिया है। #(बरकाते आले रसूलः 155)

और हज़रत अल्लामा सअदुद्दीन तफ्ताज़ानी रहमतुल्लाहि तआला अलैह तहरीर फ़रमाते हैं, कि हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु के क़त्ल और अहले बैते नुबुव्वत की तौहीन व तज़्लील पर यज़ीद की रज़ा व खुश्नूदी तवातुर से साबित है, लिहाजा हम उस की ज़ात के बारे में तवक़्कुफ नहीं करेंगे (उसे बुरा भला कहेंगे)* अल्बत्ता उस के ईमान के बारे में तवक़्कुफ करेंगे (न उसे काफ़िर कहेंगे और न मोमिन)#(शरह अक़ाइद नसफी: 117)

मोहद्दिस इब्ने जौज़ी से पूछा गया कि यज़ीद को इमाम हुसैन का शहीद करने वाला कहना किस तरह सहीह है, जबकि वह करबला में शहादत के वाकिआ के वक्त मुल्के शाम में था, तो उन्हों ने एक शेअर पढ़ा जिस का तर्जमा यह है कि तीर इराक़ में था जबकि तीर मारने वाला ज़ी सलम में था, ऐ तीर मारने वाले तेरा निशाना किस ग़ज़ब का था। #(अश्शर्फुल मोअब्बदः 69)

नौफल बिन अबुल फुरात कहते हैं कि मैं एक रोज़ उमवी खलीफा हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ के पास बैठा हुआ था कि यज़ीद का कुछ ज़िक्र आ गया तो एक शख़्स ने यज़ीद को अमीरुल मोमिनीन यज़ीद बिन मुआविया कहा, हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ ने उस शख़्स से फ़रमाया कि तू उसे अमीरुल मोमिनीन कहता है फिर आप ने हुक्म दिया कि यज़ीद को अमीरुल मोमिनीन कहने वाले इस शख़्स को 20 कोड़े लगाए जायें। #(तारीखुल खुलफाः142)

हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रदिअल्लाहु तआला अन्हु उमैया ख़ानदान के एक फर्द हैं यानी मरवान के पोते और खलीफा अब्दुल मलिक बिन मरवान के दामाद हैं, जिन के फज़्लो कमाल और तक़्वा व परहेज़गारी के बारे में सिर्फ इतना बता देना काफी है कि उन को खुलफाए राशिदीन में शुमार किया जाता है। उन्हों ने उस शख्स को कि जिस ने यज़ीद बद बख़्त को अमीरुल मोमिनीन कहा, कोड़े लगवाए और सज़ा दी।

इस वाकिआ से वह लोग जो आज कल यज़ीद की हिमायत करते हैं और उस को अमीरुल मोमिनीन कहते हैं, सबक हासिल करें और जान लें कि वह यकीनन सज़ा के मुस्तहिक़ हैं। अगर आज भी कोई हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रदिअल्लाहु तआला अन्हु जैसा होता तो उन्हें कोड़े ज़रूर लगवाता।

और आला हज़रत पेश्वाए अहले सुन्नत इमाम अहमद रज़ा फाज़िल बरैलवी रहमतुल्लाहि तआला अलैह तहरीर फ़रमाते हैं: “यज़ीद पलीद अलैहि मा यस्तहिक़्क़हू मिनल् अज़ीज़िल् मजीद, क़तअन यक़ीनन बइज्माए अहले सुन्नत फासिक़ व फाजिर व जरी अलल्-कबाइर था।

इस क़दर पर अइम्मए अहले सुन्नत का इतबाक़ व इत्तिफाक़ है, सिर्फ उस की तक्फीर व लअन में इख़्तिलाफ फ़रमाया।

इमाम अहमद बिन हंबल रदिअल्लाहु तआला अन्हु और उन के अत्बाअ व मुवाफिक़ीन उसे काफिर कहते और ब तख़्सीस नाम उस पर लअनत करते हैं और आयते करीमा इस पर सनद लाते हैं: क्या क़रीब है कि अगर वालिए मुल्क हो तो ज़मीन में फसाद करो और अपने नसबी रिश्ते काट दो, यह हैं वह लोग जिन पर अल्लाह ने लअनत फ़रमाई तो उन्हें बहरा कर दिया और उन की आंखें फोड़ दीं। #(पाराः 26, रुकूअः 7)

शक नहीं कि यज़ीद ने वालिए मुल्क होकर ज़मीन में फसाद फैलाया, हरमैन तैय्यिबैन व खुद कअबा मुअज़्ज़मा व रौज़ए तैयिबा की सख़्त बेहुर्मतियां कीं, मस्जिदे करीम में घोड़े बांधे, उन की लीद और पेशाब मिम्बरे अत्हर पर पड़े, तीन दिन मस्जिदे नबवी सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम बेअज़ान व नमाज़ रही। मक्का व मदीना व हिजाज़ में हज़ारों सहाबा व ताबईन बेगुनाह शहीद किये। कअबा मुअज़्ज़मा पर पत्थर फेंके, गिलाफ शरीफ फाड़ा और जलाया। मदीना तैयिबा की पाक दामन पारसाएं तीन शबाना रोज़ अपने ख़बीस लश्कर पर हलाल कर दीं। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम के जिगर पारे को तीन दिन बे आबो-दाना रख कर मअ हमराहियों के तेगे ज़ुल्म से प्यासा ज़िबह किया। मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की गोद में पाले हुए तने नाज़नीन (नाजुक बदन) पर बादे शहादत घोड़े दौड़ाए गए कि तमाम उस्तुख़्याने (हड्डी) मुबारक चूर हो गए। सरे अनवर कि मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम का बोसागाह था, काट कर नेज़ा पर छड़ाया और मंज़िलों फिराया। हरमे मोहतरम मुख़द्दरात (पर्दा नशीन) मुश्कूए रिसालत क़ैद किये गए और बेहुर्मती के साथ उस ख़बीस के दरबार में लाए गए। इस से बढ़ कर क़तए रहम और ज़मीन में फसाद क्या होगा। मलऊन है वह जो इन मलऊन हरकात को फिस्क़ो-फुजूर न जाने। क़ुरआने अज़ीम पर सराहतन इस पर “लअन हुमुल्लाह" फ़रमाया। लिहाज़ा इमाम अहमद और उनके मुवाफिक़ीन उस पर लअनत फ़रमाते हैं।

और हमारे इमामे आज़म रदिअल्लाहु तआला अन्हु लअन व तक्फीर से एहतियातन सुकूत कि उस से फिस्क़ो-फुजूर मुतवातिर हैं कुफ़्रे मुतवातिर नहीं और बहाले ऐहतमाल निस्वते कबीरा भी जाइज़ नहीं न कि तक्फीर और अम्साल व वईदात मश्रूत बिअदम तौबा हैं: लिक़ौलिही तआला (जैसा कि अल्लाह तआला का फरमान है) فَسَوْفَ يَلْقَوْن غَيّاً اِلَّا مَنْ تَابَ *#(पाराः16, रुकूअ:7)* और तौबा ता दमे ग़रग़रा मक़्बूल है और इस के अदम पर जज़्म नहीं और यही अह्-वत व अस्लम है मगर उस के फिस्क़ो-फुजूर से इनकार करना और इमामे मज़्लूम पर इल्ज़ाम रखना ज़रूरियात मज़हबे अहले सुन्नत के ख़िलाफ है और ज़लाल व बद-मज़हबी साफ है, बल्कि इंसाफन यह उस क़ल्ब से मुतसव्वर नहीं जिस में मुहब्बते सैयिदे आलम
सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम का शम्मा हो। وسیعلم الذین ظلموا ای منقلب ینقلبون
#(फतावा रिज़विया: 6/107-108)

और तहरीर फ़रमाते हैं “यज़ीद बेशक पलीद था, उसे पलीद कहना और लिखना जाइज़ है और उसे रहमतुल्लाहि तआला अलैह न कहेगा मगर नासिबी कि अहले बैते रिसालत का दुश्मन है। #(फतावा रिज़विया: 6/114)

जलीलुल क़दर उलमाए मुहक़्क़ीक़ीन के बयानात से खूब अच्छी तरह वाज़ेह हो गया कि यज़ीद कैसा था और उस ने कैसे-कैसे मज़ालिम ढाए हैं और यह भी ज़ाहिर हो गया कि हम उसे क्या कह सकते हैं और क्या नहीं कह सकते। जो लोग कि इमामुल अइम्मा हज़रत सैयिदना इमामे आज़म अबू हनीफा रदिअल्लाहु तआला अन्हु के मानने वाले हैं और अपने को हनफी कहते हैं उन को चाहिये कि वह अपने इमाम के तरीके पर चलें यानी यज़ीद के बारे में लअन व तक्फीर से ऐहतियातन सुकूत इख्तियार करें कि यही अस्लम है और जो लोग कि उस के फासिक़ व फाजिर होने से इनकार करें और उस के लिये अमीरुल मोमिनीन व रदिअल्लाहु तआला अन्हु कहें या इमामे मज़्लूम सैयिदना हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु पर इल्ज़ाम रखें, ऐसे लोगों को गुम्-राह व बद मज़हब, अहलेबैते नुबुब्बत का दुश्मन और ख़ारजी समझें, उनका बयान सुनने से परहेज़ करें और उन की किताबें पढ़ने से बचें।

हज़रत मुल्ला अली क़ारी रहमतुल्लाहि तआला अलैह तहरीर फ़रमाते हैं कि बाज़ जाहिल जो कहते हैं कि इमाम हुसैन ने यज़ीद से बगावत की तो यह अहले सुन्नत व जमाअत के नज़्दीक बातिल है और इस तरह की बोली ख़ारजियों के हज़्यानात (बेहूदा बातों) में से है जो अहले सुन्नत व जमाअत से ख़ारिज हैं। #(शरह फिक्हे अक्बर- 87)

📕»» ख़ुत्बाते मोहर्रम, पेज: 384-388
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🖌पोस्ट क्रेडिट - शाकिर अली बरेलवी रज़वी  व  अह्-लिया मोहतरमा

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