पार्ट-- 12| ❗आओ सच्चे हुसैनी बने ❗

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ताज़ियेदारी लड़ाई झगड़े की बुनियाद:-

लड़ाई झगड़े करना तो अक्सर जगह तअ़ज़ियेदारों की आदत बन गई है, रास्तों के लिए खड़ी फ़सलों को रोन्दना, अपनी वाह-वाही और शान शैख़ी के लिए एक दूसरे से मुकाबिले करना, खूब ऊँचे-ऊँचे तअ़जिये बनाकर उन्हें निकालने के लिए बिजली के तार या खड़े दरख्तों को काटना तरह-तरह से खुदा की मख़लूक़ को सताना उनका मिज़ाज हो गया है, इन सब बातों में कभी-कभी ग़ैर मुस्लिमों से भी टकराव की नौबत आ जाती है, और यह सब बे मक़सद झगड़े होते हैं, मुसलमानों की तारीख में कभी भी इन ग़ैर ज़रूरी फ़ालतू बातों के लिए लड़ाइयाँ नहीं लड़ी गयीं और मुसलमान फ़ितरतन झगड़ालू नहीं होता।

तअज़िये दारों को तो मैं ने देखा कि यह लोग तअ़ज़िये उठा कर मातम करते हुये ढोल बाजों के साथ चलते हैं तो होश खो बैठते हैं बे काबू और आपे से बाहर हो जाते हैं जोश ही जोश दिखाई देता है, खुदा न करे मैं हर मुसलमाने मर्द व औरत की जान माल, इज्ज़त व आबरू की सलामती की अल्लाह तआ़ला से दुआ करता हूँ लेकिन इस बढ़ती हुई तअज़ियेदारी और तअज़िये उठाते वक़्त ताज़ियेदारों के बे काबू जोशीले रंग से मुझ को तो हिन्दुस्तान में ख़तरा महसूस हो रहा है, कभी उसकी वजह से मुसलमानों का बड़ा नुक्सान हो सकता है, और यह बे नतीजे नुक्सान होगा, और यह अन्जाम से बे ख़बर लोग कभी भी क़ौम को दंगों और बलवों की 🔥 आग में झोंक सकते हैं, कुछ जगह ऐसा हुआ भी है और कही होते होते बच गया है।

अभी चन्द साल पहले अख़बार में आया था कि कि तअ़ज़ियेदारों ने एक हिन्दू का आठ बीघा खेत रोन्द डाला बड़ी मुश्किल से पुलिस ने दंगे पर कंट्रोल किया दर अ़शल यह सब मुसलमानों को तबाह व बरबाद कराने वाले काम

पार्ट-- 11| ❗आओ सच्चे हुसैनी बने ❗

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मुहर्रम में क्या नाजाइज़ है ? तअज़िये दारी:-

बअ़ज़ लोग कहते हैं कि हमारे ख़ानदान में तअ़ज़िये पहले से होती चली आ रही हैं, एक साल हम ने ताज़ियेदारी नहीं बनाया तो हमारा फ़लाँ नुक्सान हो गया या बीमार हो गए या 🏡 घर में कोई मर गया, यह भी जाहिलाना बातें हैं पहले तो ऐसा होता नहीं और हो भी जाये तो यह एक शैतानी चाल है वह चाहता है कि तुम हराम कारियों में लगे रहो, और खुदा और रसूल से दूर रहो, हो सकता है कि शैतान आप को डिगाने के लिए कुछ कर देता हो, क्योंकि कुछ ताक़त अल्लाह ने उस को भी दी है, और अल्लाह की ज़ात तो ग़नी है अगर सब सुधर जायें नेक और परहेजगार हो जायें तो उसे कुछ नफ़ा और फ़ाइदा नहीं पहुँचता और सब बिगड़ जायें तो उसका कुछ घाटा नहीं होता, इन्सान अच्छा करता है तो अपने अच्छे के लिए और बुरा करता है तो अपने बुरे के लिए और मुसलमान का अ़क़ीदा व ईमान इतना मज़बूत होना चाहिए कि दुनिया का नफ़अ हो या नुक्सान हम तो वही करेंगे जिस से अल्लाह व रसूल राज़ी हो, और घाटे नफ़अ को भी अल्लाह ही जानता है हम कुछ नहीं जानते, कभी किसी चीज़ में हम फ़ाइदा समझते हैं और घाटा हो जाता है, और कभी घाटा और नुक्सान ख्याल करते हैं मगर नफ़अ और फ़ायदा निकलता है।

एक शख्स को मुद्दत से एक गाड़ी ख़रीदने की तमन्ना थी और जब ख़रीदी तो पूरी फ़ेम्ली के साथ इस गाड़ी में एक्सीडेंट के ज़रिए मारा गया, खुलासा यह कि अपने सब काम अल्लाह की मर्ज़ी पर छोड़ दीजिए, और उसके बताये हुये रास्ते पर चलना ज़िंदगी का मक़सद बना लीजिए फिर जो होगा देखा जायेगा और वही होगा जो अल्लाह चाहेगा।

कुछ लोग कहते हैं कि तअ़ज़ीए और तख़्त बनाना सजाना ऐसा ही है जैसे जलसे, जुलूस और मीलाद की

पार्ट-- 10| ❗आओ सच्चे हुसैनी बने ❗

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मुहर्रम में क्या नाजाइज़ है ? तअज़िये दारी:-

आज-कल जो तअज़िये बनाये जाते हैं, पहली बात तो यह हज़रत इमाम आ़ली मक़ाम के रोज़ा का सही नक़्शा नहीं है, अ़जीब-अजीब तरह़ के तअज़िये बनाये जाते है, फिर उन्हें घुमाया और गश्त कराया जाता है, एक दूसरे से मुकाबिला किया जाता है, और उस मुकाबिले में कभी-कभी लड़ाई झगड़े और लाठी डन्डे चाकू और छूरी चलाने की नौबत आ जाती है, और यह सब हज़रत इमाम हुसैन की मुहब्बत के नाम पर किया जाता है।

अफ़सोस इस मुसलमान को क्या हो गया और यह कहाँ से चला था और कहाँ पहुँच गया, कोई समझाये तो मानने को तैयार नहीं, बल्कि उलटा समझाने वाले को बुरा भला कहने लगता है।

ख़ुलास़ा यह कि आज की तअज़िए और इस के साथ होने वाली तमाम बिदआ़त व ख़ुराफ़ात व वाहियात सब नाजाइज़ व गुनाह हैं।

मसलन मातम करना, तअज़ियों पर चढ़ावे चढ़ाना उनके सामने खाना रख कर वहाँ फ़ातिहा पढ़ना, उनसे मन्नतें मांगना, उनके नीचे से बरकत हासिल करने के लिए बच्चों को निकालना, तअज़िये देखने को जाना, उन्हें झुक कर सलाम करना, सवारियाँ निकालना, सब जाहिलाना बातें और नाजाइज़ हरकतें हैं।

उनका मज़हबे इस्लाम से कोई वास्ता नहीं, और जो इस्लाम को जानता है उसका दिल खुद कहेगा कि इस्लाम जैसा सीधा और शराफ़त व सन्जीदगी वाला मज़हब, उन तमाशों और वहम परस्ती की बातों को कैसे गवारा कर सकता है।

कुछ लोग कहते हैं कि तअज़िए और उस के साथ-साथ ढोल बाजे और मातम करते हुये घूमने से इस्लाम और मुसलमानों की शान ज़ाहिर होती है, यह एक फुजूल बात है, पांचों वक़्त की आज़ान और मुहल्ले, बस्ती और शहर के सब मुसलमानों का मस्जिदों और ईदगाहों में जुमा और ईद की नमाज़ बाजमाअ़त अदा करने से ज़्यादा

पार्ट-- 09| ❗आओ सच्चे हुसैनी बने ❗

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ज़िक्रे शहादत:-

हज़रत सय्यद इमाम हुसैन रद़िअल्लाहु तआ़ला अन्हु और दूसरे हज़राज अहले बैअत किराम का ज़िक्र नज़्म में या नस्र में करना और सुनना यकीनन जाइज़ है, और बाइसे खैर व बरकत व नुजूले रहमत है लेकिन इस सिलसिले में नीचे लिखी हुई चन्द बातों को ध्यान में रखना ज़रूरी है-

✍️ जि़क्रे शहादत में सही रिवायात और सच्चे वाक़िआत ब्यान किए जायें, आज कल कुछ पेशावर मुक़र्रिरों और शाइरों ने अ़वाम को खुश करने और तक़रीरों को जमाने के लिए अ़जीब-अजीब किस्से और अनोखी निराली हिकायात और गढ़ी हुई कहानियाँ और करामात बयान करना शुरू कर दिया है, क्योंकि अ़वाम को ऐसी बातें सुनने में मज़ा आता है, और आज-कल के अकसर मुक़र्रिरों को अल्लाह व रसूल से ज्यादा अ़वाम को खुश करने की फ़िक्र रहती है, और बज़ाहिर सच से झूठ में मज़ा ज़्यादा है और जलसे ज़्यादा तर अब मज़ेदारियों के लिए ही होते है।


आला हज़रत मौलाना शाह अहमद रज़ा रहमतुल्लाहि तआ़ला अलैहि फंरमाते हैं-

शहादत नामे नज़म या नस्र जो आज-कल अ़वाम में राइज हैं अकसर रिवायाते बातिला व बे सरोपा से ममलू और अकाज़ीब मोजूआ पर मुश्तमिल हैं। ऐसे बयान का पढ़ना और सुनना, वह शहादत नामा हो, ख़्वाह कुछ और, मज्लिसे मीलादे मुबारक में हो ख़्वाह कही और मुतलक़न हराम व नाजाइज़ हैं।

#(फ़तावा रज़विया जिल्द-24, सफा-514, मतबुआ रज़ा फ़ाउन्डेशन लाहौर)

और उसी किताब के सफ़ा-522 पर इतना और है- यूँही मरसिये, ऐसी चीज़ों का पढ़ना सुनना सब गुनाह व

पार्ट-- 08| ❗आओ सच्चे हुसैनी बने ❗

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न्याज़ व फ़ातिहा :-

(6). न्याज़ व फ़ातिहा यानी बुजुर्गों को उनके विसाल के बाद या आम मुरदों की रुहों को उनके मरने के बाद सवाब पहुंचाने का मतलब सिर्फ यहीं नहीं कि खाना पीना सामने रख कर और कुरआने करीम पढ़ कर ईसाले सवाब कर दिया जाये, बल्कि दूसरे दीनी इस्लामी या रिफ़ाहे आ़म यानी अ़वाम मुस्लिमीन को नफ़ा पहुँचाने वाले काम कर के उन का सवाब भी पहुँचाया जा सकता है।

किसी ग़रीब बीमार का एलाज करा देना,

किसी बाल बच्चेदार बेघर मुसलमान का 🏡 घर बनवा देना,

किसी बे क़सूर कैदी की मदद कर के जेल से रिहाई दिलाना,

जहाँ मस्जिद की ज़रूरत हो वहाँ मस्जिद बनवा देना,

अपनी तरफ़ से इमाम व मुअज़्ज़िन की तंख़्वाह जारी कर देना,

मस्जिद में नमाज़ियों की ज़रुरतों में ख़र्च करना,

इल्मे दीन हासिल करने वालों या इल्म फैलाने वालों की मदद करना,

दीनी 📖 किताबें छपवा कर या ख़रीद कर तक़सीम करना,

दीनी मदरसे चलाना,

रास्ते और सड़कें बनवाना या उन्हें सही करना,

रास्तों में राह गीरों की ज़रुरतों के काम कराना वग़ैरह वग़ैरह।

यह सब👆 ऐसे काम हैं कि उन्हें करके या उन पर ख़र्चा करके, बुजुर्गों या बड़े बूढ़ों के लिए ईसाले सवाब की नियत कर ली जाये तो यह भी एक किस्म की बेहतरीन न्याज व फ़ातिहा हैं, ज़िन्दों और मुर्दों सभी का उसमें नफ़ा और फ़ाइदा है।

हदीस पाक में है कि हुज़ूर पाक के एक सहाबी हज़रते सअद इब्ने उ़बादा रद़िअल्लाहु तआ़ला अन्हु की माँ का विसाल हुआ तो वह बारगाहे रिसालत में हाज़िर हुए और अ़र्ज़ किया-

या रसूलुल्लाहﷺ ! मेरी माँ का इन्तिकाल हो गया है तो कौनसा स़दक़ा बेहतर रहेगा। सरकार ने फ़रमाया- पानी बेहतर रहेगा। उन्होंने एक कुँआ खुदवा दिया और उस के क़रीब खड़े होकर कहा- यह कुँआ मेरी माँ के

पार्ट-- 07| ❗आओ सच्चे हुसैनी बने ❗

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न्याज़ व फ़ातिहा :-

हज़रत इमाम रद़िअल्लाहु तआ़ला अन्हु और जो लोग उनके साथ शहीद किए गये उनको सवाब पहुंचाने के लिए

सदक़ा व ख़ैरात किया जाये

गरीबों मिस्किनों को या दोस्तों, पड़ोसियों, रिश्ते दारों वग़ैरह को शरबत या खिचड़े या मलीदे वगै़रा कोई भी जाइज़ खाने पीने की चीज़ खिलाई या पिलाई जाये,

और उसके साथ आयाते कुरआनिया की तिलावत कर दी जाये तो और भी बेहतर है इस सब को उ़र्फ़ में नियाज़ फ़ातिहा कहते हैं।

यह सब बिला शक जाइज़ और सवाब का काम है, और बुजुर्गों से इज़हारे अ़क़ीदत व मुहब्बत और उन्हें याद रखने का अच्छा त़रीका है लेकिन इस बारे में चन्द बातों का ध्यान रखना जरूरी है -

(1).  न्याज़ व फ़ातिहा किसी भी हलाल और जाइज़ खाने पीने की चीज़ पर हो सकती है उसके लिए शरबत खिचड़े और मलीदे को ज़रूरी ख्याल करना जिहालत है अलबत्ता इन चीजों पर फ़ातिहा दिलाने में भी कोई हर्ज़ नहीं है, अगर कोई इन मज़कूरा चीजों पर फ़ातिहा दिलाता है तो वह कुछ बुरा नहीं करता, हां जो उन्हें ज़रूरी ख्याल करता है उनके एलावा किसी और खाने पीने की चीज़ पर मुहर्रम में फ़ातिहा सही नहीं मानता वह ज़रूर जाहिल है।

(2).  न्याज़ फ़ातिहा में शेख़ी खो़री नहीं होनी चाहिए और न खाने पीने की चीज़ों में एक दूसरे से मुकाबिला बल्कि जो कुछ भी हो और जितना भी हो सब सिर्फ अल्लाह वालों के ज़रिए अल्लाह तआ़ला की नज़दीकी और उसका कुर्ब और रज़ा हासिल करने के लिए हो और अल्लाह के नेक बन्दों से मुहब्बत इस लिए की जाती है कि उन से

पार्ट-- 06| ❗आओ सच्चे हुसैनी बने ❗

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मुह़र्रम में क्या जाइज़ ?

हम पहले ही लिख चुके हैं कि हज़रत इमाम हुसैन हों या दूसरी अ़ज़ीम इस्लामी शख़्सियतें उनसे असली सच्ची हक़ीक़ी मुहब्बत व अ़क़ीदत तो यह है कि उनके रास्ते पर चला जाये और उन का रास्ता इस्लाम है-

पांचों वक़्त की नमाज की पाबन्दी की जाये,

रमज़ान के रोज़े रखे जायें,

माल की ज़कात निकाली जाये,

बस की बात हो तो ज़िन्दगी में एक मर्तबा ह़ज भी किया जाये,

जुए शराब ज़िना, सूद, झूट, गीबत, फिल्मी गानों, तमाशों और पिक्चरों वगैरह नाजाइज़ हराम कामों से बचा जाये,

और उसके साथ साथ उन की मुहब्बत व अ़क़ीदत में मुन्दर्जा ज़ैल काम किए जायें तो कुछ हर्ज़ नहीं बल्कि बाइसे

पार्ट-- 05| ❗आओ सच्चे हुसैनी बने ❗

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मौलवी साहब या मियां हुजूर ने कह दिया है कि सब जाइज़ व सवाब का काम है ख़ूब करो और हमने भी ऐसे मौलवी साहब को ख़ूब नज़राना देकर खुश कर दिया है, और उन्होंने हम को तअ़ज़िये बनाने, घुमाने, ढोल बजाने और मेले ठेले लगाने और उन में जाने की इजाजत दे दी है।

अल्लाह नाराज़ हो या उस का रसूल ऐसे मौलवियों और पीरों से हम ख़ूश और वह हम से खुश।

इस सब के बावजूद अ़वाम में ऐसे लोग भी काफ़ी हैं जो ग़लती करते हैं और इसको ग़लती समझते भी हैं और इस हराम को हलाल बताने वाले मौलवियों की भी उनकी नजर में कुछ औकात नहीं रहती ।

एक गांव का वाक़िआ है कोई तअ़ज़िये बनाने वाला कारीगर नहीं मिल रहा था या बहुत सी रक़म का मुतालबा कर रहा था वहां की मस्जिद के इमाम ने कहा कि किसी को बुलाने की ज़रूरत नहीं है तअ़जिया मैं बना दूंगा और इस इमाम ने गांव वालों को ख़ुश करने के लिए बहुत उ़मदा बढ़िया और खूबसूरत तअ़जिया बना कर दिया और फिर उन्ही तअ़ज़िये दारों ने इस इमाम को मस्जिद से निकाल दिया और यह कह कर इस का हिसाब कर दिया कि यह कैसा मौलवी है कि तअ़जिया बना रहा है मौलवी तो तअ़ज़िये दारी से मना करते हैं, और मौलवी साहब का बकौल शाइर यह हाल हुआ कि,

न ख़ुदा ही मिला न विसाले स़नम
न यहां के रहे न वहां के रहे !

दरअसल बात यह है कि सच्चाई में बहुत त़ाक़त है और ह़क़ ह़क़ ही होता है, और सर चढ़ कर बोलता है और ह़क़ की अहमियत उनके नज़दीक भी होता है जो ना ह़क़ पर हैं।

बहरे हाल इस में कोई शक नहीं कि एक बड़ी तादाद में हमारे सुन्नी मुसलमान अ़वाम भाई हज़रत इमाम हुसैन रदियल्लाहु तआला अन्हु की मुहब्बत में ग़लत फ़हमियों के शिकार हो गए और मज़हब के नाम पर नाजाइज़ तफ़रीह और दिल लगी के काम करने लगे उनकी ग़लत फ़हमियों को दूर करने के लिए हम ने यह मज़मून

पार्ट-- 04| ❗आओ सच्चे हुसैनी बने ❗

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ख़ुद को मुसलमान कहलाने वालों में एक नाम निहाद इस्लामी फ़िर्का ऐसा भी है कि उन के यहां नमाज़ रोज़े वगैरह अह़कामे शरअ़ और दीन दारी की बातों को तो कोई ख़ास अहमियत नहीं दी जाती बस मुहर्रम आने पर रोना पीटना, चीखना चिल्लाना, कपड़े फाड़ना, मातम व सीना कोबी करना ही उन का मज़हब है गोया कि उन के नज़दीक अल्ल्लाह तआ़ला ने अपने रसूल को इन्ही कामों को करने और सिखाने को भेजा था,*और इन्ही सब बेकार बातों का नाम इस्लाम है।

मज़हबे अहले सुन्नत वजमाअत में कुछ हिन्दुस्तान के पुराने ग़ैर मुस्लिमों जिन के यहां धर्म के नाम पर जूये खेले जाते हैं, शराबें पी जाती हैं, जगह जगह मेले लगा कर मर्दों, औरतों को जमा कर के ग़ैर इन्सानी हरकतें की जाती हैं, उनकी सोहबतों में रह कर उनके पास बैठने, उठने, रहने, सहने के नतीजे में खेल तमाशे और वाहियात भरे मेलों को ही इस्लाम समझने लगे, और बांस काग़ज़ और पन्नी के मुजस्समे बना कर उन पर चढ़ावे चढ़ाने लगे।

दर असल होता यह है कि ऐसे काम कि जिन में लोगों को ख़ूब मज़ा और दिलचस्पी आये, तफ़रीह और चटख़ारे

पार्ट-- 03| ❗आओ सच्चे हुसैनी बने ❗

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हम जैसा करेंगे हमें देख कर दूसरे मज़हबों के लोग यही समझेंगे कि इन के बुजुर्ग भी ऐसा करते होंगे, क्योंकि क़ौम अपने बुजुर्गो और पेशवाओं का तआरुफ़ होती है,

हम अगर नमाज़े पढ़ेगे कुरआन की तिलावत करेंगे,

जूए शराब गाने बजाने और तमाशों से बच कर ईमान दार, शरीफ़ और भले आदमी बन कर रहेंगे, तो देखने वाले कहेंगे की जब यह इतने अच्छे हैं तो इनके बुज़ुर्ग कितने अच्छे होंगे

और जब हम इस्लाम के ज़िम्मेदार ठेकेदार बन कर इस्लाम और इस्लामी बुजुर्गो के नाम पर ग़ैर इन्सानी हरकतें नाच कूद और तमाशे करेंगे तो यक़ीनन जिन्होंने इस्लाम का मुतालअ नहीं किया है उन की नज़र में हमारे मज़हब का ग़लत तआरुफ़ होगा और फिर कोई क्यों मुसलमान बनेगा।

हुसैनी दिन यानी दस मुहर्रम के साथ भी कुछ लोगों ने यही सब किया, और इमाम हुसैन के किरदार को भूल गए,

पार्ट-- 02| ❗आओ सच्चे हुसैनी बने ❗

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हुज़ूरﷺ के अहले बैत में एक बड़ी हस्ती इमाम आली मक़ाम सैयदिना इमाम हुसैन भी हैं उनका मर्तबा इतना बड़ा है कि वह हुज़ूर के सहाबी भी हैं, और अहले बैत में से भी हैं,

यानी आप की प्यारी बेटी के प्यारे बेटे आप के प्यारे और चहीते नवासे हैं, रात-रात भर जाग कर अल्लाह की इबादत करने वाले और कुरआने अ़ज़ीम की तिलावत करने वाले मुत्तक़ी इबादत गुज़ार, परहेज गार, बुजुर्ग, अल्लाह के बहुत बड़े वली हैं ।

साथ ही साथ मज़हबे इस्लाम के लिए राहे खुदा में गला कटाने वाले शहीद भी हैं, मुहर्रम के महीने की दस तारीख को जुमा के दिन 61, हिजरी में यानी हुज़ूर के विसाल के तक़रीबन पचास साल के बाद आप को और आप के साथियों और बहुत से घर वालों को ज़ालिमों ने ज़ुल्म कर के करबला नाम के एक मैदान में 3, दिन प्यासा रख कर शहीद कर दिया, इस्लामी तारीख का यह एक बड़ा सानिहा और दिल हिला देने वाला हादसा है, और दस मुहर्रम जो कि पहले ही से एक तारीख़ी और यादगार दिन था, इस हादसे ने इस को और भी ज़िन्दा व जावेद कर दिया, और उस दिन को हज़रत इमाम हुसैन के नाम से जाना जाने लगा।

और गोया कि यह हुसैनी दिन हो गया, और बे शक़ ऐसा होना ही चाहिए, लेकिन मज़हबे इस्लाम एक सीधा सच्चा

पार्ट-- 01| ❗आओ सच्चे हुसैनी बने ❗

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प्यारे इस्लामी भाइयों !

मज़हबे इस्लाम में एक अल्लाह की एबादत ज़रूरी है साथ ही साथ उसके नेक बंदों से मुहब्बत व अ़क़ीदत भी ज़रूरी है। अल्लाह के नेक अच्छे और मुक़द्दस बन्दों से अस़ली, सच्ची और ह़क़ीक़ी मुहब्बत तो यह है कि

उन के ज़रीऐ अल्लाह ने जो रास्ता दिखाया है उस पर चला जाये,

उनका कहना माना जाये,

अपनी ज़िंदगी को उनकी ज़िंदगी की तरह बनाने की कोशिश की जाये,

इस के साथ साथ इस्लाम के दाइरे में रह कर उन की याद मनाना, उनका ज़िक्र और चर्चा करना, उनकी यादगारें क़ाइम करना भी मुहब्बत व अ़क़ीदत है,

और अल्लाह के जितने भी नेक और बरगुज़ीदा बन्दे हैं उन सब के सरदार उसके आख़िरी रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम हैं, उनका मर्तबा इतना बड़ा है कि वह अल्लाह के रसूल होने के साथ-साथ उसके महबूब भी हैं,

और जिस को दीन व दुनिया में जो कुछ भी अल्लाह ने दिया, देता है, और देगा, सब उन्हीं का ज़रीआ, वसीला और सदक़ा है, उनका जब विसाल हुआ, और जब दुनिया से तशरीफ़ ले गये तो उन्होंने अपने क़रीबी दो तरह के लोग छोड़े थे, एक तो उनके साथी जिन्हें सहाबी कहते हैं, उनकी तादाद हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के विसाल के वक़्त एक लाख से भी ज्यादा थी, दूसरे हुज़ूर की आल व औलाद और आप की पाक

▫पोस्ट-08 | 🌹हज़रत इमाम हसन रदिअल्लाहु अन्हु🌹

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वाकेआत की तहकीक खुद वाकेआत के ज़माने में जैसी हो सकती है, मुश्किल है कि बाद को वैसी तहकीक हो खास कर जब कि वाकया इतना अहम हो मगर हैरत है कि अह्-ले बैते अत्हार के इस इमामे जलील का कत्ल उसको कातिल की खबर गैर को तो क्या होती। खुद हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु को पता नहीं है। यही तारीखें बताती हैं कि वह अपने बरादरे मुअज़म से जहर देने वाले का नाम दरयाफ्त फरमाते हैं इस से साफ जाहिर है कि हजरत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु को ज़हर देने वाले का इल्म न था।

अब रही यह बात कि हज़रत इमाम हसन रदिअल्लाहु अन्हु किसी का नाम लेते। उन्होंने ऐसा नहीं किया तो अब जअदा को कातिल होने के लिए मुऐयन करने वाला कौन है। हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु को या इमामैन के साहबजादों में से किसी साहब को अपनी आखिरे हयात तक जअदा की जहर खुरानी का कोई सुबूत न पहुँचा न उन में से किसी ने उस पर शरई मुवाख़ज़ा किया।

एक और पहलू इस वाक्या का खास तौर पर काबिले लिहाज़ है वह यह कि हज़रत इमाम की बीवी को गैर के साथ साज़बाज़ करने की बुरी तोहमत के साथ मुत्तहम किया जाता है। यह एक बदतरीन तबर्रा है। अजीब नहीं कि इस हिकायत की बुनियाद खार्जियों की इफ्तराअत हों जबकि सही और मोतबर ज़राए से यह मालूम है कि हज़रत इमाम हसन रदिअल्लाहु तआला अन्हु कसीरुत्तज़व्वुज (ज्यादा शादी करने वाले) थे और आप ने सौ के करीब निकाह किए और तलाकें दीं।

अक्सर एक दो रात ही के बाद तलाक दे देते थे और हज़रत

▫पोस्ट-07 | 🌹हज़रत इमाम हसन रदिअल्लाहु अन्हु🌹

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इस इरशादे मुबारक से मालूम होता है कि उस वक्त आपकी नज़र के सामने करबला का हौलनाक मंजर और हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु अन्हु की तन्हाई का नक्शा पेश था और कूफियों के मज़ालिम की तस्वीरें आपको गमगीन कर रही थीं। इसके साथ आपने यह भी फरमाया कि मैंने उम्मुल-मोमिनीन हज़रत आइशा सिद्दीका रदिअल्लाहु अन्हा से दरख्वास्त की थी कि मुझे रौज-ए-ताहिरा में दफन की जगह इनायत हो जाए उन्होंने उसको मन्जूर फरमाया। मेरी वफ़ात के बाद उनकी खिदमत में अर्ज किया जाए लेकिन मैं गुमान करता हूँ कि कौम माने (रोकेगी) होगी। अगर वह ऐसा करें तो तुम उन से तक़्रार न करना।

हज़रत इमाम हसन रदिअल्लाहु तआला अन्हु की वफ़ात के बाद हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु ने वसीयत के मुताबिक हज़रत उम्मुल-मोमिनीन आइशा रदिअल्लाहु अन्हा से दरख़्वास्त की, आपने उसको कुबूल फरमाया और इरशाद फरमाया कि बड़ी इज्ज़त व करामत के साथ मन्जूर है *लेकिन मरवान रोकने लगा और नौबत यहाँ तक पहुँची कि हज़रत इमाम हुसैन और उनके हमराही हथियार बन्द हो गये।*

हज़रत अबू हुरैरह रदिअल्लाहु तआला अन्हु ने उन्हें भाई की वसीयत याद दिला कर वापस किया और यह फ़रज़न्दे रसूल जिगर गोश-ए-बतूल बकीअ शरीफ में अपनी वालिदा-ए-मोहतरमा हज़रत खातूने जन्नत के पहलू में मदफून हुए। रदिअल्लाहु अन्हुम व रदू अन्हु।

मुअर्रेंखीन ने जहर खुरानी की निस्बत जअदा बिन्ते अशअस इब्ने कैस की तरफ़ की है और उसको हज़रत इमाम की बीवी बताया है और यह भी कहा है कि यह ज़हर खुरानी बइगवाए यज़ीद हुई है और यज़ीद ने उस से निकाह का वादा किया था। इस तमअ (लालच) में आकर उस ने हज़रत इमाम को जहर दिया लेकिन इस रिवायत की

▫पोस्ट-06 | 🌹हज़रत इमाम हसन रदिअल्लाहु अन्हु🌹

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हज़रत इमाम हसन रदिअल्लाहु अन्हु की शहादत:-

इब्ने सअद ने इमरान इब्ने अब्दुल्लाह से रिवायत की किसी ने हज़रत इमाम हसन रदिअल्लाहु तआला अन्हु को ख़्वाब में देखा कि आपके दोनों चश्म (आँखों) के दर्मियान कुल हुवल्लाहु अहद लिखी हुई है। आपके अहले बैत में उस से बहुत खुशी हुई। लेकिन जब यह ख्वाब हज़रत सईद बिन मुसैय्यिब रदिअल्लाहु अन्हु के सामने बयान किया गया तो उन्होंने फरमाया कि वाकई अगर यह ख्वाब देखा है तो हज़रत इमाम की उम्र के चन्द ही रोज़ रह गये हैं।

यह ताबीर सही साबित हुई और बहुत करीब ज़माने में आपको ज़हर दिया गया। ज़हर के असर से इस्हाल कबदी लाहिक हुआ और आंतों के टुकड़े कट-कट कर इस्हाल में खारिज हुए। इस सिलसिला में आपको चालीस रोज़ सख्त तक्लीफ़ रही। क़रीबे वफ़ात जब आपकी खिदमत में आपके बरादरे अज़ीज़ सैय्यदना हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु ने हाज़िर हो कर दरयाफ्त फरमाया कि आपको किस ने जहर दिया है तो फरमाया कि तुम उसे क़त्ल करोगे। हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु ने जवाब दिया कि बेशक हज़रत इमाम आली मकाम ने फरमाया कि मेरा गुमान जिस की तरफ़ है अगर दरहकीक़त वही कातिल है तो अल्लाह तआला मुन्तकिमे हकीकी है और उसकी गिरफ्त बहुत सख्त है और अगर वह नहीं है तो मैं नहीं चाहता कि मेरे सबब से कोई बेगुनाह मुब्तलाए मुसीबत हो। मुझे इस से पहले भी कई मरतबा ज़हर दिया गया है लेकिन इस मरतबा का ज़हर सबसे ज्यादा तेज़ है।

सुब्हानल्लाह हज़रत इमाम की करामत और मंज़िलत कैसी बुलन्द व बाला है कि अपने आप सख्त तक्लीफ में मुब्तला हैं, आंतें कट-कट कर निकल रही हैं। नज़्अ की हालत है मगर इंसाफ़ का बादशाह उस वक्त भी अपनी अदालत व इंसाफ का न मिटने वाला नक्श सफः तारीख पर नक्श फरमाता है। उसकी एहतियात इजाजत नहीं देती कि जिस की तरफ़ गुमान है उसका नाम भी लिया जाए। उस वक्त आपकी उमर शरीफ़ पैंतालीस साल छः माह चन्द रोज की थी कि आपने पाँचवें रबीउल-अव्वल 49 हिजरी को इस दारे नापाइदार से मदीना-ए-तैय्यबा में रहलत फरमाई।

इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन !

वफ़ात के करीब हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु ने देखा कि उनके बरादरे मोहतरम हज़रत इमाम हसन रदिअल्लाहु तआला अन्हु को घबराहट और बेक़रारी ज्यादा है पेशानी-ए-मुबारक पर हुज्न व मलाल के आसार नमूदार हैं। यह देख कर हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु अन्हु ने तस्कीने खातिर मुबारक के लिए अर्ज

▫पोस्ट-05 | 🌹हज़रत इमाम हसन रदिअल्लाहु अन्हु🌹

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हज़रत अमीर मुआविया की तरफ से हज़रत इमाम आली मकाम का वज़ीफ़ा एक लाख सालाना मुक़र्रर था। एक साल वज़ीफ़ा पहुँचने में ताखीर हुई और इस वजह से हज़रत इमाम को सख्त तंगी दर पेश हुई। आपने चाहा कि अमीर मुआविया को उसकी शिकायत लिखें, लिखने का इरादा किया, दवात मंगाई मगर फिर कुछ सोच कर तवक्कुफ़ किया। ख्वाब में हुज़ूर पुर नूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के दीदारे पुर अनवार से मुशर्रफ़ हुए। हुज़ूर ﷺ ने इस्तिफ्सारे हाल फरमाया और इरशाद फरमाया कि ऐ मेरे फ़रज़न्दे अरजुमन्द क्या हाल है। अर्ज़ किया अल्हम्दुलिल्लाह बखैर हूँ और वज़ीफे की ताख़ीर की शिकायत की ।

हुजूर ने फरमाया तुम ने दवात मंगाई थी, ताकि तुम अपनी मिस्ल एक मख्लूक़ के पास अपनी तकलीफ़ की शिकायत लिखो। अर्ज़ किया या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मज्बूर था क्या करता । फरमाया यह दुआ पढ़ो-

तरजमा: या रब मेरे दिल में अपनी उम्मीद डाल और अपने मासिवा से मेरी उम्मीद कतअ कर यहाँ तक कि मैं तेरे सिवा किसी से उम्मीद न रखूँ। या रब जिस से मेरी कुव्वत आजिज़ और अमल कासिर हो और जहाँ तक मेरी रगबत और मेरा सवाल न पहुँचे और मेरी जुबान पर जारी न हो, जो तू ने अव्वलीन व आखिरीन में से किसी को अता फरमाया हो यकीन से या रब्बल-आलमीन मुझ को उसके साथ मख्सूस फरमा।

हज़रत इमाम फरमाते हैं कि इस दुआ पर एक हप्ता न गुज़रा कि अमीर मुआविया ने मेरे पास एक लाख पचास हजार भेज दिए और मैंने अल्लाह तआला की हम्द व सना की और उसका शुक्र बजा लाया। फिर ख़्वाब में दौलते

▫पोस्ट-04 | 🌹हज़रत इमाम हसन रदिअल्लाहु अन्हु🌹

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हज़रत इमाम रदिअल्लाहु तआला अन्हु की खिलाफत :-

हज़रत मौला अली मुर्तजा करंमल्लाहु वज्हुहुल-करीम की शहादत के बाद हज़रत इमाम हसन रदिअल्लाहु तआला अन्हु मस्नदे ख़िलाफ़त पर जलवा अफ्-रोज़ हुए।

अह्-ले कूफा ने आपके दस्ते हक़ पर बैअत कीऔर आपने वहाँ चन्द माह क्याम फरमाया इसके बाद आपने अम्रे ख़िलाफ़त को हज़रत अमीर मुआविया को तफ्वीज़ करना मस्तूर जेले शराइत पर मन्जूर फरमाया :

1).  बाद अमीर मुआविया रदिअल्लाहु अन्हु के ख़िलाफ़त हज़रत इमाम हसन को पहुँचेगी।

2). अह्-ले मदीना और अह्-ले हिजाज़ और अह्-ले इराक में किसी शख्स से भी ज़मान-ए-हज़रत अमीरुल-मोमिनीन मौला अली मुर्तजा कर्रमल्लाहु वज्हुहुल-करीम के मुतअल्लिक कोई मुवाखज़ा व मुतालबा न किया जाए।

3). अमीर मुआविया, इमाम हसन रदिअल्लाहु तआला अन्हु के दुयून (कर्ज़ों) को अदा करें।

हज़रत अमीर मुआविया ने यह तमाम शराइत कुबूल कीं और आपस में सुलह हो गई और हुजूरे अनवर नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का यह मोजिज़ा ज़ाहिर हुआ, जो हुज़ूरﷺ ने फरमाया था कि
अल्लाह तआला मेरे इस फ़रज़न्दे अरजुमन्द की बदौलत मुसलमानों की दो जमाअतों में सुलह फरमाएगा।

हज़रत इमाम हसन रदिअल्लाहु तआला अन्हु ने तख़्ते सल्तनत हज़रत मुआविया रदिअल्लाहु अन्हु के लिए खाली कर दिया।

यह वाकया रबीउल-अव्वल 41 हिजरी का है। हज़रत इमाम हसन रदिअल्लाहु तआला अन्हु के अस्हाब को

▫पोस्ट-03 | 🌹हज़रत इमाम हसन रदिअल्लाहु अन्हु🌹

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हज़रत इमाम हसन रदिअल्लाहु तआला अन्हु के मनाकिब बहुत ज़्यादा हैं। आप इल्म व वकार हश्मत व जाह जूद व करम, जुह्द व ताअत में बहुत बुलन्द पाया हैं एक-एक आदमी को एक-एक लाख का अतीया मरहमत फरमा देते थे।

हाकिम ने अब्दुल्लाह बिन उबैद उमैर से रिवायत किया कि हज़रत इमाम हसन रदिअल्लाहु अन्हु ने पच्चीस हज पा प्यादा (पैदल) किए हैं और शाही सवारियाँ आपके हमराह होती थीं मगर इमाम आली मकाम की तवाजु और इख्लास व अदब का इक़्तिजा कि आप हज के लिए पैदल ही सफर फरमाते। आपका कलाम बहुत शीरीं था। अह्-ले मज्लिस नहीं चाहते थे कि आप गुफ्तगू खत्म फरमाएँ।

इब्ने सअद ने अली बिन जैद जदआन से रिवायत की कि हज़रत इमाम हसन रदिअल्लाहु तआला अन्हु ने दोबार अपना सारा माल राहे खुदा में दे डाला और तीन मरतबा आधा माल दिया और ऐसी सहीह तन्सीफ़ की कि नअलैन शरीफ़ और जुराबों में से एक-एक देते थे और एक-एक रख लेते थे।

आपके हिल्म का यह हाल था कि इब्ने असाकिर ने रिवायत किया कि आपकी वफ़ात के बाद मरवान बहुत रोया। इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु ने फरमाया कि आज तू रो रहा है और उनकी हयात में उनके साथ किस-किस तरह की बदसुलूकियाँ किया करता था, तो वह पहाड़ की तरफ इशारा करके कहने लगा मैं उस से ज्यादा

▫पोस्ट-02 | 🌹हज़रत इमाम हसन रदिअल्लाहु अन्हु🌹

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बुखारी व मुस्लिम ने हज़रत बरा इब्ने आज़िब रदिअल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की फरमाते हैं- मैंने नूरे मुजस्सम जाने मुसव्विर सैय्यदे आलम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ज़्यारत की। शहज़ादा-ए-बुलन्द इक्बाल हज़रत इमाम हसन रदिअल्लाहु तआला अन्हु आपके दोशे अक्दस पर थे और हुज़ूरﷺ फरमा रहे थे- या रब मैं इसको महबूब रखता हूँ तो तू भी महबूब रख ।

इमाम बुखारी ने हज़रत अबू बकर रदिअल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की, फरमाते हैं कि हुजूर सरवरे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मिंबर पर जलवा अफ़रोज़ थे। हज़रत इमाम हसन रदिअल्लाहु तआला अन्हु आपके पहलू में थे। हुज़ूर ﷺ एक मरतबा लोगों की तरफ नजर फरमाते और एक मरतबा उस फ़रज़न्दे जमील की तरफ्। मैंने सुना हुज़ूरﷺ ने इरशाद फरमाया कि यह मेरा फरज़न्दे रशीद है और अल्लाह तआला इसकी बदौलत मुसलमानों की दो जमाअतों में सुलह करेगा।

बुख़ारी में हज़रत इब्ने उमर रदिअल्लाहु तआला अन्हुमा से रिवायत है कि हुज़ूर पुर नूर सैय्यदे आलम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इरशाद फरमाया हसन हुसैन दुनिया में मेरे दो फूल हैं।

तिर्मिज़ी की हदीस में है, हुज़ूर अलैहि व अला आलेही व अस्हाबेहिस्सलातु वस्सलाम ने फरमाया- हसन और हुसैन जन्नती जवानों के सरदार हैं।

इब्ने सअद ने अब्दुल्लाह बिन जुबैर से रिवायत की कि हुज़ूर ﷺ के अहले बैत में हुज़ूर के साथ सबसे ज्यादा मुशाबेह और हुज़ूर को सबसे प्यारे हज़रत इमाम हसन थे। मैंने देखा हुज़ूरﷺ तो सज्दे में होते और यह वाला

▫पोस्ट-01 | 🌹हज़रत इमाम हसन रदिअल्लाहु अन्हु🌹

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हज़रत इमाम हसन रदिअल्लाहु अन्हु:-

हज़रत इमाम अबू मुहम्मद हसन बिन अली-ए-मुर्तजा रादिअल्लाहु अन्हु, आप अइम्मा इस्ना अशरह में इमामे दोम हैं। आपकी कुन्नियत अबू मुहम्मद लकब तकी व सैयद उर्फ सिब्ते रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और सिब्ते अक्बर है। आपको रैहानतुर्रसूल और आखिरुल-खुल्फ़ा बिन्नस भी कहते हैं। आपकी विलादते मुबारका 15 रमज़ानुल-मुबारक 3 हिजरी की रात में मदीना-ए-तैयबा के मकाम पर हुई । हुजूर सैय्यदे आलम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने आपका नाम हसन रखा और सातवें रोज़ आपका अकीका किया और बाल जुदा किए गये और हुक्म दिया गया कि बालों के वज़न की चाँदी सदका की जाए आप खामिसे अह्-ले कुसा हैं।

बुखारी की रिवायत में है किब्ला-ए-हुस्न व जमाल सैय्यदे आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलेही व बारिक व सल्लम से किसी को वह मुशाबेहत सूरते हाल न थी जो सैय्यदना हज़रत इमाम हसन रदिअल्लाहु अन्हु को हासिल थी। आप से पहले हसन किसी का नाम न रखा गया था यह जन्नती नाम पहले आप ही को अता हुआ है। हज़रत अस्मा बिन्ते उमैस ने बारगाहे रिसालत में हज़रत इमाम हसन रदिअल्लाहु तआला अन्हु की विलादत का मुज्दा पहुँचाया।

हुजूर ﷺ तशरीफ़ फरमा हुए फरमाया कि अस्मा मेरे फरज़न्द को लाओ। अस्मा ने एक कपड़े में हुजूरﷺ की ख़िदमत में हाजिर किया। सैय्यद आलम अलैहिस्सलातु वत्तस्लीमात ने दाहिने कान में अज़ान और दाएं में तक्वीर फरमाई और हज़रत अली मुर्तजा रदिअल्लाहु अन्हु से दरयाफ्त फरमाया- तुम ने इस फ़रज़न्दे अरजुमन्द का क्या नाम रखा है? अर्ज किया कि या रसूलुल्लाह मेरी क्या मजाल कि बेइज्न व इजाज़त नाम रखने पर पहल