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न्याज़ व फ़ातिहा :-

(6). न्याज़ व फ़ातिहा यानी बुजुर्गों को उनके विसाल के बाद या आम मुरदों की रुहों को उनके मरने के बाद सवाब पहुंचाने का मतलब सिर्फ यहीं नहीं कि खाना पीना सामने रख कर और कुरआने करीम पढ़ कर ईसाले सवाब कर दिया जाये, बल्कि दूसरे दीनी इस्लामी या रिफ़ाहे आ़म यानी अ़वाम मुस्लिमीन को नफ़ा पहुँचाने वाले काम कर के उन का सवाब भी पहुँचाया जा सकता है।

किसी ग़रीब बीमार का एलाज करा देना,

किसी बाल बच्चेदार बेघर मुसलमान का 🏡 घर बनवा देना,

किसी बे क़सूर कैदी की मदद कर के जेल से रिहाई दिलाना,

जहाँ मस्जिद की ज़रूरत हो वहाँ मस्जिद बनवा देना,

अपनी तरफ़ से इमाम व मुअज़्ज़िन की तंख़्वाह जारी कर देना,

मस्जिद में नमाज़ियों की ज़रुरतों में ख़र्च करना,

इल्मे दीन हासिल करने वालों या इल्म फैलाने वालों की मदद करना,

दीनी 📖 किताबें छपवा कर या ख़रीद कर तक़सीम करना,

दीनी मदरसे चलाना,

रास्ते और सड़कें बनवाना या उन्हें सही करना,

रास्तों में राह गीरों की ज़रुरतों के काम कराना वग़ैरह वग़ैरह।

यह सब👆 ऐसे काम हैं कि उन्हें करके या उन पर ख़र्चा करके, बुजुर्गों या बड़े बूढ़ों के लिए ईसाले सवाब की नियत कर ली जाये तो यह भी एक किस्म की बेहतरीन न्याज व फ़ातिहा हैं, ज़िन्दों और मुर्दों सभी का उसमें नफ़ा और फ़ाइदा है।

हदीस पाक में है कि हुज़ूर पाक के एक सहाबी हज़रते सअद इब्ने उ़बादा रद़िअल्लाहु तआ़ला अन्हु की माँ का विसाल हुआ तो वह बारगाहे रिसालत में हाज़िर हुए और अ़र्ज़ किया-

या रसूलुल्लाहﷺ ! मेरी माँ का इन्तिकाल हो गया है तो कौनसा स़दक़ा बेहतर रहेगा। सरकार ने फ़रमाया- पानी बेहतर रहेगा। उन्होंने एक कुँआ खुदवा दिया और उस के क़रीब खड़े होकर कहा- यह कुँआ मेरी माँ के
लिए हैं।

#(मिश्कात बाबो फ़ज़लुस्स़दक़ा सफा़-169)

यानी जो लोग इस से पानी पियें उसका सवाब मेरी माँ को फहुँचता रहे।

शारेहीने हदीस फ़रमाते हैं- हुज़ूर ﷺ ने पानी इसलिए फ़रमाया कि मदीना तय्यबा में पानी की किल्लत थी पीने का पानी ख़रीदना पड़ता था, गरीबों के लिए दिक्कत का सामना था इसलिए हुज़ूरﷺ ने हज़रत सअ़द से कुँआ खोदने के लिए फ़रमाया।

इस हदीस से यह बात साफ़ हो जाती है कि मुर्दों को कारेख़ैर का सवाब पहुँचता है और यह कि जिस चीज़ का सवाब पहुँचाना हो उस खाने पीने की चीज़ को सामने रख कर यह कहने में कोई हर्ज़ नहीं कि उसका सवाब फ़ला को पहुँचे क्योंकि हज़रत सअ़द ने कुँआ खुदवा कर कुँआ की तरफ़ इशारा कर के यह अलफ़ाज़ कहे थे, लेकिन इस को ज़रूरी भी नहीं समझना चाहिए कि खाना पानी सामने रख कर ही ईसाले सवाब जाइज़ है, दूर से भी कह सकते हैं, दिल में कोई नेक काम कर के या कुछ पढ़ कर या खिला कर किसी को सवाब पहुंचाने की नियत करले तब भी काफ़ी है, अल्लाह तआ़ला सवाब देने वाला है वह दिलों के अह़वाल से खूब वाक़िफ़ है, यह सब तरीके दुरुस्त हैं उन में से जो किसी तरीके को ग़लत कहे वही खुद ग़लत है।

📕»» मुह़र्रम में क्या जाइज़? क्या नाजाइज़? सफ़ा: 12-14
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🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ एस-अली।औवैसी & शाकिर अली बरेलवी

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