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मुहर्रम में क्या नाजाइज़ है ? तअज़िये दारी:-
बअ़ज़ लोग कहते हैं कि हमारे ख़ानदान में तअ़ज़िये पहले से होती चली आ रही हैं, एक साल हम ने ताज़ियेदारी नहीं बनाया तो हमारा फ़लाँ नुक्सान हो गया या बीमार हो गए या 🏡 घर में कोई मर गया, यह भी जाहिलाना बातें हैं पहले तो ऐसा होता नहीं और हो भी जाये तो यह एक शैतानी चाल है वह चाहता है कि तुम हराम कारियों में लगे रहो, और खुदा और रसूल से दूर रहो, हो सकता है कि शैतान आप को डिगाने के लिए कुछ कर देता हो, क्योंकि कुछ ताक़त अल्लाह ने उस को भी दी है, और अल्लाह की ज़ात तो ग़नी है अगर सब सुधर जायें नेक और परहेजगार हो जायें तो उसे कुछ नफ़ा और फ़ाइदा नहीं पहुँचता और सब बिगड़ जायें तो उसका कुछ घाटा नहीं होता, इन्सान अच्छा करता है तो अपने अच्छे के लिए और बुरा करता है तो अपने बुरे के लिए और मुसलमान का अ़क़ीदा व ईमान इतना मज़बूत होना चाहिए कि दुनिया का नफ़अ हो या नुक्सान हम तो वही करेंगे जिस से अल्लाह व रसूल राज़ी हो, और घाटे नफ़अ को भी अल्लाह ही जानता है हम कुछ नहीं जानते, कभी किसी चीज़ में हम फ़ाइदा समझते हैं और घाटा हो जाता है, और कभी घाटा और नुक्सान ख्याल करते हैं मगर नफ़अ और फ़ायदा निकलता है।
एक शख्स को मुद्दत से एक गाड़ी ख़रीदने की तमन्ना थी और जब ख़रीदी तो पूरी फ़ेम्ली के साथ इस गाड़ी में एक्सीडेंट के ज़रिए मारा गया, खुलासा यह कि अपने सब काम अल्लाह की मर्ज़ी पर छोड़ दीजिए, और उसके बताये हुये रास्ते पर चलना ज़िंदगी का मक़सद बना लीजिए फिर जो होगा देखा जायेगा और वही होगा जो अल्लाह चाहेगा।
कुछ लोग कहते हैं कि तअ़ज़ीए और तख़्त बनाना सजाना ऐसा ही है जैसे जलसे, जुलूस और मीलाद की
महफ़िलों के लिए शामयाने पिन्डालों, सड़कों, गलियों और घरों का सजाया जाता है, तो यह भी एक ग़लत फ़हमी है। जलसे, जुलूस और महफिलों में सजावट, तब्लीग़ और तक़रीर मक़सद होता है उसके लिए यह सजावटें होती हैं, और तअ़ज़िया बनाने का मक़सद सिवाये सजाने, संवारने और घूमाने के और क्या हैं, और जलसे, जुलूस और महफ़िलों के लिए भी हद से ज्यादा बे ज़रूरत इतना डिकोरेशन और सजावट करना कि आने वालों का ध्यान उसी में लग कर रह जाये और वही मक़सद बनकर रह जाये और ज़िक्रे खैर वअ़ज़ व तब्लीग़ की तरफ़ से तवज्जुह हट जाये यह सब करना भी अच्छा नहीं है, और उन सब सजावटों में भी आपस में मुक़ाबिले और फ़ख़्र व मुबाहात ख़िलाफ़े शरअ़ बातें हैं, खास कर गरीबों मज़दूरों से ज़बरदस्ती चन्दे ले कर यह सब काम करना ज़्यादती है, बजाये सवाब के गुनाह भी हो सकता है क्योंकि गरीबों को सताना इस्लाम में ज़्यादा बुरा काम है।
महफ़िले, मज्लिसें कभी कभी बग़ेर सजावट और डिकोरेशन के भी होती हैं और ताज़िया तो सजावट ही का नाम है यह न हो तो फिर ताज़िया ही कहाँ रहा।
कुछ लोग कहते हैं कि ताज़ियेदारी ख़त्म हो गई तो इमाम हुसैन का नाम मिट जायेगा तो यह भी उन लोगों की ग़लत फ़हमी है, हज़रत इमाम हुसैन का नाम तो दुनिया की लाखों मस्जिदों में हर जुमा की नमाज़ से पहले ख़ुतबे में पढ़ा जाता है, पीरी-मुरीदी के अक्सर सिलसिले उन से हो कर रसूले ख़ुदा तक पहुँचते हैं, और जब शजरे पढ़े जाते हैं तो इमाम हुसैन का नाम आता है, कुरआ़न करीम के 22वें पारे के पहले रुकूअ़ में जो आयते तत़ह़ीर है उस में भी अहले बैत का ज़िक्र मौजूद है, और तो और खुद नमाज़ जो अल्लाह की इबादत है उस में भी आले मुहम्मद पर दुरूद पढ़ा जाता है सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम, उसके एलावा कितने जलसों ,जुलूसों महफ़िलों, मज्लिसों, नअ़रों, नज़मों में उनका नाम आता है, यह सब दुनिया जानती है मेरे बताने की ज़रूरत नहीं और सही बात यह है कि इमाम हुसैन का नाम तो हर मुसलमान के दिल में अल्लाह तआ़ला ने लिख दिया है, और जिस के दिल में इमाम हुसैन का नाम नहीं वह मुसलमान कहलाने का ह़क़ दार नहीं।
तो भाइयों, जिस का ज़िक्र नमाज़ों में, ख़ुतबों में, कुरआ़न की आयतों में और हज़ारों महफ़िलों मज्लिसों और खा़नकाही शजरों में हो उस का नाम कैसे मिट जायेगा?
तअ़ज़िया दारी और उसके साथ जो तमाशे होते हैं उससे तो हज़रत इमाम पाक का नाम बदनाम किया जाता है।
जो लोग कहते हैं ताजि़येदारी ख़त्म हो गई तो इमाम हुसैन का नाम मिट जायेगा मैं उनसे पूछता हूँ कि हज़रत इमाम पाक से पहले और बाद में जो हज़ारों लाखों हज़रात अम्बिया व औलिया व शोहदा हुये हैं उनमें से किस-किस के नाम पर ताज़ियेदारी या मेले तमाशे होते हैं, क्या उन सब के नाम मिट गये ?
ह़क़ यह है कि तअ़ज़िये ख़त्म होने से इमाम हुसैन का नाम नहीं मिटेगा बल्कि तअ़ज़ियेदारों का नाम मिट जायेगा और आज कल तअ़ज़ियेदारी अपने नाम के लिए ही हो रही है इमाम हुसैन के नाम के लिए नहीं, देखा नहीं यह ताज़िएदार अपनी नामवरी कि मेरा तअ़ज़िया सब से ऊंचा, अच्छा रहे और आगे ➡ चले उस के लिए कैसे कैसे झगड़े करते हैं, खुद भी लड़ते मरते, और औरों को भी मरवाते हैं।
📕»» मुह़र्रम में क्या जाइज़? क्या नाजाइज़? सफ़ा: 20-23
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🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ एस-अली।औवैसी & शाकिर अली बरेलवी
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मुहर्रम में क्या नाजाइज़ है ? तअज़िये दारी:-
बअ़ज़ लोग कहते हैं कि हमारे ख़ानदान में तअ़ज़िये पहले से होती चली आ रही हैं, एक साल हम ने ताज़ियेदारी नहीं बनाया तो हमारा फ़लाँ नुक्सान हो गया या बीमार हो गए या 🏡 घर में कोई मर गया, यह भी जाहिलाना बातें हैं पहले तो ऐसा होता नहीं और हो भी जाये तो यह एक शैतानी चाल है वह चाहता है कि तुम हराम कारियों में लगे रहो, और खुदा और रसूल से दूर रहो, हो सकता है कि शैतान आप को डिगाने के लिए कुछ कर देता हो, क्योंकि कुछ ताक़त अल्लाह ने उस को भी दी है, और अल्लाह की ज़ात तो ग़नी है अगर सब सुधर जायें नेक और परहेजगार हो जायें तो उसे कुछ नफ़ा और फ़ाइदा नहीं पहुँचता और सब बिगड़ जायें तो उसका कुछ घाटा नहीं होता, इन्सान अच्छा करता है तो अपने अच्छे के लिए और बुरा करता है तो अपने बुरे के लिए और मुसलमान का अ़क़ीदा व ईमान इतना मज़बूत होना चाहिए कि दुनिया का नफ़अ हो या नुक्सान हम तो वही करेंगे जिस से अल्लाह व रसूल राज़ी हो, और घाटे नफ़अ को भी अल्लाह ही जानता है हम कुछ नहीं जानते, कभी किसी चीज़ में हम फ़ाइदा समझते हैं और घाटा हो जाता है, और कभी घाटा और नुक्सान ख्याल करते हैं मगर नफ़अ और फ़ायदा निकलता है।
एक शख्स को मुद्दत से एक गाड़ी ख़रीदने की तमन्ना थी और जब ख़रीदी तो पूरी फ़ेम्ली के साथ इस गाड़ी में एक्सीडेंट के ज़रिए मारा गया, खुलासा यह कि अपने सब काम अल्लाह की मर्ज़ी पर छोड़ दीजिए, और उसके बताये हुये रास्ते पर चलना ज़िंदगी का मक़सद बना लीजिए फिर जो होगा देखा जायेगा और वही होगा जो अल्लाह चाहेगा।
कुछ लोग कहते हैं कि तअ़ज़ीए और तख़्त बनाना सजाना ऐसा ही है जैसे जलसे, जुलूस और मीलाद की
महफ़िलों के लिए शामयाने पिन्डालों, सड़कों, गलियों और घरों का सजाया जाता है, तो यह भी एक ग़लत फ़हमी है। जलसे, जुलूस और महफिलों में सजावट, तब्लीग़ और तक़रीर मक़सद होता है उसके लिए यह सजावटें होती हैं, और तअ़ज़िया बनाने का मक़सद सिवाये सजाने, संवारने और घूमाने के और क्या हैं, और जलसे, जुलूस और महफ़िलों के लिए भी हद से ज्यादा बे ज़रूरत इतना डिकोरेशन और सजावट करना कि आने वालों का ध्यान उसी में लग कर रह जाये और वही मक़सद बनकर रह जाये और ज़िक्रे खैर वअ़ज़ व तब्लीग़ की तरफ़ से तवज्जुह हट जाये यह सब करना भी अच्छा नहीं है, और उन सब सजावटों में भी आपस में मुक़ाबिले और फ़ख़्र व मुबाहात ख़िलाफ़े शरअ़ बातें हैं, खास कर गरीबों मज़दूरों से ज़बरदस्ती चन्दे ले कर यह सब काम करना ज़्यादती है, बजाये सवाब के गुनाह भी हो सकता है क्योंकि गरीबों को सताना इस्लाम में ज़्यादा बुरा काम है।
महफ़िले, मज्लिसें कभी कभी बग़ेर सजावट और डिकोरेशन के भी होती हैं और ताज़िया तो सजावट ही का नाम है यह न हो तो फिर ताज़िया ही कहाँ रहा।
कुछ लोग कहते हैं कि ताज़ियेदारी ख़त्म हो गई तो इमाम हुसैन का नाम मिट जायेगा तो यह भी उन लोगों की ग़लत फ़हमी है, हज़रत इमाम हुसैन का नाम तो दुनिया की लाखों मस्जिदों में हर जुमा की नमाज़ से पहले ख़ुतबे में पढ़ा जाता है, पीरी-मुरीदी के अक्सर सिलसिले उन से हो कर रसूले ख़ुदा तक पहुँचते हैं, और जब शजरे पढ़े जाते हैं तो इमाम हुसैन का नाम आता है, कुरआ़न करीम के 22वें पारे के पहले रुकूअ़ में जो आयते तत़ह़ीर है उस में भी अहले बैत का ज़िक्र मौजूद है, और तो और खुद नमाज़ जो अल्लाह की इबादत है उस में भी आले मुहम्मद पर दुरूद पढ़ा जाता है सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम, उसके एलावा कितने जलसों ,जुलूसों महफ़िलों, मज्लिसों, नअ़रों, नज़मों में उनका नाम आता है, यह सब दुनिया जानती है मेरे बताने की ज़रूरत नहीं और सही बात यह है कि इमाम हुसैन का नाम तो हर मुसलमान के दिल में अल्लाह तआ़ला ने लिख दिया है, और जिस के दिल में इमाम हुसैन का नाम नहीं वह मुसलमान कहलाने का ह़क़ दार नहीं।
तो भाइयों, जिस का ज़िक्र नमाज़ों में, ख़ुतबों में, कुरआ़न की आयतों में और हज़ारों महफ़िलों मज्लिसों और खा़नकाही शजरों में हो उस का नाम कैसे मिट जायेगा?
तअ़ज़िया दारी और उसके साथ जो तमाशे होते हैं उससे तो हज़रत इमाम पाक का नाम बदनाम किया जाता है।
जो लोग कहते हैं ताजि़येदारी ख़त्म हो गई तो इमाम हुसैन का नाम मिट जायेगा मैं उनसे पूछता हूँ कि हज़रत इमाम पाक से पहले और बाद में जो हज़ारों लाखों हज़रात अम्बिया व औलिया व शोहदा हुये हैं उनमें से किस-किस के नाम पर ताज़ियेदारी या मेले तमाशे होते हैं, क्या उन सब के नाम मिट गये ?
ह़क़ यह है कि तअ़ज़िये ख़त्म होने से इमाम हुसैन का नाम नहीं मिटेगा बल्कि तअ़ज़ियेदारों का नाम मिट जायेगा और आज कल तअ़ज़ियेदारी अपने नाम के लिए ही हो रही है इमाम हुसैन के नाम के लिए नहीं, देखा नहीं यह ताज़िएदार अपनी नामवरी कि मेरा तअ़ज़िया सब से ऊंचा, अच्छा रहे और आगे ➡ चले उस के लिए कैसे कैसे झगड़े करते हैं, खुद भी लड़ते मरते, और औरों को भी मरवाते हैं।
📕»» मुह़र्रम में क्या जाइज़? क्या नाजाइज़? सफ़ा: 20-23
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🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ एस-अली।औवैसी & शाकिर अली बरेलवी
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