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प्यारे इस्लामी भाइयों !
मज़हबे इस्लाम में एक अल्लाह की एबादत ज़रूरी है साथ ही साथ उसके नेक बंदों से मुहब्बत व अ़क़ीदत भी ज़रूरी है। अल्लाह के नेक अच्छे और मुक़द्दस बन्दों से अस़ली, सच्ची और ह़क़ीक़ी मुहब्बत तो यह है कि
उन के ज़रीऐ अल्लाह ने जो रास्ता दिखाया है उस पर चला जाये,
उनका कहना माना जाये,
अपनी ज़िंदगी को उनकी ज़िंदगी की तरह बनाने की कोशिश की जाये,
इस के साथ साथ इस्लाम के दाइरे में रह कर उन की याद मनाना, उनका ज़िक्र और चर्चा करना, उनकी यादगारें क़ाइम करना भी मुहब्बत व अ़क़ीदत है,
और अल्लाह के जितने भी नेक और बरगुज़ीदा बन्दे हैं उन सब के सरदार उसके आख़िरी रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम हैं, उनका मर्तबा इतना बड़ा है कि वह अल्लाह के रसूल होने के साथ-साथ उसके महबूब भी हैं,
और जिस को दीन व दुनिया में जो कुछ भी अल्लाह ने दिया, देता है, और देगा, सब उन्हीं का ज़रीआ, वसीला और सदक़ा है, उनका जब विसाल हुआ, और जब दुनिया से तशरीफ़ ले गये तो उन्होंने अपने क़रीबी दो तरह के लोग छोड़े थे, एक तो उनके साथी जिन्हें सहाबी कहते हैं, उनकी तादाद हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के विसाल के वक़्त एक लाख से भी ज्यादा थी, दूसरे हुज़ूर की आल व औलाद और आप की पाक
बीवियां उन्हें अहले बैत कहते हैं।
हुज़ूरﷺ के इन सब क़रीबी लोगों से मुहब्बत रखना मुसलमान के लिए निहायत जरूरी है ।
हुज़ूरﷺ के अहले बैत हों या आप के सहाबी उन में से किसी को भी बुरा भला कहना या उनकी शान में गुस्ताख़ी और बे अदबी करना मुसलमान का काम नहीं है, ऐसा करने वाला गुमराह व बद दीन है उसका ठिकाना जहन्नम है।
📕»» मुह़र्रम में क्या जाइज़? क्या नाजाइज़? सफ़ा: 3-4
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🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ एस-अली।औवैसी & शाकिर अली बरेलवी
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https://MjrMsg.blogspot.com/p/moharram-me-jayiz-najayiz.html
प्यारे इस्लामी भाइयों !
मज़हबे इस्लाम में एक अल्लाह की एबादत ज़रूरी है साथ ही साथ उसके नेक बंदों से मुहब्बत व अ़क़ीदत भी ज़रूरी है। अल्लाह के नेक अच्छे और मुक़द्दस बन्दों से अस़ली, सच्ची और ह़क़ीक़ी मुहब्बत तो यह है कि
उन के ज़रीऐ अल्लाह ने जो रास्ता दिखाया है उस पर चला जाये,
उनका कहना माना जाये,
अपनी ज़िंदगी को उनकी ज़िंदगी की तरह बनाने की कोशिश की जाये,
इस के साथ साथ इस्लाम के दाइरे में रह कर उन की याद मनाना, उनका ज़िक्र और चर्चा करना, उनकी यादगारें क़ाइम करना भी मुहब्बत व अ़क़ीदत है,
और अल्लाह के जितने भी नेक और बरगुज़ीदा बन्दे हैं उन सब के सरदार उसके आख़िरी रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम हैं, उनका मर्तबा इतना बड़ा है कि वह अल्लाह के रसूल होने के साथ-साथ उसके महबूब भी हैं,
और जिस को दीन व दुनिया में जो कुछ भी अल्लाह ने दिया, देता है, और देगा, सब उन्हीं का ज़रीआ, वसीला और सदक़ा है, उनका जब विसाल हुआ, और जब दुनिया से तशरीफ़ ले गये तो उन्होंने अपने क़रीबी दो तरह के लोग छोड़े थे, एक तो उनके साथी जिन्हें सहाबी कहते हैं, उनकी तादाद हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के विसाल के वक़्त एक लाख से भी ज्यादा थी, दूसरे हुज़ूर की आल व औलाद और आप की पाक
बीवियां उन्हें अहले बैत कहते हैं।
हुज़ूरﷺ के इन सब क़रीबी लोगों से मुहब्बत रखना मुसलमान के लिए निहायत जरूरी है ।
हुज़ूरﷺ के अहले बैत हों या आप के सहाबी उन में से किसी को भी बुरा भला कहना या उनकी शान में गुस्ताख़ी और बे अदबी करना मुसलमान का काम नहीं है, ऐसा करने वाला गुमराह व बद दीन है उसका ठिकाना जहन्नम है।
📕»» मुह़र्रम में क्या जाइज़? क्या नाजाइज़? सफ़ा: 3-4
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