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मौलवी साहब या मियां हुजूर ने कह दिया है कि सब जाइज़ व सवाब का काम है ख़ूब करो और हमने भी ऐसे मौलवी साहब को ख़ूब नज़राना देकर खुश कर दिया है, और उन्होंने हम को तअ़ज़िये बनाने, घुमाने, ढोल बजाने और मेले ठेले लगाने और उन में जाने की इजाजत दे दी है।
अल्लाह नाराज़ हो या उस का रसूल ऐसे मौलवियों और पीरों से हम ख़ूश और वह हम से खुश।
इस सब के बावजूद अ़वाम में ऐसे लोग भी काफ़ी हैं जो ग़लती करते हैं और इसको ग़लती समझते भी हैं और इस हराम को हलाल बताने वाले मौलवियों की भी उनकी नजर में कुछ औकात नहीं रहती ।
एक गांव का वाक़िआ है कोई तअ़ज़िये बनाने वाला कारीगर नहीं मिल रहा था या बहुत सी रक़म का मुतालबा कर रहा था वहां की मस्जिद के इमाम ने कहा कि किसी को बुलाने की ज़रूरत नहीं है तअ़जिया मैं बना दूंगा और इस इमाम ने गांव वालों को ख़ुश करने के लिए बहुत उ़मदा बढ़िया और खूबसूरत तअ़जिया बना कर दिया और फिर उन्ही तअ़ज़िये दारों ने इस इमाम को मस्जिद से निकाल दिया और यह कह कर इस का हिसाब कर दिया कि यह कैसा मौलवी है कि तअ़जिया बना रहा है मौलवी तो तअ़ज़िये दारी से मना करते हैं, और मौलवी साहब का बकौल शाइर यह हाल हुआ कि,
न ख़ुदा ही मिला न विसाले स़नम
न यहां के रहे न वहां के रहे !
दरअसल बात यह है कि सच्चाई में बहुत त़ाक़त है और ह़क़ ह़क़ ही होता है, और सर चढ़ कर बोलता है और ह़क़ की अहमियत उनके नज़दीक भी होता है जो ना ह़क़ पर हैं।
बहरे हाल इस में कोई शक नहीं कि एक बड़ी तादाद में हमारे सुन्नी मुसलमान अ़वाम भाई हज़रत इमाम हुसैन रदियल्लाहु तआला अन्हु की मुहब्बत में ग़लत फ़हमियों के शिकार हो गए और मज़हब के नाम पर नाजाइज़ तफ़रीह और दिल लगी के काम करने लगे उनकी ग़लत फ़हमियों को दूर करने के लिए हम ने यह मज़मून
मुरत्तब किया है ।
इस मुख़्तसर मज़मून में हम यह दिखायेंगे कि आज कल मुहर्रम के महीने में इस्लाम व सुन्नियत के नाम पर जो कुछ होता है इस में इस्लामी नुक़त़ा_ए_नज़र से सुन्नी उलेमा के फ़तवों के मुताबिक जाइज़ क्या है और नाजाइज़ क्या है किस में गुनाह है और किस में सवाब, इस में बहस व मुंहाहिसे और तफ़सील की तरफ न जा कर सिर्फ जाइज़ और नाजाइज़ कामों का एक जाइज़ा पेश करेंगे और पढ़ने और सुनने वालों से गुज़ारिश है कि वह ज़िद और हठ धरमी से काम न लें, मौत व क़ब्र और आख़िरत को पेशे नज़र रखें।
मेरे अ़ज़ीज़ इस्लामी भाईयों ! हम सब को यक़ीनन मरना है, और ख़ुदा_ए_तआ़ला को मुंह दिखाना है वहां ज़िद और हठ धरमी से काम नहीं चलेगा, भाईयों! आंखें खोलो और मरने से पहले होश में आ जाओ और पढ़ो समझो और मानो।
📕»» मुह़र्रम में क्या जाइज़? क्या नाजाइज़? सफ़ा: 7-8
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🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ एस-अली।औवैसी & शाकिर अली बरेलवी
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https://MjrMsg.blogspot.com/p/moharram-me-jayiz-najayiz.html
मौलवी साहब या मियां हुजूर ने कह दिया है कि सब जाइज़ व सवाब का काम है ख़ूब करो और हमने भी ऐसे मौलवी साहब को ख़ूब नज़राना देकर खुश कर दिया है, और उन्होंने हम को तअ़ज़िये बनाने, घुमाने, ढोल बजाने और मेले ठेले लगाने और उन में जाने की इजाजत दे दी है।
अल्लाह नाराज़ हो या उस का रसूल ऐसे मौलवियों और पीरों से हम ख़ूश और वह हम से खुश।
इस सब के बावजूद अ़वाम में ऐसे लोग भी काफ़ी हैं जो ग़लती करते हैं और इसको ग़लती समझते भी हैं और इस हराम को हलाल बताने वाले मौलवियों की भी उनकी नजर में कुछ औकात नहीं रहती ।
एक गांव का वाक़िआ है कोई तअ़ज़िये बनाने वाला कारीगर नहीं मिल रहा था या बहुत सी रक़म का मुतालबा कर रहा था वहां की मस्जिद के इमाम ने कहा कि किसी को बुलाने की ज़रूरत नहीं है तअ़जिया मैं बना दूंगा और इस इमाम ने गांव वालों को ख़ुश करने के लिए बहुत उ़मदा बढ़िया और खूबसूरत तअ़जिया बना कर दिया और फिर उन्ही तअ़ज़िये दारों ने इस इमाम को मस्जिद से निकाल दिया और यह कह कर इस का हिसाब कर दिया कि यह कैसा मौलवी है कि तअ़जिया बना रहा है मौलवी तो तअ़ज़िये दारी से मना करते हैं, और मौलवी साहब का बकौल शाइर यह हाल हुआ कि,
न ख़ुदा ही मिला न विसाले स़नम
न यहां के रहे न वहां के रहे !
दरअसल बात यह है कि सच्चाई में बहुत त़ाक़त है और ह़क़ ह़क़ ही होता है, और सर चढ़ कर बोलता है और ह़क़ की अहमियत उनके नज़दीक भी होता है जो ना ह़क़ पर हैं।
बहरे हाल इस में कोई शक नहीं कि एक बड़ी तादाद में हमारे सुन्नी मुसलमान अ़वाम भाई हज़रत इमाम हुसैन रदियल्लाहु तआला अन्हु की मुहब्बत में ग़लत फ़हमियों के शिकार हो गए और मज़हब के नाम पर नाजाइज़ तफ़रीह और दिल लगी के काम करने लगे उनकी ग़लत फ़हमियों को दूर करने के लिए हम ने यह मज़मून
मुरत्तब किया है ।
इस मुख़्तसर मज़मून में हम यह दिखायेंगे कि आज कल मुहर्रम के महीने में इस्लाम व सुन्नियत के नाम पर जो कुछ होता है इस में इस्लामी नुक़त़ा_ए_नज़र से सुन्नी उलेमा के फ़तवों के मुताबिक जाइज़ क्या है और नाजाइज़ क्या है किस में गुनाह है और किस में सवाब, इस में बहस व मुंहाहिसे और तफ़सील की तरफ न जा कर सिर्फ जाइज़ और नाजाइज़ कामों का एक जाइज़ा पेश करेंगे और पढ़ने और सुनने वालों से गुज़ारिश है कि वह ज़िद और हठ धरमी से काम न लें, मौत व क़ब्र और आख़िरत को पेशे नज़र रखें।
मेरे अ़ज़ीज़ इस्लामी भाईयों ! हम सब को यक़ीनन मरना है, और ख़ुदा_ए_तआ़ला को मुंह दिखाना है वहां ज़िद और हठ धरमी से काम नहीं चलेगा, भाईयों! आंखें खोलो और मरने से पहले होश में आ जाओ और पढ़ो समझो और मानो।
📕»» मुह़र्रम में क्या जाइज़? क्या नाजाइज़? सफ़ा: 7-8
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🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ एस-अली।औवैसी & शाकिर अली बरेलवी
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