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हुज़ूरﷺ के अहले बैत में एक बड़ी हस्ती इमाम आली मक़ाम सैयदिना इमाम हुसैन भी हैं उनका मर्तबा इतना बड़ा है कि वह हुज़ूर के सहाबी भी हैं, और अहले बैत में से भी हैं,

यानी आप की प्यारी बेटी के प्यारे बेटे आप के प्यारे और चहीते नवासे हैं, रात-रात भर जाग कर अल्लाह की इबादत करने वाले और कुरआने अ़ज़ीम की तिलावत करने वाले मुत्तक़ी इबादत गुज़ार, परहेज गार, बुजुर्ग, अल्लाह के बहुत बड़े वली हैं ।

साथ ही साथ मज़हबे इस्लाम के लिए राहे खुदा में गला कटाने वाले शहीद भी हैं, मुहर्रम के महीने की दस तारीख को जुमा के दिन 61, हिजरी में यानी हुज़ूर के विसाल के तक़रीबन पचास साल के बाद आप को और आप के साथियों और बहुत से घर वालों को ज़ालिमों ने ज़ुल्म कर के करबला नाम के एक मैदान में 3, दिन प्यासा रख कर शहीद कर दिया, इस्लामी तारीख का यह एक बड़ा सानिहा और दिल हिला देने वाला हादसा है, और दस मुहर्रम जो कि पहले ही से एक तारीख़ी और यादगार दिन था, इस हादसे ने इस को और भी ज़िन्दा व जावेद कर दिया, और उस दिन को हज़रत इमाम हुसैन के नाम से जाना जाने लगा।

और गोया कि यह हुसैनी दिन हो गया, और बे शक़ ऐसा होना ही चाहिए, लेकिन मज़हबे इस्लाम एक सीधा सच्चा
सन्जीदगी और शराफ़त वाला मज़हब है और उसकी हदें मुकर्रर हैं ।

लिहाजा इस में जो भी हो सब मज़हब और शरीअ़त के दाइरे में रह कर हो तभी वह इस्लामी बुजुर्गो की यादगार कहलायेगी और जब हमारा कोई भी तरीका मज़हब की लगाई चहार दीवारी से बाहर निकल गया तो वह ग़ैर इस्लामी और हमारी बुजुर्ग शख़्सियतों के लिए बाइसे बदनामी हो गया ।

📕»» मुह़र्रम में क्या जाइज़? क्या नाजाइज़? सफ़ा: 4-5
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🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ एस-अली।औवैसी & शाकिर अली बरेलवी

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