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हज़रत इमाम हसन रदिअल्लाहु तआला अन्हु के मनाकिब बहुत ज़्यादा हैं। आप इल्म व वकार हश्मत व जाह जूद व करम, जुह्द व ताअत में बहुत बुलन्द पाया हैं एक-एक आदमी को एक-एक लाख का अतीया मरहमत फरमा देते थे।

हाकिम ने अब्दुल्लाह बिन उबैद उमैर से रिवायत किया कि हज़रत इमाम हसन रदिअल्लाहु अन्हु ने पच्चीस हज पा प्यादा (पैदल) किए हैं और शाही सवारियाँ आपके हमराह होती थीं मगर इमाम आली मकाम की तवाजु और इख्लास व अदब का इक़्तिजा कि आप हज के लिए पैदल ही सफर फरमाते। आपका कलाम बहुत शीरीं था। अह्-ले मज्लिस नहीं चाहते थे कि आप गुफ्तगू खत्म फरमाएँ।

इब्ने सअद ने अली बिन जैद जदआन से रिवायत की कि हज़रत इमाम हसन रदिअल्लाहु तआला अन्हु ने दोबार अपना सारा माल राहे खुदा में दे डाला और तीन मरतबा आधा माल दिया और ऐसी सहीह तन्सीफ़ की कि नअलैन शरीफ़ और जुराबों में से एक-एक देते थे और एक-एक रख लेते थे।

आपके हिल्म का यह हाल था कि इब्ने असाकिर ने रिवायत किया कि आपकी वफ़ात के बाद मरवान बहुत रोया। इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु ने फरमाया कि आज तू रो रहा है और उनकी हयात में उनके साथ किस-किस तरह की बदसुलूकियाँ किया करता था, तो वह पहाड़ की तरफ इशारा करके कहने लगा मैं उस से ज्यादा
हलीम के साथ ऐसा करता था। अल्लाह रे हिल्म, मरवान को भी एतराफ़ है कि आपकी बुर्दबारी पहाड़ से भी ज्यादा है।

📕»» सवानेह करबला, पेज: 54
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🖌पोस्ट क्रेडिट - शाकिर अली बरेलवी रज़वी  व  अह्-लिया मोहतरमा

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