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हज़रत अमीर मुआविया की तरफ से हज़रत इमाम आली मकाम का वज़ीफ़ा एक लाख सालाना मुक़र्रर था। एक साल वज़ीफ़ा पहुँचने में ताखीर हुई और इस वजह से हज़रत इमाम को सख्त तंगी दर पेश हुई। आपने चाहा कि अमीर मुआविया को उसकी शिकायत लिखें, लिखने का इरादा किया, दवात मंगाई मगर फिर कुछ सोच कर तवक्कुफ़ किया। ख्वाब में हुज़ूर पुर नूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के दीदारे पुर अनवार से मुशर्रफ़ हुए। हुज़ूर ﷺ ने इस्तिफ्सारे हाल फरमाया और इरशाद फरमाया कि ऐ मेरे फ़रज़न्दे अरजुमन्द क्या हाल है। अर्ज़ किया अल्हम्दुलिल्लाह बखैर हूँ और वज़ीफे की ताख़ीर की शिकायत की ।
हुजूर ने फरमाया तुम ने दवात मंगाई थी, ताकि तुम अपनी मिस्ल एक मख्लूक़ के पास अपनी तकलीफ़ की शिकायत लिखो। अर्ज़ किया या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मज्बूर था क्या करता । फरमाया यह दुआ पढ़ो-
तरजमा: या रब मेरे दिल में अपनी उम्मीद डाल और अपने मासिवा से मेरी उम्मीद कतअ कर यहाँ तक कि मैं तेरे सिवा किसी से उम्मीद न रखूँ। या रब जिस से मेरी कुव्वत आजिज़ और अमल कासिर हो और जहाँ तक मेरी रगबत और मेरा सवाल न पहुँचे और मेरी जुबान पर जारी न हो, जो तू ने अव्वलीन व आखिरीन में से किसी को अता फरमाया हो यकीन से या रब्बल-आलमीन मुझ को उसके साथ मख्सूस फरमा।
हज़रत इमाम फरमाते हैं कि इस दुआ पर एक हप्ता न गुज़रा कि अमीर मुआविया ने मेरे पास एक लाख पचास हजार भेज दिए और मैंने अल्लाह तआला की हम्द व सना की और उसका शुक्र बजा लाया। फिर ख़्वाब में दौलते
दीदार से बहरमन्द हुआ। सरकारे नामदार सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इरशाद फरमाया ऐ हसन क्या हाल है। मैंने खुदा का शुक्र करके वाकया अर्ज किया। फरमाया ऐ फ़रज़न्द जो मख्लूक़ से उम्मीद न रखे और ख़ालिक से लौ लगाए उसके काम यूं ही बनते हैं।
📕»» सवानेह करबला, पेज: 55-56
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🖌पोस्ट क्रेडिट - शाकिर अली बरेलवी रज़वी व अह्-लिया मोहतरमा
📌 इस उनवान के दूसरे पोस्ट पढ़ने के लिए क्लिक करिये ⬇
https://MjrMsg.blogspot.com/p/hasanain.html
हज़रत अमीर मुआविया की तरफ से हज़रत इमाम आली मकाम का वज़ीफ़ा एक लाख सालाना मुक़र्रर था। एक साल वज़ीफ़ा पहुँचने में ताखीर हुई और इस वजह से हज़रत इमाम को सख्त तंगी दर पेश हुई। आपने चाहा कि अमीर मुआविया को उसकी शिकायत लिखें, लिखने का इरादा किया, दवात मंगाई मगर फिर कुछ सोच कर तवक्कुफ़ किया। ख्वाब में हुज़ूर पुर नूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के दीदारे पुर अनवार से मुशर्रफ़ हुए। हुज़ूर ﷺ ने इस्तिफ्सारे हाल फरमाया और इरशाद फरमाया कि ऐ मेरे फ़रज़न्दे अरजुमन्द क्या हाल है। अर्ज़ किया अल्हम्दुलिल्लाह बखैर हूँ और वज़ीफे की ताख़ीर की शिकायत की ।
हुजूर ने फरमाया तुम ने दवात मंगाई थी, ताकि तुम अपनी मिस्ल एक मख्लूक़ के पास अपनी तकलीफ़ की शिकायत लिखो। अर्ज़ किया या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मज्बूर था क्या करता । फरमाया यह दुआ पढ़ो-
तरजमा: या रब मेरे दिल में अपनी उम्मीद डाल और अपने मासिवा से मेरी उम्मीद कतअ कर यहाँ तक कि मैं तेरे सिवा किसी से उम्मीद न रखूँ। या रब जिस से मेरी कुव्वत आजिज़ और अमल कासिर हो और जहाँ तक मेरी रगबत और मेरा सवाल न पहुँचे और मेरी जुबान पर जारी न हो, जो तू ने अव्वलीन व आखिरीन में से किसी को अता फरमाया हो यकीन से या रब्बल-आलमीन मुझ को उसके साथ मख्सूस फरमा।
हज़रत इमाम फरमाते हैं कि इस दुआ पर एक हप्ता न गुज़रा कि अमीर मुआविया ने मेरे पास एक लाख पचास हजार भेज दिए और मैंने अल्लाह तआला की हम्द व सना की और उसका शुक्र बजा लाया। फिर ख़्वाब में दौलते
दीदार से बहरमन्द हुआ। सरकारे नामदार सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इरशाद फरमाया ऐ हसन क्या हाल है। मैंने खुदा का शुक्र करके वाकया अर्ज किया। फरमाया ऐ फ़रज़न्द जो मख्लूक़ से उम्मीद न रखे और ख़ालिक से लौ लगाए उसके काम यूं ही बनते हैं।
📕»» सवानेह करबला, पेज: 55-56
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