Pahli Rakat Kaa Ruku Mil Gayaa To........

Mas'alaa:- Pahli Rakat Kaa Ruku Mil Gayaa To Takbire-ulaa Yaa'ni Takbire-tahrimaa Ki Phajilat Mil Gayi.

#(Aalamgiri; Bahaare Shariat)
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🖌️Post Credit ~ Shakir Ali Barelwi Razvi  wa  Ahliya Mohtarma

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Gunge Shakhs Ke Liye Taqbire-tahrimaa Kaa Hukm

Mas'alaa:- Jo Shakhs Takbir Ke Talaphphuz Par Kaadir Na Ho, Maslan Gungaa (Mungaa-dumb) Ho Yaa Kisi Wajah Se Jubaan Bandh Ho Gayi Ho, Us Par Talaphphuz Yaa'ni Munh Se Bolnaa waajib Nahin. Dil Me iraadaa Kaafi Hai, Yaa'ni Dil Men Kah Le.

#(Durre Mukhtaar)
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Nafl Namaz Me Taqbire-tahrimaa Kaa Hukm

Mas'alaa:- Nafl Namaz Ke Liye Taqbire-tahrimaa Ruku Me Kahi To Namaz Na Huyi Aur Agar Baith Kar Kahi To Ho Gayi.

#(Raddul Mohtaar)
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Jhukne Ki Haalat Me Taqbire-Tahrimaa Par Namaz Kaa Hukm

Masalaa:- Baa'z (Kuchh) Log Imaam Ko Ruku Me Paa Lene Ki Garaj Se Jaldi-jaldi Ruku Me Jaate Hua Taqbire-tahrimaa Kahte Hain Aur Jakne Ki Haalat Me Tqbire-tahrimaa Kahte Hain, Unki Namaz Nahin Hoti.

Unko Apni Namaz Phir Se Dobaaraa Padhni Chaahiye.

#(Fataawaa Rizviyaa, Jild-3, Safaa-393)
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Imaam Ruku Me Ho To Muqatdi Taqbire-tahrimaa Kaise Kahe

Masalaa:- Imaam Ko Ruku Me Paayaa Aur Muqatdi Taqbire Tahrimaa Kahtaa Huaa Ruku Me Gayaa Aur Taqbire-tahrimaa Us Wakt Khatm Kee Ki Agar Haath Badhaaa (Lambaa Kare) To Ghutne Tak Pahunch Jaaye, To Uski Namaz Na Huyi.

#(Raddul Mohtaar)
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Kis Namaz Me Baith Ke, Kis Namaz Me Khade Hokar Taqbire-Tahrima Kahnaa Chaahiye

Masalaa:- Jin Namazon Me Qayaam (Khadaa Honaa) Pharz Hai, Unme Taqbire-tahrima Ke Liye Bhi Qayaam Pharz Hai.

Agar Kisi Ne Baithakar 'Allahu Akabar' Kahaa, Phir Khadaa Ho Gayaa, To Uski Namaz Shuru Hee Na Huyi.

#(Durre Mukhtaar; Aalamgiri)
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तकबीरे तहरीमा के वक़्त सर को कैसे रखना चाहिए

मस्अला:- तकबीरे तहरीमा के वक़्त सर न झुकाना बल्कि सीधा रखना सुन्नत है।

#(बहारे शरीअत)
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तकबीर कहने से पहले हाथ को उठाना

मस्अला:- दोनों हाथों को तकबीर कहने से पहले उठाना सुन्नत है।
#(बहारे शरीअत)
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तकबीरे-तहरीमा कहते वक्त हथेलियों का रुख किधर होना चाहिये

मस्अला:- तकबीरे-तहरीमा कहते वक्त हथेलियों और ऊंगलियों के पेट किब्ला रु होना सुन्नत है।

#(बहारे शरीअत)
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तकबीरे-तहरीमा में हाथ कैसे रखना चाहिये

मस्अला:- तकबीरे-तहरीमा में हाथ उठाते वक्त ऊंगलियों को अपने हाल पर छोड़ देना चाहिये या'नी ऊंगलियों को बिल्कुल मिलाना भी न चाहिये और ब:तकल्लुफ (तकलीफ उठाकर-Inconvenient) कुशादा (खुली-Opened) भी न रखना चाहिये और येह सुन्नत तरीका है।

#(बहारे शरीअत)
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तकबीरे तहरीमा में हाथ उठाना

मस्अला:- तकबीरे तहरीमा के लिये दोनों हाथों को कानों तक उठाना सुन्नत है।

#(बहारे शरीअत)
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तकबीरे-तहरीमा कहना वाजिब

मस्अला:- तकबीरे-तहरीमा में अल्लाहो अकबर का जुमला (वाक्य) कहना वाजिब है।

#(बहारे शरीअत)
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पहली रकअत का रुकूअ मिल गया तो....

मस्अला:- पहली रकअत का रुकूअ मिल गया तो तकबीरे-उला या'नी तकबीरे-तहरीमा की फजीलत मिल गई।

#(आलमगीरी; बहारे शरीअत)
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गूंगे शख्स के लिए तकबीरे-तहरीमा का हुक्म

मस्अला:- जो शख्स तकबीर के तलफ्फुज़ पर कादिर न हो, मस्लन गूंगा (मूंगा-Dumb) हो या किसी वजह से जुबान बंध हो गई हो, उस पर तलफ्फुज या'नी मुंह से बोलना वाजिब नहीं। दिल में इरादा काफी है, या'नी दिल में कह ले।

#(दुर्रे मुख़्तार)
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नफ़्ल नमाज़ में तकबीरे-तहरीमा का हुक्म

मस्अला:- नफ्ल नमाज़ के लिये तकबीरे-तहरीमा रुकूअ में कही तो नमाज़ न हुई और अगर बैठ कर कही तो हो गई।

#(रद्दुल मोहतार)
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झुकने की हालत में तकबीरे-तहरीमा पर नमाज़ का हुक्म


मस्अला:-  बा'ज़ (कुछ) लोग इमाम को रुकूअ में पा लेने की गरज से जल्दी-जल्दी रुकूअ में जाते हुए तकबीरे-तहरीमा कहते हैं और ज़कने की हालत में तकबीरे-तहरीमा कहते हैं, उनकी नमाज़ नहीं होती।

उनको अपनी नमाज़ फिर से दोबारा पढ़नी चाहिये।

#(फतावा रिज़वीया, जिल्द-3, सफ़ा-393)
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इमाम रुकू में हो तो मुक़तदी तकबीरे-तहरीमा कैसे कहे

मस्अला:- इमाम को रुकूअ में पाया और मुक़तदी तकबीरे तहरीमा कहता हुआ रुकूअ में गया और तकबीरे-तहरीमा उस वक्त ख़त्म की कि अगर हाथ बढ़ाए (लम्बा करे) तो घुटने तक पहुँच जाए, तो उसकी नमाज़ न हुई।

#(रद्दुल मोहतार)
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किस नमाज़ में बैठ के, किस नमाज़ में खड़े होकर तकबीरे-तहरीमा कहना चाहिए

मस्अला:- जिन नमाज़ों में कयाम (खड़ा होना) फर्ज़ है, उनमें तकबीरे-तहरीमा के, लिये भी कयाम फर्ज है।

अगर किसी ने बैठकर 'अल्लाहो अकबर' कहा, फिर खड़ा हो गया, तो उसकी नमाज़ शुरु ही न हुई।

#(दुर्रे मुख़्तार; आलमगीरी)
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बेवजह नमाज़ की निय्यत तोड़ना

मस्अला:- बे सबब (बिना कारण) निय्यत तौड़ देना या'नी नमाज़ शुरू करने के बाद बिला शरई वजह से नमाज़ तोड़ देना हराम है।
#(फतावा रिज़वीया जिल्द-3, सफ़ा-414)
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नमाज़ में अज़ान का जवाब देने का हुक्म

मस्अला:- कोई शख्स नमाज़ पढ़ रहा था और का'दा की हालत में अत्तहिय्यात पढ़ रहा था। जब 'कल्म-ए-तशह्हुद' के करीब पहुंचा, तब मोअज्जिन ने अज़ान में 'शहादतैन' (दो शहादतें) कहीं, उस नमाजी ने 'अत्तहिय्यात' की किरअत के बजाए (बदले) अज़ान का जवाब देने की निय्यत से 'अश्हदो-अल-ला-इलाहा-इल्लल्लाहो-व-अशहदो-अन्ना-मुहम्मदन-अब्दोहु-व-रसूलोहु' कहा, तो उसकी नमाज़ फासिद हो गई।

#(फतावा रिज़वीया जिल्द-3 सफ़ा-406)
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नमाज़ में "सदकल्लाहो-व-सदका रसूलोहु" कहना

मस्अला:- मुक्तदी ने इमाम की किरअत सुनकर "सदकल्लाहो-व-सदका रसूलोहु'' कहा, तो नमाज़ फासिद हो गई।
#(दुर्रे मुख़्तार; रद्दुल मोहतार)
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वो मुक्तदी जिसकी कुछ रकअतें छूट गयी, वो बाकी नमाज़ कैसे अदा करे

मस्अला:- मस्बूक या'नी वोह मुक्तदी जो जमाअत में शामिल हुआ मगर उस की एक या ज्यादा रकअतें छूट गई हैं, वोह मुक्तदी इमाम के सलाम फैरने के बाद अपनी फौत शुदा (छुटी हुई) रकअतें पढ़ेगा।

उस मस्बूक मुक्तदी ने येह खयाल कर के कि इमाम के साथ सलाम फैरना चाहिये, और उसने इमाम के साथ सलाम फैर दिया, तो उसकी नमाज़ फासिद हो गई।

#(आलमगीरी; बहारे शरीअत हिस्सा-3 सफ़ा-149)
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नमाज़ में तस्बीहात को ज़बान से गिनना

मस्अला:- हालते नमाज़ में आयतों, सूरतों और तस्बीहात को ज़बान से गिनना (गिनती करना-Countings) मुफसिदे नमाज़ है।

#(बहारे शरीअत हिस्सा-3 सफ़ा-171)
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बेहोश हो जाने पर नमाज़ का हुक्म

मस्अला:- बेहोश (बेभान-Unconcious) हो जाने से या वुजू या गुस्ल टूट जाने से नमाज़ फासिद हो जाती है।

#(बहारे शरीअत)
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नमाज़ में ऐसी दुआ करना कि जिसका सवाल बंदे से भी किया जा सकता है

मस्अला:- नमाज़ में ऐसी दुआ करना कि जिसका सवाल बंदे से भी किया जा सकता है, मुफसिदे-नमाज़ है।

मस्लन येह दुआ की कि- 'अल्लाहुम्मा-अत्इमनी' या'नी ए अल्लाह ! मुजे खाना खिला', या 'अल्लाहुम्मा-ज़व्विजनी' या'नी ए अल्लाह ! मेरा निकाह करा दे, तो नमाज़ फासिद हो जाएगी।

#(आलमगीरी; बहारे-शरीअत हिस्सा-3, सफ़ा-151)
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सज्दा करने की जगह पाँव रखने की जगह से ऊंची होने पर नमाज़ का हुक्म

मस्अला:- अगर सजदा की जगह पांव की जगह से चार गिरह से ज़यादा उंची हो तो सिरे से (प्रारम्भ-Origin) नमाज़ ही नहीं होगी और अगर चार (4) गिरह या कम (Less) बुलन्दी मुम्ताज़ (विशिष्ट-Eminent) हुई, तो नमाज़ कराहत से खाली नहीं।

या'नी पांव रखने की जगह से सजदा करने की जगह एक (1) बालिश्त (बेंत/Span) भर उंची हो, तो नमाज ही नहीं होगी।

#(दुर्रे मुख्तार; फतावा रिज़वीया जिल्द-3 सफ़ा-42/438)


नोट :-

◆एक गिरह = तीन (3) ऊंगल चौड़ाई (Wide)

नमाज़ में जुयें मारने का हुक्म

मस्अला:- पै-दर-पै (लगातार-Successively) तीन (3) बाल (Hair) उखेड़े या तीन जुयें (जू-Lice) मारी या एक ही 'जू' को तीन मरतबा मारा (प्रहार किया) तो नमाज़ फासिद हो जाएगी

और अगर 'पै-दर-पै' न हों, तो नमाज़ फासिद नहीं होगी, अलबत्ता मकरूह ज़रूर होगी।

#(आलमगीरी; गुन्या; बहारे-शरीअत)
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नमाज़ में सांप वगैरह को मारना

मस्अला:- हालते-नमाज़ में सांप (सर्प-Snake) या बिच्छू (Scorpion) को मारने से नमाज फासिद नहीं होती, जबकि मारने के लिये तीन (3) कदम (Step) चलना न पड़े या तीन ज़र्ब (प्रहार-Beeting) की हाजत न हो।

इस तरह हालते नमाज़ में सांप या बिच्छू मारने की इजाज़त है और नमाज भी फासिद न होगी और अगर मारने में तीन (3) कदम चलना पड़े या तीन (3) ज़र्ब की हाजत हो, तो नमाज़ फासिद हो जाएगी, मगर मारने की फिर भी इजाजत है, अगरचे नमाज़ फासिद हो जाए।

#(आलमगीरी; गुन्या; बहारे शरीअत हिस्सा-3 सफ़ा/156)
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नमाज़ के हालत में बदन का कोई हिस्सा खुजलाये तो क्या करना चाहिए

मस्अला:- अगर हालते नमाज़ में बदन के किसी मकाम पर खुजली आए, तो बेहतर येह है कि जब्त (संयम-Control) करे और अगर ज़ब्त न हो सके और उसके सबब (कारण) से नमाज में दिल परेशान हो, तो खुजा ले मगर एक रूक्न मस्लन कयाम, या कुउद या रूकूअ या सुज़ुद में तीन (3) मरतबा न खुजाए, सिर्फ दो (2) मरतबा तक खुजाने की इजाज़त है।

#(फतावा रिज़वीया जिल्द-3 सफ़ा-446)
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नमाज़ में बदन के किसी हिस्से को खुजलाना का हुक्म

मस्अला:- एक रूकन में तीन (३) मरतबा खुजाने (खुजलाना-itching) से नमाज फासिद हो जाएगी या'नी इस तरह खुजाया कि एक मरतबा खुजा कर हाथ हटा लिया, फिर दूसरी मरतबा खुजा कर हाथ हटा लिया, फिर तीसरी मरतबा खुजाया तो नमाज़ फासिद हो जाएगी

और अगर सिर्फ एक बार हाथ रखकर चन्द मरतबा हरकत दी, तो एक ही मरतबा खुजाना कहा जाएगा।

#(आलमगीरी; बहारे शरीअत हिस्सा-3 सफ़ा-156)
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नमाज़ में अमले-कलील करना


मस्अला:- अमले-कलील करने से नमाज़ फासिद न होगी।

अमले-कलील से मुराद येह है कि ऐसा कोई काम करना जो आमाले-नमाज़ से या नमाज़ की इस्लाह के लिये न हो और उस काम के करने वाले नमाजी को देखकर देखने वाले को गुमान गालिब न हो कि येह आदमी नमाज़ में नहीं, बल्कि शक व शुब्ह (आशंका) हो कि नमाज़ में है या नहीं? तो एसा काम अमले-कलील है।

#(दुर्रे मुख़्तार)

नोट:- बा'ज़ लोग हालते-नमाज़ में कौमा से सजदा में जाते वक्त दोनों हाथों से पाजामा उपर की तरफ खींचते हैं या का'दा में बैठते वक्त कुर्ता या कमीज (शट) का दामन सीधा करके गोद में बिछाते हैं।

इस हरकत (आचरण) से नमाज़ फासिद हो जाने का अंदेशा है, क्योंकि येह काम दोनों हाथों से किया

नमाज़ में पाजामा पहनना

मस्अला:- हालते-नमाज़ में कुर्ता या पाजामा पहना या उतारा, या तहेबन्द बांधा, तो नमाज़ फासिद हो जाएगी।
#(गुन्या शरहे मुन्या)
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नमाज़ में अमले-कसीर करना

मस्अला:- नमाज़ में अमले-कसीर करना मुफसिदे नमाज़ है।
अमले-कसीर से मुराद येह है कि ऐसा कोई काम करना जो आमाले-नमाज़ (नमाज के कामों) से न हो और न ही वोह अमल नमाज़ की इस्लाह के लिये हो।

अमले -कसीर की मुख़्तसर और जामे अ तारीफ (संक्षिप्त तथा सुस्पष्ट,Comprehensive व्याख्या) येह है कि ऐसा अमल करना कि उस काम को करने वाले नमाज़ी को दूर से देखकर देखने वाले को गालिब, गुमान हो कि येह शख्स नमाज़ में नहीं, तो वोह काम 'अमले कसीर' है।

#(दुर्रे मुख़्तार; बहारे शरीअत हिस्सा-3, सफ़ा-153)
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नमाज़ में ऐसे क़ुरान पढ़ना जिसके माना कुछ का कुछ हो जाए

मस्अला:- कुरआने मजीद को नमाज में पढ़ने में ऐसी गलती करना कि जिसकी वजह से फसादे-मा' ना (अर्थ का अनर्थ-Depravity of Meaning) हो तो नमाज़ फासिद हो जाएगी।
#(फतावा रिज़वीया जिल्द-3 सफ़ा-135)
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तकबीरे तहरीमा कहते वक़्त ख्याल रखें

मस्अला:- तकबीराते-इन्तेकाल में 'अल्लाहो-अकबर' के 'अलिफ' को दराज़ किया, या'नी 'आल्लाहो अकबर' या 'अल्लाहो आकबर' कहा,

या 'बे' के बाद 'अलिफ' बढ़ाया, या'नी 'अल्लाहो अकबार' कहा,

या 'अल्लाहो-अकबर' की 'रे' को 'दाल' पढ़ा, या'नी 'अल्लाहो अकबद' कहा, तो नमाज फासिद हो गई, और अगर 'तकबीरे तहरीमा' के वक्त ऐसी गलती हुई, तो नमाज़ शुरू ही न हुई।

#(दुर्रे मुख़्तार; बहारे शरीअत; फतावा रिज़वीया जिल्द-3 सफ़ा-121/136)
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नमाज़ में नापाक जगह पर सज्दा करना


मस्अला:- नापाक जगह पर बगैर हाइल (आड-intervene) सजदा किया, तो नमाज़ फासिद हो गई।

इसी तरह हाथ या घुटने सजदा में नापाक जगह पर रखे, तो भी नमाज़ फासिद हो गई।

#(दुर्रे मुख़्तार; रद्दुल मोहतार)
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नमाज़ में सीना को किब्ला शरीफ से हटाना

मस्अला:- सीना को किब्ला से फैरना मुफसिदे-नमाज़ है या'नी सीना किब्ला की खास जहत (दिशा) से पैंतालीस (४५) दर्जा (डिग्री) हट जाए।

#(दुर्रे मुख़्तार; बहारे शरीअत हिस्सा-3 सफ़ा-154; फतावा रिज़वीया जिल्द-3 सफ़ा-116)
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नमाज़ की हालत में अल्फ़ाज़/शब्द लिखना

मस्अला:- नमाज़ की हालत में तीन कल्मे (अलफाज़/शब्द-Words) इस तरह लिखे कि हुरूफ (अक्षर) जाहिर हों, तो नमाज फासिद हो जाएगी।

मस्लन रैत (बालू-Sand) या मिट्टी पर लिखे और अगर हुरूफ जाहिर न हों, तो नमाज फासिद नहीं होगी, मस्लन पानी पर या हवा में लिखा, तो अबस है और नमाज मकरूहे-तहरीमी होगी।

#(गुन्या शरहे मुन्या; बहारे-शरीअत हिस्सा-3 सफ़ा-155)
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