मस्अला:- तकबीराते-इन्तेकाल में 'अल्लाहो-अकबर' के 'अलिफ' को दराज़ किया, या'नी 'आल्लाहो अकबर' या 'अल्लाहो आकबर' कहा,
या 'बे' के बाद 'अलिफ' बढ़ाया, या'नी 'अल्लाहो अकबार' कहा,
या 'अल्लाहो-अकबर' की 'रे' को 'दाल' पढ़ा, या'नी 'अल्लाहो अकबद' कहा, तो नमाज फासिद हो गई, और अगर 'तकबीरे तहरीमा' के वक्त ऐसी गलती हुई, तो नमाज़ शुरू ही न हुई।
#(दुर्रे मुख़्तार; बहारे शरीअत; फतावा रिज़वीया जिल्द-3 सफ़ा-121/136)
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🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ शाकिर अली बरेलवी रज़वी व अह्-लिया मोहतरमा
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https://MjrMsg.blogspot.com/p/namaz.html
या 'बे' के बाद 'अलिफ' बढ़ाया, या'नी 'अल्लाहो अकबार' कहा,
या 'अल्लाहो-अकबर' की 'रे' को 'दाल' पढ़ा, या'नी 'अल्लाहो अकबद' कहा, तो नमाज फासिद हो गई, और अगर 'तकबीरे तहरीमा' के वक्त ऐसी गलती हुई, तो नमाज़ शुरू ही न हुई।
#(दुर्रे मुख़्तार; बहारे शरीअत; फतावा रिज़वीया जिल्द-3 सफ़ा-121/136)
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