मस्अला:- अमले-कलील करने से नमाज़ फासिद न होगी।
अमले-कलील से मुराद येह है कि ऐसा कोई काम करना जो आमाले-नमाज़ से या नमाज़ की इस्लाह के लिये न हो और उस काम के करने वाले नमाजी को देखकर देखने वाले को गुमान गालिब न हो कि येह आदमी नमाज़ में नहीं, बल्कि शक व शुब्ह (आशंका) हो कि नमाज़ में है या नहीं? तो एसा काम अमले-कलील है।
#(दुर्रे मुख़्तार)
नोट:- बा'ज़ लोग हालते-नमाज़ में कौमा से सजदा में जाते वक्त दोनों हाथों से पाजामा उपर की तरफ खींचते हैं या का'दा में बैठते वक्त कुर्ता या कमीज (शट) का दामन सीधा करके गोद में बिछाते हैं।
इस हरकत (आचरण) से नमाज़ फासिद हो जाने का अंदेशा है, क्योंकि येह काम दोनों हाथों से किया
जाता है और इसका अमले-कसीर में शुमार होने का इम्कान (Possibility) है। लिहाजा इस चेष्टा से बचना लाजमी और ज़रूरी है क्योंकि इससे नमाज़ मकरूहे तहरीमी तो ज़रूर होती है और जो नमाज़ मकरूहे-तहरीमी हो उस नमाज़ को दोहराना लाज़िम है।
#(माखूज़-Borrowed) अज़: फतावा रिज़वीया जिल्द-3 सफ़ा-416)
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🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ शाकिर अली बरेलवी रज़वी व अह्-लिया मोहतरमा
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