〽️हज़रत
मूसा अलेहिस्सलाम के पास जब मलक-उल-मौत हाज़िर हुआ तो हज़रत मूसा
अलेहिस्सलाम ने मलक-उल-मौत को एक ऐसा तमांचा मारा कि मलक-उल-मौत की आँख
निकल आई।
मलक-उल-मौत फ़ौरन वापस पलटा और अल्लाह के हुज़ूर अर्ज करने लगा- इलाही आज तो तूने मुझे एक ऐसे अपने बन्दे की तरफ़ भेजा है जो मरना ही नहीं चाहता ये देख की उसने मुझे तमाचा मार कर मेरी आँख निकाल दी है।
ख़ुदा ने मलक-उल-मौत की वो आँख दुरस्त फरमा दी और फ़रमाया मेरे बन्दे मूसा के पास फिर जाओ और बैल साथ लेते जाओ और मूसा से कहना के अगर तुम चलना चाहते हो तो उस बैल की पुश्त पर हाथ फेरो जितने बाल तुम्हारे हाथ के नीचे आ जाएँगे उतने ही साल और जिन्दा रह लेना।
चुनाँचे मलक-उल-मौत बैल लेकर फिर हाज़िर हुआ और अर्ज़ करने लगा- हुज़ूर उसकी पुश्त पर हाथ फेरिये, जितने बाल आपके हाथ के नीचे आजाएंगे इतने साल आप और ज़िन्दा रह लें। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया और उसके बाद फिर तुम आ जाओगे? अर्ज़ किया- हाँ! तो फ़रमाया- फिर अभी ले चलो।
#(मिश्कात शरीफ़, सफ़ा-499)
🌹सबक़ ~
=========
अल्लाह के नबियों की ये शान है की चाहें तो मलक-उल-मौत को भी तमाचा मार दें और उसकी आँख निकाल दें और नबी वो होता है जो मरना चाहे तो मलक-उल-मौत क़रीब आता है और अगर ना मरना चाहे तो मलक-उल-मौत वापस चला जाता है। हालाँकी अवाम की मौत उस शैर के मिसदाक़ होती है की-
लाई हयात आए क़ज़ा ले चली चले,
अपनी खुशी ना आए ना अपनी खुशी चले।
मलक-उल-मौत फ़ौरन वापस पलटा और अल्लाह के हुज़ूर अर्ज करने लगा- इलाही आज तो तूने मुझे एक ऐसे अपने बन्दे की तरफ़ भेजा है जो मरना ही नहीं चाहता ये देख की उसने मुझे तमाचा मार कर मेरी आँख निकाल दी है।
ख़ुदा ने मलक-उल-मौत की वो आँख दुरस्त फरमा दी और फ़रमाया मेरे बन्दे मूसा के पास फिर जाओ और बैल साथ लेते जाओ और मूसा से कहना के अगर तुम चलना चाहते हो तो उस बैल की पुश्त पर हाथ फेरो जितने बाल तुम्हारे हाथ के नीचे आ जाएँगे उतने ही साल और जिन्दा रह लेना।
चुनाँचे मलक-उल-मौत बैल लेकर फिर हाज़िर हुआ और अर्ज़ करने लगा- हुज़ूर उसकी पुश्त पर हाथ फेरिये, जितने बाल आपके हाथ के नीचे आजाएंगे इतने साल आप और ज़िन्दा रह लें। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया और उसके बाद फिर तुम आ जाओगे? अर्ज़ किया- हाँ! तो फ़रमाया- फिर अभी ले चलो।
#(मिश्कात शरीफ़, सफ़ा-499)
🌹सबक़ ~
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अल्लाह के नबियों की ये शान है की चाहें तो मलक-उल-मौत को भी तमाचा मार दें और उसकी आँख निकाल दें और नबी वो होता है जो मरना चाहे तो मलक-उल-मौत क़रीब आता है और अगर ना मरना चाहे तो मलक-उल-मौत वापस चला जाता है। हालाँकी अवाम की मौत उस शैर के मिसदाक़ होती है की-
लाई हयात आए क़ज़ा ले चली चले,
अपनी खुशी ना आए ना अपनी खुशी चले।
📕»» सच्ची हिकायात ⟨हिस्सा अव्वल⟩, पेज: 85-86, हिकायत नंबर- 71
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🖌पोस्ट क्रेडिट - शाकिर अली बरेलवी रज़वी व अह्-लिया मोहतरमा
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https://MjrMsg.blogspot.com/p/hikaayaat.html
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