〽️हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के असा का साँप बन जाना फ़िरऔन के लिए बड़ी मुश्किल का बाइस हुआ और वो बड़ा घबरा गया।
फ़िरऔन के दरबारी फ़िरऔन से कहने लगे के मूसा कहीं से जादू सीख आया है। अब तुम भी अपनी सारी ममलिकत से जादूगरों को जमा करो और उनको मूसा के मुक़ाबले में लाओ।
चुनाँचे फ़िरऔन ने अपने आदमी सारी ममलिकत में भेज दिए और वो हर मुक़ाम से जादूगरों को जमा करके लिए आए।
जब हज़ारों की तादाद में जादूगर जमा हो गए तो फ़िरऔन ने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को उन जादूगरों से मुक़ाबला करने का चैलेंज दे दिया। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने वो चैलेंज क़बूल कर लिया। फ़िरऔन ने पूछा- दिन कौन सा होगा? आपने फ़रमाया- तुम्हारे मेले का दिन मुक़र्रर करता हूँ। ये फ़िरऔनियों का एक ऐसा दिन था, जिस दिन वो ज़ीनतें कर-कर के दूर-दूर से जमा होते थे। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने ये दिन इस लिए मुक़र्रर फरमाया कि ये रोज़ उनकी ग़ायत शौकत का दिन था। उस दिन को मुक़र्रर करना सब लोगों पर हक़ वाज़ेह कर देने के लिए था।
चुनाँचे जब वो दिन आया तो हज़ारों जादूगर मुक़ामे मुक़र्रर पर पहुँच गए और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम भी तशरीफ़ ले आए। हज़ारहा के इस इजतमे में उन जादूगरों ने अपनी अपनी रस्सियाँ और लाठियाँ डाल दीं। जब डालीं तो वो सब की सब साँप बन गईं और दौड़ने लगीं। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने देखा के ज़मीन साँपों से भर गई है और मीलों के मैदान में साँप ही साँप दौड़ रहे हैं। ये हैबतनाक मंज़र देख कर लोग हैरान रह गए। इतने में हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने भी अपना असा डाल दिया तो वो एक अज़ीमुश्शान अज़्दहा बन गया और जादूगरों की तमाम सहरकारियों को एक-एक करके निगलने लगा। तमाम रस्सियाँ और लाठियाँ जो उन्होंने जमा की थीं और जो साँप बनकर फिर रही थीं और जो तीन सौ ऊंट का बौझ थीं, सबका ख़ात्मा कर दिया और जब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने उसे दस्ते मुबारक में लिया तो पहले की तरह वो फिर असा बन गया और उसका हजम और वज़न अपने हाल पर रहा। ये देखकर जादूगरों ने पहचान लिया कि असाऐ मूसा सहर नहीं है और क़ुद्रत बशरी ऐसा करिश्मा नहीं दिखा सकती, ज़रूर ये अम्र आसमानी है। ये बात समझ कर वो सब के सब आमन्ना बि-रब्बिल आलमीन कहते हुए सज्दे में गिर गए और ईमान ले आए।
#(क़ुरआन करीम, पारा-9, रूकू-4; ख़ज़ायन-उल-ईर्फ़ान सफ़ा-237)
🌹सबक़ ~
=========
सारी ख़ुदाई इक तरफ़, फज़्ल इलाही इक तरफ़ के मिसदाक़ सारी दुनिया मुक़ाबले को आ जाए। मगर फ़तह व नुसरत उसी तरफ़ होगी जिस तरफ़ ताईद हक़ होगी और बातिल को कभी फ़रोग़ ना होगा।
📕»» सच्ची हिकायात ⟨हिस्सा अव्वल⟩, पेज: 89-90, हिकायत नंबर- 76
फ़िरऔन के दरबारी फ़िरऔन से कहने लगे के मूसा कहीं से जादू सीख आया है। अब तुम भी अपनी सारी ममलिकत से जादूगरों को जमा करो और उनको मूसा के मुक़ाबले में लाओ।
चुनाँचे फ़िरऔन ने अपने आदमी सारी ममलिकत में भेज दिए और वो हर मुक़ाम से जादूगरों को जमा करके लिए आए।
जब हज़ारों की तादाद में जादूगर जमा हो गए तो फ़िरऔन ने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को उन जादूगरों से मुक़ाबला करने का चैलेंज दे दिया। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने वो चैलेंज क़बूल कर लिया। फ़िरऔन ने पूछा- दिन कौन सा होगा? आपने फ़रमाया- तुम्हारे मेले का दिन मुक़र्रर करता हूँ। ये फ़िरऔनियों का एक ऐसा दिन था, जिस दिन वो ज़ीनतें कर-कर के दूर-दूर से जमा होते थे। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने ये दिन इस लिए मुक़र्रर फरमाया कि ये रोज़ उनकी ग़ायत शौकत का दिन था। उस दिन को मुक़र्रर करना सब लोगों पर हक़ वाज़ेह कर देने के लिए था।
चुनाँचे जब वो दिन आया तो हज़ारों जादूगर मुक़ामे मुक़र्रर पर पहुँच गए और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम भी तशरीफ़ ले आए। हज़ारहा के इस इजतमे में उन जादूगरों ने अपनी अपनी रस्सियाँ और लाठियाँ डाल दीं। जब डालीं तो वो सब की सब साँप बन गईं और दौड़ने लगीं। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने देखा के ज़मीन साँपों से भर गई है और मीलों के मैदान में साँप ही साँप दौड़ रहे हैं। ये हैबतनाक मंज़र देख कर लोग हैरान रह गए। इतने में हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने भी अपना असा डाल दिया तो वो एक अज़ीमुश्शान अज़्दहा बन गया और जादूगरों की तमाम सहरकारियों को एक-एक करके निगलने लगा। तमाम रस्सियाँ और लाठियाँ जो उन्होंने जमा की थीं और जो साँप बनकर फिर रही थीं और जो तीन सौ ऊंट का बौझ थीं, सबका ख़ात्मा कर दिया और जब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने उसे दस्ते मुबारक में लिया तो पहले की तरह वो फिर असा बन गया और उसका हजम और वज़न अपने हाल पर रहा। ये देखकर जादूगरों ने पहचान लिया कि असाऐ मूसा सहर नहीं है और क़ुद्रत बशरी ऐसा करिश्मा नहीं दिखा सकती, ज़रूर ये अम्र आसमानी है। ये बात समझ कर वो सब के सब आमन्ना बि-रब्बिल आलमीन कहते हुए सज्दे में गिर गए और ईमान ले आए।
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सारी ख़ुदाई इक तरफ़, फज़्ल इलाही इक तरफ़ के मिसदाक़ सारी दुनिया मुक़ाबले को आ जाए। मगर फ़तह व नुसरत उसी तरफ़ होगी जिस तरफ़ ताईद हक़ होगी और बातिल को कभी फ़रोग़ ना होगा।
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🖌पोस्ट क्रेडिट - शाकिर अली बरेलवी रज़वी व अह्-लिया मोहतरमा
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