☆ रमजान मे गरिबो का ख्याल करे ☆

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♥️ कौल ए मुबारक : रमजान मे गरिबों का ख्याल करें,

"जो सखावत (दरियादिली) करेगा ओ सरदार होगा और जो कंजुसी करेगा ओ जलीलो ख्वार होगा।"

»» हजरत इमाम हुसैन (रजीअल्लाहु अन्हु)


☆ Ramzan Me Gareebo Ka Khayal Kare ☆

Qaul-e-Mubarak: Ramzan Me Gareebo'n Ka Khayal Kare'n.

"Jo Sakhawat (Dariyadili) Karega

☆ माहे रमजान मे चार चिजों की कसरत किया करो ☆

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♥️ हदीस : हुजुर (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) ने फरमाया--

"माहे रमजान मे चार चिजो की कसरत करो, इनमे दो चिजें ऐसी है जिनके जरिए तुम अपने रब को राजी कर सकते हो, और दो चिजें ऐसी है जिनके बेगैर तुम्हारे लिए कोई चारह नही।

वह दो चिजे जिनके जरिए तुम अपने रब को राजी कर सकते हो, ओ ये है कलमाये तैय्याबा-- ला इलाह इलल्लाहु मुहम्मदुर रसुलल्लाह का विर्द करना और अल्लाह तआला से मग्फिरत तलब करना।

अब रही वह दो चिजें जिनके बेगैर तुम्हारे लिए कोई चारह नही, वह यह है, तुम अल्लाह से जन्नत का सवाल

☆ अल्लाह ने रमजान के रोजे को फर्ज किया है ☆

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♥️ मफ़हुम-ए-हदीस :  हुजुर (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) फरमाते हैं--

बेशक अल्लाह तआला ने तुम पर रमजान के रोजो को फर्ज किया है

और मैनें तुम्हारे लिए इसकी रात की इबादतों को मसनुन किया,

बस जो कोई इमान के साथ और तलबे सवाब की नियत से इसके रोजे रखेगा

और इसकी इबादत को अंजाम देगा तो वह अपने गुनाहो से उस दिन की तरह पाक हो जाएगा जिस दिन उसकी

☆ एक दिन के रोजे का सवाब ☆

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♥️ हदीस : अबु सइद खुदरी (रजी अल्लाहु अन्हु) ब्यान करते हैं की,
रसुलल्लाह (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) ने फरमाया--

जो शख्स एक दिन भी अल्लाह तआला की राह में रोजा रखेगा,

अल्लाह तआला जहन्नम की आग को उसके चेहरे से सत्तर साल (70 साल) की मुसाफत तक दुर रखेगा।

📕»» साहीह मुस्लिम, किअबुस सबीलिल्लाह, बाब-31, जिल्द-1, सफा-808, हदीस-2704

☆ बगैर खाये रोजे से रोजे मिलाकर न रखे ☆

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♥️ हदीस : अबु हुरैरा (रजीअल्लाहु अन्हु) से मरवी है की--
रसुलल्लाह (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) ने --
बगैर कुछ खाये पिये रोजे से रोजे मिलाकर रखने से मना फरमाया,

✴तो एक सहाबा ने अर्ज किया की -- "या रसुलल्लाह (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) ! आप तो इसी तरह रोजे रखते हैं।"

✴तो आप (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) ने फरमाया--
"तुम मे मेरे जैसा कौन है?? मै तो इस हाल मे रात गुजारता हुं की मेरा रब मुझे खिलाता पिलाता है।"

📕»» बुखारी शरिफ, जिल्द-1, सफा-263, मुस्लिम, जिल्द-1, सफा-351

🔹एक और रिवायत मे है--

♥️ हदीस : नबी ए करिम (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) ने फरमाया--

☆ रमजान में आसमान के दरवाजे खोल दिये जाते हैं ☆

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♥️ हदीस :  हजरत अबु हुरैरा (रजीअल्लाहु अन्हु) से रिवायत है की

हुजुर ए पाक (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) ने फरमाया--

जब रमजान आता है, 'आसमान के दरवाजे खोल दिये जाते हैं'
एक रिवायत मे है की 'जन्नत के दरवाजे खोल दिये जाते हैं',
एक रिवायत मे है की 'रहमत के दरवाजे खोल दिये जाते हैं'।

☆ ईमान और सवाब के लिए रमजान के रोजे ☆

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♥️ हदीस : हजरत अबु हुरैरा (रजीअल्लाहु अन्हु) से रिवायत है की,

रसुलल्लाह (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) ने फरमाया--

जो ईमान की वजह से और सवाब के लिए रमजान का रोजा रखेगा उसके गुनाह बख्श दिया जाएगा,

और जो ईमान और सवाब की नियत से रमजान की रातों के क्याम करेगा (नवाफिल पढ़ेगा) उसके अगले गुनाह मुआफ कर दिये जाएगें।

📕»» बुखारी, मुस्लिम शरिफ

☆ रोजे में भी बेहुदा बातों से बचा जाए ☆

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♥️ हक बात :  सिर्फ खाने-पिने से बाज रहने का नाम रोजा नही बल्के रोजा तो ये है की बेहुदा बातों से बचा जाए।

📕»» हाकीम


Rozo Me Bhi Behuda Baato Se Bacha Jaye

♥️ Haq Baat :  Sirf Khane-Peene Se Baaz Rahne Ka Naam Roza Nahi Balki Roza To Ye Hai Ki Behuda Baato Se Bacha Jaye.

📕»» Haakim

☆ रमजान बरकत का महीना है ☆

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♥️ हदीस : अबु हुरैरा (रजीअल्लाहु अन्हु) से रिवायत है की, नबी ए करिम (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) ने फरमाया--

रमजान आया! ये बरकत का महीना है,

अल्लाह तआला ने इसके रोजे तुम पर फर्ज किये,

इसमे आसमान के दरवाजे खोल दिये जाते हैं,

और दोजख के दरवाजे बन्द कर दिये जाते हैं,

और शर्कश शैतानों के तौके डाल दिये जाते हैं।

☆ रमजान अल्लाह तआला की रहमतों का खजाना ☆

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रमजान ऊल मुबारक का महीना अल्लाह तआला की रहमतों का खजाना है। जितनी भी असमानी किताबें नाजील हुई सब की सब रमजान ऊल मुबारक में नजील हुई

•तौरात, •जबुर, •इंजील, •कुरआन-ए-करिम, या जो सहीफे नाजील हुए।

इसलिए यह महीना अल्लाह तआला की खास रहमतों का महीना है।

✴उसकी रहमतों की इन्तेहा देखीए की नबी-ए-करिम (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) जो नबी-ए-रहमत हैं ओ भी इस महीने का आने का इन्तेजार फरमाते थें।

♥️ हदीस : इसलिए एक दुआ आप (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) ने इरशाद फरमाया-
"अल्लाह हमे रज्जब और शबान मे बरकत अता फरमा दे और खैरीयत से हमे रमजान ऊल मुबारक तक पहुंचा।"

📕»» सुकुन-ए-खाना, पेज-227/28

✴अल्लाह के रसुल (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) जिस महीने तक पहुंचे की तमन्ना फरमाते हो उस महीने की

☪💰 मसाइले ज़क़ात 💰☪

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▫️ जिसके पास 7.5 तोला सोना या 52.5 तोला चांदी या इसके बराबर की रक़म पर साल गुजर गया तो ज़कात फर्ज़ हो गई।

📕»» फतावा आलमगीरी, जिल्द 1, सफह 168

मसलन आज चांदी 39950 रू किलो है यानि 52.5 तोला चांदी 25168 रू की हुई तो अगर आज यानि 1 जून 2017 को कोई इतने रूपये का मालिक है और अगले साल 31 मई 2018 को फिर उसके पास साहिबे निसाब की जो मिल्क बनती है उतनी रकम पायी जायेगी तो उस पर ज़कात फर्ज़ हो गयी अगर चे वो पूरे साल फकीर रहा हो।


▪️ औरतों के पास जो ज़ेवर होते हैं उनकी मालिक औरत खुद है तो अगर सोना चांदी मिलाकर 52.5 तोला चांदी की कीमत बनती है तो औरत पर ज़कात फर्ज़ है शौहर पर उसकी ज़कात नहीं शौहर चाहे तो दे और चाहे ना दे उस पर कुछ इलज़ाम नहीं, अगर शौहर अपनी बीवी के ज़ेवर की ज़कात नहीं देता तो औरत जितनी रकम ज़कात की बनती है उतने का ज़ेवर बेचकर अदा करे।

📕»» बहारे शरीअत, हिस्सा 5, सफह 62
📕»» क्या आप जानते हैं, सफह 391

*ज़कात 2.5% यानि 100 रुपए में 2.5 रुपए है


▫️ बाप अपनी बालिग़ औलाद की तरफ से या शौहर बीवी की तरफ से ज़कात या सदक़ये फित्र देना चाहे तो बगैर

☪💰 हिकायते ज़क़ात 💰☪

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▫️ हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम फरमाते हैं कि मुसलमान को जो भी माल का नुक्सान होता है वो ज़कात ना देने के सबब से होता है।

📕»» बहारे शरीयत, हिस्सा 5, सफह 7

▪️ शैतान हर तरह से इंसान को फरेब देने में लगा रहता है मगर जब कोई बंदा उसके फरेब में नहीं आता तो उसके माल से लिपट जाता है और उसको सदक़ा व खैरात करने से रोक देता है।

📕»» तिलबीसे इब्लीस, सफह 455

▫️ ताबईन रज़िअल्लाहु तआला अन्हुम की एक जमात किसी फौत शुदा के घर उसकी ताज़ियत को गई वहां मरने वाले का भाई आहो बका व चीख पुकार कर रहा था, इस पर तमाम हज़रात ने उसे सब्र करने की तालीम दी इस पर वो बोला कि मैं कैसे सब्र करूं जबकि मैं खुद अपने भाई पर अज़ाब होते देखकर आ रहा हूं।

वाक़िया कुछ युं है कि जब सब उसे दफ्न करके चले गए तो मैं वहीं बैठा रहा अचानक अपने भाई के चिल्लाने की आवाज सुनी वो चिल्ला रहा था कि सब मुझे छोड़कर चले गए मैं यहां अज़ाब में हूं मेरे रोज़े मेरी नमाज़ें सब कहां गई, इस पर मुझसे बर्दाश्त ना हुआ मैंने कब्र खोदा तो देखता क्या हूं कि उसकी क़ब्र में आग भड़क रही है और उसके गले में आग का तौक़ पड़ा है मैंने सोचा कि वो तौक़ निकाल दूं तो देखो कि खुद मेरा हाथ जलकर सियाह हो गया अब बताइये मैं कैसे सब्र करूं, जब उससे पूछा गया कि तुम्हारे भाई पर ये अज़ाब क्यों आया तो वो कहने

☪💰 सदक़ये फित्र 💰☪

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▫️ सदक़ये फित्र मालिके निसाब मर्द औरत बालिग नाबालिग आकिल पागल हर मुसलमान पर वाजिब है 2 kg 47 ग्राम गेहूं की कीमत है ।

📕»» अनवारुल हदीस, सफह 257

▪️ मालिके निसाब मर्द पर अपना और अपनी नाबालिग औलाद की तरफ से सदक़ये फित्र देना वाजिब है बाप ना हो तो दादा दे मगर मां पर वाजिब नहीं।

📕»» बहारे शरीअत, हिस्सा 5, सफह 67-68

▫️ रसूलल्लाह सल्लललाहो तआला अलैही वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि बन्दे का रोज़ा आसमानो ज़मीन के बीच रुका रहता है जब तक कि सदक़ये फित्र अदा ना कर दे।

📕»» बहारे शरीअत, हिस्सा 5, सफह 66

▪️ रसूलल्लाह सल्लललाहो तआला अलैही वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि सदक़ये फित्र इस लिए मुक़र्रर किया गया ताकि तमाम बुरी और बेहूदा बातों से रोज़ों की तहारत हो जाये।

📕»» अनवारुल हदीस, सफह 257

▫️ रसूलल्लाह सल्लललाहो तआला अलैही वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि सदक़ये फित्र देने वाले को उसके हर दाने के बदले जन्नत में 70000 महल मिलेंगे।

📕»» क्या आप जानते हैं, सफह 384

▪️ रसूलल्लाह सल्लललाहो तआला अलैही वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि तालिबे इल्म पर 1 दरहम खर्च करना

☪ एतेक़ाफ ☪

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▫️ मस्जिद में रब की रज़ा के लिए ठहरना एतेक़ाफ कहलाता है इसकी 3 किस्में हैं👇

1). वाजिब - किसी ने मन्नत मानी कि मेरा ये काम होगा तो मैं 1,2 या 3 दिन का एतेक़ाफ करूंगा तो उतने दिन का एतेक़ाफ उस पर वाजिब होगा

2). सुन्नते मुअक़्किदह - रमज़ान में आखिर 10 रोज़ का यानि बीसवें रमज़ान को मग़रिब के वक़्त बा नियत एतेक़ाफ मस्जिद में मौजूद हो,ये एतेक़ाफ सुन्नते मुअक़्किदह अलल किफाया है यानि अगर पूरे मुहल्ले से 1 आदमी एतेक़ाफ में बैठ जाये तो सबके लिए काफी है पर 1 भी नहीं बैठा तो सब गुनाहगार होंगे

3). मुसतहब - जब भी मस्जिद में दाखिल हों तो पढ़ लें 'नवैतो सुन्नतल एतेक़ाफ' तो जब तक मस्जिद में रहेंगे एतेक़ाफ का सवाब पायेंगे

📕»» बहारे शरीअत, हिस्सा 5, सफह 147-148

▪️ इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का क़ौल है कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैही वसल्लम फरमाते हैं जिसने रमज़ान में 10 दिनों का एतेक़ाफ किया तो उसे 2 हज व 2 उमरे का सवाब मिलेगा।

📕»» बहारे शरीअत, हिस्सा 5, सफह 146

▫️ मस्जिद में खाना पीना सिवाये मोअतक़िफ के दूसरों को नाजायज़ है तो जो लोग मस्जिद में अफ्तार करते हैं उन्हें चाहिए कि एतेक़ाफ की नीयत करके बैठे वरना गुनाहगार होंगे।

📕»» अलमलफूज़, हिस्सा 2, सफह 108

▪️ मोअतक़िफ ना तो किसी मरीज़ की इयादत को जा सकता है ना जनाज़े में शामिल हो सकता है ना किसी औरत को छुए और ना मस्जिद से बाहर निकले।

📕»» अबु दाऊद, जिल्द 2, सफह 492

▫️ अगर मोअतक़िफ मस्जिद से बाहर निकला तो एतेक़ाफ टूट जायेगा जिसकी क़ज़ा वाजिब

☪ मसाइले रोज़ा ☪

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रोज़े के 3 दर्जे हैं~

1). अवाम का रोज़ा - सुबह सादिक़ से लेकर ग़ुरूब आफताब तक खाने पीने और जिमआ से परहेज़ करे, औरत हैज़ व निफास से पाक हो।

2). ख्वास का रोज़ा - इन सबके अलावा आंख, कान, नाक, ज़बान और हाथ पांव व तमाम आज़ा का गुनाहों से बाज़ रखना।

3). ख्वासुल ख्वास का रोज़ा - पूरा रमज़ानुल मुबारक सिर्फ अल्लाह की ही जानिब मुतवज्जह रहना।

📕»» बहारे शरीअत, हिस्सा 5, सफह 98

▫️ बच्चा जब 10 साल का हो जाये तो उसे नमाज़ पढ़वायें और रोज़ा रखवायें अगर नमाज़ तोड़ दे तो फिर से पढ़वायें पर रोज़ा तोड़ दे तो क़ज़ा नहीं।

📕»» बहारे शरीअत, हिस्सा 5, सफह 119

▪️ हदीस में है 'रात आई रोज़ा पूरा हो गया' कि जिस तरह नियत से रोज़ा शुरू होगा वैसे ही नियत से खत्म भी हो जायेगा।

📕»» अलमलफूज़, हिस्सा 4, सफह 56

▫️ सहरी खाना भी नियत है हां सहरी खाते वक़्त ये सोचे कि रोज़ा ना रखूंगा तो नियत नहीं।

📕»» बहारे शरीअत, हिस्सा 5, सफह 101

▪️ किसी ने ये कहा कि रोज़ा वो रखे जिसके पास खाने को नहीं है या जब खुदा ने खाने को दिया है तो भूखे क्यों मरे ऐसा कहने वाला काफिर है ।

📕»» अनवारुल हदीस, सफह 91

▫️ शरई उज़्र की वजह से रोज़ा ना रखने की इजाज़त है बाद रमज़ान रोज़ों की कज़ा करे, ये शरई उज़्र हैं 👇

1. बीमारी
2. सफर
3. औरत को हमल या दूध पिलाने की मुद्दत हो
4. सख्त बुढ़ापा
5. बेहद कमज़ोरी
6. जान जाने का डर

📕»» दुर्रे मुख्तार, जिल्द 2, सफह 115
📕»» बहारे शरियत, हिस्सा 5, सफह 130

इनमे से शैखे फानी यानि बहुत ज्यादा बूढ़ा और ऐसा बीमार जिसके ठीक होने की उम्मीद ना हो वो लोग अगर

☪ तरावीह ☪

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वैसे तो बहुत सारे लोगों की अब तक खत्मे क़ुरान बनाम तरावीह खत्म भी हो चुकी होगी और उन्हें मस्जिद ना जाने की आज़ादी भी मिल चुकी होगी मगर दर हक़ीक़त तरावीह रमजान का चांद देखकर शुरू करनी होती है और ईद का चांद देखकर खत्म, तरावीह मर्दो औरत दोनों के लिए सुन्नते मुअक़्क़िदा है और चारों इमामों के नज़दीक 20 रकात है, बुखारी शरीफ की जिस 11 रकात की रिवायत को ग़ैर मुक़ल्लिदीन 8 रकात तरावीह के लिए पेश करता है वो दर असल तरावीह नहीं बल्कि 8 रकात तहज्जुद और 3 रकात वित्र है और हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम से ये 11 रकातें पूरी ज़िन्दगी साबित है क्योंकि आप पर तहज्जुद भी फर्ज़ थी, जैसा कि उम्मुल मोमेनीन सय्यदना आइशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा फरमाती हैं कि

👉रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम रमज़ान और ग़ैर रमज़ान में 11 रकात से ज़्यादा अदा नहीं फरमाते थे।

📕»» बुखारी, जिल्द 1, सफह 154
📕»» मुस्लिम, जिल्द 1, सफह 254

इस हदीसे पाक से साफ ज़ाहिर होता है कि अगर ये 8 रकात तरावीह की पढ़ी जा रही थी तो ग़ैर रमज़ान में तरावीह तो है नहीं फिर क्यों हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ग़ैर रमज़ान में भी 8 रकात तरावीह पढ़ रहे हैं तो मानना पड़ेगा कि ये 8 रकात तरावीह नहीं बल्कि तहज्जुद की 8 रकाते हैं और 3 रकात वित्र, फुक़्हा फरमाते हैं कि वित्र वाजिबुल लैल यानि रात की नमाज़ है तो अगर किसी को रात में उठने का यक़ीन हो तो वित्र रात में पढ़ने के लिए मुअख्खर कर दे, तो जब हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम पर तहज्जुद फर्ज़ थी और आपको उसे सोकर उठकर पढ़ना ही था तो इसलिए आप हमेशा ईशा के बाद और रमज़ान में तरावीह के बाद वित्र छोड़ देते थे और जब रात को तहज्जुद पढ़ लेते तब वित्र पढ़ते यही राजेह क़ौल है।

▫️ कसीर सहाबये किराम जिनमे हज़रते उमर फ़ारूक़े आज़म, हज़रते मौला अली, हज़रते इमाम हसन, हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास, हज़रते कअब, हज़रते यज़ीद बिन रूमान, हज़रत सायब बिन यज़ीद रिज़वानुल्लाहि तआला अलैहिम अजमईन से यही मरवी है कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम व तमाम सहाबा 20

☪ फज़ाइले रमज़ान शरीफ ☪

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तमाम सुन्नी मुसलमानों को माहे रमज़ान शरीफ बहुत बहुत मुबारक हो

हम पर खुदाये तआला का इनआम आ गया,
रमज़ान आ गया अरे रमज़ान आ गया ।

जन्नत का दर खुला और जहन्नम हुई है बंद,
हो जाओ खुश खुदा का ये फरमान आ गया।

हमको की नेकियों में जो कर देगा तर बतर,
ऐसा जहां में अबरये रहमान आ गया।

नफ्लें बराबर फर्ज़ के 70 गुना है फर्ज़,
बरकत खुदा की लेके माह ज़ीशान आ गया।

नेमत खिलाये खूब जो हमको बदल बदल,
खुद चलके पास अपने वो मेहमान आ गया।

महशर की कड़ी धूप में मोमिन के वास्ते,
करने को साया सर पे सायेबान आ गया।

नज़रें उठाओ जिस तरफ रहमत चहार सु
ज़ेब रब का टूटके फैज़ान आ गया।


1). इस माह में जहन्नुम के दरवाज़े बन्द हो जाते हैं, जन्नत के दरवाज़े खुल जाते हैं और सरकश शयातीन क़ैद कर लिये जाते हैं।

📕»» अनवारुल हदीस, सफह 271

2). माहे रमज़ान में हर पल फरिश्ते उम्मते मुहम्मदिया के लिए अस्तग़फार करते हैं।

📕»» बहारे शरीयत, हिस्सा 5, सफह 97

3). मेरे आक़ा सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि अगर लोगो को मालूम हो जाये कि रमज़ान

✴️ बिदअत का बयान ✴️

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सवाल:- बिदअत किसे कहते हैं और उसकी कितनी किस्में हैं❓

जवाब:- इसतिलाहे शरा (इस्लामी बूली) में बिदअत ऐसी चीज़ के ईजाद करने को कहते हैं जो हुजर अलैहिस्सलाम के जाहिरी जमाना में न हो ख्वाह वह चीज़ दीनी हो या दुनियावी ~(अशिअतुल्लमआत जिल्द अव्वल सफा 125)

और बिदअत की तीन किस्में हैं - बिदअते हसना, बिदअते सय्येआ, बिदअते मुबाहा।

बिदअते हसना वह बिदअत है जो कुरान व हदीस के वसूल व क़वाइद के मुताबिक हो और उन्हीं पर कियास किया गया हो उस की दो किस्में हैं। अव्वल बिदअतेवाजिबा जैसे कुरान व हदीस समझने के लिए इल्मे नह्-व का सीखना और गुमराह फ़िरके मसलन खारजी, राफ़जी, कादियानी और वहाबी वगैरा पर रद के लिए दलाइल कायम करना।
दोम बिदअते मुसतहब्बा जैसे मदरसों की तामीर और हर वह नेक काम जिसका रवाज इबतिदाए जमाना में नहीं था जैसे अज़ान के बाद सलात पुकारना, दुरै मुख्तार बाबुल अज़ान में हैं कि अज़ान के बाद अस्सलातु वस्सल्लमु अलैक या रसूलल्लाह पुकारना, माहे रबीउल आखिर सन् 781 हिजरी में जारी हुआ और यह बिदअते हसना है।


सवाल:- बिदअते सय्येआ किसे कहते हैं और उसकी कितनी किस्में हैं ❓

जवाब:- बिदअते सय्येआ वह बिदअत है जो कुरान व हदीस के उसूल व क़वाइद के मुखालिफ़ हो। ~(अशिअतुल्लम आतजिल्द अव्वल सफा 125)

उसकी दो किस्में हैं -
अव्वल बिदअते मुहर्रमा जैसे हिन्दुस्तान की मुख्वजा ताजियादारी (फ़तावा अजीजिया रिसाला ताजियादारी आला हज़रत) और जैसे अहलेसुन्नत व जमाअत के खिलाफ़ नए अकीदा वालों के मजाहिब। -(अशिअतुल्लमआत जिल्द अव्वल सफा 125)

दोम बिदअते मकरुहा जैसे जुमा व ईदैन का खुतबा गैरे अरबी में पढ़ना।


सवाल:- बिदअते मुबाहा किसे कहते हैं❓

जवाब:- जो चीज़ हुजूर अलैहिस्सलाम के जाहिरी जमाना में न हो और जिसके करने न करने पर सवाब व अज़ाब

✴️ शिर्क व कुफ्र का बयान ✴️

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सवाल:-  शिर्क किसे कहते हैं ❓

जवाब:-  खुदायेतआला की जात व सिफ़ात में किसी को शरीक ठहराना शिर्क है।

ज़ात में शरीक ठहराने का मतलब यह है कि दो या दो से जियादा खुदा माने जैसे ईसाई कि तीन खुदा मान कर मुश्रिक हुए और जैसे हिन्दू कि कई खुदा मानने के
सबब मुश्रिक हैं।

और सिफ़ात में शरीक ठहराने का मतलब यह है कि खुदायेतआला की सिफ़ात की तरह किसी दूसरे के लिए कोई सिफ़त साबित करे मसलन सुनना और देखना वगैरा
जैसा कि खुदायेतआला के लिए बगैर किसी के दिए जाती तौर पर साबित है, उसी तरह किसी दूसरे के लिए सुनना और देखना वगैरा जाती तौर पर माने कि बगैर खुदा के दिए उसे यह सिफ़तें खुद हासिल हैं तो शिर्क है और अगर किसी दूसरे के लिए अताई तौर पर माने कि खुदायेतआला ने उसे यह सिफ़ते अता की हैं तो शिर्क नहीं जैसा कि अल्लाहतआला ने खुद इन्सान के बारे में पारा 29 रुकू 19 में फ़रमाया जिसका तर्जमा यह है कि हमने इन्सान को सुनने वाला, देखने वाला बनाया।


सवाल:-  कुफ्र किसे कहते हैं ❓

जवाब:-  जरूरियाते दीन में से किसी एक बात का इन्कार करना कुफ़्र है।

जरूरियाते दीन बहुत हैं उनमें से कुछ यह है 👇
खुदायेतआला को एक और वाजिबुलवजूद मानना,
उसकी जात व सिफ़ात में किसी को शरीक न समझना,
जुल्म और झूट वगैरा तमाम उयूब से उसको पाक मानना,
उसके मलाइका और उसकी तमाम किताबों को मानना, कुरान मजीद की हर आयत को हक समझना,
हुजूर सैय्यिदे आलम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम और
तमाम अंबियायेकिराम की नुबूवत को तस्लीम करना उन सबको अज़मत वाला जानना, उन्हें जलील और छोटा

✴️ मरने के बाद जिन्दा होना ✴️

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सवाल:-  मरने के बाद जिन्दा होने का मतलब क्या है ❓

जवाब:-  मरने के बाद जिन्दा होने का मतलब यह है कि
कियामत के दिन जब जमीन, आसमान, इन्सान और फ़रिश्ते वगैरा सब फ़ना हो जाएंगे तो फिर खुदायेतआला जब चाहेगा हज़रते इसराफील अलैहिस्सलाम को जिन्दा फ़रमाएगा वह दोबारा सूर फूकेंगे तो सब चीजें मौजूद हो जाएंगी।

फ़रिश्ते और आदमी वगैरा सब जिन्दा हो जाएंगे मुरदे अपनी अपनी कबरों से उठेगे, हश्र के मैदान में खुदायेतआला के सामने पेशी होगी, हिसाब लिया जाएगा और हर शख्स को अच्छे बुरे कामों को बदला दिया जाएगा यानी अच्छों को जन्नत मिलेगी और बुरों को जहन्नम में भेज

✴️ तकदीर का बयान ✴️

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सवाल:-  तकदीर किसे कहते हैं ❓

जवाब:-  दुनियां में जो कुछ होता है और बन्दे जो कुछ भलाई बुराई करते हैं खुदायेतआला ने उसे अपने इल्म के मुआफिक पहले से लिख लिया है उसे तक़दीर कहते हैं।


सवाल:- क्या अल्लाहतआला ने जैसा हमारी तकदीर में लिख दिया है हमें मजबूरन वैसा करना पड़ता है ❓

जवाब:-  नहीं, अल्लाहतआला के लिख देने से हमें मजबूरन वैसा करना नहीं पड़ता है बल्कि हम जैसा करने वाले थे अल्लाह तआला ने अपने इल्म से वैसा लिख दिया अगर किसी की तकदीर में बुराई लिखी तो इस लिए कि वह बुराई करने वाला था, अगर वह भलाई करने वाला होता तो खुदायेतआला उसकी तकदीर में भलाई लिखता।

खुलासह यह कि खुदायेतआला के लिख देने से बन्दा किसी काम के करने पर मजबूर नहीं किया

✴️ कियामत का बयान ✴️

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सवाल:-  कियामत किसे कहते हैं ❓

जवाब:-  कियामत उस दिन को कहते हैं जिस दिन हज़रते इसराफील अलैहिस्सलाम सूर फेंकेंगे, सूर सींग के शक्ल की एक चीज़ है जिसकी आवाज सुनकर सब आदमी और तमाम जानवर मर जाएंगे। जमीन, आसमान, चांद, सूरज और पहाड़ वगैरह दुनिया की हर चीज़ टूट फूट कर फ़ना हो जाएगी यहां तक कि सूर भी खत्म हो जाएगा और इसराफ़ील अलैहिस्सलाम भी फ़ना हो जाएंगे, यह वाकिअह मुहर्रम की दसवीं तारीख जुमा के दिन होगा।


सवाल:-  कियामत की कुछ निशानियां बयान कीजिए❓

जवाब:-  जब दुनिया में गुनाह ज्यादा होने लगे,
"हराम" कामों को लोग खुल्लमखुल्ला करने लगें,
मां बाप को तकलीफ दें और गैरों से मेल जोल रख्खें,
अमानत में खियानत करें,
“ज़कात" देना लोगों पर गिरा गुजरे,
दुनियां हासिल करने के लिए इल्मेदीन पढ़ा जाए,
“नाच-गाने" का रवाज ज्यादा हो जाए,
बदकार लोग कौम के पेशवा और लीडर हो जाएं,
चरवाहे वगैरह कम दर्जा के लोग बड़ी-बड़ी बिल्डिंगों और कोठियों में रहने लगें तो समझ लो कि कियामत करीब

✴️ हमारे नबी ﷺ ✴️

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सवाल:-  हमारे नबी कौन हैं ❓ उनका कुछ हाल बयान कीजिए❓

जवाब:-  हमारे नबी हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम हैं, जो 12 रबीउल अव्वल मुताबिक 20 अप्रैल सन् 571 ई0 में मक्का शरीफ में पैदा हुए। उनके वालिद का नाम हजरते अब्दुल्लाह और वालिदा का नाम हज़रते आमिना है (रज़ियल्लाहु तआला अनहुमा) ।

आप की जाहिरी ज़िन्दगी तिरसठ (63) बरस की हुई, तिरपन (53) बरस की उम्र तक मक्का शरीफ में रहे फिर दस साल मदीना तैयिबा में रहे ।

12 रबीउल अव्वल सन् 11 हिजरी मुताबिक 12 जून सन् 632 ई0 में वफात पाई, आपकी मजारे मुबारक मदीना शरीफ में है, जो मक्का शरीफ़ से तकरीबन 320 किलो मीटर उत्तर है।


सवाल:-  हमारे नबी की कुछ खूबियां बयान कीजिए ❓

जवाब:-  हमारे नबी सैयिदुल अंबिया और नबीयुल अंबिया हैं यानी अंबियाएकिराम के सरदार हैं और तमाम अंबिया हुजूर के उम्मती हैं। आप खातमुन्नबीईन हैं यानी आप के बाद कोई नबी नहीं पैदा होगा जो शख्स आप के बाद नबी होने को जाइज समझे वह काफ़िर है। सारी मखलूकात खुदायेतआला की रज़ा चाहिती है और खुदायेतआला हुजूर की रजा चाहता है। हुजूर की फरमाबरदारी अल्लाहतआला की फरमाबरदारी है। जमीन व आसमान की सारी चीजें आप पर जाहिर थीं दुनिया के हर गोशे और हर कोने में कियामत तक जो कुछ होने वाला है हुज़र उसे इस तरह मुलाहिजा फ़रमाते हैं जैसे कोई अपनी हथेली देखे, ऊपर नीचे आगे और पीठ के