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सवाल:- बिदअत किसे कहते हैं और उसकी कितनी किस्में हैं❓
जवाब:- इसतिलाहे शरा (इस्लामी बूली) में बिदअत ऐसी चीज़ के ईजाद करने को कहते हैं जो हुजर अलैहिस्सलाम के जाहिरी जमाना में न हो ख्वाह वह चीज़ दीनी हो या दुनियावी ~(अशिअतुल्लमआत जिल्द अव्वल सफा 125)
और बिदअत की तीन किस्में हैं - बिदअते हसना, बिदअते सय्येआ, बिदअते मुबाहा।
बिदअते हसना वह बिदअत है जो कुरान व हदीस के वसूल व क़वाइद के मुताबिक हो और उन्हीं पर कियास किया गया हो उस की दो किस्में हैं। अव्वल बिदअतेवाजिबा जैसे कुरान व हदीस समझने के लिए इल्मे नह्-व का सीखना और गुमराह फ़िरके मसलन खारजी, राफ़जी, कादियानी और वहाबी वगैरा पर रद के लिए दलाइल कायम करना।
दोम बिदअते मुसतहब्बा जैसे मदरसों की तामीर और हर वह नेक काम जिसका रवाज इबतिदाए जमाना में नहीं था जैसे अज़ान के बाद सलात पुकारना, दुरै मुख्तार बाबुल अज़ान में हैं कि अज़ान के बाद अस्सलातु वस्सल्लमु अलैक या रसूलल्लाह पुकारना, माहे रबीउल आखिर सन् 781 हिजरी में जारी हुआ और यह बिदअते हसना है।
सवाल:- बिदअते सय्येआ किसे कहते हैं और उसकी कितनी किस्में हैं ❓
जवाब:- बिदअते सय्येआ वह बिदअत है जो कुरान व हदीस के उसूल व क़वाइद के मुखालिफ़ हो। ~(अशिअतुल्लम आतजिल्द अव्वल सफा 125)
उसकी दो किस्में हैं -
अव्वल बिदअते मुहर्रमा जैसे हिन्दुस्तान की मुख्वजा ताजियादारी (फ़तावा अजीजिया रिसाला ताजियादारी आला हज़रत) और जैसे अहलेसुन्नत व जमाअत के खिलाफ़ नए अकीदा वालों के मजाहिब। -(अशिअतुल्लमआत जिल्द अव्वल सफा 125)
दोम बिदअते मकरुहा जैसे जुमा व ईदैन का खुतबा गैरे अरबी में पढ़ना।
सवाल:- बिदअते मुबाहा किसे कहते हैं❓
जवाब:- जो चीज़ हुजूर अलैहिस्सलाम के जाहिरी जमाना में न हो और जिसके करने न करने पर सवाब व अज़ाब
न हो उसे बिदअते मुबाहा कहते हैं। -(अशिअ तुल्लमआत जिल्द अव्वल सफा 125) जैसे खाने पीने में कुशादगी इखतियार करना और रेल गाड़ी वगैरा में सफर करना।
सवाल:- हदीस शरीफ में है कि हर बिदअत गुमराही है तो इससे कौन सी बिदअत मुराद है❓
जवाब:- इस हदीस शरीफ से सिर्फ बिदअते सय्येआ मुराद है।
{देखिए मिरकात शरह मिशक़ात जिल्द अव्वल सफा 179 और अशिअतुल्लमात जिल्द अव्वल सफा 125}
इसलिए कि अगर बिदअत की तमाम किस्में मुराद ली जाएं जैसे कि जाहिरे हदीस से मफहूम होता है तो फिक़ह, इल्मे कलाम और सर्फ व नह्-व व वगैरा की तदवीन और उनका पढ़ना पढ़ाना सब जलालत व गुमराही हो जाएगा।
सवाल:- क्या बिदअत का हसना और सय्येआ होना हदीस शरीफ़ से भी साबित है❓
जवाब:- हां, बिदअत का हसना और सय्येआ होना हदीस से भी साबित है।
तिरमिजी शरीफ में है कि हज़रते उमर फारूके आज़म रज़िअल्लाहुतआला अनहू ने तरावीह की बाकायदा जमाअत काइम करने के बाद फ़रमाया कि यह बहुत अच्छी बिदअत है ~(#मिशकात सफा 115)
और मुस्लिम शरीफ में हज़रते जरीर रज़िअल्लाहुअनहू से रिवायत है कि रसूले करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने फ़रमाया कि जो इस्लाम में किसी अच्छे तरीका को राइज करेगा तो उसको अपने राइज करने का भी सवाब मिलेगा और उन लोगों के अमल करने का भी सवाब मिलेगा जो उसके बाद उस तरीका पर अमल करते रहेंगे और अमल करने वालों के सवाब में कोई कमी भी न होगी और जो शख्स मज़हबे इस्लाम में किसी बुरे तरीका को राइज करेगा तो उस शख्स पर उसके राइज करने का भी गुनाह होगा और उन लोगों के अमल करने का भी गुनाह होगा जो उसके बाद उस तरीका पर अमल करते रहेंगे और अमल करने वालों के गुनाह में कोई कमी भी न होगी ~(#मिशकात सफा 33)
सवाल:- क्या मीलाद शरीफ़ की महफ़िल मुनअकिद करना बिदअते सय्येआ है❓
जवाब:- मीलाद शरीफ़ की महफिल मुनअकिद करना उस में हुजूर अलैहिस्सलातु वस्सलाम की पैदाइश के हालात और दीगर फ़जाइल व मनाकिब बयान करना बरकत का बाइस है। उसे बिदअते सय्येआ कहना गुमराही व बदमजहबी है।
सवाल:- क्या हुजूर अलैहिस्सलाम के जमाने में मय्यत का तीजा होता था❓
जवाब:- मय्यत का तीजा और इसी तरह दसवां, बीसवां और चालीसवां वगैरह हुजूर अलैहिस्सलातु वस्सलाम के जाहिरी जमाना में नहीं होता था बल्कि यह सब बाद की ईजाद हैं और बिदअते हसना हैं इसलिए कि इनमें मय्यत के ईसाले सवाब के लिए कुरान ख्वानी होती है, सदका खैरात किया जाता है और गुरबा व मसाकीन को खाना खिलाया जाता है और यह सब सवाब के काम हैं।
हां इस मौका पर दोस्त व अहबाब और अज़ीज़ व अकारीब की दावत करना ज़रूर बिदअते सय्येआ है।
~(#शामी जिल्द अव्वल सफा 629, #फ़तहुल कदीर जिल्द दोम सफा 102)
📕 अनवारे शरीअत, पेज: 21-23
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🖌पोस्ट क्रेडिट - शाकिर अली बरेलवी रज़वी व अह्-लिया मोहतरमा*
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सवाल:- बिदअत किसे कहते हैं और उसकी कितनी किस्में हैं❓
जवाब:- इसतिलाहे शरा (इस्लामी बूली) में बिदअत ऐसी चीज़ के ईजाद करने को कहते हैं जो हुजर अलैहिस्सलाम के जाहिरी जमाना में न हो ख्वाह वह चीज़ दीनी हो या दुनियावी ~(अशिअतुल्लमआत जिल्द अव्वल सफा 125)
और बिदअत की तीन किस्में हैं - बिदअते हसना, बिदअते सय्येआ, बिदअते मुबाहा।
बिदअते हसना वह बिदअत है जो कुरान व हदीस के वसूल व क़वाइद के मुताबिक हो और उन्हीं पर कियास किया गया हो उस की दो किस्में हैं। अव्वल बिदअतेवाजिबा जैसे कुरान व हदीस समझने के लिए इल्मे नह्-व का सीखना और गुमराह फ़िरके मसलन खारजी, राफ़जी, कादियानी और वहाबी वगैरा पर रद के लिए दलाइल कायम करना।
दोम बिदअते मुसतहब्बा जैसे मदरसों की तामीर और हर वह नेक काम जिसका रवाज इबतिदाए जमाना में नहीं था जैसे अज़ान के बाद सलात पुकारना, दुरै मुख्तार बाबुल अज़ान में हैं कि अज़ान के बाद अस्सलातु वस्सल्लमु अलैक या रसूलल्लाह पुकारना, माहे रबीउल आखिर सन् 781 हिजरी में जारी हुआ और यह बिदअते हसना है।
सवाल:- बिदअते सय्येआ किसे कहते हैं और उसकी कितनी किस्में हैं ❓
जवाब:- बिदअते सय्येआ वह बिदअत है जो कुरान व हदीस के उसूल व क़वाइद के मुखालिफ़ हो। ~(अशिअतुल्लम आतजिल्द अव्वल सफा 125)
उसकी दो किस्में हैं -
अव्वल बिदअते मुहर्रमा जैसे हिन्दुस्तान की मुख्वजा ताजियादारी (फ़तावा अजीजिया रिसाला ताजियादारी आला हज़रत) और जैसे अहलेसुन्नत व जमाअत के खिलाफ़ नए अकीदा वालों के मजाहिब। -(अशिअतुल्लमआत जिल्द अव्वल सफा 125)
दोम बिदअते मकरुहा जैसे जुमा व ईदैन का खुतबा गैरे अरबी में पढ़ना।
सवाल:- बिदअते मुबाहा किसे कहते हैं❓
जवाब:- जो चीज़ हुजूर अलैहिस्सलाम के जाहिरी जमाना में न हो और जिसके करने न करने पर सवाब व अज़ाब
न हो उसे बिदअते मुबाहा कहते हैं। -(अशिअ तुल्लमआत जिल्द अव्वल सफा 125) जैसे खाने पीने में कुशादगी इखतियार करना और रेल गाड़ी वगैरा में सफर करना।
सवाल:- हदीस शरीफ में है कि हर बिदअत गुमराही है तो इससे कौन सी बिदअत मुराद है❓
जवाब:- इस हदीस शरीफ से सिर्फ बिदअते सय्येआ मुराद है।
{देखिए मिरकात शरह मिशक़ात जिल्द अव्वल सफा 179 और अशिअतुल्लमात जिल्द अव्वल सफा 125}
इसलिए कि अगर बिदअत की तमाम किस्में मुराद ली जाएं जैसे कि जाहिरे हदीस से मफहूम होता है तो फिक़ह, इल्मे कलाम और सर्फ व नह्-व व वगैरा की तदवीन और उनका पढ़ना पढ़ाना सब जलालत व गुमराही हो जाएगा।
सवाल:- क्या बिदअत का हसना और सय्येआ होना हदीस शरीफ़ से भी साबित है❓
जवाब:- हां, बिदअत का हसना और सय्येआ होना हदीस से भी साबित है।
तिरमिजी शरीफ में है कि हज़रते उमर फारूके आज़म रज़िअल्लाहुतआला अनहू ने तरावीह की बाकायदा जमाअत काइम करने के बाद फ़रमाया कि यह बहुत अच्छी बिदअत है ~(#मिशकात सफा 115)
और मुस्लिम शरीफ में हज़रते जरीर रज़िअल्लाहुअनहू से रिवायत है कि रसूले करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने फ़रमाया कि जो इस्लाम में किसी अच्छे तरीका को राइज करेगा तो उसको अपने राइज करने का भी सवाब मिलेगा और उन लोगों के अमल करने का भी सवाब मिलेगा जो उसके बाद उस तरीका पर अमल करते रहेंगे और अमल करने वालों के सवाब में कोई कमी भी न होगी और जो शख्स मज़हबे इस्लाम में किसी बुरे तरीका को राइज करेगा तो उस शख्स पर उसके राइज करने का भी गुनाह होगा और उन लोगों के अमल करने का भी गुनाह होगा जो उसके बाद उस तरीका पर अमल करते रहेंगे और अमल करने वालों के गुनाह में कोई कमी भी न होगी ~(#मिशकात सफा 33)
सवाल:- क्या मीलाद शरीफ़ की महफ़िल मुनअकिद करना बिदअते सय्येआ है❓
जवाब:- मीलाद शरीफ़ की महफिल मुनअकिद करना उस में हुजूर अलैहिस्सलातु वस्सलाम की पैदाइश के हालात और दीगर फ़जाइल व मनाकिब बयान करना बरकत का बाइस है। उसे बिदअते सय्येआ कहना गुमराही व बदमजहबी है।
सवाल:- क्या हुजूर अलैहिस्सलाम के जमाने में मय्यत का तीजा होता था❓
जवाब:- मय्यत का तीजा और इसी तरह दसवां, बीसवां और चालीसवां वगैरह हुजूर अलैहिस्सलातु वस्सलाम के जाहिरी जमाना में नहीं होता था बल्कि यह सब बाद की ईजाद हैं और बिदअते हसना हैं इसलिए कि इनमें मय्यत के ईसाले सवाब के लिए कुरान ख्वानी होती है, सदका खैरात किया जाता है और गुरबा व मसाकीन को खाना खिलाया जाता है और यह सब सवाब के काम हैं।
हां इस मौका पर दोस्त व अहबाब और अज़ीज़ व अकारीब की दावत करना ज़रूर बिदअते सय्येआ है।
~(#शामी जिल्द अव्वल सफा 629, #फ़तहुल कदीर जिल्द दोम सफा 102)
📕 अनवारे शरीअत, पेज: 21-23
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🖌पोस्ट क्रेडिट - शाकिर अली बरेलवी रज़वी व अह्-लिया मोहतरमा*
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