▫Post-- 1C | 🔖 Haq Ki Bandagi ✅

✒Chapter- 1 " ISTINJE KA BAYAN "
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✳️《Masayel》✳️

Jab Pakhana Ya Peshab Ko Jaye To Pehle Ye Dua Padh Le👇,

"Bismillahi Allahumma Inni Aauzu Bika Minal Khubusi Wal Khaba'is"

Phir Ulta Qadam Pehle Daale Aur Nikalte WAQT Sidha Qadam Pehle Nikale Aur Nikalne Ke Baad Ye Dua Padhe👇,

"Gufranaka Alhamdulillahil Lazi Azhaba Anni Maa Yuzeeni Wa Amasaka Alaiyya Ma Yanfa'uni"

Mas'ala:

Pakhana Peshab Ke Phirte Waqt Chahe Makan Me Ho Ya Jangal Me Muh Aur Peeth Qibla Rukh Na Ho Agar Bhool Kar Baitha Tha To Yaad Aate Hi Faoran Rukh Mood Le.
📜{Durre Mukhtar, Jild-1, Page-608}

Mas'ala:

Bachche Ka Muh Qibla Rukh Kar Ke Pakhana Peshab Phirane Wala Gunehgar Hoga.
📜{Bahare-E-Shariat, Hissa-2, Page-408}

Mas'ala:

Peshab Pakhana Karte WAQT Chand Aur Suraj Ki Taraf Na Muh Ho Na Peeth (Jab Khule Maidan Me Ho) Isi Tarah Hawa Ke Rukh Peshab Karna Mana Hai.

▫Post-- 1B | 🔖 Haq Ki Bandagi ✅

✒Chapter- 1 " ISTINJE KA BAYAN "
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بسم اللہ الرحمٰن الرحیم.
الحمد للہ رب العالمین والعاقبة للمتقين، والصلوة والسلام على خاتم الأنبياء والمرسلين سيدنا ومولانا محمد، وعلى آله وصحبه اجمعين بارك وسلم تسليماً كثيراً كثيرا.... اما بعد

ISTINJE (Pakhana/Peshab) Ko Jate Waqt Har Musalman Ko Chahiye Ki Sunnat Ke Mutabiq Apni Hajat Se Faragat Paye.

Islam Jo Kamil aur Qayamat Tak Rehne Wala Mazhab Hai Usne Hame Zindagi Ke Har Shobe Me Rehnumai Farmai Hai.

✒Hadees~

Huzoor علیہ السلام Jab Qazae Hajat Ka Irada Farmate To Kapda Na Hatate Jab Tak Zameen Se Qareeb Na Ho Jate.
📜{Jame Tirmizi, Jild-1, Page-92}

✒Hadees~

Huzoor Jab Qazae Hajat Ko Tashrif Le Jate To Itni Door Jate Ke Koi Na Dekhta.

▫Post-- 1A | 🔖 Haq Ki Bandagi ✅


بسم الله الرحمن الرحيم
الصلوة والسلام عليك يا رسول الله صلى الله عليه وسلم

Taharat Se Namaz Tak Ke Zaroori Masayel FIQHE HANFI Ki Roshni Me Be'misal La'jawab KITAAB.

"HAQ KI BANDAGI"


~☆Musannif☆~

Gaziye Ahlesunnat Munazire Islaam Fatahe Gair Muqallidiyat Hazrat Allama Wa Maulana Mufti Sufi Muhammad Kaleem Hanfi Razvi Noori Sahab Qibla.

(Khalifah Huzoor Amine Shariat)

Founder- SUNNI JAMI'ATUL AHNAAF (MUMBAI)

पार्ट - 80 | 🔥💥 ज़लज़ला 💥🔥

🕌 ग़ैबी इदराक के समुन्दर म तलातुम.... 🕋

बहुत से उमूर में आप का ख़ास एहतमाम से तवज्जह फ़रमाना बल्कि फ़िकर व परेशानी में वाके होना और बावजूद इस के फिर मख़फ़ी रहना साबित है। किस्सए इफ़्क में आपकी तफ़तीश व इनकेशाफ़ बा बलग वजह सहा में मज़कूर है मगर सिर्फ़ तवज्जह से इनकेशाफ़ नहीं हुआ। बाद एक माह के वही के ज़रिये इतमीनान हुआ।

#हिफ़जुल इमान, सफा- 7, मुअल्लिफ़ मौलवी अशरफ़ अली साहेब थानवी

अब इस बेवफ़ा का इन्साफ़ तो रसूले अर्बी की वफ़ादार उम्मत ही करेगी कि खुद तो यह हज़रात आने वाहिद में सैकङों मील की मुसाफ़त ( दूरी ) से दिलों की मख़फियात पर मुत्तला हो जाते हैं,

लेकिन रसूले अनवर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के लिए एक माह की तवील मुद्दत में भी किसी मख़फ़ी अमूर के इन्किशाफ़ की कुव्वत ( छुपी बातों के मालूम करने की ताक़त ) तस्लीम नहीं करते।

क्या इतनी खुली हुई शहादतों के बाद भी हक़ व बातिल की राहों का इम्तियाज़ महसूस करने के लिए मज़ीद किसी निशानी की

पार्ट - 79 | 🔥💥 ज़लज़ला 💥🔥

🕌 ग़ैबी इदराक के समुन्दर म तलातुम.... 🕋

अस्ले वाकिआ नक़ल करने के बाद लिखते हैं~

" खुद ही बताइए कि फ़िकरी व दिमाग़ी उलूम वाले भला इसका क्या मतलब समझ सकते हैं। कहाँ मेरठ और कहाँ छत्ता की मस्जिद । मेरठ से देवबन्द तक का मकानी फ़ासला दर्मियान में हाएल नहीं हुआ ।

#सवानेह क़ासिमी, जिल्द- 1, सफा- 345

बताइये! अब इस अनकही को क्या कहा जाए यह मोअम्मा तो गीलानी साहेब और उनकी जमाअत के उम्ला ही हल कर सकते हैं कि जो फ़ासलाए माकानी इन हज़रात के नज़दीक अम्बिया और सय्यदुल अम्बिया तक पर हाएल रहता है वह नानौतवी साहेब पर क्यों नहीं हाएल हुआ।

और मौलवी याकूब साहेब की ग़ैबी कुव्वते इदराक का क्या कहना कि उन्होंने तो देवबन्द में बैठे बैठे मौलवी क़ासिम साहेब नानौतवी की वह ग़ैबी तवज्जह तक मालूम कर ली जो उन्होंने मेरठ से उनकी तरफ़ मबूजूल की
थी

और वह भी इतना झट पट कि नमाज़ के बाद ग़ौर किया और सारा मामला उसी लम्हे मुंकशिफ़ हो गया। दिनों, हफ़्तों और महीनों की बात तो अलग रही। घंटे आधे घंटे का भी वक़्फा न गुज़रा।

लेकिन शर्म से सिर झुका लीजिये कि घर के बूजुर्गों का तो यह हाल बयान किया जाता है और रसूले मुजतबा

पार्ट - 78 | 🔥💥 ज़लज़ला 💥🔥

🕌 ग़ैबी इदराक के समुन्दर म तलातुम 🕋

.मौलवी मुनाज़िर अहसन साहेब गीलानी ने अपनी किताब सवानेह क़ासिमी में अरवाहे सलासा के हवाले से एक निहायत हैरत अंगेज़ वाकिआ नक़ल किया है लिखते हैं कि ~

छत्ता की मस्जिद वाकेएदेवबन्द में कुछ लोग जमा थे उस मजमा में एक दिन मौलवी याकब साहेब नानौतवी मोहतमिम मदरसादेवबन्द फ़रमाने लगे-

" भाई आज सुबह की नमाज़ में हम मरजाते बस कुछ ही कसर रह गई। लोग हैरत से पूछने लगे आखिर क्या हादिसा पेश आया। सुनने की बात यही है जवाब में फ़रमा रहे थे कि आज सुबह मैं सुरए मुज़्ज़म्मिल पढ़ रहा था कि अचानक उलूम का इतना अज़ीमुश्शान दरिया मेरे दिल के ऊपर गुज़रा कि मैं तहम्मुल न कर सका और क़रीब था कि मेरी रुह परवाज़ कर जाए। कहते थे कि वह तौ ख़ैर ग़ुज़री कि वह दरिया जैसा कि एक दम आया था वैसा ही निकला चला गया। इसलिए मैं बच गया। कहते थे कि उलूम का यह दरिया जो अचानक चढ़ता हुआ उनके दिल पर से गुज़र गया यह क्या था। खुद ही उसकी तशरीह भी उन्हीं से बई अल्फ़ाज़ इसी किताब में पाई

पार्ट - 77 | 🔥💥 ज़लज़ला 💥🔥

🕌 मुद्दई लाख पे भारी है गवाही तेरी.... 🕋

बेशक यह बताने का हक़ ममलूक को है कि उसका मालिक कौन है कौन नहीं है।

जो मालिक था उसके लिए एतिराफ़ की ज़बान खुलनी थी खुल गई और जो मालिक नहीं था उसका इन्कार ज़रूरी था हो गया अब यह बहस बिल्कुल अबस ( बेकार ) है कि किसका मुक़द्दर किस मालिक के साथ वाबस्ता हुआ।

यहाँ पहुंच कर हमें कुछ नहीं कहना है तस्वीर के दोनों रुख़ आपके सामने हैं माद्दी मनफ़अत की कोई मस्लेहत मापे न हो तो अब आप ही फ़ैसला कीजिए कि दिलों की अकलीम पर किसकी बादशाहत का झंडा गङा हुआ है। सुलतानुल अम्बिया का या ताजे बर्तानिया का।

बात चली थी घर के मुकाश्फ़ा की और घर ही के दस्तावेज़ पर ख़त्म हो गई। अब फिर किताब के अस्ले मौज़ की

पार्ट - 76 | 🔥💥 ज़लज़ला 💥🔥

🕌 मुद्दई लाख पे भारी है गवाही तेरी.... 🕋

कुछ समझा आपने ?

किस इल्ज़ाम को यह झूठा कह रहे है। यही कि अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ उन्होंने अलम जिहाद ( झंडा ) बुलन्द किया था।

मैं कहता हूं कि गंगोही साहेब की यह पुर खुलूस सफ़ाई कोई माने या न माने लेकिन कम अज़कम उनके मोतक़ेदीन को तो ज़रूर मानना चाहिये लेकिन ग़ज़ब ख़ुदा का इतनी शद्दोमद के साथ सफ़ाई के बावजूद भी उनके मानने वाले यह इल्ज़ाम उन पर आज तक दोहरा रहे हैं कि उन्होंने अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ अलमे जिहाद बुलन्द किया था।

दुनिया की तारीख़ में इसकी मिसाल मुश्किल ही से मिलेगी कि किसी फ़िर्के के अफ़राद ने अपने पेश्वा की इस तरह तकज़ीब की हो।

और सरकार मालिक है सरकार को इख़्तियार है यह जुम्ला उसी की ज़बान से निकल सकता है कि जो तन से

पार्ट - 75 | 🔥💥 ज़लज़ला 💥🔥

🕌 मुद्दई लाख पे भारी है गवाही तेरी.... 🕋

यहाँ तक तो रिवायत थी अब इस रिवायत कि तौसीक़ व तशरीह मुलाहेज़ा फ़रमाईये लिखते हैं-

" बाकी खुद ख़िज़र का मतलब क्या है। नुसरते हक़ की मिसाली शकल थी जो इस नाम से ज़ाहिर हुई । तफ़सील के लिए शाह वलीउल्लाह वग़ैरा कि किताब पढ़िये। गोया जो कुछ देखा जा रहा था उसी के बातनी पहलू का यह मुकाशिफ़ा था ।

#हाशिया सवानेह क़ासमी

बात ख़त्म हो गई लेकिन यह सवाल सिर पर चढ़ कर आवाज़ दे रहा है कि जब हज़रते ख़िज़र की सूरत में नुसरते हक़ अंग्रेज़ी फौज के साथ थी तो उन बाग़ियों के लिए क्या हुक्म है जो हज़रते ख़िज़र के मुकाबले में लङने आए थे।

क्या अब भी उन्हें ग़ाज़ी और मुजाहिद कहा जा सकता है ?

अपने मौज़ से हट कर हम बहुत दूर निकल आए लेकिन आप की निगाह पर
बार न हो तो इस बहस के ख़ातमें पर अकाबिरे देवबन्द की एक दिलचस्प दस्तावेज़ और मुलाहेज़ा फ़रमाईए:

देवबन्दी हल्के के मुमताज़ मुसन्निफ़ मौलवी आशिक़ इलाही मेरठी अपनी किताब तज़किरतुर्रशीद में अंग्रेज़ी

पार्ट - 74 | 🔥💥 ज़लज़ला 💥🔥

🕌 मुद्दई लाख पे भारी है गवाही तेरी.... 🕋

अंग्रेज़ों की सफ़ों में हज़रते ख़िज़र की मौजूदगी अचानक नहीं पेश आ गई थी बल्कि वह " नुस्रते हक़ "( खुदाई मदद ) की अलामत बनकर अंग्रेज़ी फ़ौज के साथ एक बार और देखे गए थे जैसा कि फ़रमाते हैं ~

ग़दर के बाद जब गंज मुरादाबादी की वीरानी मस्जिद मे हज़रत मौलाना ( शाह फ़ज़लुर्रहमान साहेब) जाकर मुकीम हुए तो इत्तिफ़ाक़न उसी रास्ते से जिस के किनारे मस्जिद है किसी वजह से अंग्रेज़ी फ़ौज ग़ुज़र रही थी। मौलाना मस्जिद से देख रहे थे अचानक मस्जिद की सीढ़ियों से उतर कर देखा गया कि अंग्रेज़ी फ़ौज के एक साइस से बाग डोर खूंटे बग़ैर घोङे का लिए हुए था उस से बातें कर के फिर मस्जिद वापस आ गए अब याद नहीं
रहा कि पूछने पर या खुद बखुद फ़रमाने लगे कि साइस जिस से मैंने गुफ़तगू की यह ख़िज़र थे मैंने पूछा यह क्या हाल है तो जवाब में कहा

पार्ट - 73 | 🔥💥 ज़लज़ला 💥🔥

🕌 मुद्दई लाख पे भारी है गवाही तेरी.... 🕋

मुझे इस वाकिआ पर बजुज़ इसके और कोई तबसिरा नहीं करना है कि मौलवी क़ासिम साहेब नानौतवी अगर अंग्रेजी हुकूमत के बागियों में थे तो पुलिस का मोहक्मा इस क़दर उनके ताबें फ़रमान क्यों था।

और थानेदार को यह धमकी कि उसे छोङ दो वर्ना तुम भी न बचोगे वही दे सकता है जिसका साज़ बाज़ ऊपर के मर्कज़ी हुक्काम से हो।

अंग्रेज़ी क़ौम की बारगाह में नियाज़ मंदाना ज़हन का एक रुख़ और मुलाहिज़ा फ़रमाइए इस सिलसिले में सवानेह क़ासिमी के मुसन्निफ़ की एक अजीब व ग़रीब रिवायत सुनिए फ़रमाते हैं कि:-

अंग्रेज़ों के मुकाबले में जो लोग लङ रहे थे उनमें हज़रत मौलाना शाह फ़ज़लुर्रहमान गंज मुरादाबादी रहमतुल्लाहि अलैहि भी थे अचानक एक दिन मौलाना को देखा गया कि खुद भागे जा रहे हैं और किसी चौधरी
का नाम लेकर जो बाग़ियों की फ़ौज की अफ़सरी कर रहे थे कहते जाते थे कि लङने का क्या फ़ायदा। खिज़र को तो मैं अंग्रेजों की सफ़ में

पार्ट - 72 | 🔥💥 ज़लज़ला 💥🔥

🕌 मुद्दई लाख पे भारी है गवाही तेरी..... 🕋

लिखा है कि मुंशी मुहम्मद सुलैमान ने मौलाना नानौतवी का हुक्म हूबहू थानेदार तक पहुंचा दिया। थानेदार ने जवाब दिया कि अब क्या हो सकता है रोज़ नामचा में उसका नाम लिख दिया गया है।

मौलाना नानौतवी ने इस जवाब पर हुक्म दिया कि थानेदार से जाकर कह दो कि उसका नाम रोज़ नामचा से काट दो। मंसूर अली खाँ का बयान है कि मौलाना का यह हुक्म पाकर सरा सीमगी की हालत में थानेदार खुद उनकी ख़िदमत में हाज़िर हुआ और अर्ज़ किया~

"हज़रत नाम निकालना बङा जुर्म है अगर नाम उसका निकाला तो मेरी नौकरी जाती रहेगी। फ़रमाया उसका

पार्ट - 71 | 🔥💥 ज़लज़ला 💥🔥

🕌 मुद्दई लाख पे भारी है गवाही तेरी..... 🕋

अब आप ही फ़ैसला कीजिए कि जिस मदरसा के चलाने वाले अंग्रेज़ों के वफ़ा पेशा नमकख़्वार हों उसे बागियाना सरगर्मियों का अड्डा कहना आँखों में धूल झोंकने के मुतरादिफ़ है या नहीं ।

अब अंग्रेजों के खिलाफ देवबन्दी अकाबिर के अफ़सानए जिहाद व बग़ावत की पूरी तारीख़ उलट देने वाली एक संसनी ख़ेज़ कहानी और सुनिए~

स्वानेह क़ासिमी में मौलवी क़ासिम साहब नानौतवी के एक हाज़िर बाश मौलवी मंसूर अली खाँ की ज़बानी यह किस्सा ब्यान किया गया है वह कहते हैं कि

एक दिन मौलाना नानौतवी के हमराह मैं नानौत जा रहा था कि अस्नाए राह में मौलाना का हज्जाम उफ्तां व ख़ेजां आता हुआ मिला और उस ने ख़बर दी कि नानौत के थानेदार ने औरत के भगाने के इल्ज़ाम में मेरा चालान कर
दिया है खुदारा मुझे बचाईये।

मौलवी मंसूर अली खाँ का बयान है कि नानौता पहुंचते ही मौलाना ने अपने मख़सूस कारिंदा मुंशी मुहम्मद सुलैमान को तलब किया और पुरजलाल आवाज़ में फ़रमाया -
" उस ग़रीब को थानेदार ने बेकसूर पकङा है, तुम उस से कह दो कि यह ( हज्जाम ) हमारा आदमी है उस को

पार्ट - 70 | 🔥💥 ज़लज़ला 💥🔥

🕌 मुद्दई लाख पे भारी है गवाही तेरी...... 🕋

आगे चलकर उन्हीं बुजुर्गों के मुतअल्लिक लिखा है कि मदरसए देवबन्द में एक मौका पर गर्वनमेन्ट की जब इन्कवायरी आई तो उस वक्त यही हज़रात आगे बङे और अपने सरकारी एतमाद को सामने रख कर मदरसा की तरफ़ से सफ़ाई पेश की जो कारगर हुई।

#हाशिया सवानेह क़ासिमी

घर का राज़दार होने की हैसियत से क़ारी तय्यब साहब का बयान जितना बा वज़न हो सकता है वह
मोहताज बयान

पार्ट - 69 | 🔥💥 ज़लज़ला 💥🔥

🕌 मुद्दई लाख पे भारी है गवाही तेरी 🕋

ख़ुद अंग्रेज़ की यह शहादत है कि यह मदरसा ख़िलाफ़े सरकार नहीं बल्कि मुवाफ़िक़े सरकार मुमिद्द व मुआविने सरकार है।

अब आप ही इन्साफ कीजिए कि इस ब्यान के सामने अब उस अफ़साने की क्या हक़ीक़त है जिसका ढिंढोरा पीटा जाता है कि मदरसा देवबन्द अंग्रेज़ी सामराज के ख़िलाफ़ सियासी सरगर्मियों का बहुत बङा अड्डा था।

मदरसए देवबन्द के क़दीम कारकुनों का अंग्रेज़ों के साथ किस दर्जा ख़ैर ख्वाहाना और नियाज़ मन्दाना तअल्लुक था उसका अन्दाज़ा लगाने के लिए खुद क़ारी तय्यब साहेब मोहतमिम दारुल उलूम देवबन्द का यह तहलका ख़ेज़ ब्यान
पढ़िये फ़रमाते हैं ~

"मदरसा देवबन्द के कारकुनों में ( अकसरियत ) ऐसे बुजुर्गों की थी जो गवर्नमेन्ट के क़दीम मुलाज़िम और हाल

पार्ट - 68 | 🔥💥 ज़लज़ला 💥🔥

🕌 अंग्रेजों के खिलाफ़ अफ़सानए जेहाद की हक़ीक़त ..... 🕋

एक देवबन्दी फ़ाज़िल ने मौलाना मुहम्मद अहसन नानौतवी के नाम से मौसूफ़ की सवानेह हयात लिखी है जिसे मकतबए उस्मानिया कराची पाकिस्तान ने शाए किया है,

अपनी किताब में मुसन्निफ़ ने अख़बार अन्जुमन पंजाब लाहौर मजरिया 19 फ़रवरी 1875 ई०के हवाले से लिखा है कि 31जनवरी 1875ई० दिन यक शम्बा ( एतवार) लेफ्टेन्ट गवर्नर के एक ख़फ़िया मोतमिदे अंग्रेज़ मुसम्मा पामर ने मदरसा देवबन्द का मुआइना किया। मुआइना की जो इबारत मौसूफ़ ने अपनी किताब में नक़ल की है उसकी यह चन्द सतरें ख़ास तौर से पढ़ने के क़ाबिल हैं ~

" जो काम बङे बङे कालेजों में हज़ारों रुपये के सर्फ से होता है वह यहाँ कौङियों में हो रहा है जो काम
प्रिन्सिपल हज़ारों रुपये माहाना त॔ख़्वाह लेकर करता है वह यहाँ एक मौलवी चालिस रुपये माहाना पर कर रहा

पार्ट - 67 | 🔥💥 ज़लज़ला 💥🔥

🕌 दारुलउलूम देवबन्द में इल्हाद व नसरानियत का एक मुकाशेफ़ा ...... 🕋

मुझे इस मुक़ाम पर इस के सिवा और कुछ नहीं कहना है कि जो लोग अपना ऐब छुपाने के लिए दूसरों पर अंग्रेज़ों की कासा लेसी और साज़बाज़ का इल्ज़ाम आएद करते हैं कि वह गरेबान में मुंह डालकर ज़रा अपने घर का यह कश्फ़ नामा मुलाहेज़ा फ़रमा लें।

किताब के मुसननेफ़ीन को इस कश्फ़ पर अगर ऐतमाद न होता तो वह हरगिज़ इसे शाऐ नहीं करते।

और बात कश्फ़ ही तक नहीं है तारीख़ी दस्तावेज़ात भी इस अम्रे वाकिआ ( वास्तविक ) की ताईद में है कि अंग्रेज़ों के साथ नियाज़ मंदाना तअल्लुक़ात और राज़दाराना साज़ बाज़ दारुल उलूम देवबन्द और
मुंतज़ेमीन अमाएदीन का ऐसा नुमायां कारनामा है जिसे उन्होंने फ़ख्र के साथ ब्यान किया है।

और यह बात भी अज़राहे इल्ज़ाम नहीं कह रहा हूं बल्कि देवबन्दी लिटरेचर से जो तारीख़ी शहादतें मुझे मौसूल हुई हैं उनकी रौशनी में इसके सिवा और कुछ कहा ही नहीं जा सकता। नमूने के तौर पर चन्द तारीख़ी हवाले

पार्ट - 66 | 🔥💥 ज़लज़ला 💥🔥

🕌 दारुलउलूम देवबन्द में इल्हाद व नसरानियत का एक मुकाशेफ़ा 🕋

लगे हाथों उन्हीं दीवान जी का एक कश्फ़ और मुलाहेज़ा फ़रमाईये मौलवी मुनाज़िर अहसन गीलानी अपने इसी हाशिया में रिवायत नकल करते हुए लिखते हैं~

"इन्ही दीवान जी के मुकाशिफ़ा का तअल्लुक दारुल उलूम देवबन्द से भी नकल किया जाता है लिखते हैं कि मिसाली आलम में उन पर मुंकशिफ़ हुआ कि दारुव उलूम के चारों तरफ़ एक सुर्ख़ डोरा तना हुआ है।

अपने इस

पार्ट - 65 | 🔥💥 ज़लज़ला 💥🔥

🕌 ग़ैब का एक अजीब मुशाहिदा..... 🕋

नानौतवी साहेब के एक ख़ादिम की कुव्वते इनकेशाफ़ :-

लाइलाहा इल्लल्लाह देख रहे हैं आप, मौलवी क़ासिम साहेब नानौतवी के एक ख़ानगी ख़ादिम ( घर के नौकर ) की यह कश्फ़ी हालत कि मिट्टी की दीवारें शफ़्फ़ाफ़ आइना की तरह उन पर रौशन रहा करती थीं

लेकिन फ़हम व एतक़ाद की इस गुमराही पर सर पीट लेने को जी चाहता है कि इन हज़रात के यहाँ मिट्टी की यही दीवारें सरकारे रिसालत मआब सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्म की निगाह पर हिजाब ( पर्दा ) बनकर
हाएल रहती थी।

जैसा कि देवबन्दी जमाअत के मोतमद वकील मौलवी मंजर साहब नोमानी तहरीर फ़रमाते हैं -

" अगर हुजूर को दीवार के पीछे की सब बातें मालूम हो जाया करतीं तो हज़रत बिलाल से ( दरवाज़े पर खङी

पार्ट - 64 | 🔥💥 ज़लज़ला 💥🔥

🕌 ग़ैब का एक अजीब मुशाहिदा .....🕋

नानौतवी साहेब के एक ख़ादिम की कुव्वते इनकेशाफ़ :-

बात आ गई है तो इसी पसे दीवार ( दिवार के पीछे ) के इल्म व इन्केशाफ़ से मुतअल्लिक़ एक दिलचस्प ख़बर और सुनिये।

दिवान जी नामी एक साहेब के मुतअल्लिक़ मौलवी मुनाज़िर अहसन गीलानी ने अपनी किताब सवानेह क़ासिमी में एक निहायत हैरत अंगेज़ वाकिआ नक़ल किया है मौसूफ़ लिखते हैं ~

" मौलाना मुहम्मद तय्यब साहेब ने यह इत्तला दी है कि यासीन नाम के दो साहिबों का खुसूसी तअल्लुक़ सय्यदना अलइमामुल कबीर ( मौलवी क़ासिम साहेब नानौतवी ) से था, जिन में से एक तो यह दिवान जी देवबन्द के रहने वाले थे और बक़ौल मौलाना तय्यब साहब देवबन्द में हज़रत वाला की ख़ानगी और जाती उमूर का तअल्लुक़

पार्ट - 63 | 🔥💥 ज़लज़ला 💥🔥

🕌 ग़ैब का एक अजीब मुशाहिदा..... 🕋

देवबन्दी जमाअत के एक नौ मुस्लिम खाँ की आँखों की ज़रा कुव्वते बीनाई ( देखने की ताक़त ) मुलाहेज़ा फ़रमाइये कि आलमे ग़ैब तक पहुंचने के लिए उस पर दरमियान का कोई हेजाब ( पर्दा ) हाएल नहीं हुआ

लेकिन रसूले अनवर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हक़ में देवबन्दी हज़रात का यह अकीदा अब निशाने

पार्ट - 62 | 🔥💥 ज़लज़ला 💥🔥

🕌 ग़ैब का एक अजीब मुशाहिदा 🕋

अर्वाहे सलासा में लिखा है कि ~

यहाँ मौलवी क़ासिम साहेब नानौतवी जब हज के लिए जाने लगे तो इन्ही अब्लुल्लाह खाँ राजपूत की ख़िदमत में हाज़िर हुए और दमे रुख़सत उनसे दुआ की दर्ख़ास्त की इसके जवाब में खाँ साहब ने फ़रमाया:-

"भाई मैं तुम्हारे लिए क्या दुआ करूं मैंने तो अपनी आँखों से तुम्हें दो जहाँ के