🕌 ग़ैबी इदराक के समुन्दर म तलातुम 🕋

.मौलवी मुनाज़िर अहसन साहेब गीलानी ने अपनी किताब सवानेह क़ासिमी में अरवाहे सलासा के हवाले से एक निहायत हैरत अंगेज़ वाकिआ नक़ल किया है लिखते हैं कि ~

छत्ता की मस्जिद वाकेएदेवबन्द में कुछ लोग जमा थे उस मजमा में एक दिन मौलवी याकब साहेब नानौतवी मोहतमिम मदरसादेवबन्द फ़रमाने लगे-

" भाई आज सुबह की नमाज़ में हम मरजाते बस कुछ ही कसर रह गई। लोग हैरत से पूछने लगे आखिर क्या हादिसा पेश आया। सुनने की बात यही है जवाब में फ़रमा रहे थे कि आज सुबह मैं सुरए मुज़्ज़म्मिल पढ़ रहा था कि अचानक उलूम का इतना अज़ीमुश्शान दरिया मेरे दिल के ऊपर गुज़रा कि मैं तहम्मुल न कर सका और क़रीब था कि मेरी रुह परवाज़ कर जाए। कहते थे कि वह तौ ख़ैर ग़ुज़री कि वह दरिया जैसा कि एक दम आया था वैसा ही निकला चला गया। इसलिए मैं बच गया। कहते थे कि उलूम का यह दरिया जो अचानक चढ़ता हुआ उनके दिल पर से गुज़र गया यह क्या था। खुद ही उसकी तशरीह भी उन्हीं से बई अल्फ़ाज़ इसी किताब में पाई
जाती है कि नमाज़ के बाद मैंने ग़ौर किया कि यह क्या मामला था तो ज़ाहिर हुआ कि हज़रत मौलाना नानौतवी इन साअतों में मेरी तरफ़ मेरठ में मुतवज्जह हुए थे। यह उनकी तवज्जह का असर है कि उलूम के दरिया दूसरों के कुबूल पर मौज मारने लगे और तहम्मुल दुशवार हो जाए।

#सवानेह क़ासिमी, जिल्द-1, सफा- 345

📕 ज़लज़ला, सफ़हा न०- 55

🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ एस-अली।औवैसी

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