🕌 ग़ैब का एक अजीब मुशाहिदा .....🕋
नानौतवी साहेब के एक ख़ादिम की कुव्वते इनकेशाफ़ :-
बात आ गई है तो इसी पसे दीवार ( दिवार के पीछे ) के इल्म व इन्केशाफ़ से मुतअल्लिक़ एक दिलचस्प ख़बर और सुनिये।
दिवान जी नामी एक साहेब के मुतअल्लिक़ मौलवी मुनाज़िर अहसन गीलानी ने अपनी किताब सवानेह क़ासिमी में एक निहायत हैरत अंगेज़ वाकिआ नक़ल किया है मौसूफ़ लिखते हैं ~
" मौलाना मुहम्मद तय्यब साहेब ने यह इत्तला दी है कि यासीन नाम के दो साहिबों का खुसूसी तअल्लुक़ सय्यदना अलइमामुल कबीर ( मौलवी क़ासिम साहेब नानौतवी ) से था, जिन में से एक तो यह दिवान जी देवबन्द के रहने वाले थे और बक़ौल मौलाना तय्यब साहब देवबन्द में हज़रत वाला की ख़ानगी और जाती उमूर का तअल्लुक़
उन्हीं से था।
लिखा है कि साहेबे निसबते बुजुर्ग थे अपने ज़नाना मकान के हुजरे में ज़िक्र करते मौलाना हबीबुर्रहमान साहेब साबिक़ मोहतमिम दारुल उलूम देवबन्द फ़रमाया करते थे कि इस ज़माने में कश्फ़ी हालात दिवान जी की इतनी बढ़ी हुई थी कि बाहर सङक पर आने जाने वाले नज़र आते रहते थे। दर व दीवार का हिजाब उनके दरमियान ज़िक्र के वक़्त बाकी नहीं रहता था।
#हाशिया सवानेह क़ासिमी, जिल्द- 2, सफा- 73
📕 ज़लज़ला, सफ़हा न०-46
🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ एस-अली।औवैसी
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https://MjrMsg.blogspot.com/p/zalzala.html
नानौतवी साहेब के एक ख़ादिम की कुव्वते इनकेशाफ़ :-
बात आ गई है तो इसी पसे दीवार ( दिवार के पीछे ) के इल्म व इन्केशाफ़ से मुतअल्लिक़ एक दिलचस्प ख़बर और सुनिये।
दिवान जी नामी एक साहेब के मुतअल्लिक़ मौलवी मुनाज़िर अहसन गीलानी ने अपनी किताब सवानेह क़ासिमी में एक निहायत हैरत अंगेज़ वाकिआ नक़ल किया है मौसूफ़ लिखते हैं ~
" मौलाना मुहम्मद तय्यब साहेब ने यह इत्तला दी है कि यासीन नाम के दो साहिबों का खुसूसी तअल्लुक़ सय्यदना अलइमामुल कबीर ( मौलवी क़ासिम साहेब नानौतवी ) से था, जिन में से एक तो यह दिवान जी देवबन्द के रहने वाले थे और बक़ौल मौलाना तय्यब साहब देवबन्द में हज़रत वाला की ख़ानगी और जाती उमूर का तअल्लुक़
उन्हीं से था।
लिखा है कि साहेबे निसबते बुजुर्ग थे अपने ज़नाना मकान के हुजरे में ज़िक्र करते मौलाना हबीबुर्रहमान साहेब साबिक़ मोहतमिम दारुल उलूम देवबन्द फ़रमाया करते थे कि इस ज़माने में कश्फ़ी हालात दिवान जी की इतनी बढ़ी हुई थी कि बाहर सङक पर आने जाने वाले नज़र आते रहते थे। दर व दीवार का हिजाब उनके दरमियान ज़िक्र के वक़्त बाकी नहीं रहता था।
#हाशिया सवानेह क़ासिमी, जिल्द- 2, सफा- 73
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