🕌 मुद्दई लाख पे भारी है गवाही तेरी.... 🕋

मुझे इस वाकिआ पर बजुज़ इसके और कोई तबसिरा नहीं करना है कि मौलवी क़ासिम साहेब नानौतवी अगर अंग्रेजी हुकूमत के बागियों में थे तो पुलिस का मोहक्मा इस क़दर उनके ताबें फ़रमान क्यों था।

और थानेदार को यह धमकी कि उसे छोङ दो वर्ना तुम भी न बचोगे वही दे सकता है जिसका साज़ बाज़ ऊपर के मर्कज़ी हुक्काम से हो।

अंग्रेज़ी क़ौम की बारगाह में नियाज़ मंदाना ज़हन का एक रुख़ और मुलाहिज़ा फ़रमाइए इस सिलसिले में सवानेह क़ासिमी के मुसन्निफ़ की एक अजीब व ग़रीब रिवायत सुनिए फ़रमाते हैं कि:-

अंग्रेज़ों के मुकाबले में जो लोग लङ रहे थे उनमें हज़रत मौलाना शाह फ़ज़लुर्रहमान गंज मुरादाबादी रहमतुल्लाहि अलैहि भी थे अचानक एक दिन मौलाना को देखा गया कि खुद भागे जा रहे हैं और किसी चौधरी
का नाम लेकर जो बाग़ियों की फ़ौज की अफ़सरी कर रहे थे कहते जाते थे कि लङने का क्या फ़ायदा। खिज़र को तो मैं अंग्रेजों की सफ़ में
पा रहा हूं।

#हाशिया स्वानेह क़ासिमी, जिल्द- 2, सफा- 103

📕 ज़लज़ला, सफ़हा न०- 51, 52

🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ एस-अली।औवैसी

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