🕌 ग़ैबी इदराक के समुन्दर म तलातुम.... 🕋

बहुत से उमूर में आप का ख़ास एहतमाम से तवज्जह फ़रमाना बल्कि फ़िकर व परेशानी में वाके होना और बावजूद इस के फिर मख़फ़ी रहना साबित है। किस्सए इफ़्क में आपकी तफ़तीश व इनकेशाफ़ बा बलग वजह सहा में मज़कूर है मगर सिर्फ़ तवज्जह से इनकेशाफ़ नहीं हुआ। बाद एक माह के वही के ज़रिये इतमीनान हुआ।

#हिफ़जुल इमान, सफा- 7, मुअल्लिफ़ मौलवी अशरफ़ अली साहेब थानवी

अब इस बेवफ़ा का इन्साफ़ तो रसूले अर्बी की वफ़ादार उम्मत ही करेगी कि खुद तो यह हज़रात आने वाहिद में सैकङों मील की मुसाफ़त ( दूरी ) से दिलों की मख़फियात पर मुत्तला हो जाते हैं,

लेकिन रसूले अनवर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के लिए एक माह की तवील मुद्दत में भी किसी मख़फ़ी अमूर के इन्किशाफ़ की कुव्वत ( छुपी बातों के मालूम करने की ताक़त ) तस्लीम नहीं करते।

क्या इतनी खुली हुई शहादतों के बाद भी हक़ व बातिल की राहों का इम्तियाज़ महसूस करने के लिए मज़ीद किसी निशानी की
ज़रूरत बाकी रह गई है।

महशर की तपती हुई सरज़मीन पर रसूले अर्बी की शफ़ाअत के उम्मीद वारो। जवाब दो।

किसी भी किताब के कारेईन के लिए वह मरहला सख़्त अजमाइश का होता है जब दयानत और इंसाफ का तक़ाज़ा पूरा करने के लिए अपने मम्दूह कि ख़िलाफ़ फैसला करना होता है।

📕 ज़लज़ला, सफ़हा न०- 57

🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ एस-अली।औवैसी

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