🕌 मुद्दई लाख पे भारी है गवाही तेरी.... 🕋
यहाँ तक तो रिवायत थी अब इस रिवायत कि तौसीक़ व तशरीह मुलाहेज़ा फ़रमाईये लिखते हैं-
" बाकी खुद ख़िज़र का मतलब क्या है। नुसरते हक़ की मिसाली शकल थी जो इस नाम से ज़ाहिर हुई । तफ़सील के लिए शाह वलीउल्लाह वग़ैरा कि किताब पढ़िये। गोया जो कुछ देखा जा रहा था उसी के बातनी पहलू का यह मुकाशिफ़ा था ।
#हाशिया सवानेह क़ासमी
बात ख़त्म हो गई लेकिन यह सवाल सिर पर चढ़ कर आवाज़ दे रहा है कि जब हज़रते ख़िज़र की सूरत में नुसरते हक़ अंग्रेज़ी फौज के साथ थी तो उन बाग़ियों के लिए क्या हुक्म है जो हज़रते ख़िज़र के मुकाबले में लङने आए थे।
क्या अब भी उन्हें ग़ाज़ी और मुजाहिद कहा जा सकता है ?
अपने मौज़ से हट कर हम बहुत दूर निकल आए लेकिन आप की निगाह पर
बार न हो तो इस बहस के ख़ातमें पर अकाबिरे देवबन्द की एक दिलचस्प दस्तावेज़ और मुलाहेज़ा फ़रमाईए:
देवबन्दी हल्के के मुमताज़ मुसन्निफ़ मौलवी आशिक़ इलाही मेरठी अपनी किताब तज़किरतुर्रशीद में अंग्रेज़ी
हुकूमत के साथ मौलवी रशीद अहमद साहेब गंगोही के नियाज़ मंदाना जज़बात कि तस्वीर ख़ीचते हुए एक जगह लिखते हैं-
(आप ) समझे हुए थे कि मैं जब हकीकत में सरकार का फरमाँ बरदार हूं तो झूठे इल्ज़ाम से मेरा बाल बेका न होगा और अगर मारा भी गया तो सरकार मालिक है उसे इख़्तियार है जो करे।
#तज़किरतुर्रशीद, जिल्द- 1, सफा- 80
📕 ज़लज़ला, सफ़हा न०- 53
🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ एस-अली।औवैसी
🔴इस पोस्ट के दीगर पार्ट के लिए क्लिक करिये ⬇
https://MjrMsg.blogspot.com/p/zalzala.html
यहाँ तक तो रिवायत थी अब इस रिवायत कि तौसीक़ व तशरीह मुलाहेज़ा फ़रमाईये लिखते हैं-
" बाकी खुद ख़िज़र का मतलब क्या है। नुसरते हक़ की मिसाली शकल थी जो इस नाम से ज़ाहिर हुई । तफ़सील के लिए शाह वलीउल्लाह वग़ैरा कि किताब पढ़िये। गोया जो कुछ देखा जा रहा था उसी के बातनी पहलू का यह मुकाशिफ़ा था ।
#हाशिया सवानेह क़ासमी
बात ख़त्म हो गई लेकिन यह सवाल सिर पर चढ़ कर आवाज़ दे रहा है कि जब हज़रते ख़िज़र की सूरत में नुसरते हक़ अंग्रेज़ी फौज के साथ थी तो उन बाग़ियों के लिए क्या हुक्म है जो हज़रते ख़िज़र के मुकाबले में लङने आए थे।
क्या अब भी उन्हें ग़ाज़ी और मुजाहिद कहा जा सकता है ?
अपने मौज़ से हट कर हम बहुत दूर निकल आए लेकिन आप की निगाह पर
बार न हो तो इस बहस के ख़ातमें पर अकाबिरे देवबन्द की एक दिलचस्प दस्तावेज़ और मुलाहेज़ा फ़रमाईए:
देवबन्दी हल्के के मुमताज़ मुसन्निफ़ मौलवी आशिक़ इलाही मेरठी अपनी किताब तज़किरतुर्रशीद में अंग्रेज़ी
हुकूमत के साथ मौलवी रशीद अहमद साहेब गंगोही के नियाज़ मंदाना जज़बात कि तस्वीर ख़ीचते हुए एक जगह लिखते हैं-
(आप ) समझे हुए थे कि मैं जब हकीकत में सरकार का फरमाँ बरदार हूं तो झूठे इल्ज़ाम से मेरा बाल बेका न होगा और अगर मारा भी गया तो सरकार मालिक है उसे इख़्तियार है जो करे।
#तज़किरतुर्रशीद, जिल्द- 1, सफा- 80
📕 ज़लज़ला, सफ़हा न०- 53
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