🕌 ग़ैबी इदराक के समुन्दर म तलातुम.... 🕋

अस्ले वाकिआ नक़ल करने के बाद लिखते हैं~

" खुद ही बताइए कि फ़िकरी व दिमाग़ी उलूम वाले भला इसका क्या मतलब समझ सकते हैं। कहाँ मेरठ और कहाँ छत्ता की मस्जिद । मेरठ से देवबन्द तक का मकानी फ़ासला दर्मियान में हाएल नहीं हुआ ।

#सवानेह क़ासिमी, जिल्द- 1, सफा- 345

बताइये! अब इस अनकही को क्या कहा जाए यह मोअम्मा तो गीलानी साहेब और उनकी जमाअत के उम्ला ही हल कर सकते हैं कि जो फ़ासलाए माकानी इन हज़रात के नज़दीक अम्बिया और सय्यदुल अम्बिया तक पर हाएल रहता है वह नानौतवी साहेब पर क्यों नहीं हाएल हुआ।

और मौलवी याकूब साहेब की ग़ैबी कुव्वते इदराक का क्या कहना कि उन्होंने तो देवबन्द में बैठे बैठे मौलवी क़ासिम साहेब नानौतवी की वह ग़ैबी तवज्जह तक मालूम कर ली जो उन्होंने मेरठ से उनकी तरफ़ मबूजूल की
थी

और वह भी इतना झट पट कि नमाज़ के बाद ग़ौर किया और सारा मामला उसी लम्हे मुंकशिफ़ हो गया। दिनों, हफ़्तों और महीनों की बात तो अलग रही। घंटे आधे घंटे का भी वक़्फा न गुज़रा।

लेकिन शर्म से सिर झुका लीजिये कि घर के बूजुर्गों का तो यह हाल बयान किया जाता है और रसूले मुजतबा
सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के हक़ मे पूरी जमाअत का अक़ीदा यह है........

📕 ज़लज़ला, सफ़हा न०- 56

🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ एस-अली।औवैसी

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