यूसुफ़ अलैहिस्सलाम और आईना

〽️हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम का एक दोस्त आपसे मुलाकात करने आया तो हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने उससे फ़रमाया- भई दोस्त-दोस्त के पास आता है तो उसके लिए कोई तोहफ़ा लाता है, बताओ तुम मेरे लिए क्या लाए हो?

दोस्त ने जवाब दिया- इस वक़्त दुनिया में आपसे बढ़कर कोई और हसीन व जमील चीज़ है ही नहीं जो मैं आपके लिए लाता। इसलिए मैं आपकी ख़िदमत में आप ही को लाया हूँ और यूसुफ़ के लिए तोहफ़ा भी यूसुफ़ लाया हूँ, ये कहकर एक आईना यूसुफ़ अलैहिस्स्लाम के सामने रख दिया और कहा लीजिए इसमें अपने हुस्न व जमाल का नज़ारा कीजिए, इससे बढ़कर और क्या तोहफा होगा!

( #मसनवी_शरीफ़ )


🌹सबक़ ~
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इंसान को चाहिए की वो अपना दिल मिस्ल आईना के साफ़ व शफ़्फ़ाफ़ बना ले और कल जब ख़ुदा पूछे की मेरे

बेसिबाती दुनिया

〽️बनी इस्राईल के एक नौजवान आबिद के पास हज़रत ख़िज़्र अलैहिस्सलाम तशरीफ़ लाया करते थे। ये बात उस वक़्त के बादशाह ने सुनी तो उस नौजवान आबिद को बुलाया और पूछा कि क्या बात सच है की तुम्हारे पास हज़रत ख़िज़्र अलैहिस्सलाम आया करते हैं?

उसने जवाब दिया कि हाँ, बादशाह ने कहा- अब जब वो आयें तो उन्हें मेरे पास लेकर आना। अगर ना लाओगे तो मैं तुम्हें क़त्ल कर दूंगा।

चुनाँचे एक दिन हज़रत ख़िज़्र अलैहिस्सलाम उस आबिद के पास तशरीफ़ लाए तो आबिद ने उनसे सारा वाक़्या अर्ज़ कर दिया। आपने फ़रमाया- चलो! उस बादशाह के पास चलते हैं।

चुनाँचे आप उस बादशाह के पास तशरीफ़ ले गए। बादशाह ने पूछा- क्या आप ही ख़िज़्र हैं? फ़रमाया-हाँ। बादशाह ने कहा तो हमें कोई बड़ी अजीब बात सुनाईये। फ़रमाया- मैंने दुनिया की बड़ी-बड़ी अजीब बातें देखी हैं मगर उनमें से एक सुनाता हूँ। लो सुनो-

मैं एक दफा एक बहुत बड़े खूबसूरत और आबाद शहर से गुज़रा मैंने उस शहर के एक बाशिन्दे से पूछा- ये शहर कब से बना है? तो उसने कहा- ये शहर बहुत पुराना शहर है। इसकी इब्तिदा का ना मुझे इल्म है और ना हमारे आबाओ अज्दाद को। ख़ुदा जाने कब से ये शहर यूं ही आबाद चला आ रहा है।

फ़िर मैं पाँस सौ साल के बाद इसी जगह से गुज़रा तो वहाँ शहर का नाम व निशान तक ना था। एक जंगल था और

तेरह सौ साल(1300) की उम्र का बादशाह

〽️हज़रत दानयाल अलैहिस्सलाम एक दिन जंगल में चले जाते थे। आपको एक गुंबद नज़र आया। आवाज़ आई की ऐ दानयाल! इधर आ। दानयाल अलैहिस्सलाम उस गुंबद के पास गए, मालूम हुआ की किसी मक़्बरे का गुंबद है। जब आप मक़्बरे के अन्दर तशरीफ़ ले गए तो देखा बड़ी उम्दा इमारत है और इमारत के बीच एक आलीशान तख़्त बिछा हुआ है। उस पर एक बड़ी लाश पड़ी है। फिर आवाज़ आई की दानयाल! तख़्त के ऊपर आओ। आप ऊपर तशरीफ़ ले गए तो एक लम्बी-चौड़ी तलवार मुर्दे के पहलू में रखी हुई नज़र आई। उस पर ये इबारत लिखी हुई नज़र आई की मैं क़ौमे आद से एक बादशाह हूँ। ख़ुदा ने तेरह(1300) सौ साल की मुझे उम्र अता फ़रमाई। बारह हज़ार मैंने शादियाँ कीं, आठ हज़ार बेटे हुए, ला-तअदाद ख़जाने मेरे पास थे। इस क़द्र नेअमतें लेकर भी मेरे नफ़्स ने ख़ुदा का शुक्र ना किया बल्की उल्टा कुफ़्र करना शुरू किया और ख़ुदाई दअवे करने लगा।

खुदा ने मेरी हिदायत के लिए एक पैग़म्बर को भेजा। हर चन्द उन्होंने मुझे समझाया, मगर मैंने कुछ ना सुना। अंजाम कार वो पैग़म्बर मुझे बद्दुआ दे कर चले गए। हक़ तआला ने मुझ पर और मेरे मुल्क पर क़हेत मुसल्लत कर दिया। जब मेरे मुल्क में कुछ पैदा ना हुआ, तब मैंने दूसरे मुल्कों में हुक्म भेजा की हर एक किस्म का ग़ल्लह और मेवा मेरे मुल्क में भेजा जाए।

बमौजिब मेरे हुक्म के हर किस्म का ग़ल्लह और मेवा मेरे मुल्क में आने लगा, जिस वक़्त वो ग़ल्लह या मेवा मेरे शहर की सरहद में दाखिल होता, फ़ौरन मिट्टी बन जाता और वो सारी मेहनत बेकार जाती और कोई दाना मुझे

सौतेली बेटी

〽️हज़रत यहिया अलैहिस्सलाम के ज़माना में एक बादशाह था। जिसकी बीवी किसी क़द्र बूढ़िया थी। उस बूढ़िया की पहले ख़ाविंद से एक नौजवान लड़की थी। बुढ़िया को ये ख़ौफ़ हुआ की मैं तो बूढ़िया हो गई हूँ, ऐसा ना हो की ये बादशाह किसी ग़ैर औरत से शादी कर ले और मेरी सल्तनत जाती रहे इसलिए ये बेहतर है के अपनी जवान लड़की से उसका अक़्द कर दूं। इस ख़्याल से एक दिन शादी का इन्तिज़ाम करके हज़रत यहिया अलैहिस्सलाम को बुला कर पूछा की मेरा ये इरादा है।

हज़रत यहिया अलैहिस्सलाम ने फ़रमया की ये निकाह हराम है, जायज़ नहीं। ये फ़रमा कर आप वहाँ से तशरीफ़ ले आए। इस बद ख़याल दुनियादार बूढ़िया को बहुत गुस्सा आया और आपकी दुश्मन हो गई। रात दिन आपके क़त्ल करने का फ़िक्र करती थी।

एक दिन मौक़ा पाकर बादशाह को शराब पिला कर अपनी बेटी को बना कर संवार कर बादशाह के पास ख़लवत में भेज दिया। जब बादशाह अपनी सौतेली बेटी की तरफ़ रागिब हुआ तो बूढ़िया ने कहा की मैं इस काम को खूशी

सुलेमान अलैहिस्सलाम और मलक-उल-मौत

〽️हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम के दरबार आली में एक आदमी घबराया हुआ हाज़िर हुआ और अर्ज़ करने लगा- हुज़ूर हवा को हुक्म दीजिए की मुझे सरज़मीन हिन्द में पहुँचा दे।

हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया- बात क्या हुई? यहाँ से क्यों जाना चाहते हो? वो कहने लगा- हुज़ूर! अभी-अभी मैंने मलक-उल-मौत को देखा है जो मुझे घूर-घूर कर देख रहा था, वो देखिये वो मुझे घूर रहा है। हुज़ूर! मेरी ख़ैर नहीं मुझे अभी हिन्द पहुँचा दीजिए।

हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम ने हवा को हुक्म दिया तो हवा फ़ौरन उसको हिन्द छोड़ आई। थोड़ी देर के बाद मलक-उल-मौत हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम के पास आया और अर्ज़ करने लगा- हुज़ूर! सुना आपने उस आदमी का किस्सा? ख़ुदा का मुझे हुक्म था की उस शख़्स की जान सर ज़मीन हिन्द में क़ब्ज़ करो। मैं हैरान था की उसकी जान हिन्द में क़ब्ज़ करने को फ़रमाया गया है और ये यहाँ आपके पास खड़ा है। मैं इसी हैरानी में उसे देख

माँ की ममता

〽️हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम के ज़माने में दो औरतें थीं। दोनों की गोंद में दो बेटे थे। वो दोनों कहीं जा रही थीं की रास्ते में एक भेड़िया आया और एक का बच्चा उठा कर ले गया। वो औरत जिसका बच्चा भेड़िया उठा कर ले गया था। दूसरी औरत के बच्चे को छीन कर बोली के ये बच्चा मेरा है। भेड़िया तेरे बच्चे को उठा कर ले गया है। बच्चे की माँ ने कहा- बहन अल्लाह से डर, ये बच्चा तो मेरा है। भेड़िये ने तेरे बच्चे को उठाया है।

उन दोनों में जब झगड़ा बढ़ गया तो दोनों हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम की अदालत में हाज़िर हुईं। हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम ने वो बच्चा बड़ी औरत को दिला दिया, हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम को इस बात की ख़बर हुई तो आपने फ़रमाया- अब्बा जान! एक फ़ैसला मेरा भी है और वो ये है के छुरी मंगवाई जाए मैं उस बच्चे के दो टुकड़े करता हूँ और आधा बड़ी को और आधा छोटी को दे देता हूँ।

ये फ़ैसला सुनकर बड़ी तो ख़ामोश रही और छोटी बोली की हुज़ूर! आप बच्चा बड़ी को ही दे दें लेकिन खुदारा बच्चे

सुलेमान अलैहिस्सलाम का फ़ैसला

〽️हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम की अदालत में दो शख़्स हाज़िर हुए, एक ने ये दावा किया कि उस दूसरे शख़्स की बकरियाँ रात को मेरे खेत में घुस गईं और उन्होंने मेरा सारा खेत खा लिया है। हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम ने ये फ़ैसला दिया के सब बकरियाँ खेत वाले को दे दी जाएँ, उन बकरियों की क़ीमत खेत के नुक़्सान के बराबर थी।

जब वो दोनों शख़्स वापस हुए तो हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम से रास्ते में मुलाक़ात हो गई। उन दोनों ने सुलेमान अलैहिस्सलाम को हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम का फ़ैसला सुनाया। हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया- इस फ़ैसले से बेहतर एक और फ़ैसला भी है।

उस वक़्त हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम की उम्र शरीफ़ ग्यारह बरस की थी। हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम ने जो सुलेमान अलैहिस्सलाम के वालिद थे, जब अपने साहबज़ादे की ये बात सुनी तो सुलेमान अलैहिस्सलाम को कर दरयाफ़्त फ़रमाया कि बेटा! वो कौन सा फ़ैसला है जो बेहतर है।

सुलेमान अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया- वो ये है की बकरियों वाला उस खेत की काश्त करे और जब तक खेती इस

एक अज़ीमुश्शान हुकूमत

〽️हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम को अल्लाह ने एक अज़ीमुश्शान हुकूमत अता फ़रमाई थी और आपके बस में हवा कर दी थी। आप हवा को जहाँ हुक्म फ़रमाते थे वो आप के तख़्त को उड़ा कर वहाँ पहुँचा देती थी। (1, #क़ुरआन करीम पारा-17, रूकू-6 ) और जिन्न व इंसान और परिन्दे सब आपके ताबो और लश्करी थे। (2, #क़ुरआन करीम पारा-19, रूकू-17) आप हैवानात की बोलियाँ भी जानते थे। (3, #क़ुरआन करीम पारा-19, रूकू-17)

हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम जब बैत-उल-मुक़द्दस की तामीर से फ़ारिग़ हुए तो आपने हरम शरीफ़ (मक्का मोअज़्ज़मा) पहुँचने का अज्म फ़रमाया।

चुनाँचे तैयारी शुरू हुई और आपने जिन्नों, इंसानों परिन्दों और दीगर जानवरों को साथ चलने का हुक्म दिया। हत्ता की एक बहुत बड़ा लश्कर तैयार हो गया। ये अज़ीम लश्कर तक़रीबन तीस मील में पूरा आया। हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम ने हुक्म दिया तो हवा ने तख़्त सुलेमान को मअ उस लश्कर अज़ीम के उठाया और फ़ौरन हरम शरीफ़ में पहुँचा दिया।

हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम हरम शरीफ में कुछ अर्सा ठहरे। उस अर्से में आप मक्का मोअज़्ज़मा में हर रोज़ पाँच हजार ऊँट, पाँच हज़ार गाय और बीस हजार बकरियाँ ज़िबह फ़रमाते थे और अपने लश्कर में हमारे हुज़ूर सय्यद-उल-अम्बिया सल-लल्लाहु अलैही व सल्लम की बशारत सुनाते रहे और यहीं से एक नबी अर्बी पैदा होंगे जिनके बाद फिर कोई और नबी पैदा ना होगा।

हज़रत सुलेमान अलेहिस्सलाम कुछ अर्से के बाद मक्का मोअज़्ज़मा में मनासिक अदा फ़रमाने के बाद एक सुबह को वहाँ से चल कर सनआ मुल्क यमन में पहुँचे। मक्का मोअज़्ज़मा से सनआ का एक महीने का सफ़र है और आप मक्का से सुबह को रवाना हुए और सनआ ज़वाल के वक्त पहुँच गए। आपने यहाँ भी कुछ अर्सा ठहरने का इरादा फ़रमाया। यहाँ पहुँच कर परिन्दा हुद-हुद एक रोज ऊपर उड़ा और बहुत ऊपर पहुँचा और सारी दुनिया के तूल व अर्ज़ को देखा। उसको एक सरसब्ज़ बाग़ नज़र आया, ये बाग़ मल्लिका बिलकिस का था। उसने देखा की उस बाग़

ठंडा चश्मा

〽️हज़रत अय्युब अलैहिस्सलाम को अल्लाह ने हर तरह की नेअमतें अता फ़रमाई थीं। हुस्ने सूरत भी, कसरत औलाद भी और कसरत अमवाल भी। अल्लाह तआला ने आपको इब्तला में डाला और आपके फ़रजंद व औलाद मकान के गिरने से दबकर मर गए, तमाम जानवर जिनमें हज़ारहा ऊँट और हज़ारहा बकरियाँ थीं सब मर गए, तमाम खेतियाँ और बाग़ात बर्बाद हो गए, कुछ बाक़ी ना रहा और जब आपको उन चीज़ों के हलाक होने और ज़ाए हो जाने की खबर मिलती तो आप हम्द इलाही बजा लाते और फ़रमाते थे मेरा क्या है? जिसका था उसने ले लिया। जब तक मुझे दिया, मेरे पास रहा उसका शुक्र अदा नहीं हो सकता। मैं उसकी मर्जी पर राज़ी हूँ।

फिर आप बीमार हो गए बदन मुबारक पर आबले पड़ गए। जिस्म शरीफ़ सब ज़ख्मों से भर गया। सब लोगों ने छोड़ दिया, बजुज़ आपकी बीबी साहिबा के की वो आपकी ख़िदमत करती रही और ये हालत कितनी मुद्दत तक रही।

आख़िर एक रोज़ हज़रत अय्युब अलैहिस्सलाम ने अल्लाह से दुआ की तो अल्लाह तआला ने फ़रमाया- ऐ अय्युब! तू अपना पाँऊ ज़मीन पर मार, तेरे पैर मारने से एक ठंडा चश्मा निकल आएगा। उसका पानी पीना और उससे नहाना।

चुनाँचे हज़रत अय्युब अलैहिस्स्लाम ने अपना पाँऊ ज़मीन पर मारा तो एक ठंडा चश्मा निकल आया। जिससे आप

पत्थर की ऊँटनी

〽️क़ौम आद की हलाक़त के बाद क़ौम समूद पैदा हुई। ये लोग हिजाज़ व शाम के दरमियान इक़्ताअ में आबाद थे। उनकी उम्र बहुत बड़ी होतीं। पत्थर के मज़बूत मकान बनाते, वो टूट-फूट जाते मगर मकीन बस्तूर बाक़ी रहते।

जब उस क़ौम ने भी अल्लाह की नाफ़रमानी शुरू की तो अल्लाह ने उनकी हिदायत के लिए हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम को मबऊस फ़रमाया। क़ौम ने इंकार करना शुरू किया। बअज़ ग़रीब-ग़रीब लोग आप पर ईमान ले आए। उन लोगों का साल के बाद एक ऐसा दिन आता था, जिसमें ये मेले के तौर पर ईद मनाया करते थे। उसमें दूर-दूर से आकर लोग शरीक होते।

ये मेले का दिन आया तो लोगों ने हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम को भी इस मेले में बुलाया। हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम एक बहुत बड़े मजमें में तबलीगे हक़ की ख़ातिर तशरीफ़ ले गए। क़ौमे समूद के बड़े-बड़े लोगों ने वहाँ हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम से ये कहा कि अगर आपका ख़ुदा सच्चा है और आप उसके रसूल हैं तो हमें कोई मौजज़ा दिखलाईये। आपने फ़रमाया- बोलो! क्या देखना चाहते हो?

उनका सबसे बड़ा सरदार बोला- वो सामने जो पहाड़ी नज़र आ रही है, अपने रब से कहिये के उसमें से वो एक

तूफ़ान बाद

〽️क़ौमे आद एक बड़ी ज़बरदस्त कौन थी जो इलाक़ा यमन के एक रेगिस्तान अहक़ाफ़ में रहती थी। उन लोगों ने ज़मीन को फ़िस्क़ो फुजूर से भर दिया था और अपने ज़ोर व क़ुव्वत के ज़ोम में दुनिया की दूसरी क़ौमों को अपनी जफ़ा कारियों से पामाल कर डाला था। ये लोग बुत परस्त थे अल्लाह तआला ने उनकी हिदायत के लिए हज़रत हूद अलैहिस्सलाम को मबऊस फ़रमाया। आपने उनको दर्स तौहीद दिया और ज़ोर व सितम से रोका तो वो लोग आपके मुनकिर और मुख़ालिफ़ हो गए और कहने लगे आज हम से ज़्यादा ज़ोर आवर कौन है?

कुछ लोग हज़रत हूद अलैहिस्सलाम पर ईमान लाए मगर वो बहुत थोड़े थे। क़ौम ने जब हद से ज़्यादा बग़ावत व शिक़ावत का मुज़ाहेरह किया और अल्लाह के पैग़म्बर की मुख़ालफ़त की तो एक सियाह रंग का अब्र आया जो क़ौमे आद पर छा गया। वो लोग देखकर खूश हुए के पानी की ज़रूरत है उससे पानी खूब बरसेगा, मगर उसमें से एक हवा चली वो इस शिद्दत से चली के ऊँटों और आदमियों को उड़ा-उड़ा कर कहीं से कहीं ले जाती थी। ये देखकर वो लोग घरों में दाखिल हुए और दरवाज़े बन्द कर लिए मगर हवा की तेजी से ना बच सके। उसने दरवाज़े

जानवरों की बोलियाँ

〽️हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के पास एक शख़्स हाज़िर हुआ और कहने लगा हुज़ूर! मुझे जानवरों की बोलियाँ सिखा दीजिए, मुझे इस बात का बड़ा शौक़ है। आपने फ़रमाया के तुम्हारा ये शौक़ अच्छा नहीं तुम इस बात को रहने दो। उसने कहा- आपका इसमें क्या नुक़्सान है, हुज़ूर मेरा एक शौक़ है उसे पूरा कर ही दीजिए।

हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने अल्लाह तआला से अर्ज़ की कि मौला ये बन्दा मुझ से इस बात का इसरार कर रहा है, इर्शाद फ़रमा की मैं क्या करूँ? हुक्म इलाही हुआ कि जब ये शख़्स बाज़ नहीं आता तो तुम उसे जानवरों की बोलियाँ सिखा दो।

चुनाँचे हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने उसे जानवरों की बोलियाँ सिखा दी। उस शख़्स ने एक मुर्ग़ और एक कुत्ता पाल रखा था। एक दिन खाना खाने के बाद उसकी खादिमा ने दसतरख़्वान जो झाड़ा तो रोटी का एक टुकड़ा गिरा। उसका कुत्ता और मुर्ग़ दोनों उसकी तरफ लपके और वो रोटी का टुकड़ा उस मुर्ग ने उठा लिया। कुत्ते ने उस मुर्ग़ से कहा- अरे ज़ालिम मैं भुखा था, ये टुकड़ा मुझे खा लेने देता। तेरी खूराक तो दाना दुनका है मगर तूने ये टुकड़ा भी ना छोड़ा। मुर्ग़ बोला- घबराओ नहीं कल हमारे मालिक का ये बैल मर जाएगा, तुम कल जितना चाहोगे उसका गोश्त खा लेना। उस शख़्स ने उनकी ये गुफ़्तगू सुन कर बैल को फ़ौरन बेच डाला वो बैल दूसरे दिन मर तो गया लेकिन नुक़्सान खरीदार का हुआ और ये शख़्स नुक़्सान से बच गया।

दूसरे दिन कुत्ते ने मुर्ग़ से कहा बड़े झूटे हो तुम ख़्वाह-म-ख्वाह मुझे आज की उम्मीद में रखा बताओ कहाँ है वो बैल