〽️हज़रत
यहिया अलैहिस्सलाम के ज़माना में एक बादशाह था। जिसकी बीवी किसी क़द्र
बूढ़िया थी। उस बूढ़िया की पहले ख़ाविंद से एक नौजवान लड़की थी। बुढ़िया को
ये ख़ौफ़ हुआ की मैं तो बूढ़िया हो गई हूँ, ऐसा ना हो की ये बादशाह किसी ग़ैर
औरत से शादी कर ले और मेरी सल्तनत जाती रहे इसलिए ये बेहतर है के अपनी जवान
लड़की से उसका अक़्द कर दूं। इस ख़्याल से एक दिन शादी का इन्तिज़ाम करके
हज़रत यहिया अलैहिस्सलाम को बुला कर पूछा की मेरा ये इरादा है।
हज़रत यहिया अलैहिस्सलाम ने फ़रमया की ये निकाह हराम है, जायज़ नहीं। ये फ़रमा कर आप वहाँ से तशरीफ़ ले आए। इस बद ख़याल दुनियादार बूढ़िया को बहुत गुस्सा आया और आपकी दुश्मन हो गई। रात दिन आपके क़त्ल करने का फ़िक्र करती थी।
एक दिन मौक़ा पाकर बादशाह को शराब पिला कर अपनी बेटी को बना कर संवार कर बादशाह के पास ख़लवत में भेज दिया। जब बादशाह अपनी सौतेली बेटी की तरफ़ रागिब हुआ तो बूढ़िया ने कहा की मैं इस काम को खूशी से मंजूर करती हूँ मगर यहिया इजाज़त नहीं देते।
बादशाह ने हज़रत यहिया अलैहिस्स्लाम को बुला कर पूछा। हज़रत यहिया अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया की ये तुम्हारी हक़ीक़ी बेटी की तरह तुम पर हराम है।
बादशाह ने जल्लाद को हुक्म दिया के यहिया को ज़िबह कर दो। फ़ौरन जल्लादों ने हज़रत यहिया अलैहिस्सलाम को शहीद कर दिया। शहीद होने के बाद भी हज़रत यहिया के सर अनवर से आवाज़ आई की ऐ बादशाह! ये औरत तुझ पर हराम है, ऐ बादशाह! ये औरत तुझ पर हराम है, ऐ बादशाह! ये औरत तुझ पर हमेशा के लिए हराम है।
( #सीरत_उल_सालेहीन सफ़ा-80 )
🌹सबक़ ~
=========
फ़ासिक व फ़ाजिर हाकिम अपनी नफ़्सानी ख़्वाहिशात की तकमील के लिए बड़े-बड़े मज़ालिम ढहाते हैं और फ़ासिक़ा व फ़ाजिरा औरतों को खूश करने की ख़ातिर अल्लाह के प्यारों के दरपैय आज़ार हो जाते हैं और अल्लाह वाले पैग़ामे हक़ पहुँचाने में जान तक की भी परवाह नहीं करते।
📕»» सच्ची हिकायात ⟨हिस्सा अव्वल⟩, पेज: 115-116, हिकायत नंबर- 96
हज़रत यहिया अलैहिस्सलाम ने फ़रमया की ये निकाह हराम है, जायज़ नहीं। ये फ़रमा कर आप वहाँ से तशरीफ़ ले आए। इस बद ख़याल दुनियादार बूढ़िया को बहुत गुस्सा आया और आपकी दुश्मन हो गई। रात दिन आपके क़त्ल करने का फ़िक्र करती थी।
एक दिन मौक़ा पाकर बादशाह को शराब पिला कर अपनी बेटी को बना कर संवार कर बादशाह के पास ख़लवत में भेज दिया। जब बादशाह अपनी सौतेली बेटी की तरफ़ रागिब हुआ तो बूढ़िया ने कहा की मैं इस काम को खूशी से मंजूर करती हूँ मगर यहिया इजाज़त नहीं देते।
बादशाह ने हज़रत यहिया अलैहिस्स्लाम को बुला कर पूछा। हज़रत यहिया अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया की ये तुम्हारी हक़ीक़ी बेटी की तरह तुम पर हराम है।
बादशाह ने जल्लाद को हुक्म दिया के यहिया को ज़िबह कर दो। फ़ौरन जल्लादों ने हज़रत यहिया अलैहिस्सलाम को शहीद कर दिया। शहीद होने के बाद भी हज़रत यहिया के सर अनवर से आवाज़ आई की ऐ बादशाह! ये औरत तुझ पर हराम है, ऐ बादशाह! ये औरत तुझ पर हराम है, ऐ बादशाह! ये औरत तुझ पर हमेशा के लिए हराम है।
( #सीरत_उल_सालेहीन सफ़ा-80 )
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फ़ासिक व फ़ाजिर हाकिम अपनी नफ़्सानी ख़्वाहिशात की तकमील के लिए बड़े-बड़े मज़ालिम ढहाते हैं और फ़ासिक़ा व फ़ाजिरा औरतों को खूश करने की ख़ातिर अल्लाह के प्यारों के दरपैय आज़ार हो जाते हैं और अल्लाह वाले पैग़ामे हक़ पहुँचाने में जान तक की भी परवाह नहीं करते।
📕»» सच्ची हिकायात ⟨हिस्सा अव्वल⟩, पेज: 115-116, हिकायत नंबर- 96
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🖌पोस्ट क्रेडिट - शाकिर अली बरेलवी रज़वी व अह्-लिया मोहतरमा
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