〽️बनी इस्राईल में सामरी नाम का एक सुनार था। ये क़बीला सामरा की तरफ़ मनसूब था और ये क़बीला गाय की शक्ल के बुत का पूजारी था। सामरी जब बनी इस्राईल की क़ौम में आया तो उनके साथ बज़ाहिर ये भी मुसलमान हो गया, मगर दिल में “गाए की पूजा" की मोहब्बत रखता था।

चुनाँचे जब बनी इस्राईल दरिया से पार हुए और बनी इस्राईल ने एक बुत परस्त क़ौम को देखकर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से अपने लिए भी एक बुत की तरह का ख़ुदा बनाने की दरख़्वास्त की और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम उस बात पर नाराज़ हुए तो सामरी मौके की तलाश में रहने लगा।

चुनाँचे हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम तौरात लाने के लिए कोहे तूर पर तशरीफ़ ले गए तो मौक़ा पाकर सामरी ने बहुत सा ज़ेवर पिघला कर सोना जमा किया और उससे एक गाए का बुत तैयार किया और फिर उसने कुछ खाक उस गाए के बुत में डाली तो वो गाए के बछड़े की तरह बोलने लगा और उसमें जान पैदा हो गई। सामरी ने बनी इस्राईल में उस बछड़े की परसतिश शुरू करा दी और बनी इस्राईल उस बछड़े के पुजारी बन गए।

हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम जब कोहे तूर से वापस तशरीफ़ लाए। तो क़ौम का ये हाल देख कर बड़े गुस्से में आए और सामरी से दरयाफ़्त फ़रमाया कि ऐ सामरी! ये तूने क्या किया? सामरी ने बताया कि मैंने दरिया से पार होते वक़्त जिब्राईल को घोड़े पर सवार देखा था और मैंने देखा के जिब्राईल के घोड़े के कदम जिस जगह पर पड़ते हैं वहाँ सब्जा उग आता है। मैंने उस घोड़े के क़दम की जगह से कुछ खाक उठा ली और वो खाक मैंने बछड़े के बुत में डाल दी तो ये ज़िन्दा हो गया है और मुझे यही बात अच्छी लगी है। मैं जो कुछ किया है,अच्छा किया है।

हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने फ़रमया- अच्छा तो जा, दूर हो जा। अब इस दुनिया में तेरी सज़ा ये है कि तू हर एक से ये कहेगा कि मुझे छू ना जाना यानी तेरा ये हाल हो जाएगा कि तू किसी शख़्स को अपने करीब ना आने देगा।

चुनाँचे वाकई उसका ये हाल हो गया कि जो कोई उससे छू जाता तो उस छूने वाले को और सामरी को भी बड़ी शिद्दत का बुखार हो जाता और उन्हें बड़ी तकलीफ़ होती। इसलिए सामरी खुद ही चीख़-चीख़ कर लोगों से कहता फिरता के मेरे साथ कोई ना लगे और लोग भी उससे इजतनाब करते ताकी उससे लगकर बुखार में ना हो जाए। इस अज़ाबे दुनिया में गिरफ्तार होकर सामरी बिल्कुल तनहा रह गया और जंगल को चला गया और बड़ा ज़लील होकर मरा।

( #क़ुरआन करीम पारा-16, रूकू-14; रूह-उल-बयान सफ़ा-599, जिल्द-2 )


🌹सबक़ ~
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आज भी गाय के पुजारी छूत-छात के इल्म बरदार हैं और जिस तरह वो मुसलमानों से अलग रहना चाहते हैं, उसी तरह मुसलमानों को भी उनसे इजतनाब रखना चाहिए और ये भी मालूम हुआ के जिब्राईल के घोड़े के क़दम की खाक से अगर ज़िन्दगी मिल सकती है तो जिब्राईल के भी आक़ा व मौला सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम हैं और हुज़ूर के उम्मती जो औलिया अल्लाह हैं, उनके दमक़दम से हज़ारों लाखों फ़यूज़ व बर्कात क्यों हासिल नहीं हो सकते, होते हैं और यक़ीनन होते हैं लेकिन जो दिल के अंधे हैं और सामरी से भी ज्यादा शक़ी हैं वो उन अल्लाह वालों के फ़यूज़ व बर्कात के मुनकिर हैं।

📕»» सच्ची हिकायात ⟨हिस्सा अव्वल⟩, पेज: 97-98, हिकायत नंबर- 85
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🖌पोस्ट क्रेडिट - शाकिर अली बरेलवी रज़वी व अह्-लिया मोहतरमा

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