〽️क़ौम आद की हलाक़त के बाद क़ौम समूद पैदा हुई। ये लोग हिजाज़ व शाम के दरमियान इक़्ताअ में आबाद थे। उनकी उम्र बहुत बड़ी होतीं। पत्थर के मज़बूत मकान बनाते, वो टूट-फूट जाते मगर मकीन बस्तूर बाक़ी रहते।

जब उस क़ौम ने भी अल्लाह की नाफ़रमानी शुरू की तो अल्लाह ने उनकी हिदायत के लिए हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम को मबऊस फ़रमाया। क़ौम ने इंकार करना शुरू किया। बअज़ ग़रीब-ग़रीब लोग आप पर ईमान ले आए। उन लोगों का साल के बाद एक ऐसा दिन आता था, जिसमें ये मेले के तौर पर ईद मनाया करते थे। उसमें दूर-दूर से आकर लोग शरीक होते।

ये मेले का दिन आया तो लोगों ने हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम को भी इस मेले में बुलाया। हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम एक बहुत बड़े मजमें में तबलीगे हक़ की ख़ातिर तशरीफ़ ले गए। क़ौमे समूद के बड़े-बड़े लोगों ने वहाँ हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम से ये कहा कि अगर आपका ख़ुदा सच्चा है और आप उसके रसूल हैं तो हमें कोई मौजज़ा दिखलाईये। आपने फ़रमाया- बोलो! क्या देखना चाहते हो?

उनका सबसे बड़ा सरदार बोला- वो सामने जो पहाड़ी नज़र आ रही है, अपने रब से कहिये के उसमें से वो एक बहुत बड़ी ऊँटनी निकाल दे जो दस महीने की हामला हो।

हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम ने उस पहाड़ी के क़रीब आकर दो रकअत नमाज़ अदा की और दुआ की तो वो पहाड़ी लरज़ने लगी और थोड़ी देर के बाद वो पहाड़ी शक़ हुई और उसमें से सबके सामने एक ऊँटनी निकली जो हामला थी और फिर उसने उसी वक़्त बच्चा भी जना।

इस वाक़ये से क़ौम में एक हैरत पैदा हुई, कुछ लोग मुसलमान हुए और बहुत से अपने कुफ़्र पर ही क़ायम रहे।

( #क़ुरआन करीम पारा-8, रूकू-17; रूह-उल-बयान सफ़ा-728, जिल्द 1 )


🌹सबक़ ~
=========


अम्बियाक्राम अलेहिमअस्सलाम के मोजज़ात बरहक़ हैं और अल्लाह तआला हर बात पर क़ादिर है। अम्बिया अलेहिमअस्सलाम के मोजज़ात का इंकार काफ़िरों का ही काम है।


📕»» सच्ची हिकायात ⟨हिस्सा अव्वल⟩, पेज: 105-106, हिकायत नंबर- 90
--------------------------------------------------------
🖌पोस्ट क्रेडिट - शाकिर अली बरेलवी रज़वी व अह्-लिया मोहतरमा

📌 हिंदी हिकायात पोस्ट पढ़ने के लिए क्लिक करिये ⬇
https://MjrMsg.blogspot.com/p/hikaayaat.html