〽️हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम को अल्लाह ने एक अज़ीमुश्शान हुकूमत अता फ़रमाई थी और आपके बस में हवा कर दी थी। आप हवा को जहाँ हुक्म फ़रमाते थे वो आप के तख़्त को उड़ा कर वहाँ पहुँचा देती थी। (1, #क़ुरआन करीम पारा-17, रूकू-6 ) और जिन्न व इंसान और परिन्दे सब आपके ताबो और लश्करी थे। (2, #क़ुरआन करीम पारा-19, रूकू-17) आप हैवानात की बोलियाँ भी जानते थे। (3, #क़ुरआन करीम पारा-19, रूकू-17)

हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम जब बैत-उल-मुक़द्दस की तामीर से फ़ारिग़ हुए तो आपने हरम शरीफ़ (मक्का मोअज़्ज़मा) पहुँचने का अज्म फ़रमाया।

चुनाँचे तैयारी शुरू हुई और आपने जिन्नों, इंसानों परिन्दों और दीगर जानवरों को साथ चलने का हुक्म दिया। हत्ता की एक बहुत बड़ा लश्कर तैयार हो गया। ये अज़ीम लश्कर तक़रीबन तीस मील में पूरा आया। हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम ने हुक्म दिया तो हवा ने तख़्त सुलेमान को मअ उस लश्कर अज़ीम के उठाया और फ़ौरन हरम शरीफ़ में पहुँचा दिया।

हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम हरम शरीफ में कुछ अर्सा ठहरे। उस अर्से में आप मक्का मोअज़्ज़मा में हर रोज़ पाँच हजार ऊँट, पाँच हज़ार गाय और बीस हजार बकरियाँ ज़िबह फ़रमाते थे और अपने लश्कर में हमारे हुज़ूर सय्यद-उल-अम्बिया सल-लल्लाहु अलैही व सल्लम की बशारत सुनाते रहे और यहीं से एक नबी अर्बी पैदा होंगे जिनके बाद फिर कोई और नबी पैदा ना होगा।

हज़रत सुलेमान अलेहिस्सलाम कुछ अर्से के बाद मक्का मोअज़्ज़मा में मनासिक अदा फ़रमाने के बाद एक सुबह को वहाँ से चल कर सनआ मुल्क यमन में पहुँचे। मक्का मोअज़्ज़मा से सनआ का एक महीने का सफ़र है और आप मक्का से सुबह को रवाना हुए और सनआ ज़वाल के वक्त पहुँच गए। आपने यहाँ भी कुछ अर्सा ठहरने का इरादा फ़रमाया। यहाँ पहुँच कर परिन्दा हुद-हुद एक रोज ऊपर उड़ा और बहुत ऊपर पहुँचा और सारी दुनिया के तूल व अर्ज़ को देखा। उसको एक सरसब्ज़ बाग़ नज़र आया, ये बाग़ मल्लिका बिलकिस का था। उसने देखा की उस बाग़ में एक हुद-हुद बैठा है, हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम के हुद-हुद का नाम यअफूर था। यअफूर और यमनी हुद-हुद की हस्बे ज़ेल गुफ़्तगू हुई-

यमनी हुद-हुदः भई तुम कहाँ से आए और कहाँ जाओगे? यअफूरः मैं मुल्क शाम से, अपने बादशाह सुलेमान के साथ आया हूँ।

यमनी हुद-हुदः सुलेमान कौन है?
यअफूरः वो जिन्नों, इंसानों, शयातीन, परिन्दों, जानवरों और हवा का एक अज़ीमुश्शान फ़रमानरवा और सुल्तान है। उसमें बड़ी ताक़त है हवा उसकी सवारी है और हर चीज़ उसकी ताबऐ है। अच्छा तुम बताओ के तुम किस मुल्क के हो।

यमनी हुद-हुदः मैं इसी मुल्क का रहने वाला हूँ। हमारे इस मुल्क की बादशाह एक औरत है। जिसका नाम बिलकिस है। उसके मातहत बारह हज़ार सिपहसालार हैं और हर सिपहसालार के मातहत एक एक लाख सिपाही है फिर उसने यअफूर से कहा- तुम मेरे साथ एक अज़ीम एक अज़ीम मुल्क और लश्कर देखने चलोगे?

यअफूरः भई मेरे बादशाह सुलेमान अलैहिस्सलाम की नमाजे अस्र का वक़्त हो रहा है और उन्हें वज़ू लिए पानी दरकार होगा और पानी की जगह बताने पर मैं मामूर हूँ अगर देर हो गई तो वो नाराज़ होंगे।

यमनी हुद हुदः नहीं बल्की यहाँ के मुल्क और फ़रमानरवा बिलकिस की मुफ़स्सिल ख़बर सुन कर खूश होंगे।
यअफूरः अच्छा तो चलो।

(दोनों उड़ गए और यअफूर मुल्क यमन को देखने लगा) और इधर हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलमा ने नमाज़ अस्र के वक़्त हुद-हुद को तलब फ़रमाया तो वो ग़ैर हाज़िर निकला। आप बड़े जलाल में आ गए और फ़रमाया- क्या हुआ कि मैं हुद-हुद को नहीं देखता या वो वाकई हाज़िर नहीं, ज़रूर मैं उसे सख़्त अज़ाब करूंगा या ज़िबह करूंगा या कोई रोशन सनद मेरे पास लाए। ( #क़ुरआन करीम पारा-19, रूकू-71 ) और फिर अक़ाब को हुक्म दिया की वो उड़ कर देखे की हुद-हुद कहाँ है?

चुनाँचे अक़ाब उड़ा और बहुत ऊपर पहुँच कर सारी दुनिया को इस तरह देखने लगा जिस तरह आदमी अपने हाथ के पियाले को देखता है। अचानक उसे हुद-हुद यमन की तरफ से आता हुआ दिखाई दिया। अक़ाब फ़ौरन उसके पास पहुँचा और कहा ग़ज़ब हो गया, अपनी फ़िक्र कर ले अल्लाह के नबी सुलेमान ने तुम्हारे लिए क़सम खा ली है की मैं हुद-हुद को सख़्त सज़ा दूंगा या ज़िबह कर दूंगा।

हुद-हुद ने डरते हुए पूछा और अल्लाह के नबी ने उस हलफ़ में किसी बात का इसतसना भी फ़रमाया है या नहीं? अक़ाब ने कहा- हाँ ये फ़रमाया है कि "या कोई रोशन सनद मेरे पास लाए।"

हुद-हुद ने कहा तो फिर मैं बच गया। मैं उनके लिए एक बहुत बड़ी ख़बर लेकर आया हूँ। फिर अक़ाब और हुद-हुद दोनों बारगाहे सुलेमानी में हाज़िर हुए। हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम ने रौब व जलाल में फ़रमाया “हुद हुद को हाज़िर करो।"

हुद-हुद बेचारा दमबखुद, अपनी दुम नीचे किए हुए, पर ज़मीन से मलता हुआ और कांपता हुआ हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम के क़रीब आया तो हजरत सुलेमान ने उसको सर से पकड़ कर अपनी तरफ़ घसीटा। उस वक़्त हुद-हुद ने कहाः उज़कुरू कूफ़ाका बिना यदायिल्लाही “हुज़ूर! अल्लाह के सामने अपनी हाज़री को याद कर लीजिए।"

हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम ने ये बात सुनकर उसे छोड़ दिया और उसे माफ़ फ़रमा दिया। फिर हुद-हुद ने अपनी ग़ैर हाज़री की वजह बयान की और बताया की मैं एक बहुत बड़ी मल्लिका को देखकर आया हूँ। ख़ुदा ने उसे हर किस्म का सामान ऐश व इशरत दे रखा है और वो सूरज की पुजारिन है: वलाहा अरशुन अज़ीम और उसका एक बहुत बड़ा तख़्त है।

रिवायत है की ये तख़्त सोने और चाँदी का बना हुआ था और बड़े-बड़े जवाहरात से मरसऐ था। बिलकिस ने एक मज़बूत घर बनवाया था। जिस घर में दूसरा घर था। फिर उस घर के अन्दर तीसरा घर था और फिर तीसरे घर के अन्दर चौथा घर था। उसी तरह फिर उसमें पाँचवाँ और पाँचवें में छटा और छटे में सातवाँ घर था। उस सातवें घर में वो तख़्त मुक़फ़्फ़िल था और सात ही ग़िलाफ़ उस तख़्त में चढ़ा रखे थे और उस तख़्त के चार अदद पाए थे। एक पाया सुर्ख़ याक़ूत का, दूसरा ज़र्द याक़ूत का, तीसरा सब्ज़ ज़रमुर्द का और चौथा सफ़ेद मोती का था। ये तख़्त अस्सी (80)गज़ लम्बा, चालीस(40) गज़ चौड़ा और तीस (30) गज़ ऊँचा था। बिलकिस सातवें घर के अन्दर रखे हुए उस तख़्त अज़ीम पर बैठा करती थी। हर घर के बाहर सख़्त पहरा था और बिलकिस तक पहुँचना एक दुश्वार अम्र था।

हुद-हुद ने जब सुलेमान अलैहिस्सलाम को बिलकिस की बात सनाई तो सुलेमान अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया- मेरा एक ख़त ले जाओ और बिलकिस को पहुँचा आओ।

चुनाँचे आपने एक ख़त लिखा, जिस पर बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम लिख कर लिखा- अन्ला तअलू अलय्या आतूनी मुस्लिमीन "मेरे मामले में बड़ाई ज़ाहिर ना करो और मुसलमान बन कर मेरे हुज़ूर हाज़िर हो जाओ" और उस ख़त पर शाही मोहर सब्त करके हुद-हुद को दे दिया। हुद-हुद गया और सातों किलों के पहरों से बेनियाज़ होकर नबी का ये चिठ्ठी रसाँ रोशन दानों में से गुज़रता हुआ बिलकिस तक जा पहुँचा बिलकिस उस वक़्त सो रही थी। हुद-हुद वो ख़त बिलकिस के सीने पर रख कर बाहर निकल आया।

बिलकिस जब उठी तो ये ख़त पाकर घबराई और अयाने सल्तनत से मशवरह तलब किया की क्या किया जाए? वो बोले के आप डरती क्यों हैं? हम ज़ोर वाले और लड़ने में माहिर हैं। सुलेमान अगर लड़ना चाहता है तो लड़े। हम शिकस्त तसलीम नहीं करते। आईंदा जो आपकी मर्ज़ी। बिलकिस ने कहा की जंग अच्छी चीज़ नहीं बादशाह जब किसी शहर में अपने ज़ोर कुव्वत से दाख़िल होते हैं तो उसे तबाह कर देते हैं मेरा ख़्याल है की मैं सुलेमान की तरफ एक तोहफ़ा भेजूं और फिर देखूं की सुलेमान उसे क़बूल करते हैं या नहीं? अगर वो बादशाह हैं तो तोहफ़ा क़बूल कर लेंगे और अगर नबी हैं तो मेरा ये तोहफ़ा क़बूल ना करेंगे बजुज़ इसके के उनके दीन का इत्तिबा किया जाए।

चुनाँचे बिलकिस ने पाँच सौ ग़ुलाम और पाँच सौ बांदियाँ बेहतरीन रेशमी लिबास और ज़ेवरात के साथ आरास्ता करके उन्हें ऐसे घोड़ों पर बैठाया जिनकी काठियाँ सोने की और लगामें जवाहरात से मरसऐ थीं और एक हज़ार सोने और चाँदी की ईंटें और एक ताज जो बड़े-बड़े क़ीमती मोतियों से मुज़य्यन था। वग़ैरह-वग़ैरह मअ एक ख़त की अपने क़ासिद के साथ रवाना किए।

हुद-हुद देख कर चल दिया और सुलेमान अलैहिस्सलाम को सारा किस्सा सुना दिया। हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम ने अपने जिन्नी लश्कर को हुक्म दिया की सोने चाँदी की ईंटें बना कर छ: मील तक इन्ही ईंटों की सड़क बना दी जाए और सड़क के इधर उधर सोने और चाँदी की बुलंद दीवारें खड़ी कर दी जाएँ और समुंद्र के जो खूबसूरत जानवर हैं वो सब हाज़िर किए जाएँ।

चुनाँचे आपके हुक्म की तअमील फ़ौरन की गई। छ: मील सोने चाँदी की सड़क बन गई, उस सड़क के दोनों तरफ सोने चाँदी की दीवारें भी बन गई और खुश्की व तरी के खूबसूरत जानवर भी हाज़िर कर दिए गए और फिर हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम ने अपने तख़्त की दायें जानिब चार हज़ार सोने की कुर्सियाँ और बायें जानिब भी चार हज़ार सोने की कुर्सियाँ रखवाई और उन पर अपने मुक़र्रबीन व ख़्वास को बिठाया और अपने जिन्नी लश्कर और इंसानी लश्कर को दूर-दूर तक सफ़ ब सफ़ खड़ा कर दिया और वहशी जानवरों और दरिन्दों और चौपायों को भी सफ़ ब सफ़ खड़ा कर दिया। इस किस्म का शाही दबदबा और जलाल और इस शान व शौकत की हुक़ूमत चश्मे फलक ने कभी देखी ही ना थी।

बिलकिस का क़ासिद अपने ज़ओम में बड़ा क़ीमती तोहफ़ा ला रहा था। जब उसने सोने चाँदी की बनी हुई सड़क पर कदम रखा और इर्दगिर्द सोने चाँदी की दीवारें देखीं और फिर सुलेमान अलैहिस्सलाम की जाह व इज़्ज़त और शान व शौकत के नज़ारे देखे तो उसका दिल धक-धक करने लगा और शर्म के मारे पानी-पानी हो गया और सोचने लगा की मैं ये बिलकिस का तोहफ़ा किस मुंह से सुलेमान की ख़िदमत में पेश करूंगा।

बहरहाल जब वो बारगाहे सुलेमानी में पहुँचा तो हज़रत ने फ़रमाया- क्या तुम लोग माल दुनिया से मेरी मदद करना चाहते हो? तुम लोग अहले मफ़ाख़्रत हो दुनिया पर फख़्र करते हो, एक दूसरे के तोहफ़े व हदिये पर खूश होते हो, मुझे ना दुनिया से खूशी होती है ना उसकी हाजत है। अल्लाह तआला ने मुझे बहुत कुछ दे रखा है और इतना कुछ दिया है। लिहाज़ा ऐ बिलकिस के कासिद! पलट जा और ये अपना तोहफ़ा ले जाओ अपने साथ ही और जाकर कह दो की अगर वो मुसलमान होकर हमारे हुज़ूर हाज़िर नहीं होती तो हम उस पर लश्कर लायेंगे की उसके मुक़ाबले की उसे ताकत ना होगी और हम उसे ज़लील करके शहर से निकाल देंगे।

बिलकिस का क़ासिद पैगाम ले कर वापस पलटा और बिलकिस से सारा किस्सा तफ़्सील से कहा। बिलकिस ने ग़ौर से सुना और बोली- बेशक़ वो नबी है और उससे मुक़ाबला करना हमारे बस का काम नहीं। फिर उसने अयाने सल्तनत से मशवरह तलब करने के बाद हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम की ख़िदमत में खुद हाज़िर होने का इरादा कर लिया। हुद-हुद ने ये सारी रिपोर्ट हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम तक पहुँचा दी और हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम ने भरे दरबार में ये ऐलान फ़रमाया- अय्युकुम यातिनी बिअरर्शिहा क़ब्ला अंयातूनी मुसलिमीन "कौन है जो बिलकिस के यहाँ पहुँचने से पहले-पहले उसका तख़्त यहाँ ले आये?"

अफ़रीयत नामी एक जिन्न उठा और बोला- अना आतिका बिही क़ब्ला अन तक़ूमा मिन्मकामिका “आपके इजलास बर्खास्त होने से पहले पहले मैं ले आऊँगा।"

हज़रत सुलेमान अलेहिस्सलाम ने फ़रमाया- हम उससे भी ज़्यादा जल्दी मंगवाना चाहते हैं तो फिर एक आलिमे किताब उठा और बोला- अना आतिका बिही क़ब्ला अंयरतद्दा इलेका तरफ़ू का "मैं एक पल मारने से भी पहले ले आऊँगा।"

ये कहा और पल की पल में वो तख़्त ले भी आया और सुलेमान ने देखा तो तख़्त सामने रखा था। फिर बिलकिस हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम की बारगाह में हाज़िर हुई और हज़रत की शान व शौकत और सदाक़त व नबूव्वत का नज़ारा करके मुसलमान हो गई।

( #हैवा_अलहैवान सफ़ा-305, जिल्द-2; रूह-उल-बयान सफ़ा-896 जिल्द-2)


🌹सबक़ ~
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1). हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम के दरबार और बिलकिस के तख़्त के मुक़ाम का दरमियानी फ़ासला दो महीना का राह का था और तूल व अर्ज़ उसका आप पढ़ चुके की तीस गज़ के तीस गज़ ऊँचा, चालीस गज़ चौड़ा और अस्सी गज़ लम्बा था। इतनी तवील मुसाफ़ और इतने वज़नदार होने और इतने महफूज़ मुक़ाम में होने के बावजूद सुलेमान अलैहिस्सलाम का एक सिपाही उसे पल भर में ले आया तो फिर जो सुलेमान अलैहिस्सलाम के आक़ा व मौला हुज़ूर सय्यद-उल-अम्बिया सल्लल्लाहु अलैही व सल्लम के औलिया उम्मत हैं वो क्यों दूर दराज़ की मुसाफ़त से किसी मज़लूम की एआनत व हिमायत को नहीं पहुँच सकते?

2). वो आलिमे किताब वो तख़्त लाने के लिए भरे दरबार से बिलकिस के महल में गया और वहाँ से तख़्त उठा कर वापस आया मगर इस अर्से में वो हज़रत सुलेमान के दरबार से ग़ायब भी नहीं हुआ और मुक़ाम तख़्त तक भी पहुँच गया। मालूम हुआ की अल्लाह वालों में ये ताक़त है की वो एक ही वक़्त में मुतअद्दिद जगह हाज़िर हो सकते हैं और ये ताक़त हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम के एक सिपाही की है फिर जो हज़रत सुलेमान के भी आक़ा व मौला सल्लल्लाहु अलैही व सल्लम हैं उनका एक वक़्त में मुतअद्दिद जगह तशरीफ़ फ़रमा होना क्यों मुमकिन नहीं?

3). हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम के एक सिपाही ने दो महीने की राह को पल भर में तय कर लिया और पल भर में चला भी गया और आ भी गया फिर हुज़ूर सय्यद-उल-अम्बिया सल्लल्लाहु अलैही व सल्लम का शबे मैराज पल भर में अर्श पर तशरीफ़ ले जाना और वापस तशरीफ़ ले आना क्यों मुमकिन नहीं?

4). तख़्त सुलेमान अलैहिस्सलाम को मअए एक लश्कर अज़ीम के हवा उठा लेती थी ये “नबी" का तसर्रूफ़ व इख़्तियार है और जो अम्बिया को अपनी मिस्ल बशर कहते हैं उनमें से कोई साहब ज़रा अपनी बीवी समेत ही किसी छत से हवा में छिलांग लगाकर दिखाएँ ताकी दूसरे को इब्रत हासिल हो।

5). हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम हरम शरीफ़ में पहुँच कर हर रोज़ पाँच हज़ार ऊँट, पाँच हज़ार गाय और बीस हज़ार बकरियाँ ज़िबह फ़रमाते रहे। मगर एक फ़िर्क़ा आज-कल ऐसा भी है जो अय्यामे हज में एक बकरी तक की क़ुर्बानी को भी फ़िज़ूल कहता है और मुसलमानों को इस शरई अम्र से रोकता है।

6). जिन्नो इन्स, वहीश व तियूर, खुश्की और तरी के हैवानात और दीगर अल्लाह की ज़बरदस्त मख़्लूक़ भी सुलेमान अलैहिस्सलाम की ताबऐ थी और आज जो लोग अम्बिया को अपनी मिस्ल बशर कहते हैं, उनके घर की तरफ़ नज़र दौड़ाईये तो उनकी बीवी भी उनके ताबऐ नहीं। फ़यालुलअजब!

📕»» सच्ची हिकायात ⟨हिस्सा अव्वल⟩, पेज: 107-113, हिकायत नंबर- 92
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🖌पोस्ट क्रेडिट - शाकिर अली बरेलवी रज़वी व अह्-लिया मोहतरमा

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