〽️हज़रत
मूसा अलैहिस्सलाम ने एक मर्तबा बनी इस्राईल में बड़ा फ़सीह व बलीग वाज़
फ़रमाया और ये भी फ़रमाया कि इस वक़्त मैं बहुत बड़ा आलिम हूँ। हज़रत मूसा
अलैहिस्सलाम का ये फ़रमाना ख़ुदा को ना भाया और हज़रत मूसा से फ़रमाया- ऐ
मूसा! तुम से ज़्यादा आलिम मेरा बन्दा ख़िज़्र है। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने
हज़रत ख़िज़्र से मुलाक़ात का शौक़ ज़ाहिर किया और ख़ुदा से इजाज़त लेकर हज़रत
ख़िज़्र को मिलने के लिए रवाना हो गए।
ख़ुदा ने मदद फ़रमाई और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने ख़िज़्र अलैहिस्सलाम को पा लिया और उनसे कहा कि मैं आपके साथ रहना चाहता हूँ ताकी आपके इल्म से मैं भी कुछ मुसतफ़ीद हूँ। हज़रत ख़िज़्र ने जवाब दिया कि आप मेरे साथ रहकर कई ऐसी बातें देखेंगे की आप उन पर सब्र ना कर सकेंगे। हज़रत मूसा ने फ़रमाया- नहीं, मैं सब्र करूंगा आप मुझे अपने साथ रहने दीजिए। ख़िज़्र अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया तो फिर मैं चाहे कुछ करूं आप मेरी किसी बात में दखल ना दें। फ़रमाया- मंजूर है और आप साथ रहने लगे।
एक रोज़ दोनों चले और कश्ती पर सवार हुए, कश्ती वाले ने हज़रत ख़िज़्र को पहचान कर मुफ़्त बैठा लिया मगर हज़रत ख़िज़्र अलैहिस्सलाम ने उसकी कश्ती को एक जानिब से तोड़ दिया और ऐबदार कर दिया। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ये बात देखकर बोल उठे के जनाब ये आपने क्या किया? की एक ग़रीब शख़्स की जिसने बैठाया भी हमें मुफ़्त है, आपने कश्ती तोड़ दी।
हज़रत ख़िज़्र बोले- मूसा! मैं ना कहता था कि आप से सब्र ना हो सकेगा और मेरी बातों में आप दखल दिए बग़ैर ना रह सकेंगे। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया ये मुझ से भूल हो गई है, आईंदा मोहतात रहूंगा। फिर चले तो रस्ते में एक लड़का मिला। हज़रत ख़िज़्र ने उस लड़के को क़त्ल कर डाला हज़रत मूसा फिर बोल उठे कि ऐ ख़िज़्र! तुमने क्या किया? एक बच्चे को मार डाला। ख़िज़ बोले- मूसा! आप फिर बोले, जाईये! मेरा और आपका साथ मुश्किल है। हज़रत मूसा फ़रमाने लगे- एक बार और मौका दीजिए अब अगर बोला तो मुझे अलग कर देना।
चुनाँचे फिर चले तो एक ऐसे गाँव में पहुंचे जिस गाँव के बाशिन्दों ने मूसा व ख़िज़्र अलैहिस्सलाम को खाना तक ना पूछा। बल्की उन्होंने खाना तलब फ़रमाया तो उन्होंने इंकार कर दिया। उस गाँव में एक शिकस्ता मकान की दीवार गिरने वाली थी। हज़रत ख़िज़्र ने उस दीवार को अपने हाथ से सीधा कर के मज़बूती से क़ायम कर दिया। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने देखा के ये गाँव वाले तो इतने बखील हैं कि खाना तक देने को तैयार नहीं और ये ख़िज़्र इस क़द्र शफ़्क़त पर उतर आए हैं कि उनकी गिरने वाली दीवारें कायम करने लगे हैं। ये देखकर फिर बोल उठे के ऐ ख़िज़्र! अगर आप चाहते तो इस दीवार के खड़ा कर देने की आप उनसे उजरत भी ले सकते थे, मगर आपने तो मुफ़्त काम कर दिया।
हज़रत ख़िज़्र बोले मूसा बस अब मेरी और आपकी जुदाई है, लेकिन जुदा होने से पहले इन बातों की हिकमत भी सुनते जाईये। वो जो मैंने कश्ती को थोड़ा सा तोड़ दिया था उसकी हिकमत ये थी के दरिया के दूसरे किनारे एक ज़ालिम बादशाह था जो हर साबत कश्ती ज़बरदस्ती छीन लेता था, मगर जिस कश्ती में कोई ऐब होता उसे नहीं छीनता था। कश्ती वाले को उस बात का इल्म ना था। मैं अगर कश्ती का कुछ हिस्सा ना तोड़ता तो उस गरीब की सारी कश्ती छिन जाती और वो जो लड़का मैंने मार डाला उसकी हिकमत ये थी के उसके माँ-बाप मुसलमान थे और ये लड़का, मैं डरा के बड़ा होकर काफ़िर निकलेगा और उसके माँ-बाप भी उसकी मोहब्बत में दीन से फिर जाएँगे तो मैंने इरादा कर लिया के उसके माँ-बाप को अल्लाह उससे बेहतर लड़का दे और उसे मैंने मार डाला ताकी उसके माँ-बाप इस फ़ितने से महफूज़ रहें और मैंने गाँव में गिरने वाली दीवार को सीधा कर दिया, उसकी हिकमत ये थी के वो दीवार शहर के दो यतीम लड़कों की थी और उसके नीचे उनका खज़ाना था और बाप उनका बड़ा सालेह था तो रब की ये मर्ज़ी थी की दोनों बच्चे जवान हो जाएँ और अपना खज़ाना आप निकाल लें। ये थीं उनकी हिकमत जो आपने देखीं।
( #क़ुरआन करीम पारा-16, रूकू-1, रूह-उल-बयान सफ़ा-494, जिल्द-1 )
🌹सबक़ ~
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सबकः दीन की बातों में ज़रूर कोई ना कोई हिकमत होती है और आदमी को इल्म की तलाश जारी रखनी चाहिए, चाहे वो कितना बड़ा आलिम क्यों ना हो और ये भी मालूम हुआ के अल्लाह के मक़्बूल बन्दों को ये इल्म होता है कि फलाँ बच्चा बड़ा होकर मोमिन या काफ़िर होगा और ये भी मालूम हुआ के अल्लाह के मक़्बूल बन्दे जिस बात का इरादा कर लें, खुदा वैसे ही कर देता है क्योंके हज़रत ख़िज़्र अलैहिस्सलाम ने उस लड़के को क़त्ल कर के यूं फ़रमाया था - “फ़आरदना अंयुब्दी लहमा रब्बुहुमा खेरम्म मिनहू" पस हमने इरादा कर लिया कि उन दोनों का रब उन्हें उससे बेहतर अता फ़रमाए। चुनाँचे ख़ुदा ने हज़रत ख़िज़्र अलैहिस्सलाम के इरादे के मुताबिक़ उन दोनों को उससे बेहतर बच्चा अता फ़रमा दिया।
ख़ुदा ने मदद फ़रमाई और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने ख़िज़्र अलैहिस्सलाम को पा लिया और उनसे कहा कि मैं आपके साथ रहना चाहता हूँ ताकी आपके इल्म से मैं भी कुछ मुसतफ़ीद हूँ। हज़रत ख़िज़्र ने जवाब दिया कि आप मेरे साथ रहकर कई ऐसी बातें देखेंगे की आप उन पर सब्र ना कर सकेंगे। हज़रत मूसा ने फ़रमाया- नहीं, मैं सब्र करूंगा आप मुझे अपने साथ रहने दीजिए। ख़िज़्र अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया तो फिर मैं चाहे कुछ करूं आप मेरी किसी बात में दखल ना दें। फ़रमाया- मंजूर है और आप साथ रहने लगे।
एक रोज़ दोनों चले और कश्ती पर सवार हुए, कश्ती वाले ने हज़रत ख़िज़्र को पहचान कर मुफ़्त बैठा लिया मगर हज़रत ख़िज़्र अलैहिस्सलाम ने उसकी कश्ती को एक जानिब से तोड़ दिया और ऐबदार कर दिया। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ये बात देखकर बोल उठे के जनाब ये आपने क्या किया? की एक ग़रीब शख़्स की जिसने बैठाया भी हमें मुफ़्त है, आपने कश्ती तोड़ दी।
हज़रत ख़िज़्र बोले- मूसा! मैं ना कहता था कि आप से सब्र ना हो सकेगा और मेरी बातों में आप दखल दिए बग़ैर ना रह सकेंगे। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया ये मुझ से भूल हो गई है, आईंदा मोहतात रहूंगा। फिर चले तो रस्ते में एक लड़का मिला। हज़रत ख़िज़्र ने उस लड़के को क़त्ल कर डाला हज़रत मूसा फिर बोल उठे कि ऐ ख़िज़्र! तुमने क्या किया? एक बच्चे को मार डाला। ख़िज़ बोले- मूसा! आप फिर बोले, जाईये! मेरा और आपका साथ मुश्किल है। हज़रत मूसा फ़रमाने लगे- एक बार और मौका दीजिए अब अगर बोला तो मुझे अलग कर देना।
चुनाँचे फिर चले तो एक ऐसे गाँव में पहुंचे जिस गाँव के बाशिन्दों ने मूसा व ख़िज़्र अलैहिस्सलाम को खाना तक ना पूछा। बल्की उन्होंने खाना तलब फ़रमाया तो उन्होंने इंकार कर दिया। उस गाँव में एक शिकस्ता मकान की दीवार गिरने वाली थी। हज़रत ख़िज़्र ने उस दीवार को अपने हाथ से सीधा कर के मज़बूती से क़ायम कर दिया। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने देखा के ये गाँव वाले तो इतने बखील हैं कि खाना तक देने को तैयार नहीं और ये ख़िज़्र इस क़द्र शफ़्क़त पर उतर आए हैं कि उनकी गिरने वाली दीवारें कायम करने लगे हैं। ये देखकर फिर बोल उठे के ऐ ख़िज़्र! अगर आप चाहते तो इस दीवार के खड़ा कर देने की आप उनसे उजरत भी ले सकते थे, मगर आपने तो मुफ़्त काम कर दिया।
हज़रत ख़िज़्र बोले मूसा बस अब मेरी और आपकी जुदाई है, लेकिन जुदा होने से पहले इन बातों की हिकमत भी सुनते जाईये। वो जो मैंने कश्ती को थोड़ा सा तोड़ दिया था उसकी हिकमत ये थी के दरिया के दूसरे किनारे एक ज़ालिम बादशाह था जो हर साबत कश्ती ज़बरदस्ती छीन लेता था, मगर जिस कश्ती में कोई ऐब होता उसे नहीं छीनता था। कश्ती वाले को उस बात का इल्म ना था। मैं अगर कश्ती का कुछ हिस्सा ना तोड़ता तो उस गरीब की सारी कश्ती छिन जाती और वो जो लड़का मैंने मार डाला उसकी हिकमत ये थी के उसके माँ-बाप मुसलमान थे और ये लड़का, मैं डरा के बड़ा होकर काफ़िर निकलेगा और उसके माँ-बाप भी उसकी मोहब्बत में दीन से फिर जाएँगे तो मैंने इरादा कर लिया के उसके माँ-बाप को अल्लाह उससे बेहतर लड़का दे और उसे मैंने मार डाला ताकी उसके माँ-बाप इस फ़ितने से महफूज़ रहें और मैंने गाँव में गिरने वाली दीवार को सीधा कर दिया, उसकी हिकमत ये थी के वो दीवार शहर के दो यतीम लड़कों की थी और उसके नीचे उनका खज़ाना था और बाप उनका बड़ा सालेह था तो रब की ये मर्ज़ी थी की दोनों बच्चे जवान हो जाएँ और अपना खज़ाना आप निकाल लें। ये थीं उनकी हिकमत जो आपने देखीं।
( #क़ुरआन करीम पारा-16, रूकू-1, रूह-उल-बयान सफ़ा-494, जिल्द-1 )
🌹सबक़ ~
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सबकः दीन की बातों में ज़रूर कोई ना कोई हिकमत होती है और आदमी को इल्म की तलाश जारी रखनी चाहिए, चाहे वो कितना बड़ा आलिम क्यों ना हो और ये भी मालूम हुआ के अल्लाह के मक़्बूल बन्दों को ये इल्म होता है कि फलाँ बच्चा बड़ा होकर मोमिन या काफ़िर होगा और ये भी मालूम हुआ के अल्लाह के मक़्बूल बन्दे जिस बात का इरादा कर लें, खुदा वैसे ही कर देता है क्योंके हज़रत ख़िज़्र अलैहिस्सलाम ने उस लड़के को क़त्ल कर के यूं फ़रमाया था - “फ़आरदना अंयुब्दी लहमा रब्बुहुमा खेरम्म मिनहू" पस हमने इरादा कर लिया कि उन दोनों का रब उन्हें उससे बेहतर अता फ़रमाए। चुनाँचे ख़ुदा ने हज़रत ख़िज़्र अलैहिस्सलाम के इरादे के मुताबिक़ उन दोनों को उससे बेहतर बच्चा अता फ़रमा दिया।
📕»» सच्ची हिकायात ⟨हिस्सा अव्वल⟩, पेज: 101-103, हिकायत नंबर- 87
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🖌पोस्ट क्रेडिट - शाकिर अली बरेलवी रज़वी व अह्-लिया मोहतरमा
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