〽️हुज़ूर
सल्लअल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने एक मर्तबा जिब्राईल से पूछा- ऐ
जिब्राईल! कभी तुझे आसमान से मुशक़्क़त के साथ बड़ी जल्दी और फ़ौरन भी ज़मीन
पर उतरना पड़ा है?
जिब्राईल ने जवाब दिया- हाँ या रसूलल्लाहﷺ! चार मर्तबा ऐसा हुआ है के मुझे फ़ीअलफ़ोर बड़ी सरअत के साथ ज़मीन पर उतरना पड़ा।
हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया- वो चार मर्तबा किस-किस मौके पर?
जिब्राईल ने अर्ज़ किया-
1). एक तो जब इब्राहीम अलैहिस्सलाम को आग में डाला गया तो मैं उस वक़्त अर्शे इलाही के नीचे था। मुझे हुक्म इलाही हुआ की जिब्राईल! ख़लील के आग में पहुँचने से पहले-पहले फ़ौरन मेरे ख़लील के पास पहुँचो। चुनाँचे मैं बड़ी सरअत के साथ फ़ौरन ही हज़रत ख़लील अलैहिस्सलाम के पास पहुंचा।
2). दूसरी बार जब हज़रत इसमाईल अलैहिस्सलाम की गर्दने अतहर पर छुरी रख दी गई तो मुझे हुक्म हुआ की छुरी चलने से पहले ही ज़मीन पर पहुँचो और छुरी को उल्टा दूं। चुनाँचे मैं छुरी के चलने से पहले ही ज़मीन पर पहुँच गया और छुरी को चलने ना दिया।
3). तीसरी मर्तबा जब हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को भाईयों ने कुँए में गिराया तो मुझे हुक्म हुआ की मैं यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के कुँए की तह तक पहुँचने से पहले-पहले ज़मीन पर पहुँचूं और कुंए से एक पत्थर निकाल कर हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को उस पत्थर पर बाआराम बैठा दूं। चुनाँचे मैंने ऐसा ही किया।
4). और चौथी मर्तबा या रसूलल्लाहﷺ जबकी काफ़िरों ने हुज़ूर का दनदाने मुबारक शहीद किया तो मुझे हुक्म इलाही हुआ ﷺ मैं फौरन जमीन पहुँचूं और हुज़ूरﷺ के दनदाने मुबारक का खून मुबारक ज़मीन पर ना गिरने दूं और ज़मीन पर गिरने से पहले ही मैं वो खून मुबारक अपने हाथों पर ले लूं। या रसूलल्लाहﷺ! खुदा ने मुझे फ़रमाया था, जिब्राईल! अगर मेरे मेहबूब का ये खून ज़मीन पर गिर गया तो क़यामत तक ज़मीन में से ना कोई
जिब्राईल ने जवाब दिया- हाँ या रसूलल्लाहﷺ! चार मर्तबा ऐसा हुआ है के मुझे फ़ीअलफ़ोर बड़ी सरअत के साथ ज़मीन पर उतरना पड़ा।
हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया- वो चार मर्तबा किस-किस मौके पर?
जिब्राईल ने अर्ज़ किया-
1). एक तो जब इब्राहीम अलैहिस्सलाम को आग में डाला गया तो मैं उस वक़्त अर्शे इलाही के नीचे था। मुझे हुक्म इलाही हुआ की जिब्राईल! ख़लील के आग में पहुँचने से पहले-पहले फ़ौरन मेरे ख़लील के पास पहुँचो। चुनाँचे मैं बड़ी सरअत के साथ फ़ौरन ही हज़रत ख़लील अलैहिस्सलाम के पास पहुंचा।
2). दूसरी बार जब हज़रत इसमाईल अलैहिस्सलाम की गर्दने अतहर पर छुरी रख दी गई तो मुझे हुक्म हुआ की छुरी चलने से पहले ही ज़मीन पर पहुँचो और छुरी को उल्टा दूं। चुनाँचे मैं छुरी के चलने से पहले ही ज़मीन पर पहुँच गया और छुरी को चलने ना दिया।
3). तीसरी मर्तबा जब हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को भाईयों ने कुँए में गिराया तो मुझे हुक्म हुआ की मैं यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के कुँए की तह तक पहुँचने से पहले-पहले ज़मीन पर पहुँचूं और कुंए से एक पत्थर निकाल कर हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को उस पत्थर पर बाआराम बैठा दूं। चुनाँचे मैंने ऐसा ही किया।
4). और चौथी मर्तबा या रसूलल्लाहﷺ जबकी काफ़िरों ने हुज़ूर का दनदाने मुबारक शहीद किया तो मुझे हुक्म इलाही हुआ ﷺ मैं फौरन जमीन पहुँचूं और हुज़ूरﷺ के दनदाने मुबारक का खून मुबारक ज़मीन पर ना गिरने दूं और ज़मीन पर गिरने से पहले ही मैं वो खून मुबारक अपने हाथों पर ले लूं। या रसूलल्लाहﷺ! खुदा ने मुझे फ़रमाया था, जिब्राईल! अगर मेरे मेहबूब का ये खून ज़मीन पर गिर गया तो क़यामत तक ज़मीन में से ना कोई