जिब्राईल की मुशक़्क़त

〽️हुज़ूर सल्लअल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने एक मर्तबा जिब्राईल से पूछा- ऐ जिब्राईल! कभी तुझे आसमान से मुशक़्क़त के साथ बड़ी जल्दी और फ़ौरन भी ज़मीन पर उतरना पड़ा है?

जिब्राईल ने जवाब दिया- हाँ या रसूलल्लाहﷺ! चार मर्तबा ऐसा हुआ है के मुझे फ़ीअलफ़ोर बड़ी सरअत के साथ ज़मीन पर उतरना पड़ा।

हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया- वो चार मर्तबा किस-किस मौके पर?

जिब्राईल ने अर्ज़ किया-

1). एक तो जब इब्राहीम अलैहिस्सलाम को आग में डाला गया तो मैं उस वक़्त अर्शे इलाही के नीचे था। मुझे हुक्म इलाही हुआ की जिब्राईल! ख़लील के आग में पहुँचने से पहले-पहले फ़ौरन मेरे ख़लील के पास पहुँचो। चुनाँचे मैं बड़ी सरअत के साथ फ़ौरन ही हज़रत ख़लील अलैहिस्सलाम के पास पहुंचा।

2). दूसरी बार जब हज़रत इसमाईल अलैहिस्सलाम की गर्दने अतहर पर छुरी रख दी गई तो मुझे हुक्म हुआ की छुरी चलने से पहले ही ज़मीन पर पहुँचो और छुरी को उल्टा दूं। चुनाँचे मैं छुरी के चलने से पहले ही ज़मीन पर पहुँच गया और छुरी को चलने ना दिया।

3). तीसरी मर्तबा जब हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को भाईयों ने कुँए में गिराया तो मुझे हुक्म हुआ की मैं यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के कुँए की तह तक पहुँचने से पहले-पहले ज़मीन पर पहुँचूं और कुंए से एक पत्थर निकाल कर हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को उस पत्थर पर बाआराम बैठा दूं। चुनाँचे मैंने ऐसा ही किया।

4). और चौथी मर्तबा या रसूलल्लाहﷺ जबकी काफ़िरों ने हुज़ूर का दनदाने मुबारक शहीद किया तो मुझे हुक्म इलाही हुआ ﷺ मैं फौरन जमीन पहुँचूं और हुज़ूरﷺ के दनदाने मुबारक का खून मुबारक ज़मीन पर ना गिरने दूं और ज़मीन पर गिरने से पहले ही मैं वो खून मुबारक अपने हाथों पर ले लूं। या रसूलल्लाहﷺ! खुदा ने मुझे फ़रमाया था, जिब्राईल! अगर मेरे मेहबूब का ये खून ज़मीन पर गिर गया तो क़यामत तक ज़मीन में से ना कोई

ख़लील व जिब्राईल

〽️हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को नमरूद ने जब आग में फैंकना चाहा तो जिब्राईल अलैहिस्सलाम हाज़िर हुए और अर्ज़ किया- हुज़ूर! अल्लाह से कहिये वो आपको इस आतिशकदा से बचा ले।

आपने फरमाया- अपने जिस्म के लिए इतनी बुलंद व बाला पाक हस्ती से ये मामूली सा सवाल करूं?

जिब्राईल ने अर्ज़ किया तो अपने दिल के बचाने के लिए उससे कहिये फ़रमाया ये दिल उसी के लिए है वो अपनी चीज़ से जो चाहे सलूक करे।

जिब्राईल ने अर्ज किया- हुज़ूर! इतनी बड़ी तेज़ आग से आप क्यों नहीं डरते? फ़रमाया- ऐ जिब्राईल! ये आग किस ने जलाई? जिब्राईल ने जवाब दिया-नमरूद ने। फ़रमाया और नमरूद के दिल में ये बात किस ने डाली? जिब्राईल ने जवाब दिया- रब्बे जलील ने। ख़लील ने फरमाया

आतिश कदाऐ नमरूद

〽️ नमरूद मलऊन ने हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम से जब मुनाज़रह में शिकस्त खाई तो और तो कुछ ना कर सका, हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम का जानी दुश्मन बन गया और आपको क़ैद कर लिया और फिर एक बहुत बड़ी चार दीवारी तैयार की और उसमें महीने भर तक बकोशिश किस्म-किस्म की लकड़ियाँ जमा कीं और एक अज़ीम आग जलाई।

जिसकी तपिश से हवा में उड़ने वाले परिन्दे जल जाते थे और एक मुनजनीक़ (गोफ़न ) तैयार करके खड़ी की और हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को बाँध कर उसमें रखकर आग में फेंका।

हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की ज़बान पर उस वक़्त ये कलमा जारी था- "हसबीयल्लाहू व नीअमल वकील"

इधर नमरूद ने आपको आग में फेंका और इधर अल्लाह ने आग को हुक्म फ़रमाया की ऐ आग! ख़बरदार! हमारे ख़लील को मत जलाना, तू हमारे इब्राहीम पर ठंडी हो जा और सलामती का घर बन जा।

चुनाँचे वो आग हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के लिए बाग व बहार बन गई और नमरूद की सारी कोशिश

ख़लील व नमरूद का मुनाज़रह

〽️हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने जब नमरूद को ख़ुदा परस्ती की दअवत दी तो नमरूद और हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम में हस्बे जेल मुनाज़रह हुआ।

नमरूदः तुम्हारा रब कौन है? जिसकी पर परसतिश की तुम मुझे दअवत देते हो?

हज़रत ख़लील अलैहिस्सलामः मेरा रब वो है जो ज़िन्दा भी कर देता है और मार भी डालता है।

नमरूदः ये बात तो मेरे अन्दर भी मौजूद है, लो अभी देखो मैं तुझे ज़िन्दा भी करके दिखाता हूँ और मार कर भी। ये कहकर नमरूद ने दो शख़्सों को बुलाया। उनमें से एक शख़्स को क़त्ल कर दिया और एक को छोड़ दिया और कहने लगा, देख लो एक को मैंने मार डाला और एक को गिरफ्तार करके छोड़ दिया, गोया उसे ज़िन्दा कर दिया। नमरूद की ये अहमक़ाना बात देख कर हज़रत ख़लील अलैहिस्सलाम ने एक दूसरी मुनाज़राना गुफ़्तगू फ़रमाई और फ़रमाया-

ख़लील अलैहिस्सलाम: मेरा रब सूरज को मशरिक़ की तरफ़ से लाता है तुझ में अगर ताक़त है तो तू मग़रिब

तीशाऐ ख़लील

〽️हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम जब पैदा हुए तो नमरूद का दौर था और बुत परस्ती का बड़ा ज़ोर था। हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम एक दिन उन बुत परस्तों से फरमाने लगे की ये तुम्हारी क्या हरकत है की उन मूर्तियों के आगे झुके रहते हो। ये तो परसतिश के लायक नहीं, परसतिश के लायक़ तो सिर्फ़ एक अल्लाह है।

वो लोग बोले- हमारे तो बाप दादा भी इन्हीं मूर्तियों की पूजा करते चले आए हैं मगर आज तुम एक ऐसे आदमी पैदा हो गए हो जो उनकी पूजा से रोकने लगे हो।

आपने फ़रमाया- तुम और तुम्हारे बाप दादा सब गुमराह हैं। हक़ बात यही है जो मैं कहता हूँ की तुम्हारा और ज़मीन व आसमान सबका रब वो है जिसने उन सब को पैदा फ़रमाया और सुन लो! मैं ख़ुदा की कसम खा कर कहता हूँ कि तुम्हारे इन बुतों को मैं समझ लूंगा।

चुनाँचे एक दिन जब की बुत परस्त अपने सालाना मेले पर बाहर जंगल में गए हुए थे। हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम उनके बुतख़ाने में तशरीफ़ ले गए और अपने तीशे से सारे बुत तोड़-फोड़ डाले और जो बड़ा बुत था, उसे ना तोड़ा और अपना तीशा उसके कंधे पर रख दिया, उस ख़याल से की बुत परस्त जब यहाँ आएँ तो अपने बुतों का ये हाल देख कर शायद उस बड़े बुत से पूछे की उन छोटे बुतों को ये कौन तोड़ गया है? और ये तीशा तेरे कंधे पर क्यों रखा है? और उन्हें उनका अज्ज़ ज़ाहिर हो और होश में आएँ की ऐसे आजिज़ खुदा नहीं हो सकते।

चुनाँचे जब वो लोग मेले से वापस आए और अपने बुतख़ाने में पहुँचे तो अपने मअबूदों का ये हाल देखकर की कोई इधर टूटा हुआ पड़ा है, किसी का हाथ नहीं तो किसी की नाक सलामत नहीं। किसी की गर्दन नहीं तो किसी

हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम और चार परिन्दे

〽️हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने एक रोज़ समुंद्र के किनारे एक आदमी मरा हुआ देखा। आपने देखा के समुद्र की मछलियाँ उसकी लाश को खा रही हैं और थोड़ी देर के बाद फिर परिन्दे आकर उसकी लाश को खाने लगे फिर आपने देखा के जंगल के कुछ दरिन्दे आए और वो भी उसकी लाश को खाने लगे।

आपने ये मंजर देखा तो आपको शौक़ हुआ की आप मुलाहेज़ा फ़रमाएँ की मुर्दे किस तरह ज़िन्दा किए जाएँगे।

चुनाँचे आपने ख़ुदा से अर्ज़ किया- इलाही! मुझे यकीन है की तू मुर्दों को जिन्दा फरमाएगा और उनके अज्ज़ाऐ दरयाई जानवरों, परिन्दों और दरिन्दों के पेटों से जमा फरमाएगा। लेकिन मैं ये अजीब मंज़र देखने की आरज़ू रखता हूँ।

खुदा ने फ़रमाया- अच्छा ऐ खलील! तुम चार परिन्दे लेकर उन्हें अपने साथ हिला लो ताकी अच्छी तरह उनकी शनाख़्त हो जाए। फिर उन्हें ज़िबह करके उनके अज्ज़ाऐ बाहम मिला जुला कर उनका एक-एक हिस्सा, एक-एक पहाड़ पर रख दो और फिर उनको बुलाओ और देखो वो किस तरह ज़िन्दा होकर तुम्हारे पास दौड़ते हुए आते हैं।

चुनाँचे हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने मोर, कबूतर, मुर्ग़ और कव्वा, ये चार परिन्दे लिए और उन्हें ज़िबह किया और उनके पर उखाड़े, और उन सब का कीमा करके और आपस में मिला जुला कर उस मजमूऐ के कई हिस्से किए और एक-एक हिस्सा एक-एक पहाड़ पर रख दिया और सर सब के अपने पास महफूज़ रखे और फिर आपने उनसे फ़रमाया- “चले आओ" आपके फ़रमाते ही वो अज्ज़ा उड़े और हर-हर जानवर के अज्ज़ा अलेहदा-अलेहदा होकर अपनी तरतीब से जमा हुए और परिन्दों की शक्लें बनकर अपने पाँऊ से दौड़ते हुए हाज़िर हुए और अपने-अपने सरों से मिलकर बईनही पहले की तरह मुकम्मल होकर उड़ गए।

#(कुरआन करीम, पारा-3, रूकू-3, ख़ज़ायन-उल-इऱफान, सफा-66)


🌹सबक़ ~
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ख़ुदा तआला बड़ी क़ुदरत व ताक़त का मालिक है। कोई डूब कर मर जाए और उसे मछलियाँ खा जाएं या जल

हज़रत उज़ैर अलैहिस्सलाम और ख़ुदा की क़ुदरत के करिश्मे

〽️बनी इस्राईल जब ख़ुदा की नाफरमानी में हद से ज्यादा बढ़ गए तो ख़ुदा ने उन पर एक ज़ालिम बादशाह बख़्त नस्र को मुसल्लत कर दिया। जिसने बनी इस्राईल को क़त्ल किया, गिरफ्तार किया और तबाह किया और बैत-उल-मुक़द्दस को बर्बाद व वीरान कर डाला।

हज़रत उज़ैर अलैहिस्सलाम एक दिन शहर में तशरीफ़ लाए तो आपने शहर की वीरानी व बर्बादी को देखा, तमाम शहर में फिरे, किसी शख्स को वहाँ ना पाया। शहर की तमाम इमारतों को मुनहदिम देखा। ये मंज़र देख कर आपने बराह तआज्जुब फ़रमाया। अन्नीया यूहियी हाज़ीहिल्लाहू बअदा मौतिहा यअन ऐ अल्लाह! इस शहर की मौत के बाद उसे फिर कैसे ज़िंदा फ़रमाएगा?

आप एक दराज़ गोश पर सवार थे और आपके पास एक बर्तन ख़जूर और एक पियाला अंगूर के रास का था। आपने अपने दराज़गोश को एक दरख्त से बाँधा और उस दरख़्त के नीचे आप सो गए। जब सो गए तो खुदा में उसी हालत में आपकी रूह क़ब्ज़ कर ली और गधा भी मर गया।

इस वाक़ये के सत्तर साल बाद अल्लाह तआला ने शाहाने फ़ारस में से एक बादशाह को मुसल्लत किया और वो अपनी फ़ौजें लेकर बैत-उल-मुक़द्दस पहुँचा और उसको पहले से भी बेहतर तरीके पर आबाद किया और बनी इस्राईल में से जो लोग बाक़ी रहे थे, खुदा तआला उन्हें फिर यहाँ लाया और वो बैत-उल-मुक़द्दस और उसके नवाह में आबाद हुए और उनकी तअदाद बढ़ती रही। उस ज़माना में अल्लाह तआला ने हज़रत उज़ैर अलैहिस्सलाम को दुनिया की आँखों से पौशीदा रखा और कोई आपको देख ना सका। जब आपकी वफ़ात को सौ साल गुज़र गए तो अल्लाह ने दोबारह आपको ज़िन्दा किया। पहले आँखों में जान आई। अभी तमाम जिस्म मुर्दा था। वो आपके देखते-देखते ज़िन्दा किया गया। जिस वक़्त आप सोए थे, वो सुबह का वक़्त था और सौ साल के बाद जब आप दोबारह ज़िन्दा किए गए तो ये शाम का वक्त था। खुदा ने पूछा। ऐ उज़ैर! तुम यहाँ कितने ठहरे? आपने अंदाज़े से अर्ज़ किया कि एक दिन या कुछ कम। आपका ख़याल ये हुआ के ये उसी दिन की शाम है जिसकी सुबह को सोए थे।

खुदा ने फ़रमाया- बल्की तुम तो सौ बरस ठहरे हो, अपने खाने और पानी यानी खजूर और अंगूर के रस को देखिये के वैसा ही है इसमें बू तक नहीं आई और अपने गधे को भी ज़रा देखिए। आपने देखा तो वो मरा हुआ और

तूफ़ाने नूह और एक बूढ़िया

〽️हज़रत नूह अलैहिस्सलाम ने बहुक्मे इलाही जब कश्ती बनाना शुरू की तो एक मोमिना बूढ़िया ने हज़रत नूह से पूछा कि आप ये कश्ती क्यों बना रहे हैं?

आपने फ़रमाया- बड़ी बी! एक बहुत बड़ा पानी का तूफान आने वाला है जिसमें सब काफ़िर हलाक हो जाएंगे और मोमिन इस कश्ती के ज़रिये बच जाऐंगे।

बूढ़िया ने अर्ज किया। हुज़ूर! जब तूफान आने वाला हो तो मुझे ख़बर कर दीजिएगा ताकी मैं भी कश्ती पर सवार हो जाऊँ।

बुढ़िया की झोंपड़ी शहर से बाहर कुछ फासले पर थी। फिर जब तूफान का वक़्त आया तो हज़रत नूह अलैहिस्सलाम दूसरे लोगों को तो कश्ती पर चढ़ाने में मशगूल हो गए मगर उस बूढ़िया का खयाल ना रहा हत्ता की खुदा का होलनाक अज़ाब पानी के तूफ़ान की शकल में आया और रूऐ ज़मीन के सब काफ़िर हलाक हो गए और जब ये अज़ाब थम गया और पानी उतर गया और कश्ती वाले कश्ती से उतरे तो वो बुढ़िया हज़रत नूह अलैहिस्सलाम के पास हाज़िर हुई और कहने लगी- हज़रत! वो पानी का तूफान कब आएगा? हर रोज़ इस इन्तिज़ार में हूँ की आप कब कश्ती में सवार होने के लिए फरमाते हैं।

हज़रत ने फरमाया बड़ी बी! तूफान तो आ भी चुका और काफ़िर सब हलाक भी हो चुके और कश्ती के ज़रिये

नूह अलैहिस्सलाम की कश्ती

〽️हज़रत नूह अलैहिस्सलाम की क़ौम बडी बदबख़्त और नाआक़्बत अन्देश थी। हज़रत नूह अलैहिस्सलाम ने साढ़े नो सौ साल के अर्से में दिन रात तबलीग़-ए-हक़ फ़रमाई मगर वो ना माने।

आख़िर नूह अलैहिस्सलाम ने उनकी हलाकत की दुआ मांगी और खुदा से अर्ज की कि मौला! इन काफ़िरों को बेख़ व बिन से उखाड़ दे।

चुनाँचे आपकी दुआ क़बूल हो गई और खुदा ने हुक्म दिया कि ऐ नूह! मैं पानी का एक तूफ़ाने अज़ीम लाऊँगा और उन सब काफ़िरों को हलाक कर दूंगा। तू अपने और चन्द मानने वालों के लिए एक कश्ती बना ले।

चुनाँचे हज़रत नूह अलैहिस्सलाम ने एक जंगल में कश्ती बनाना शुरु फ़रमाई, काफ़िर आपको देखते और कहते। ऐ नूह! क्या करते हो ? आप फ़रमाते ऐसा मकान बनाता हूँ जो पानी पर चले। काफ़िर ये सुन कर हंसते और तमसख़ुर करते थे। हज़रत नूह अलैहिस्सलाम फ़रमाते कि आज तुम हंसते हो और एक दिन हम तुम पर हंसेंगे।

हज़रत नूह अलैहिस्सलाम ने ये कश्ती दो साल में तैयार की। उसकी लम्बाई तीन सौ गज़, चौड़ाई पचास गज़ और

हज़रत आदम अलैहिस्सलाम और जंगली हिरन

〽️हज़रत आदम अलैहिस्सलाम जब जन्नत से ज़मीन पर तशरीफ़ लाये तो ज़मीन के जानवर आपकी ज़ियारत को हाज़िर होने लगे।

हज़रत आदम अलैहिस्सलाम हर जानवर के लिए उसके लायक दुआ फ़रमाते। उसी तरह जंगल के कुछ हिरन भी सलाम करने और ज़ियारत की नीयत से हाज़िर हुए। आपने अपना हाथ मुबारक उनकी पुश्तों पर फेरा और उनके लिए दुआ फरमाई, तो उनमें नाफ़ाऐ मुश्क पैदा हो गई। वो हिरन जब ये खुश्बू का तोहफा लेकर अपनी क़ौम में वापस आए तो हिरनों के दूसरे गिरोह ने पूछ कि ये खूश्बू तुम कहाँ से ले आए? वो बोले अल्लाह का पैग़म्बर आदम अलैहिस्सलाम जन्नत से ज़मीन पर तशरीफ़ लाये हैं। हम उनकी ज़ियारत के लिए हाज़िर हुए थे तो उन्होंने रहमत भरा अपना हाथ हमारी पुश्तों पर फेरा तो ये खूश्बू पैदा हो गई। हिरनों का वो दूसरा गिरोह बोला तो फिर हम भी जाते हैं।

चुनाँचे वो भी गए हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ने उनकी पुश्तों पर भी हाथ फेरा मगर उनमें वो खूश्बू पैदा ना हुई और वो जैसे गए थे वैसे के वैसे ही वापस आ गए। वापस आकर वो मुतअज्जिब होकर बोले कि ये क्या बात है?

शैतान की थूक

〽️खुदा ने जब हज़रत आदम अलैहिस्सलाम का पुतला मुबारक तैयार फ़रमाया तो फ़रिश्ते हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के उस पुतले मुबारक की ज़ियारत करते थे, मगर शैतान लईन हसद की आग में जल भुन गया और एक मर्तबा उस मर्दूद ने बुग्ज़ व कीने में आकर हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के पुतले मुबारक पर थूक दिया। ये थूक हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की नाफ़ मुबारक के मुक़ाम पर पड़ी, खुदा तआला ने हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम को हुक्म दिया के उस जगह से इतनी मिट्टी निकाल कर उस मिट्टी का कुत्ता बना दो।

चुनाँचे उस शैतानी थूक से मिली हुई मिट्टी का कुत्ता बना दिया गया। ये कुत्ता आदमी से मानूस इसलिए है कि मिट्टी हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की है और पलीद इसलिए है कि थूक शैतान की है और रात को जागता इसलिए है कि हाथ इसे जिब्राईल के लगे हैं।

#(रूह-उल-बयान, सफा-68, जिल्द-1)


🌹सबक़ ~
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शैतान के थूकने से हज़रत आदम अलैहिस्सलाम का कुछ नहीं बिगड़ा बल्की मुक़ामे नाफ शिकम के लिए वजह

हज़रत आदम अलैहिस्सलाम और शैतान

〽️ख़ुदावन्द करीम ने फ़रिश्तों में जब एलान फ़रमाया के मैं ज़मीन में एक ख़लीफा बनाने वाला हूँ तो शैतान लईन ने उस बात का बहुत बुरा मनाया और अपने जी ही जी में हसद की आग में जलने लगा।

चुनाँचे जब खुदा ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को पैदा फ़रमा कर फ़रिश्तों को हुक्म दिया के मेरे ख़लीफ़ा के आगे सज्दे में झुक जाओ तो सब सज्दे में झुक गए। मगर शैतान लईन अकड़ा रहा और ना झुका।

खुदावन्द करीम को उसका ये तजुर्बा पसंद ना आया और उससे दरयाफ़्त फ़रमाया के ऐ इबलीस! मैंने जब अपने ये क़ुद्रत से बनाए हुए ख़लीफ़ा के आगे सज्दा करने का हुक्म दिया तो तुम ने क्यों ना सज्दा किया?

शैतान ने जवाब दिया- मैं आदम से अच्छा हूँ, इसलिए के मैं आग से बना हुआ हूँ और वो मिट्टी से बना है फिर मैं एक बशर को सज्दा क्यों करता?

खुदा तआला ने उसका ये रऊनत भरा जवाब सुना तो फ़रमायाः मर्दूद निकल जा मेरी बारगाहे रहमत से। जा तू

एक वली और मोहद्दिस

〽️एक वली एक मोहद्दिस के दर्से हदीस में हाज़िर हुए तो एक मोहद्दिस ने एक हदीस पढ़ी और कहा क़ाला रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम यानी रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने यूं फ़रमाया तो वो वली बोले, ये हदीस बातिल है रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने हरगिज़ यूं नहीं फ़रमाया।

वो मोहद्दिस बोले के तुम ऐसा क्यों कह रहे हो? और तुम्हें कैसे पता चला के रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने ऐसा नहीं फ़रमाया?

तो वली ने जवाब दियाः- हाज़ा अन्नबिय्यू सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम वक़ीफू अला रासिका यकूलू इन्नी लम अकुल हाज़ल हदीस। “ये देखो नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम तुम्हारे सर पर खड़े हैं और फ़रमा रहे हैं मैंने हरगिज़ ये हदीस नहीं कही।"

वो मोहद्दिस हैरान रह गए और वली बोले, क्या तुम हुज़ूरे अक्रमﷺ को देखना चाहते हो तो देख लो।

चुनाँचे जब उन मोहद्दिस ने ऊपर देखा तो हुज़ूरﷺ को तशरीफ़ फ़रमा देख लिया।

#(फ़तावा हदीस, सफ़ा-212)


🌹सबक़ ~
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हमारे हुज़ूरﷺ हाज़िर व नाज़िर हैं मगर देखने के लिए किसी वली क़ी नज़र दरकार है और किसी कामिल वली

अबु अलहसन ख़रक़ानी और हदीस का दर्स

〽️हज़रत अबु अलहसन ख़रक़ानी अलैहिर्रहमा के पास एक शख़्स इल्मे हदीस पढ़ने के लिए आया और दरयाफ़्त किया के आपने हदीस कहाँ से पढ़ी❓

हज़रत ने फरमाया- बराहे रास्त हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम से, उस शख़्स को यकीन ना आया, रात को सोया तो हुज़ूरﷺ ख्वाब में तशरीफ़ लाए और फ़रमाया अबु अलहसन सच कहता है मैंने ही उसे पढ़ाया है।

सुबह को हज़रत अबु अलहसन की ख़िदमत में वो हाज़िर हुआ और हदीस पढ़ने लगा, बअज़ मुक़ामात पर हज़रत अबु अलहसन ने फ़रमाया हदीस आँ हज़रत सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम से मरवी नहीं। उस शख़्स ने पूछा के आपको कैसे मालूम हुआ, फ़रमया तुम ने हदीस पढ़ना शुरू की तो मैंने हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम के अब्ररूऐ मुबारक को देखना शुरू किया मेरी आँखें हुज़ूरﷺ के अब्ररूऐ मुबारक पर

अब्दुल्लाह बिन मुबारक और सय्यदज़ादा

〽️हज़रत अब्दुल्लाह बिन मुबारक रहमतुल्लाह अलैह एक बड़े मजमऐ के साथ मस्जिद से निकले तो एक सय्यदज़ादे ने उनसे कहा, ऐ अब्दुल्लाह! ये कैसा मजमअ है? देख मैं फ़रज़न्द रसूल हूँ और तेरा बाप तो ऐसा ना था।

हज़रत अब्दुल्लाह बिन मुबारक ने जवाब दिया, मैं वो काम करता हूँ जो तुम्हारे नाना जान ने किया था और तुम नहीं करते और ये भी कहा के बेशक तुम सय्यद हो और तुम्हारे वालिद रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम हैं और मेरा वालिद ऐसा ना था मगर तुम्हारे वालिद से इल्म की मीरास बाक़ी रही, मैंने तुम्हारे वालिद की मीरास ली मैं अज़ीज़ और बुज़ुर्ग हो गया तुम ने मेरे वालिद की मीरास ली
तुम इज्ज़त ना पा सके।

उसी रात ख़्वाब में हज़रत अब्दुल्लाह बिन मुबारक ने हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम को देखा के चेहराऐ मुबारक आपका मुतग़य्यर है, अर्ज़ किया या रसूलल्लाहﷺ! ये रंजिश क्यों? फरमाया! तुम ने मेरे एक बेटे पर नुक्ता चीनी की है अब्दुल्लाह बिन मुबारक जागे और उस सय्यदज़ादे की तलाश में निकले ताके उससे माफ़ी तलब करें।

इधर इस सय्यद ज़ादे ने भी उसी रात को ख़्वाब में हुज़ूरे अक्रमﷺ को देखा और हुज़ूर ने उससे ये फ़रमाया के

एक सय्यदज़ादी और मजूसी

〽️मुल्के समरकन्द में एक बेवा सय्यदज़ादी रहती थी उसके चन्द बच्चे भी थे, एक दिन वो अपने भूके बच्चों को लेकर एक रईस आदमी के पास पहुंची और कहा मैं सय्यदज़ादी हूँ मेरे बच्चे भूके हैं उन्हें खाना खिलाओ।

वो रईस आदमी जो दौलत के नशे में मख़्मूर और बराए नाम मुसलमान था कहने लगा तुम अगर वाक़ई सय्यदज़ादी हो तो कोई दलील पेश करो, सय्यदज़ादी बोली मैं एक गरीब बेवा हूँ ज़बान पर एतबार करो के सय्यदज़ादी हूँ और दलील क्या पेश करूँ? वो बोला मैं ज़बानी जमा ख़र्च का मोअतक़िद नहीं अगर कोई दलील है तो पेश करो वरना जाओ।

वो सय्यदज़ादी अपने बच्चों को लेकर वापस चली आई और एक मजूसी रईस के पास पहुंची और अपना किस्सा बयान किया वो मजूसी बोला, मोहत्रमा! अगरचे मैं मुसलमान नहीं हूँ मगर तुम्हारी सियादत की तअज़ीम व क़द्र करता हूँ आओ और मेरे यहाँ ही कयाम फ़रमाओ मैं तुम्हारी रोटी और कपड़े का ज़ामिन हूँ, ये कहा और उसे अपने यहाँ ठहरा कर उसे और उसके बच्चों को खाना खिलाया और उनकी बड़ी ख़िदमत की।

रात हुई तो वो बराए नाम मुसलमन रईस सोया तो उसने ख़्वाब में हुज़ूर सरवरे आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम को देखा जो एक बहुत बड़े नूरानी महल के पास तशरीफ़ फ़रमा थे, इस रईस ने पूछा या रसूलल्लाहﷺ! ये नूरानी महल किस लिए है? हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया, मुसलमान के लिए, वो बोला तो हुज़ूरﷺ मैं भी मुसलमान हूँ ये मुझे अता फरमा दीजिए, हुज़ूरﷺ ने फरमाया अगर तू मुसलमान है तो अपने इस्लाम की कोई दलील पेश कर! वो

फंसा हुआ जहाज़

〽️एक मर्दै सालेह को एक काफ़िर बादशाह ने गिरफ़्तार कर लिया वो फ़रमाते हैं उस बादशाह का एक बहुत बड़ा जहाज़ दरिया में फंस गया था, जो बड़ी कोशिश के बावजूद दरिया से निकल ना सका। आख़िर एक दिन जिस क़द्र क़ैदी थे उनको बुलाया गया ताकी वो सब मिलकर उस जहाज़ को निकालें।

चुनाँने उन क़ैदियों ने जिनकी तअदाद तीन हज़ार थी मिलकर कोशिश की मगर फिर भी वो जहाज़ निकल ना सका फिर उन क़ैदियों ने बादशाह से कहा के जिस क़द्र मुसलमान क़ैदी हैं उनको कहिये वो ये जहाज़ निकाल सकेंगे लेकिन शर्त ये है के वो जो नअरा लगाएँ उन्हें रोका ना जाए, बादशाह ने ये बात तसलीम कर ली और सब मुसलमान क़ैदियों को रिहा कर के कहा के तुम अपनी मर्जी के मुताबिक जो नअरा लगाना चाहो लगाओ और उस जहाज़ को निकालो।

वो मर्दै सालेह फरमाते हैं के हम सब मुसलमान क़ैदियों की तअदाद चार सौ थी हम ने मिल कर नअराऐ रिसालत लगाया और एक आवाज से “या रसूलल्लाहﷺ" कहा और जहाज़ को एक धक्का लगाया तो वो जहाज़ अपनी जगह से हिल गया फिर हम ने नअरा लगाते हुए उसे रूकने नहीं दिया हत्ता के उसे बाहर निकाल दिया।

#(शवाहिद-उल-हक-लिलनबहानी, सफा-163)


🌹सबक़ ~
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नअराऐ रिसालत मुसलमानों का मेहबूब नअरा है और मुसलमानों ने उसे हमेशा अपनाए रखा और उस नामे

जज़ीरे का क़ैदी

〽️इब्ने मरज़ूक बयान करते हैं के जज़ीराऐ शिक्र के एक मुसलमान को दुश्मनों ने क़ैद कर लिया और उसके हाथ पाँऊ लोहे की ज़ंजीरों से बाँध कर क़ैदख़ाने में डाल दिया और उस मुसलमान ने हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम का नाम लेकर फ़रियाद की और ज़ोर से कहने लगा “या रसूलल्लाहﷺ" ये नअरा सुन कर काफ़िर बोले अपने रसूल से कहो तुम्हें इस क़ैद से छुड़ाने आए फिर जब रात हुई और आधी रात का वक़्त हुआ तो क़ैदख़ाने में कोई शख़्स आया और उसने क़ैदी से कहा, उठो! “अज़ान कहो”

कैदी ने अज़ान देना शुरू की और जब वो इस जुमले पर पहुँचा अशहदन्ना मोहम्मदुर्ररसूलल्लाह तो उसकी सब ज़ंजीरें टूट गयीं और वो आज़ाद हो गया फिर उसके सामने एक बाग़ ज़ाहिर हो गया और वो उस बाग़ से होता हुआ बाहर आ गया, सुबह उसकी रिहाई का सारे जज़ीरे में चर्चा होने लगा।

#(शवाहिद-उल-हक, सफा- 162)


🌹सबक़ ~
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मुसलमान हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का नअराऐ रिसालत हमेशा लगाते रहें और इस नअरा का मज़ाक़

क़ातिल की रिहाई

〽️बग़दाद के हाकिम इब्राहीम बिन इसहाक़ ने एक रात ख़्वाब में हुज़ूर सल्लल्लाहु व सल्लम को देखा और हुज़ूरﷺ ने उससे फ़रमाया "क़ातिल को रिहा कर दो” ये हुक्म सुन कर हाकिम बग़दाद कांपता हुआ उठा और मातहेत अम्ले से पूछा के क्या कोई ऐसा मुज्रिम भी है जो क़ातिल हो? उन्होंने बताया के हाँ एक ऐसा शख़्स भी है जिस पर इल्ज़ाम क़त्ल है। हाकिम बग़दाद ने कहा उसे मेरे सामने लाओ।

चुनाँचे उसे लाया गया, हाकिमें बग़दाद ने पूछा के सच सच बताओ वाक़या क्या है? उसने कहा सच कहूँगा झुट हरगिज़ ना बोलूंगा, बात ये हुई के हम चन्द आदमी मिलकर अय्याशी व बदमाशी किया करते थे एक बूढ़ी औरत को हम ने मुकर्रर कर रखा था जो हर रात किसी बहाने से कोई ना कोई औरत ले आती थी। एक रात वो एक ऐसी औरत को लाई जिसने मेरी दुनिया में इंक़िलाब बर्पा कर दिया।

बात ये हुई के वो नोवारिद औरत जब हमारे सामने आई तो चीख़ मार कर और बेहोश होकर गिर गई। मैंने उसे उठा कर एक दूसरे कमरे में लाकर उसे होश में लाने की कोशिश की और जब वो होश में आ गई तो उससे चीख़ने और बेहोश होने की वजह पूछी, वो बोली ऐ नोजवान! मेरे हक़ में अल्लाह से डर। फिर कहती हूँ के अल्लाह से डर! ये बुढ़िया तो मुझे बहाने ही बहाने से इस जगह ले आई है देखः-

"मैं एक शरीफ़ औरत हूँ और सय्यदा हूँ, मेरे नाना रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और मेरी माँ फ़ातिमा-त-उज़्ज़ोहरा हैं, ख़बरदार इस निस्बत का लिहाज़ रखना और मेरी तरफ़ बद निगाही से ना देखना।"

मैंने जब उस पाक औरत से जो सय्यदा थी ये बात सुनी तो लरज़ गया और अपने दोस्तों के पास आकर उन्हें हक़ीक़त हाल से आगाह किया और कहा के अगर आक़्बत की ख़ैर चाहते हो तो इस मुकर्रमा व मोअज़्ज़मा

शाहे रोम का क़ैदी

〽️उन्दलिस के एक मर्द सालेह के लड़के को शाहे रोम ने क़ैद कर लिया था वो मर्द सालेह फ़रियाद लेकर मदीना मुनव्वरह को चल पड़ा।

रास्ते में एक दोस्त मिला, और उसने पूछा कहाँ जा रहे हो? तो उसने बताया के मेरे लड़के को शाहे रोम ने क़ैद कर लिया है और तीन सौ रूपये उस पर जुर्माना कर दिया है। मेरे पास इतना रूपया नहीं जो देकर मैं उसे छुड़ा सकूँ, इसलिए मैं हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास फ़रियाद लेकर जा रहा हूँ। उस दोस्त ने कहा मगर मदीना मुनव्वरह ही पहुँचने की क्या ज़रूरत है हुज़ूर से तो हर मकान पर शफ़ाअत कराई जा सकती है उसने कहा ठीक है मगर मैं तो वहीं हाज़िर होऊँगा।

चुनाँचे वो मदीना मुनव्वरह हाज़िर हुआ और रोज़ाए अनवर की हाज़री के बाद अपनी हाजत अर्ज़ की। फिर ख्वाब में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ज़ियारत हुई तो हुज़ूरﷺ ने उससे फ़रमाया "जाओ अपने शहर पहुँचो।"

चुनाँचे वो वापस आ गया और घर आकर देखा के लड़का घर आ गया है, लड़के से रिहाई का किस्सा पूछा तो उसने बताया के फ़लानी रात मुझे और मेरे सब साथी क़ैदियों को बादशाह ने खुद ही रिहा कर दिया है। इस मर्द सालेह ने हिसाब लगाया तो ये वही रात थी जिस रात हुज़ूरﷺ की ज़ियारत हुई थी और अपने फ़रमाया था " जाओ अपने शहर पहुँचो।”

#(हुज्जत-उल्लाह अली अलआलमीन, सफ़ा-780)


🌹सबक़ ~
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हमारे हुज़ूरﷺ हर मुसीबत ज़दा की मदद फरमाते हैं और क़ब्र अनवर में तशरीफ़ फ़रमा होकर भी अपने ग़ुलामों

ख्वाब की रोटी

〽️हज़रत अबुअलख़ैर फ़रमाते हैं एक मर्तबा मैं मदीना मुनव्वरह में हाज़िर हुआ तो मुझे पाँच दिन का फ़ाक़ह आ गया, मैं रोजाऐ अनवर पर हाज़िर हुआ और हुज़ूरﷺ पर सलाम अर्ज़ करके फिर हज़रत अबु बक्र और हज़रत उमर रदिअल्लाहु अन्हुमा पर सलाम अर्ज़ किया और फिर अर्ज़ किया या रसूलल्लाहﷺ! मैं तो आप का मेहमान हूँ और पाँच रोज़ से भुका हुँ।

अबुअलख़ैर कहते हैं कि मैं फिर मिंबर के पास सो गया तो ख़्वाब में देखा की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैही व सल्लम तशरीफ़ लाए हैं आपके दायें तरफ़ हज़रत सिद्दीक़ और बायें तरफ़ हज़रत उमर और आगे हज़रत अली (रदिअल्लाहु अन्हुम) थे। हज़रत अली ने मुझे आगे बढ़ कर ख़बरदार किया और फ़रमाया उठो वो देखो! रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्ल तशरीफ ला रहे हैं और तुम्हारे लिए खाना लाए हैं, मैं उठा और देखा कि हुज़ूरﷺ के हाथ में रोटी है वो रोटी हुज़ूरﷺ ने मुझे अता फ़रमाई। मैंने हुज़ूरﷺ की पैशानी अनवर को बोसा देकर वो रोटी ले ली और खाने लगा आधी खाली तो मेरी आँख खुल गई क्या देखता हूँ के बाकी आधी रोटी मेरे हाथ में है।

#(हुज्जत-उल्लाह अली अलआलमीन, सफा-805)


🌹सबक़ ~
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हमारे हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम विसाल शरीफ़ के बाद भी क़ासिम रिज़्क़ उल्लाह हैं और मोहताजों के लिए दाता हैं और ये भी मालूम हुआ के बुज़ुर्गाने दीन अपनी तकलीफ़ व मुश्किलात बारगाहे नबव्वी में पेश किया करते थे और हुज़ूरﷺ विसाल के बाद भी अपने गुलामों की फ़रियाद रसी फ़रमाते हैं।

📕»» सच्ची हिकायात ⟨हिस्सा अव्वल⟩, पेज: 61-62, हिकायत नंबर-46
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ख्वाब का दूध

〽️हज़रत शेख़ अबु अब्दुल्लाह फरमाते हैं एक मर्तबा हम मदीना मुनव्वरह हाज़िर हुए तो मस्जिद नबवी में महेराब के पास एक बुज़ुर्ग आदमी को सोए हुए देखा थोड़ी देर में वो जागे और जागते ही रोज़ाऐ अनवर के पास जाकर हुज़ूर अनवर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर सलाम अर्ज़ किया और फिर मुसकुराते हुए लौटे एक ख़ादिम ने उन से इस मुसकुराहट की वजह पूछी तो बोले मैं सख़्त भूका था, इसी आलम में मैंने रोज़ाऐ अनवर पर हाज़िर होकर भूक की शिकायत की तो ख्वाब में मैंने हुज़ूरﷺ को देखा आपने मुझे एक पियाला दूध का अता फरमाया और मैंने खूब पेट भर कर दूध पिया और फिर उस बुजुर्ग ने अपनी हथेली पर मुंह से थूक कर दिखाया तो हम ने देखा के हथेली पर वाकई दूध ही था।

#(हुज्जत-उल्लाह अलआलमीन, सफा-804)


🌹सबक ~
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हुज़ूरﷺ को ख्वाब में देखने वाला हुज़ूरﷺ ही को देखता है और हुज़ूरﷺ की ख़्वाब में भी जो अता हो वो वाक़ई अता होती है और ये भी मालूम हुआ के हुज़ूरﷺ भी वैसे ही जिन्दा हैं जैसे पहले थे।

📕»» सच्ची हिकायात ⟨हिस्सा अव्वल⟩, पेज: 61, हिकायत नंबर-45
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रसूलल्लाह ﷺ का पैगाम एक मजूसी के नाम

〽️शीराज़ के एक बुज़ुर्ग हज़रत फ़ाश फ़रमाते हैं मेरे यहाँ एक बच्चा पैदा हुआ और मेरे पास खर्च करने के लिए कुछ भी ना था और वो मोसम इन्तिहाई सर्दी का था। मैं उसी फ़िक्र में सो गया तो ख्वाब में हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की ज़ियारत नसीब हुई आपने फ़रमाया क्या बात है? मैंने अर्ज किया हुज़ूरﷺ खर्च के लिए मेरे पास कुछ नहीं बस इसी फ़िक्र में था। हुज़ूरﷺ ने फरमाया, दिन चढ़े तो फलाँ मजूसी के घर जाना और उससे कहना के रसूलल्लाहﷺ ने तुझे कहा है के बीस दीनार तुझे दे दे, हज़रते फ़ाश सुबह उठे तो हैरान हुए के एक मजूसी के घर कैसे जाऊँ और रसूलल्लाहﷺ का हुक्म वहाँ कैसे सुनाऊँ और फिर ये बात भी दुरस्त है के ख्वाब में हुज़ूरﷺ नज़र आएँ तो वो हुज़ूरﷺ ही होते हैं इसी शश व पंज में वो दिन गुजर गया और दूसरी रात फिर हुज़ूर की ज़ियारत हुई और हुज़ूरﷺ ने फरमया तुम इस ख़याल को छोड़ो और उस मजूसी के पास जाकर मेरा पैगाम दो।

चुनाँचे हज़रत फाश सुबह उठे और उस मजूसी के घर चल पड़े, क्या देखते हैं के वो मजूसी अपने हाथ में कुछ लिए हुए दरवाजे पर खड़ा है जब उसके पास पहुँचे तो चूँकि वो उनको जानता ना था और ये पहली मर्तबा उसके पास आए थे इसलिए शर्मा गए और वो मजूसी खुद ही बोल पड़ा, बड़े मियाँ! क्या कुछ हाजत है? हज़रत फ़ाश बोले हाँ मुझे रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने तुम्हारे पास ये कह कर भेजा है के तुम मुझे बीस दीनार दे दो, उस मजूसी ने अपना हाथा खोला और कहा तो लीजिए ये बीस दीनार मैंने आप ही के लिए निकाल रखे थे और आपकी राह देख रहा था। हज़रत फाश ने वो दीनार ले लिए और उस मजूसी से पूछा, भई मैं तो भला रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम को ख्वाब में देख कर यहाँ आया हूँ मगर तुझे मेरे आने का कैसे इल्म हो गया तो वो बोला, मैंने रात को उस शक्ल व सूरत के एक नूरानी बुज़ुर्ग को ख्वाब में देखा है जिसने मुझ से

एक हाशमी औरत

〽️मदीना मुनव्वरह में एक हाशमी औरत रहती थी उसे बअज़ लोग ईज़ा दिया करते थे एक दिन वो हुज़ूरﷺ के रोजे पर हाज़िर हुई और अर्ज़ करने लगी, या रसूलल्लाहﷺ! ये लोग मुझे ईज़ा देते हैं, रोजाऐ अनवर से आवाज़ आई। क्या मेरा असवाऐ हस्ना तुम्हारे सामने नहीं, दुश्मनों ने मुझे ईज़ाएँ दीं और मैंने सब्र किया। मेरी तरह तुम भी सब्र करो।

वो औरत फरमाती है के मुझे बड़ी तसकीन हुई और चन्द दिन के बाद मुझे ईज़ा देने वाले भी मर गए।

#(शवाहिद-उल-हक, सफ़ा-165)


🌹सबक ~
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हमारे हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैही व सल्लम सबकी सुनते हैं और हर मज़लूम के लिए आप ही का दर, जाऐ

उम्मे फातिमा

〽️असकन्द्रिया की एक औरत उम्मे फातिमा मदीना मुनव्वरह में हाज़िर हुई तो उसका एक पैर जख्मी और मुतावर्रिम हो गया हत्ता के वो चलने से रह गई लोग मक्का मोअज़्ज़मा जाने लगे मगर वो वहीं रह गई, एक दिन वो किसी तरह रोजाऐ अनवर पर हाज़िर हुई और रोजाऐ अनवर का तवाफ़ करने लगी तवाफ़ करती जाती और ये कहती जाती, या हबीबी या रसूलल्लाहﷺ लोग चले गए और मैं रह गई, हुज़ूरﷺ! या तो मुझे वापस भेजिए या फ़िर अपने पास बुला लीजिए ये कह रही थी के तीन अरबी नोजवान मस्जिद में दाख़िल हुए और कहने लगे के कौन मक्का मोअज़्ज़मा जाना चाहता है।

उम्मे फातिमा ने जल्दी से कहा मैं जाना चाहती हूँ उनमें से एक बोला तो उठो, उम्मे फातिमा बोली मैं उठ नहीं सकती उसने कहा अपना पैर फैलाओ तो उम्मे फातिमा ने मतावर्रिम पैर फैला दिया उसका जो अब मुतावर्रिम पैर देखा तो तीनों बोले हाँ यही वो है और फिर तीनों आगे बढ़े और उम्मे फ़ातिमा को उठा कर सवारी पर बैठा दिया और मक्का मोअज़्ज़मा पहुँचा दिया और दरयाफ्त करने पर उनमें से एक नोजवान ने बताया के मुझे हुज़ूरﷺ ने ख्वाब में हुक़्म फरमाया था के उस औरत को मक्का पहुँचा दो उम्मे फातिमा कहती हैं के मैं बड़े आराम से मक्का पहुँच गई।

#(शवाहिद-उल-हक, सफा-164)


🌹सबक ~
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हमारे हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम आज भी हर फ़रियादी की फ़रियाद सुनते हैं और हर मुश्किल

बिलाल का ख्वाब

〽️हज़रत उमर रदीअल्लाहु अन्हु के अहेदे खिलाफ़त में एक मर्तबा कहेत पड़ गया तो हज़रत बिलाल बिन हारिस मुज़नी रदीअल्लाहु अन्हु रोज़ाऐ अनवर पर हाजिर हुए और अर्ज़ किया या रसूलल्लाहﷺ! आपकी उम्मत हलाक हो रही है बारिश नहीं होती, हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम उन्हें ख्वाब में मिले और फ़रमाया ऐ बिलाल! उमर के पास जाओ उसे मेरा सलाम कहो और कह दो के बारिश हो जाएगी और उमर से ये भी कहना के कुछ नर्मी इख्तियार करे (ये हुज़ूरﷺ ने इस लिए फरमाया के हजरत उमर फारूक रदीअल्लाहु अन्हु दीन के मामले में बड़े सख्त थे) हज़रत बिलाल हज़रत उमर की खिदमत में हाजिर हुए और हुज़ूरﷺ का सलाम व पैगाम पहुँचा दिया, हज़रत उमर ये सलाम व पैगामे महबूब पा कर रोए और फिर बारिश भी खूब हुई।

#(शवाहिद-उल-हक-लिलनबहानी, सफा-67)


🌹सबक ~
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मालूम हुआ के विसाल शरीफ के बाद भी सहाबा-ए-किराम मुश्किल के वक्त हुज़ूरﷺ ही की खिदमत में

आसमान का गिरया

〽️मदीना मुनव्वरह में एक बार कहेत पड़ गया, बारिश होती ही ना थी लोग उम्मुल मोमिनीन हज़रत आयशा सिद्दीका रदीअल्लाहु अन्हा की खिदमत में फ़रियाद लेकर हाज़िर हुए।

हज़रत उम्मुल मोमिनीन रदीअल्लाहु अन्हा ने फ़रमाया- हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की कब्र अनवर पर से छत में एक सुराख कर दो ताकी आसमान और कब्र में कोई हिजाब ना रहे। चुनाँचे लोगों ने ऐसा ही किया तो इस क़द्र बारिश हुई के खेतियाँ हरी हो गईं और जानवर मोटे हो गए मोहद्दिसीन लिखते हैं के आसमान ने जब क़ब्र अनवर को देखा तो रो पड़ा था।

#(मिश्कात शरीफ़, सफा-527)


🌹सबक ~
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हमारे हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम का फ़्यूज पाक विसाल शरीफ के बाद भी बदस्तूर जारी है और

कब्र अनवर से अज़ान की आवाज़

〽️जिन दिनों लश्करे यजीद ने मदीना मुनव्वरह पर चढ़ाई की उन दिनों तीन दिन मस्जिद नबवी में अज़ान ना हो सकी।

हज़रत सईद बिन अलमसीब रदिअल्लाहु अन्हु ने ये तीन दिन मस्जिद नबव्वी में रह कर गुजारे, आप फरमाते हैं के नमाज़ के वक्त हो जाने का मुझे कुछ पता नहीं चलता था मगर इस तरह जब नमाज़ का वक्त आता कब्र अनवर से एक हल्की सी अज़ान की आवाज़ आने लगती।

#(मिश्कात शरीफ, सफा-537)


🌹सबक ~
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हमारे हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम कब्र अनवर में भी ज़िन्दा हैं और जो शख्स (माज़ अल्लाह) हुज़ूर को मर

क़ब्र अनवर से आवाज़

〽️हज़रत अली रदिअल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं जब हम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दफ़्ने मुबारक से फ़ारिग़ हुए तो तीन रोज़ के बाद एक आराबी क़ब्रे अनवर पर हाज़िर हुआ और क़ब्र अनवर पर गिर कर कब्र अनवर की ख़ाक़ अपने सर पर डालने लगा और कहने लगा, या रसूलल्लाहﷺ! जो कुछ आपने फ़रमाया हम ने सुना और आपकी ज़बानी हम ने क़ुरान की ये आयत भी सुनी *वलो अन्नाहुम इज़ज़लामू अनफुसाहुम जाऊक " यानी जो लोग अपनी जानों पर जुल्म कर बैठे वो आपके पास हाज़िर हों"* पस ऐ अल्लाह के रसूलﷺ! मैं अपनी जान पर जुल्म कर बैठा हूँ और अब गुनाहों की माफी के लिए आपके पास आ पहुँचा हूँ।

आराबी ने ये कहा तो क़ब्र अनवर से आवाज़ आई, “जाओ अल्लाह ने तुम्हें बख्श दिया।”

#(हुज्जत-उल्लाह अली अलआलमीन, सफा-777)


🌹सबक ~
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हमारे हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम का दरबारे रहमत, विसाले शरीफ के बाद भी बदस्तूर लगा हुआ है और हुज़ूरﷺ अपने विसाल शरीफ के बाद भी गुनहगारों के लिए ज़रियाऐ निज़ात और मुनब्बऐ फ्यूज व बर्कात हैं और आज भी हम हुज़ूर सल्लल्लाहु तआलाअलैहि व सल्लम के बदस्तू मोहताज हैं।

📕»» सच्ची हिकायात ⟨हिस्सा अव्वल⟩, पेज: 57, हिकायत नंबर- 38
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हुज़ूर ﷺ का गुस्ल मुबारक

〽️हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के गुस्ल मुबारक के वक्त सहाबाइक्राम अलेहिम-उरिज़वान सोचने लगे और आपस में कहने लगे के जिस तरह दूसरे लोगों के कपड़े उतार कर उनको गुस्ल दिया जाता है क्या इसी तरह हुज़ूरﷺ के कपड़े मुबारक भी उतार कर हुज़ूरﷺ को गुस्ल दिया जाएगा या हुज़ूरﷺ को कपड़ों समेत गुस्ल दिया जाए?

इस बात पर गुफ़्तगू कर रहे थे के अचानक सब पर नींद तारी हो गई और सब के सर उनके सीनों पर ढलक आए फिर सब को एक आवाज़ आई, कोई कहने वाला कह रहा था के तुम जानते नहीं ये कौन हैं? खबरदार! ये “रसूल अल्लाह” हैं इनके कपड़े ना उतारना इन्हें “कपड़ों समेत ही गुस्ल दो” फिर सब की आँखें खुल गईं और हुज़ूर को कपड़ों समेत ही गुस्ल दिया गया।

#(मवाहिब लदनिया, सफा-378, जिल्द-2; मिश्कात, सफा-537)


🌹सबक ~
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हमारे हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शान सब से मुमताज़ और बरगज़ीदा है और कोई शख्स ऐसा नहीं जो उनकी मिस्ल हो। आपकी ये ज़िन्दगी आपका विसाल शरीफ, आपका गुस्ल शरीफ और आपका कब्र अनवार में रोनक अफ्रोज़ होना हर बात आपकी मुमताज़ है और कोई शख्स किसी बात में आपकी मिस्ल नहीं।

📕»» सच्ची हिकायात ⟨हिस्सा अव्वल⟩, पेज: 56, हिकायत नंबर- 37

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शाही इसतक़्बाल

〽️हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के विसाल शरीफ के वक्त जिब्राईल अमीन हाज़िर हुआ और अर्ज करने लगा या रसूलल्लाहﷺ! आज आसमानों पर हुज़ूर के इसतक़्बाल की तैयारियाँ हो रही हैं, खुदा तआला ने जहन्नम के दारोगा मालिक को हुक्म दिया है के मालिक! मेरे हबीब की रूह मुतहेरा आसमानों पर तशरीफ ला रही है, इस ऐज़ाज़ में दोजख की आग बुझा दे और हूराने जन्नत से फ़रमाया के तुम सब अपनी तज़ईन व आरास्तगी करो और सब फरिश्तों को हुक्म दिया है के तअज़ीमे रूह मुस्तफ़ा के लिए सब सफ़ बसफ खड़े हो जाओ और मुझे हुक्म फ़रमाया है के मैं जनाब की ख़िदमत में हाजिर होकर आपको बशारत दूँ के तमाम अम्बिया और उनकी उम्मतों पर जन्नत हराम है जब तक के आप और आपकी उम्मत जन्नत में दाखिल ना हो जाए और कल कयामत को अल्लाह तआला आपकी उम्मत पर आपके तुफैल इस क़द्र बख़्शिश व मगफिरत की बारिश फ़रमाएगा के आप राजी हो जाएँगे।

#( मदारिज-उन्नबुव्वत, सफा- 254, जिल्द- 2)


🌹सबक ~
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हमारे हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का
ऐज़ाज़ व इक्राम दोनों आलम में है और जिन्न व बशर हूरो मलायक सभी हुज़ूर के खुद्दाम व लश्करी हैं और आप दोनों आलम के बादशाह हैं।

📕»» सच्ची हिकायात ⟨हिस्सा अव्वल⟩, पेज: 55-56, हिकायत नंबर- 36
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हुज़ूर ﷺ और मलक-उल-मौत

〽️हुज़ूर सरवरे-आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के विसाल शरीफ का जब वक्त आया तो मलक-उल-मौत जिब्राईल की मईयत में हाज़िर हुआ, जिब्राईले अमीन ने अर्ज कियाः-

या रसूलल्लाहﷺ! ये मलक-उल-मौत आया है और आप से इजाजत तलब करता है, हुज़ूर! उसने आज तक कभी ना किसी से इजाज़त ली है और ना आपके बाद किसी से इजाज़त लेगा। हुज़ूर अगर इजाज़त दें तो अपना काम करे।

हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया- मलक-उल-मौत को आगे आने दो चुनाँचे मलक-उल-मौत आगे बढ़ा और अर्ज़ करने लगा- या रसूलल्लाहﷺ! अल्लाह तआला ने मझे आपकी तरफ़ भेजा है और मुझे ये हुक्म दिया है के मैं आपका हर हुक्म माँनू और जो आप फ़रमाएँ वही करूँ, लिहाजा आप अगर फ़रमाएँ तो मैं रूह मुबारक कब्ज़ करूँ वरना वापस चला जाऊँ।

जिब्राईल ने अर्ज किया- हुज़ूरﷺ! खुदा बंद करीम आपके लिए विसाल को चाहता है। हज़ूर ﷺ ने फरमया तो ऐ मलक-उल-मौत तुम्हें जान लेने की इजाज़त है।

जिब्राईल बोले हुज़ूरﷺ! अब जब के आप तशरीफ़ लिए जा रहे हैं तो फिर ज़मीन पर मेरा ये आखिरी फैरा है इसलिए के मेरा मक्सूद तो आप ही थे, इसके बाद मलक-उल-मौत कब्ज़ रूहे अनवर के शरफ़ से मुशर्रफ हुआ।

#(मवाहिब-उल-लुदनिया, सफा- 571, जिल्द- 4; मिश्कात शरीफ, सफा- 541)


🌹सबक ~
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हमारे हुज़ूर ﷺ की इतनी बड़ी शान है के वो मलक-उल-मौत जिसने कभी किसी बड़े से बड़े बादशाह से भी इजाज़त नहीं ली हमारे हुज़ूर की खिदमत में हाजिर होकर पहले इजाज़त तलब करता है और यूँ कहता है के अगर आप फ़रमाएँ तो जाँ लू वरना वापस चला जाऊँ और खुदा उसे ये हुक्म देकर भेजता है के मेरे महबूब की इताअत करना, जो वो फरमाएँ वही करना बावजूद उसके जो गुस्ताख़ हुज़ूर ﷺ को अपनी मिस्ल कहते हैं किस क़द्र गुमराह हैं क्या कभी उनसे भी मलक-उल-मौत ने इजाज़त ली है।

📕»» सच्ची हिकायात ⟨हिस्सा अव्वल⟩, पेज: 55, हिकायत नंबर- 35
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🖌पोस्ट क्रेडिट - शाकिर अली बरेलवी रज़वी  व  अह्-लिया मोहतरमा

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खुश अक़ीदा यअफूर

〽️फ़तह खैबर के बाद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम वापस आ रहे थे के रास्ते में आपकी खिदमत में एक गधा हाजिर हुआ और अर्ज करने लगा- हुज़ूर! मेरी अर्ज भी सुनते जाईये। हुज़ूर रहमते आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम उस मिसकीन जानवर की अर्ज सुनने को ठहर गए और फरमाया बताओ क्या कहना चाहते हो।

वो बोला- हुज़ूर मेरा नाम यज़ीद बिन शहाब है और मेरे दादा की नस्ल से खुदा ने साठ खरे पैदा किए हैं उन सब पर अल्लाह के नबी सवार होते रहे और हुज़ूर! मेरे दिल की ये तमन्ना है के मुझ मिसकीन पर हुज़ूर सवारी फरमाएँ और या रसूलल्लाह! मैं उस बात का मुसतहिक हुँ और वो इस तरह के मेरे दादा की औलाद में से सिवा