〽️शीराज़ के एक बुज़ुर्ग हज़रत फ़ाश फ़रमाते हैं मेरे यहाँ एक बच्चा पैदा हुआ और मेरे पास खर्च करने के लिए कुछ भी ना था और वो मोसम इन्तिहाई सर्दी का था। मैं उसी फ़िक्र में सो गया तो ख्वाब में हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की ज़ियारत नसीब हुई आपने फ़रमाया क्या बात है? मैंने अर्ज किया हुज़ूरﷺ खर्च के लिए मेरे पास कुछ नहीं बस इसी फ़िक्र में था। हुज़ूरﷺ ने फरमाया, दिन चढ़े तो फलाँ मजूसी के घर जाना और उससे कहना के रसूलल्लाहﷺ ने तुझे कहा है के बीस दीनार तुझे दे दे, हज़रते फ़ाश सुबह उठे तो हैरान हुए के एक मजूसी के घर कैसे जाऊँ और रसूलल्लाहﷺ का हुक्म वहाँ कैसे सुनाऊँ और फिर ये बात भी दुरस्त है के ख्वाब में हुज़ूरﷺ नज़र आएँ तो वो हुज़ूरﷺ ही होते हैं इसी शश व पंज में वो दिन गुजर गया और दूसरी रात फिर हुज़ूर की ज़ियारत हुई और हुज़ूरﷺ ने फरमया तुम इस ख़याल को छोड़ो और उस मजूसी के पास जाकर मेरा पैगाम दो।

चुनाँचे हज़रत फाश सुबह उठे और उस मजूसी के घर चल पड़े, क्या देखते हैं के वो मजूसी अपने हाथ में कुछ लिए हुए दरवाजे पर खड़ा है जब उसके पास पहुँचे तो चूँकि वो उनको जानता ना था और ये पहली मर्तबा उसके पास आए थे इसलिए शर्मा गए और वो मजूसी खुद ही बोल पड़ा, बड़े मियाँ! क्या कुछ हाजत है? हज़रत फ़ाश बोले हाँ मुझे रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने तुम्हारे पास ये कह कर भेजा है के तुम मुझे बीस दीनार दे दो, उस मजूसी ने अपना हाथा खोला और कहा तो लीजिए ये बीस दीनार मैंने आप ही के लिए निकाल रखे थे और आपकी राह देख रहा था। हज़रत फाश ने वो दीनार ले लिए और उस मजूसी से पूछा, भई मैं तो भला रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम को ख्वाब में देख कर यहाँ आया हूँ मगर तुझे मेरे आने का कैसे इल्म हो गया तो वो बोला, मैंने रात को उस शक्ल व सूरत के एक नूरानी बुज़ुर्ग को ख्वाब में देखा है जिसने मुझ से
फ़रमाया के एक शख्स साहिबे हाजत है वो कल तुम्हारे पास पहुँचेगा उसे बीस दीनार दे देना चुनाँचे मैं ये बीस दीनार लेकर तुम्हारे ही इन्तिजार में था।

हज़रत फ़ाश ने जब उसकी ज़बानी रात को मिलने वाले बुज़ुर्ग का हुलिया सुना तो वो हुज़ूरﷺ का था चुनाँचे हज़रत फ़ाश ने उससे कहा, यही रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हैं। उस मजूसी ने ये वाक़ेया सुन कर थोड़ी देर तोकिफ़ किया और फ़िर कहा मुझे अपने घर ले चलो।

चुनाँचे वो हज़रत फाश के घर आया और कलमा पढ़ कर मुसलमान हो गया फ़िर उसकी बीवी, बहन और उसकी औलाद भी मुसलमान हो गई।

#(शवाहिद-उल-हक, सफा-169)


🌹सबक ~
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हमारे हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की नज़रे रहमत जिस पर पड़ जाए उसका बेड़ा पार हो जाता है और ये भी मालूम हुआ कि हुज़ूर ﷺ अपने मोहताज गुलामों की फ़रियाद सुनते हैं और विसाल शरीफ के बाद भी मोहताजों की मदद फरमाते हैं।

📕»» सच्ची हिकायात ⟨हिस्सा अव्वल⟩, पेज: 60-61, हिकायत नंबर-44
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🖌पोस्ट क्रेडिट - शाकिर अली बरेलवी रज़वी  व  अह्-लिया मोहतरमा

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