〽️उन्दलिस के एक मर्द सालेह के लड़के को शाहे रोम ने क़ैद कर लिया था वो मर्द सालेह फ़रियाद लेकर मदीना मुनव्वरह को चल पड़ा।
रास्ते में एक दोस्त मिला, और उसने पूछा कहाँ जा रहे हो? तो उसने बताया के मेरे लड़के को शाहे रोम ने क़ैद कर लिया है और तीन सौ रूपये उस पर जुर्माना कर दिया है। मेरे पास इतना रूपया नहीं जो देकर मैं उसे छुड़ा सकूँ, इसलिए मैं हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास फ़रियाद लेकर जा रहा हूँ। उस दोस्त ने कहा मगर मदीना मुनव्वरह ही पहुँचने की क्या ज़रूरत है हुज़ूर से तो हर मकान पर शफ़ाअत कराई जा सकती है उसने कहा ठीक है मगर मैं तो वहीं हाज़िर होऊँगा।
चुनाँचे वो मदीना मुनव्वरह हाज़िर हुआ और रोज़ाए अनवर की हाज़री के बाद अपनी हाजत अर्ज़ की। फिर ख्वाब में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ज़ियारत हुई तो हुज़ूरﷺ ने उससे फ़रमाया "जाओ अपने शहर पहुँचो।"
चुनाँचे वो वापस आ गया और घर आकर देखा के लड़का घर आ गया है, लड़के से रिहाई का किस्सा पूछा तो उसने बताया के फ़लानी रात मुझे और मेरे सब साथी क़ैदियों को बादशाह ने खुद ही रिहा कर दिया है। इस मर्द सालेह ने हिसाब लगाया तो ये वही रात थी जिस रात हुज़ूरﷺ की ज़ियारत हुई थी और अपने फ़रमाया था " जाओ अपने शहर पहुँचो।”
#(हुज्जत-उल्लाह अली अलआलमीन, सफ़ा-780)
🌹सबक़ ~
=========
हमारे हुज़ूरﷺ हर मुसीबत ज़दा की मदद फरमाते हैं और क़ब्र अनवर में तशरीफ़ फ़रमा होकर भी अपने ग़ुलामों
की एआनत फ़रमाते हैं और उनके ग़ुलाम किसी मकान से भी उनकी तवज्जह करें हुज़ूरﷺ की रहमत उनका काम कर देती है।
⭕और ये भी मालूम हुआ के पहले बुज़ुर्ग हुज़ूरﷺ की बारगाह में फ़रियादें किया करते थे और उसे किसी ने भी शिर्क नहीं कहा।⭕
📕»» सच्ची हिकायात ⟨हिस्सा अव्वल⟩, पेज: 62-63, हिकायत नंबर-47
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🖌पोस्ट क्रेडिट - शाकिर अली बरेलवी रज़वी व अह्-लिया मोहतरमा
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रास्ते में एक दोस्त मिला, और उसने पूछा कहाँ जा रहे हो? तो उसने बताया के मेरे लड़के को शाहे रोम ने क़ैद कर लिया है और तीन सौ रूपये उस पर जुर्माना कर दिया है। मेरे पास इतना रूपया नहीं जो देकर मैं उसे छुड़ा सकूँ, इसलिए मैं हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास फ़रियाद लेकर जा रहा हूँ। उस दोस्त ने कहा मगर मदीना मुनव्वरह ही पहुँचने की क्या ज़रूरत है हुज़ूर से तो हर मकान पर शफ़ाअत कराई जा सकती है उसने कहा ठीक है मगर मैं तो वहीं हाज़िर होऊँगा।
चुनाँचे वो मदीना मुनव्वरह हाज़िर हुआ और रोज़ाए अनवर की हाज़री के बाद अपनी हाजत अर्ज़ की। फिर ख्वाब में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ज़ियारत हुई तो हुज़ूरﷺ ने उससे फ़रमाया "जाओ अपने शहर पहुँचो।"
चुनाँचे वो वापस आ गया और घर आकर देखा के लड़का घर आ गया है, लड़के से रिहाई का किस्सा पूछा तो उसने बताया के फ़लानी रात मुझे और मेरे सब साथी क़ैदियों को बादशाह ने खुद ही रिहा कर दिया है। इस मर्द सालेह ने हिसाब लगाया तो ये वही रात थी जिस रात हुज़ूरﷺ की ज़ियारत हुई थी और अपने फ़रमाया था " जाओ अपने शहर पहुँचो।”
#(हुज्जत-उल्लाह अली अलआलमीन, सफ़ा-780)
🌹सबक़ ~
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हमारे हुज़ूरﷺ हर मुसीबत ज़दा की मदद फरमाते हैं और क़ब्र अनवर में तशरीफ़ फ़रमा होकर भी अपने ग़ुलामों
की एआनत फ़रमाते हैं और उनके ग़ुलाम किसी मकान से भी उनकी तवज्जह करें हुज़ूरﷺ की रहमत उनका काम कर देती है।
⭕और ये भी मालूम हुआ के पहले बुज़ुर्ग हुज़ूरﷺ की बारगाह में फ़रियादें किया करते थे और उसे किसी ने भी शिर्क नहीं कहा।⭕
📕»» सच्ची हिकायात ⟨हिस्सा अव्वल⟩, पेज: 62-63, हिकायत नंबर-47
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🖌पोस्ट क्रेडिट - शाकिर अली बरेलवी रज़वी व अह्-लिया मोहतरमा
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