〽️हज़रत अबु अलहसन ख़रक़ानी अलैहिर्रहमा के पास एक शख़्स इल्मे हदीस पढ़ने के लिए आया और दरयाफ़्त किया के आपने हदीस कहाँ से पढ़ी❓
हज़रत ने फरमाया- बराहे रास्त हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम से, उस शख़्स को यकीन ना आया, रात को सोया तो हुज़ूरﷺ ख्वाब में तशरीफ़ लाए और फ़रमाया अबु अलहसन सच कहता है मैंने ही उसे पढ़ाया है।
सुबह को हज़रत अबु अलहसन की ख़िदमत में वो हाज़िर हुआ और हदीस पढ़ने लगा, बअज़ मुक़ामात पर हज़रत अबु अलहसन ने फ़रमाया हदीस आँ हज़रत सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम से मरवी नहीं। उस शख़्स ने पूछा के आपको कैसे मालूम हुआ, फ़रमया तुम ने हदीस पढ़ना शुरू की तो मैंने हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम के अब्ररूऐ मुबारक को देखना शुरू किया मेरी आँखें हुज़ूरﷺ के अब्ररूऐ मुबारक पर
हैं। जब हुज़ूर के अब्ररूऐ मुबारक पर शिकन पड़ती है तो मैं समझ जाता हूँ के हुज़ूरﷺ इस हदीस से इंकार फरमा रहे हैं।
#(तज़करत-उल-औलिया, सफ़ा-496)
🌹सबक़ ~
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हमारे हुज़ूर ﷺ ज़िन्दा हैं और हाज़िर व नाज़िर और ये भी मालूम हुआ के अल्लाह वाले हुज़ूर के दीदारे पुर अनवार से अब भी मुशर्रफ़ होते हैं फिर जो हुज़ूरﷺ को ज़िन्दा ना माने वो खुद ही मुर्दा है।
📕»» सच्ची हिकायात ⟨हिस्सा अव्वल⟩, पेज: 68, हिकायत नंबर- 53
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🖌पोस्ट क्रेडिट - शाकिर अली बरेलवी रज़वी व अह्-लिया मोहतरमा
📌 हिंदी हिकायात पोस्ट पढ़ने के लिए क्लिक करिये ⬇
https://MjrMsg.blogspot.com/p/hikaayaat.html
हज़रत ने फरमाया- बराहे रास्त हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम से, उस शख़्स को यकीन ना आया, रात को सोया तो हुज़ूरﷺ ख्वाब में तशरीफ़ लाए और फ़रमाया अबु अलहसन सच कहता है मैंने ही उसे पढ़ाया है।
सुबह को हज़रत अबु अलहसन की ख़िदमत में वो हाज़िर हुआ और हदीस पढ़ने लगा, बअज़ मुक़ामात पर हज़रत अबु अलहसन ने फ़रमाया हदीस आँ हज़रत सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम से मरवी नहीं। उस शख़्स ने पूछा के आपको कैसे मालूम हुआ, फ़रमया तुम ने हदीस पढ़ना शुरू की तो मैंने हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम के अब्ररूऐ मुबारक को देखना शुरू किया मेरी आँखें हुज़ूरﷺ के अब्ररूऐ मुबारक पर
हैं। जब हुज़ूर के अब्ररूऐ मुबारक पर शिकन पड़ती है तो मैं समझ जाता हूँ के हुज़ूरﷺ इस हदीस से इंकार फरमा रहे हैं।
#(तज़करत-उल-औलिया, सफ़ा-496)
🌹सबक़ ~
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हमारे हुज़ूर ﷺ ज़िन्दा हैं और हाज़िर व नाज़िर और ये भी मालूम हुआ के अल्लाह वाले हुज़ूर के दीदारे पुर अनवार से अब भी मुशर्रफ़ होते हैं फिर जो हुज़ूरﷺ को ज़िन्दा ना माने वो खुद ही मुर्दा है।
📕»» सच्ची हिकायात ⟨हिस्सा अव्वल⟩, पेज: 68, हिकायत नंबर- 53
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